नुवी भोर रै सागै

अेकता रा रोज खिले फूल

उणां री मैहक सूं मैहक जावैला म्हारो देस

कौमी अेकता री कंवळी आंगळियां

नवी भोर रै होंठां ऊपर राखता

खिल उठैला जीवण रा रंग

लहलहा उठैला सनेव री फसल

हवा में घूळ जावैला सनैव रा गीत

अेकता री मैहक सूं मैहक उठेला देस!

सूरज थपथपाय’र पीठ

पगां में भर देवैला हौंसला

अेकता री सीतल हवा सूं

आसान हो जावैलो दोस्ती रो सफर

चमक जावैला म्हाणैं सैर रो चेहरो!

जात-पात रै दानव हाथां

पतौ नीं किण-किण घरां मांय

रंगीन साड़ी होयगी सफेद

बणां गया कित्ता नै लावारिस

इणा री करणी सूं

अबै मोकळा बच्चियां रै माथै

नीं फिर सकै हैं सनेव भरया हाथ!

जात-पात रै दानव नै काट’र राख दी

आपसी सनेव री लतावां-बेल

रंगीण सपनां री दुनिया में लगा दी सेंध

डाल दिया सांझा चूल्हां मायं पाणी

साग और रोटियों में

डाल दियो बौत सारो नमक!

साच है अेकता आवता

मजबूत हाथां सूं चलाया जावैला हळ

बोई जावैली सदाचार-भाई चारे री फसळ

सच रै आधार सूं बणेला

मजबूत विधान सभा, संसद भवन

बणाई जावैली सरकारां।

कीं नयौ नीं है हाथां रो काटौ जाणौं

कैवै है शाहजहां ताज मैहल बणण रै बाद

राख दिया था साचा हाथ आपरै कनै

अंग्रेज काट दिया हा बे कीमती हाथ

जिणां सूं रच्यौ जाणौं हो इतिहास

उण हाथां री याद आवै है

आज वे हर समाज रा हाथ

इण तरै हा मिल्या-जुल्या

जका भली सुबै जागता अर तपता

अेक भट्टी रे कनै गढ़ता हा

पसीने सूं दिन री छाती माथै

मेहनत री गीता!

अब अेकता रे पौधा नै पनपतौ देख’र

लागै है अबै जल्दी पनप जावैला

अेकता रा घना जंगळ।

कामना है हमारी लहलहा उठेली

अपणायत री फसळ

भेदभाव री सरनाटां भरी

सूनी घाटिया मांय

गूंजण लागेला आपणायत रो

प्रेम भरा मधुर गीत।

कामना है म्हारी अेकता रा रोज खिले फूल!

हाथ जावैला पहाड़ री

चोटी पर पड़िया सुनहरा सपना

कौमी एकता ले आवैली

देस रे होंटां उपर मुळकाण

देस नै दिलावैली मान सम्मान!

खिलै कौमी अेकता रा फूल

अेकता री मैहक सूं खिल उठे म्हारो देस!

स्रोत
  • पोथी : बगत अर बायरौ (कविता संग्रै) ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • प्रकाशक : साहित्य सरिता, बीकानेर ,
  • संस्करण : संस्करण
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