टाबरिया सीखै भासा री भूंड

दुरगंधी वायरियौ लेवै सांस

रम्मै रग-रग में रोगी रागणी

किणनै देवौला इणरौ दोस

किणनै काढोला खारी गाळियां

उठा सकौ तौ उठावौ थै

खुद रै कांनी इज खुद री आंगळी।

काची ऊमर यूं पाकौ रोग

दवायां करै नीं कोई कार

बोलौ,

कीं तौ बोलौ, चुप क्यूं हौ आज

क्यूं कोनी ऊंची व्है थांरी नाड़

पोथी में दबियोड़ो ग्यांन

व्हेगौ, थां सारू सजावट रौ सामान।

सम्बंधां पड़गी अेक कुबांण

पीळै चिलकै रै चकार्‌यां देता जाय

बिन हळदी चढ़ियां जावै रंग

देही सूं सोरौ नीं पाछौ ऊतरै

अबै धुपसी नीं किणी सिनांन

अै देही दागीज्या पाका दाग

किणी झपाटै जळ नै फेंक दौ

नीं बुझसी मिनखां जंगळ आग।

बरसां सूखोड़ा खंखड़ चेतिया

आला-लीला भेळा बाळसी

आव है, आवै है देखौ लाय।

राम-नाम रै साथै थांरौ सांच

फकत

अरथी साथै उचरीजै अबै हमेंस

आंक-आंक नै नफा-निंजर सूंबांच

वौपारां आवण नीं देवौ आंच

वगत-वगत में

मिनख-मिनख रौ

न्यारौ-न्यारौ मोल- तोलकर

थांरी दौलत री घट्टी

अेक-अेक ऊंचाया पीसै

परबत दीस तौ

सीस झुकायां दीसै।

सिक्कौ,

झुका सकै थांरौ सीस

थै परवत रौ नीं

वौ तौ धरती सूं इज जुड़ैला अर

आकास नै इज निवैला।

सिक्कै नै यूं मत उछाळौ के

चमक तौ दीसै अर

सिक्को गायब व्है जावै

आदमी, आदमी सूं फक्त

फँसण बण जावै।

थांरौ सगळौ खेल कागदी

कागद रद्दी बण बिक जावै

थै खुद नै बेच सकौ हौ

जे थांरा पइसा बट जावैई

जंगळ लागी लाय, झपाटा देती आवै

अठीनै तेवड़ियां बैठा म्हां-

अबकी सगळी रद्दी नै बाळणी

बचा सकौ तौ बचावौ थै

खुद नै रद्दी बणणै सूं आज।

स्रोत
  • पोथी : जुड़ाव ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : धरती प्रकाशन
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