अंधारपख रै

सियाळै री लंबी रात

भिजेड़ी काम्बळ दांई

मन्नै घणी भारी लागै

अर

म्हारै अंतस मांय

जगावै अमूज।

काळूंस सूं लदड़-पदड़ हुयोड़ी

इण रात मांय सुपनां री मोरपांख

पगलिया करै अर

उडीकै सूरज रै घोड़ै नैं।

बिछावूं

पलक-पांवडा

सूरज री पैली किरणां

निरखण सारू

अर इणी भरोसै

बितावूं आखी रात

अर हिचकूं

इण

काळी-कुसूणी

सुरंग सूं

बारै

आवण तांईं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली 52 ,
  • सिरजक : श्याम महर्षि ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्ट्र भाषा हिंदी प्रचार समिति
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