मज़ाक मज़ाक में

थोड़ौ पूछ लूं

के कांई आप म्हनै जाणौ हौ?

देखौ नीं

म्हारै ओळूं-दोळूं ऊपर-नीचै

गोळ घूमता चौकूंटा लांबा

काच है

देखौ हौ नीं थे?

म्हारै सबदां री आभा

हरेक काच में

न्यारा न्यारा रूप धारै

म्हारी आंख्यां री जोत

अर म्हारी पलकां री पोत

इण हरेक काच में

न्यारी न्यारी छाप उघाड़ै

म्हारै अंगां सूं निसरता

पांखियां रा पंखहीण झुंड

आं काचां तांईं भी नीं उड सकै

पण फेरूं भी म्हारै आणंद किलोळ री

ध्वनियां नै

अर म्हारी बीखां-पगी चीसां री उथळीजती गूंजां नै

अै काच गळा गळ गिट जावै

इण सारू

थोड़ौ मज़ाक मज़ाक में

पूछ लेवूं

के कांईं आप म्हनै जाणौ हौ?

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : ज्योतिष जानी ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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