लाय सूं लूसीजती
अंधड़ रा थपेड़ा खावती
अंतस् पीड़ पाळती
खेजड़ी हरी-भरी रैवै
अर
झोळी भर
सांगर्यां
जेठ री जळेब्यां
खुवावै-
देसी-परदेसी
पांख-पंखेरुवां नै
आसरौ दिरावै
बा हीज
गैर-गंभीर बाजै।