भेद री बात म्हैं थांनै बताऊं—

अेक सौरम चांद में मझरात आवै,

अर उण सूं घणी तीखी

अेक सौरम सात किरणां में लियां सूरज तपै!

बीजळी तो पूंजळी होवै सौरम री!

अेक सौरम होवै जवांनी में चढ्या चंदण बनां री

फूल री छिण च्यार सौरम

घणी न्यारी होवै नदी, जळपांत री

सौरम समद सूं!

बस इणी गत

जिकी सौरम होवै कंवारी देह री

ओळखै, परखै संध्योड़ा प्रांण

कांमी लोक में तो गंध आकार धर लै!

सांतनू चकरायग्यो इण गंध रा आवेग सूं

चेतना घिरगी असूंधी अेक सौरम रै समद!

बिना होड़ै, बिना आगळ,

वो खिंचोड्यो खिंचोड्यो

मझ पींदै पूगियां दरसण किया जद

अेक सोनल देह रा गंगा किनारै

ज्यूं रमण मुक्ताहळां—

जळपरी कोई बिछड़गी होवै झूलरा सूं!

कुण खड़ी परतख धरा रै केन्द्र में

थूं मानवी है, दानवी लीला

के कोई देव कन्या

भूतणी है संखणी है?

सांच है कै फगत सपनो?

भूतणी ना संखणी ना देवकन्या,

दानवी लीला म्हैं सपनो अधूरी कामना रो

धवड़ी म्हैं झूंपड़ी रा नाथ धीवर री

नाम म्हारो सतवती है

संख सीपी और सफरां रो सरळ संसार म्हारो!

नैण में प्रस्ताव ले पूगो धणी उण झुंपड़ा में,

काढ़ ओळख,

हाथ मांग्यो सतवती रो

कांम रो आंधी चढ्योड़ो!

कीर बोल्यो-

बापजी बेटी अब्याही

घरां तो राजेसरां रै सोभै!

भाग म्हारा,

खुद धणी इण राज रा, जे मांग करली सतवती री

ले पधारो!

पण सुनी म्हैं

अेक है युवराज पैली भांमणी सूं।

आपरै सुरगां गयां पाघां बंधेला सीस उणरै,

राज वो करैला,

अर जाया सतवती रा

जाळ नदिया में बिछा सफरा उडीकत

मारता झख

समद में सीयां मरैला!

राज रा जे धणी वांनै आप मानो

बंस रो दो गरब

अर स्वामी बणावो संपदा रो

तो अरथ है भोग रो इण बाळका सूं

न्याव होवै संतान रो

परणेत रो होवै धरम पावन!

बात अखरी पण खरी ही

आय ऊभो फेर फेर सवाल वो

म्हैं लियायो देवव्रत गांगोत नै

इण राज सारू, भोग संपद रो करण नै

बंस रो अधिकार दे

म्हैं खोस लायो अंस मां रो दिखा पौरुस

सूंप चुकियो बेल, रीत परंपरा री!

आज नट कोनी सकूं हक पूत रो म्हैं

हर नूंवी परणी जलम देवै सपूतां नै

अगर मांगे धरा, धन, राज रो धणियाप आखो

जलम रे इतियास रो मुख मोड़ दे कुण

पूत जेठो तो सदा जेठो रैवैला

नयण नीचा कर, झुका माथो

थक्या पग म्हैल राजा बावड़यो!

अन्न खावै नीं, भावै नीं।

आंख लागी हाय कैड़ी—

रात भर आंख लागै नीं

मन ओपरो, तन छीज कांटा सो होयो

युवराज बुझी दसा,

वो कारण कढायो—

अर खुद पूछ्यां बिना बाप नै

सतवती रै झूंपड़े जा चरण परस्या

प्रगट बोल्यो-

मां, मनां संकोच छोडो

पूत थारा करैला राज, म्हैं दूं वचन सांचा

क्यूं कै म्हैं जांमण बिहूणो हूं अधूरो

संपदा रो खेल खेलै बाप

पण मायड़ बिना

आहुती कोनी म्हनैं लागे

अरे ग्रास म्हारो नीं है

फेर धीजो नीं होवै

सोचता होवो पूत म्हारा राड़ करसी

तो उठा भुज करूं म्हैं प्रतिग्या

सुणो देवी देवता इण बंस रा

धरती, अगन, जळ, चांद, सूरज

म्हैं जलम भर

हां जलम भर, बस कंवारो रहूंला

मुगध माई मां निहाळ्यो बाळका नै

थूं सभाग्यो है घणो गांगेय

थारै दोय मांवां!

दोय नैणां बीच में थूं तिलक जैड़ो

थूं अजेय

अछेह होवैला जीव थारो

थूं जिको छोड्यो सकळ अधिकार कुळ रो

अेकलो थूं बचावै बंस

कुळ रिच्छा करैला!

देवता फूलां बधायो

सांतनू सरमावतो सो पूत सूं टीको कढायो

पण अणूतो अेक बणाव बणतो रुक पायो—

प्रतिग्या घणी भीखम

त्याग रो उन्माद है

भीस्म पडग्यो नांम इणरै कारणै

पण केस होयग्या सेत्त अणछक सीस रा

धुंवां ज्यूं उड़गी जवानी

होयग्या गांगेय बूढा

बाप करता घणा बूढा

अर बूढ़ा रैया जीया जठा लग!

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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