गाजै

वां रै आवण रौ अेलांन गाजै

वै—जिण रै हाथां हळ री हित्या

नै लखणां री लिलांमी

घोड़ां माथै जीण

ऊंठां पिलांण

दड़बड़ता लड़थड़ता रड़भड़ता वै।

जिण नै देखतां पांण

असमांन मूंडौ फेर लेवै

धूजै धरती धाय

टापरा टपकण लागै!

बाजै

वां रै पगां रा पागड़ा बाजै

वै—जिका लाय लगाय नै

कूवौ बूरै

दरांती सूं दाता रौ पेट चीरै

घुरी में घी ढ़ोळै!

ईज बगत है

वां रै आवण रौ।

सुध सार

बुध राख

सादन धार

ईज अधार है

पंथ पळटावण रौ।

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण, जयपुर
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