अरे डावड़ा, ढाब्यां रीजो, आजादी री डोर नै।

अरे टाबरां, ढाब्यां रीजो, आजादी री डोर नै॥

जनम भौम पै पग मत मेळण दीज्यो सूरां और नै।

अरे डावड़ा, ढाब्यां रीजो, आजादी री डोर नै॥

सीता-सावित्री-पद्मणियां,

मीरां री गूंजी वाणी।

सतियां री पा सीख गरब सूं,

झूम उठी ही हिन्दुवाणी।

पतिव्रता रो पाठ पढ़ायो, गारा री गणगोर नै।

अरे डावड़ा, ढाब्यां रीजो, आजादी री डोर नै॥

टाबरिया थे मती भूलजो,

घणी लड़ी झाँसी राणी।

और टाबरां थे मत भूलो,

राणा सांगा कुरबाणी।

सतरै दाण माफ कर दीदो, पृथ्वी गोरी चोर नै।

अरे डावड़ा, ढाब्यां रीजो, आजादी री डोर नै॥

दुर्गादास, प्रताप, सिवा जिण,

हगळो खोयो, आण रुखाळी।

झूझ पड़्या रण खेतां सूरा,

लाज राखती माता काळी।

किंकर भूलां सबळ सूरमा, अमर सिंह राठौर नै।

अरे, डावड़ा, ढाब्या रीजो, आजादी री डोर नै॥

नाना साहब, तात्या टोपे,

भगत सिंह, आजाद, सुभाष।

अंगरेजां सूं भिड़्या सपूत,

छोड़ी जग जीवण री आस॥

तीन रंगा झण्डै रै खातर, रंगी रगत सूं ठौर नै।

अरे डावड़ा, ढाब्यां रीजो, आजादी री डोर नै॥

जलियां वाळा बाग में, लाखां,

लोह्या सूं लिखियो इतिहास।

मरग्या मिटग्या इण माटी में,

पोयण वाळी करग्या वास॥

याद करां मुस्किल वै ढाबण, हिवड़ा री हिलोर नै।

अरे डावड़ा, ढाब्यां रीजो, आजादी री डोर नै॥

गांधी, नेहरू, मदन, गोखले,

बाल गंगाधर, तिलक, पटेल।

मायड़ नै आजाद करण हित,

घणां वीरवर काटी जेळ॥

तासकंद में मरग्या सास्त्री, पण नीं छोड़ी कोर नै।

अरे डावड़ा, ढाब्यां रीजो, आजादी री डोर नै॥

स्रोत
  • पोथी : आखर मंडिया मांडणा ,
  • सिरजक : फतहलाल गुर्जर ‘अनोखा’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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