थूं पाळ...

म्हैं नाडी री आगोर!

कदेई चौमासै आपांरै बिचाळै

जळ जळ

थबोळा खावती सरजीवण जूण रा

परसता चूमता

पळ पळ

अेक दूजा सूं जुड़िया सजोर

थूं पाळ...

म्हैं नाडी री आगोर!

कदेई उन्हाळै ऊंधी बांण

आपारै बिचाळै रेत रेत

थारा सूं अळगौ व्हेय

तरेड़ां सूं तिड़क्यौ पड़्यौ म्हैं

लूवां रा झपीड़ में सिकतौ-तपतौ

समाधी में जावूं परौ!

सोचतौ कै आपांरौ नेह

जळ छै के रेत?

अर आपारै बिचाळै

प्रीत छै के आवती जावती रूतां?

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : चन्द्रप्रकाश देवल ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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