घणकरी बर मैं आ सोचूं
कै अै रोई रा हांसिया में
उगबाळा रूंख
इण महानगर री ओळी-ओळी पर
कियां उग आया।
ज्यांस्यूं आखी सड़क टळ’र नीसरै
हरेक चोरावो, आखी गळ्यां सूं
आपरी अबखाई दुलड़ावै है।
इणरी वन माणखी बावड़ल्यांरी
सत्यानासी छैयां मांय
इण सदरी सींवताणी
अेक भी चींवळ्यो
ऊमरा सूं ऊंचो निसरबारो
हियाव नीं करैला।
पण आंनै कूड़ो बैम है
कै कतरो कोई विगस रियो है
म्हाळी सीळी घुमेर छैयां में।
अै घेर घुमेर पत्तां में लखोया राखै
आपरा निमळा डाळां नै
जीं सूं देखबा वाळा री तीखी
छोळेड़ी दीठ
नाना, लूंठा घणा कंवळ पत्तां री भीड़ में
उळज अटक रैय ज्यावै।
मांय नैई मांयनै
पेट पलाण्यां सरकातो
अेक स्यांप
आखै दिन रात तोलतो रैवै
आपरै जैर रो बोझ
नूंवी नूंवी कांचळ्यां पैरनै
जद अै आपरी बेमानी डागळां सूं
झांकै है तो
सड़क भ्होत ओछी निजर आवै
उण जेज
होठां माथै चासणी बिछायर
जिकी जिनस ओपै है–
उण मांय कागद रा फुलड़ा हुवै
अर माटी रा रमतिया
पण पतियारै रो सांच नी हुवै।
टूंकाळ्या माथै बैठता पांखी
नितकी आ कै’र उड ज्यावै है कै
अठै अमर बेल ईज रैवण सकै
म्हे म्हारी पांखड़्यां खिंडार
जी नी सकां
अै तणाव में जीवै है
इण सारु कै
जिको नीं है
उणरी दिखावणी लगावै है
अर जिको है
उण नै पत्तां में लखोवै है।
इण री
उळ धोई सभ्यता रा कांटा
छीयां री लोभ में गड़ जावै
दीखै नीं
छण कई सद्यां ताणी रड़कता रैवै
गेलै जावणियां रै।
घणकरी बर मैं आ सोचूं
कै अै रोई रा हांसियां में
उगबाळा रूंख
इण महानगर री ओळी-ओळी पर
कियां उग आया
ज्यां सूं आखी सड़क टळ’र नीसरै
हरेक चोरावो, आखी गळ्यां सूं
आपरी अबखाई दुलड़ावै है।