कदै देखी थार आळा गुलाबां री गुलाबी,
अर चम्पा-चमेली री सुगंध,
म्हैं तो देख्या रोहिड़े रा राता-राता फूल!
रेतीली जमीं मायं
सूखो तप सेंवता,
मरुथळ रो सिणगार
नारंगी-केसरिया रंगां री भरमार,
आपां रो राज-पुष्प
फूठरो रोहिड़े रो फूल!
फैलावै थार में रंगा री आस,
रोही रो करै केसरियो सिणगार,
तावड़ै में चिलके ओ आंतरै स्यूं,
ज्यूं पीळी-राती फुहार
राजस्थान रै हिवड़े रो हार
आपां रो रोहिड़े रो फूल!
हुवै कदै-कदै घणौ दुख
बीतगी पैलां आळी बातां,
कठै दिखै अब टेसूड़ै रै फूलां ज्यूं रातै रंग री चादरां,
न बां रोहिड़ा ऊपरली बुलबुल री बाणी,
दीसै धंसता धोरा अर घटता रोहिड़ा,
अर उणरै माथला छिदा-माड़ा रोहिड़े रा फूल!!