बादळियो जळ भर लायो,
जण जण को मन हरसायो॥
ज्यूं ही बरस्यो छे पाणी,
कवियां की बदली छे बाणी।
बैठ नूंयो गीत लिखवायो जी-
बादळियो...॥
बूढ़ी नदियां में आई जवानी,
ढूंगर पछाई छे रवानी।
कूवा बावड़ी को पेट भरायो जी-
बादळियो...॥
बागां में झूला बंधग्या,
बछट्या जे पाछा मिलग्या।
देख सूख्यो रूंख मुस्कायो जी
बादळियो जळ भर लायो॥
बादळ बिना भेद जळ देता
बदला में ना कुछ भी लेता।
ये समझे नहीं अपणो परायो जी
बादळियो जळ भर लायो॥