रात तौ

काल भी ही

आज भी है

काल भी रैसी

पण

बात नीं रैसी।

अंधारौ होसी

काल भी, आज भी

चांदणै री

रैसी उडीक

मिटसी कद?

दिन रात बिचालै

भंवसी सबद

सबद बिलाइजसी

अरथाइजसी

मिटसी दिन-रात

खूटसी अरथ

छूटसी बात

गम जासी सबद

कुण भरसी साख

म्हैं हूं

पण म्हारी भी.

कुण भरसी साख?

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : गौतम अरोड़ा ,
  • संपादक : जुलाई-सितंबर 2015
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