सुनसांन अंधारै में

डूब्योड़ा दरखत

धोरां रा जूथ

ऊभा है मून

निरजण उजाड़ में

आभै री गिरद में

आंख्यां झपकातौ चितबगनौ

धू-तारौ

ऊभौ है जांणै कित्ता बरसां सूं

सागण ठौड़ थिर

भाठै री जीवंत-पूतळी-सो

अर हार्‌योड़ा मारग

सूता है खूंटी तांण—

सांसां फेरती रैवै पसवाड़ा आखी रात,

अर किणीं अणचेत पुळ में

अेक अणबूझ धूंधळकौ

सेवट भख लेवै किणीं ढाळ

खप जावै हर-अेक अणूंताई-जुलम

अंधार-पख री

अदीठ काळी पुड़तां में!

जद किणीं

डरावणै जंजाळ वजै

खुल जांवै मांझळ रात में म्हारी आंख

अेकाअेक

दीठाव पसर जावै म्हारी दीठ में

चिरथिर सरणाटौ

भरीज्योड़ौ लाधै च्यारूंकूंटां में

धोरा डाकतौ!

म्हैं निकळ जावूं

गांव री गळियां पार

उण सूख्योड़ै कूअै कांनी

जिण नै अब कोई कोनीं बतळावै

नीं गिनार राखै

स्सार-कर नीसरतां

पण म्हनै हाल भी लगाव है

इण त्याज्योड़ै कुअै सूं उत्तौ गैरौ

अर गाढौ—

घंटां लग बैठौ रैवूं

इण रा फूट्योड़ा खेळी-कोठां माथै

केई बार

अर मैसूसतौ रैवूं इण रौ दरद

मांय-ई-मांय

—कठै गया आं ऊजड़्यै घरां में

रैवणियां सगळा लोग?

म्हैं चाणचक पूछ लेवूं कूअै सूं...

अर पड़ूतर में

घणी जेज तांई गूंजता रैवै

तळ री अंधारी

घुमावदार गैराई में म्हारा सबद

म्हैं भूल जावूं खुद रौ आपौ;

ढळती रात रौ बोध

अर इणीं मनगत में

जद निजर पड़ जावै

अणफैम में गांव माथै—

म्हनै जांणै क्यूं

मैसूस व्हेण लागै कै गांव

हाल भी सागण ठौड़

बिना किणीं दुराव

पिछतावै

कळीज्यां बैठौ है

गुमसुम

दुनियां की तेज रफ्तार

अर जीवण रै सही ढंग सूं अणजांण

साव परबार पळतौ

तारां छायै आभै नीचै

अेक छिटक्योड़ै काळ-खंड री भांत

अंधारै री

हरेक अनीताई नै

करतौ कबूल

किणीं अदीठ सगती रौ

मानतौ छेलौ आदेस

वौ कोनीं उठा पायौ कदेई

बेइंसाफी रै बरखिलाफ

कोई आवाज

अेकल या अेकठ रूप में

फेरूं भी जांणै क्यूं

म्हैं नी बिसार टाळ सकूं

इण ठैर्‌योड़ै काळ-खंड—

इण फाळ-चूक व्हियोड़ै आदमी नै

खुद री जात्रा रै दौरांन

फिरतौ-घिरतौ फेरूं पूगूं

पाछौ इणीं गुवाड़ में,

अर भूल जावूं

खुद रै घावां री पीड़

हदां पूग्योड़ी पीड़ री हालत देखतां

गैळीजण लागूं

इण गांव री निरमळ गोद में

अर घिर जावूं उणीं भांत

फेर किणीं ऊजड़-जंजाळ में—

हौळै-होळै पगां नीचै सूं

सिरकण लागै काठी धरती

ताळवै चिप जावै म्हारी जुबांन,

भागण री कोसीस में

गोडां तांई कळीज जावै पग

बेकळू रेत में

अंधारै में केई अणजांण उणियारा

हाथां में लीयां आदम-जुग रा औजार

म्हारै नैड़ा आवण लागै

खारी मींट गडायां म्हारी मींट में

अर देखतां-देखतां

स्सार-कर नीसर जावै आगै

म्हारै कानां में

कीं धमकी भर्‌या सबद राळता

वै अलोप व्हे जावै

अेकाअेक अंधारी गळियां में

अेक फुरतीली झिझक समचै

खुल जावै मांझळ रात में म्हारी आंख

आभाचूक उठ बैठूं मांचै माथै

अर देखण लागूं—

अंधारै में नीमड़ै री हालती डाळ्यां

अणमणी टींकोळ्यां झूंपड़ा री,

पण तद तांई

बीखर जावै सगळौ आळ-जंजाळ

अर आभै में तारा दांत काढण लागै!

म्हैं फिरोळतौ रैवूं

गळियां आखी रात

बैठौ रैवूं घंटां लग

वां खेळी-कोठां री उणींदी भींतां माथै

वां खूंखार इरादां रौ

गेलौ उडीकतौ!

अर इणीं बिचाळै

फेरूं अेक दिन ऊगण रौ भरम लीयां

चालू व्है घांणी

भाख फाटण सूं पैली

खाडा पूरण खातर

ऊठ जावै गांव

जांझरकै पैली

घूमण लागै घट्टी रौ पाट

चूल्हां सूं उठण लागै धूंऔ

ऊछर जावै आळस मरोड़ता

बाड़ां घरां सूं जीव-जिनावर

मिनख

चरणोई री खोज में

चकरी चढ्या घूमता रैवै

आखै दिन—बरस-ता-ऊमर...

इणीं उजाड़ में

सिंझ्या घिरण साथै

आभै में अलोप व्हे जावै

सगळी उम्मीदां

फेर वौ उजाड़

वौ घिरतौ अंधारौ

चौफेर सालरतौ सरणाटौ बेथाग

आठूं पौर आंख्यां आगै

लेवड़ां रौ ढेर

नागी—तेड़ां खायोड़ी—भींतां

अर जूनी बाड़ रै दोळ-कर

जमती बेकळू री पुड़तां—

सेवट कायौ कर

होवणहार रै हाथां सूंप देवै आदमी नै—

आज भी म्हारै कानां में गूंजै

उण आंगणै रै अधबिचाळै

डुसक्यां भरती बैठी

जमना री मांदी आवाज

(हीयै री हाहाकार)

‘इण गांव में

नीं खावण नै जैर है

नीं म्हारी खैर

किण रै भरोसै जलम देवूं

इण पापी पेट में बधतै

नूंवै दुरभाग नै?’

खुद री आबरू

अर लोक-लाज री छोड गिनार

बधतै ओजरै नै सूनी आंख्यां में उतार

वा उण छेली रात घिरतै अंधारै में

फेरूं अेकर हळवी-सी मुळकी

अर हौळे-हौळै

अेक अकथ उदासी में डूबगी

नीं बापरी पाछी ओप उण रै उणियारै,

कांई हवाल व्हैला इण जांमण में—

जांमण रो औलाद में;

इणीं उधेड़बुण में

म्हैं सोधण नीकळग्यौ अेक रात

इण रौ भरतार

कोसां फैल्योड़ै सूनै उजाड़ में

अर उळझतौ रैयौ आयै-दिन

लगूलग

अलेखूं गांवां सैरां

गळियां री

नित-नूंवीं अबखायां में!

जांणतां-बूझतां सातर अणजांण

बण्योड़ौ देखतौ रैयौ

इण अंधार-पख रौ तमाम कारोबार

अर मांय-ई-मांय

करतौ रैयौ खुद नै तैय्यार

उण छेलै संग्राम सारू!

सुभाविक है कै

अजूबा लागै अबार

इण गांव-गुवाड़ नै म्हारा सगळा कारज

हाल भरोसौ कोनीं आवै

म्हारी जुबांन माथै

अेकाअेक—

अर व्हे सकै

कै इणीं दरम्यांन

कीं मतलबी चालाक मौकैबाज

म्हारै खिलाफ

गळियां में करता रैवै गांगरा

पण सेवट

फंसैला खुद रा बुण्योड़ां जाळां में!

कोनीं जावै अकारथ

थांरौ नेठाव

अनीतायां नै सांमी छाती

झेलण री थांरी खिमता

अेक लूंठी इतिहासू

अर मांयली जरूरत पांण

जुड़ जावैला अै रेत-कण

आपूं-आप

तद तांई जूंझतां रैवणौ है

इणीं उजाड़

अंधार-पख रा

तमाम मकड़ी-जाळां सूं!

स्रोत
  • पोथी : अंधार-पख ,
  • सिरजक : नन्द भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : जनभासा प्रकासण, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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