जद वा नाची बांध कणगती

मन हरख कवळ सो होग्यो रे।

कणगत्य्या री खणखण जाणे

काने रस मिसरी रो घुळग्यो रे॥

फेर कणगती खेतां चाली

म्ह संग म्ह होग्यो रे।

सांची मानो मिनखा म्हारी

घणो मच्यो जद गोग्यो रे॥

जद वा नाची बांध कणगती

मन हरख कवळ सो होग्यो रे।

कणगत्य्या री खणखण जाणे

काने रस मिसरी रो घुळग्यो रे॥

पर्वत कंदरा धुन म्हं गूंज्या

बादळियो गाज्यो रे।

म्हारै मनड़ै सुणो भायला

मृदंग सुरीलो बाज्यो रे॥

जद वा नाची बांध कणगती

मन हरख कवळ सो होग्यो रे।

कणगत्य्या री खणखण जाणे

काने रस मिसरी रो घुळग्यो रे॥

आंख्या उण री घणी मोयली

जाणे कुणसो खाती घड़ग्यो रे।

एक डोकरियो देख उणा ने

डागळिया सू पड़ग्यो रे॥

जद वा नाची बांध कणगती

मन हरख कवळ सो होग्यो रे।

कणगत्य्या री खणखण जाणे

काने रस मिसरी रो घुळ…

स्रोत
  • सिरजक : ओमप्रकाश सरगरा 'अंकुर' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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