मन्नै मारग माथै

अेक रमतियो लाधौ,

बो भी चाबी आळौ।

म्हैं राजी हुयौ—

देदूं ला म्हारै लाडेसर नै,

घणा दिनां सूं कैवतो हो।

रमतियो घणोई चोखो,

टींगर ताल्यां, बजाय नै

नाचण-कूदण लाग्यौ।

कैवण लाग्यो—

ममी-ममी देख

पापा कित्तो चोखो

रमतियो लाया है।

कित्तो फूटरो,

मनमोवणियो चाबीआळौ।

टाबर चाबी भरी

रमतियो ‘घूमर’ घालण लाग्यौ

चर्टर-चर्रर खर्टर-खर्रर...

म्हे सगळा भी ताल्यां बजावण लाग्या,

रमतियो मेज रै हेटै गयो परो

जठै म्हारी लाडली

कागद रो घर बणयोड़ो, राखियोड़ो हो,

तदी

जोर रो धमारो हुयौ

बो पूरो खूंणो उडग्यो

घर रा फूंसड़ा बिखरग्या।

म्हे सगळा चकाचूक

डरूं-फरूं...!

अचाचूक सोच्यौ—

अरे! आजकाळ तो

विध्वंस कठैई प्रकट हुय जावै।

सगळां मन्नै ईज लातड़ियौ—

तू गैळौ है

जाणै नीं,

मारग री चीज उठावणी मना है

छूवण री मना है

नीं जाणै कठै विध्वंसक हुवै।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो ,
  • सिरजक : यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशक पिलानी (राज.) ,
  • संस्करण : 26
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