चन्द्रमुखी मत इतरा खुद ने,

रचना मान विधाता री।

बण धरती रो मिनख रची म्हैं,

बिन्दी थारा माथा री॥

बिन्दी में व्हैं रूप लिख्यो है,

सूरज-चाँद-सितारां रो।

बिन्दी में म्है रूप लिख्यो है,

भूण्यां रो कलदारां रो॥

बूंद-बूंद सूं सिन्धु रच्यो व्हैं,

स्वाति बूंद सूं मोती नै।

मोत्यां सूं सिणगार बढ़ाई,

थारा मुख री ज्योति म्है।

चन्द्रमुखी थूं कठपुतली है,

पौरुष भरिया हाथां री।

बण धरती रो पुरुष रची म्हैं,

बिन्दी थारा माथा री॥

चक्र सुदर्शन रचतो बेळ्यां

बिन्दी रूप बखाण्यो व्हैं।

म्हैं रच पहियो, रची मशीनां,

जल-थल अम्बर छान्यो म्हैं॥

उन्नति-रथ-पथ में या बिन्दी,

पहियो बण ने दौड़ी है।

गिरिवर रातक गरब गाळद्या,

चट्टानां ने तोड़ी है॥

नदी घाटियाँ कथा बखाणै,

जिणरी गौरव गाथा री।

शस्त्र, शास्त्र, इतिहास रचेता,

बिन्दी थारा माथा री॥

करै अंक दस गुणों गणित में,

माया बिन्दी लागण री।

लाख चांद सो मुख चमकावै,

बिन्दी भाल सुहागण री॥

सब सुख भरयो भाल री बिन्दी

मुस्काती सी वाणी में।

रूप, गंध, रस, स्वाद भरचा सब,

ज्यूँ बरखा रा पाणी में॥

और अधर पै पान लिखे ज्यूँ,

मिनख सब धरम, देख ने,

लिख्या महिमा चूना- काथा री।

बिन्दी थारा माथा री॥

स्रोत
  • पोथी : पसरती पगडंड्यां ,
  • सिरजक : शिव 'मृदुल' ,
  • प्रकाशक : चयन प्रकाशन, बीकानेर
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