साव नैड़ै आयगौ

ऊंडो आकास

आंगण रै मांय तिरण लागी

चील अर कांवळां री छींयां

ताजुब हौ म्हनै के

बाड़ रै मांय गुलाब मूंडो काढ’र

मुळकता झांकै हा

उणां रै रतना रै नैणां सूं

टपकतौ रगत कांटां रै मांय

टळक टळक बैवै हौ

म्हारै कानां में आई आवाज

थे बैगा संभळौ

ऊभा है लोग भाला-बंदूक लियां

डोल्यां थै

बिखर सकै है थांरौ भी खून

गुलाब री दांई

उबळतै दूध-सी भीड़

उफणै च्यारूं-कानीं

सावचेत रैवौ अर कान लगायां राखौ

ठा नीं कदै लोग

चढ जावै कांधै माथै

म्हारै खयाल सूं

गुलाब नै नीं,

पूछौ सुरजी रै तावड़ै सूं

कांई वौ जांणै

भालै अर बंदूक रौ इरादौ

गुलाब कांटां में हंसे

पण आज तौ है बुखार

भाला अर बंदूक नै देख’र

म्हैं अब लोगां नै कैवतौ फिरूं

कुण करी कतल

बाड़ रै मांय छिप्योड़ै गुलाब री

उणरै रतनारै नैणां सूं

टपकतौ रगत कांटां रै मांय

टळक-टळक बैवै हौ।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : गोरधनसिंह शेखावत ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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