नाटकां रा मंच माथै

केई वळा जोयौ है बारणौ

अठा तांईं के बारी

पण इण दरसाव री ओळूं रौ बारणौ कठै छै?

म्हनै बतावौ

लाख लाग्योड़ौ व्है ‘ओळूं डिटेक्टर’ उणमें

म्हैं ओळूं-बायरौ व्हैय बारै आवणी चावूं

इण उणियारा गट्टी सजावटवाळा मंच में

आंख छै

नाक छै

कांन छै

ब्रम्मरंध्र निजर नीं आवै

बाकी सगळा बारणा त्यार छै

देही में प्रांण री गळाई

जिकी बसै छै दस-द्वारांवाळा पिंजड़ा में

वा अेक ओळूं छै

प्रांण री जात निराकार

भार-विहूंण

पण छै आपरी बसावट में

मो-माखी रै छत्ता री जात

(छिड़्यां ठाह पड़ै)

इण ओळूं में अेक ढोलौ छै

जिकौ धूजै

प्रीत री पीड़ सूं पीड़तौ खुद नै, म्हैं

अदीठ सूं परगटती प्रीत रै भाव री उतरणौ

सेंपीड़ प्रेछाघर में

जठै पांणी सूं भाप बणतौ म्हैं बादळी बण

बरस नै फेर पाछौ पांणी रौ अभिनै करूं

तद फुंवार सूं भींज्योड़ी

द्रिस्टाभाव सूं निरखती अपळक

प्रेछक बण बैठी व्है थूं

थारा इण प्रेछक-भाव सूं अपळक देखण रा

इण नाटक नै

देखती म्हैं प्रेछक

अठै प्रेछाघर छै, पात्र छै

अभिनै छै

प्रेछक छै

तद कांईं संवाद-बायरौ नाटक छै

ओळूं रै मंच माथै खेलीजतौ घड़ी-घड़ी

कढण रौ औसर दो

अदीठ ब्रम्मरंध्र सूं व्हैय सही

म्हनै इण नाटक सूं मुगत व्हैण रौ मारग दो!

काढौ

म्हनै बारै काढौ

इण दरसाव री ओळूं सूं बारै काढौ

म्हारौ फितूर कोनीं

म्हारी अरदास छै

साच मांनज्यौ!

नाटक सूं कढणौ अणूंतौ दोरौ कांम छै

साच मांनज्यौ!

स्रोत
  • पोथी : तीजौ अयन ,
  • सिरजक : चन्द्रप्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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