उमस ज्यूं ऊमठी पीड़ा
उड़ै है बादळां ज्यूं मन!
हियो यूं ऊकळै है ज्यूं
सांस चालै, क लू चालै।
मुरझिया फूल आसा रा
पिघळ घेरो किसो घालै!
छिड़ी मल्हार होवै ज्यूं
किसी वीणा करै झन-झन।
उमस ज्यूं ऊमठी पीड़ा
उड़ै है बादळां ज्यूं मन!
हियै में साँझ रै पै’ला
किसो अंधकार व्यापै है?
कियां बगना बण्या पड़िया
अकल रा तार कांपै है!
न दीसै, दोस रह्यो है कीं
हुयो ज्यूं आंधलो दरपण!
उमस ज्यूं ऊमठी पीड़ा
उड़ै है बादळां ज्यूं मन!
कठै तक म्हूं उडूं? दीसै—
म्हंनैं कोई न छेड़ो है।
ठिकांणो है नहीं, किण वास्तै
इतरो बखेड़ो है!
उडूं, तो ई उडूं, तो ई उडूं
उड़णो फकत साधन।
उमस ज्यूं ऊमठी पीड़ा
उड़ै-है बादलां ज्यूं मन!
कठै बरसूं? कियां बरसूं?
अठै सागर ई सागर है।
न मोवन खेत री माटी
न कामणगार रो घर है।
जठ तक काम नीं आवै
कियां काया करूं अरपण?
उमस ज्यूं ऊमठी पीड़ा
उड़ै है बादळां ज्यूं मन!
न बणणों हाथ है म्हारै
न उडणों हाथ है म्हारै।
बरसणो तो घणो आधौ
अठै कीं ई कठै सारै?
फकत आजाद-सो दीखूं
जकडियो हूं कितै बन्धण?
उमस ज्यूं ऊमठी पीड़ा
उड़ै है बादळां ज्यूं मन!