हर रोज

दिनूगै-सूणी सैर—

जमीं-तळ माथै

उफस्योड़ी फूणसियां-सी

टेकरियां लारै छिप्यै

सूरज रै ऊभर-आवण-उपरांत—

घुरकां सूं बारै आवै—

अणमणौ-सो

अर सिंग्या में आवण सूं पैली

अेक भरपूर उबासी लेवै—

पगथळियां हेठै जमीं मैसूसतौ!

फेर घणी ताळ

सूनी-आंख्यां अदीठ में टिकायां

मांय-ई-मांय

कठैई डूबतौ-तिरतौ—

चितारतौ रैवै

उण बीती रात रौ सपनौ—

जिकौ थ्यावस बंधावै—

धीजौ, जीवांयां राखै उण नै आखी ऊमर

अकारथ नीं व्हेण दै

उण री मौजूदगी नै!

अमूमन—

भाख फाटण सूं लेयर

पौर-दिन चढण तीं

इण री गीली

सील खायोड़ी

गळियां

उणींदी-अणमणी-सी

साव सूनी पड़ी रैवै—

अर सेवट मून तोड़ती

अेक ठाडी-भरवां निस्कार

ऊग्यै-दिन री पैली सरूआत व्है!

पण तद तांई

वां कामगर हलकां में

सरू व्हियोड़ी रफत—

तातै लो माथै लगूलग पड़ता

घणां री चोट

सेवट,

डंखेर नांखै सगळा आळ-जंजाळ

हरकत-सी सरू व्हेण लागै

करतां-नीं-करतां—

आखै सैर में!

कानां में गूंजती रैवै

घणी जेज

भूंगळां री अणूंती करखर आवाज—

ऊंची हवेल्यां

मीलां री मगजाई

आतंक—

घूमण लागै घट्टी रौ पाट

भट्ठियां मांगण लागै

भख

सिललिलौ सरू व्है

कीं अणचींता कामां रौ

चौड़ी सड़कां

अर चौरावा ताकती

डकरेल दुकानां

दफ्तरां

आदमखोर इरादां रा

खुलण लागै वै कराळ जाबू

जिका अंधारै री ओट—

अपरतख रैवतां थकां

अेक झींणी जैरीली हंसी

अर खिंवती मुळक में

आंट सकै ईमान—

अलोप कर सकै पूरै आदमी नै!

इण सर में

कीं अैड़ा भी लूंठा मंच है

मिनखां री छाती माथै

जिका हिमायत करता अजूबै री

असलियत अंधारै राखता

अलेखूं घातक छळावा

किणी नूंवै अंदाज

नाटक

कला रै नांवै खेलीजै

अर तरतीववार लाग्योड़ी कुरस्यां

बजावै ताळियां पूरै उछाव

सरावै सगळा अजूबा करतब

कीं कंवळा नफीस सबदां-संकेतां में

आगै बध बांटै इमदाद—

सौदै परवांण

वां बंधणरत व्हेतां हाथां में!

अै लांबी-चौड़ी

घुमावदार सड़कां

इण सैर री धमनियां है—

अै चौरावा-फांटा-मोड़ अर गळियां

उळझ्योड़ा नाड़ी-तंतुआं रौ जाळ

रगत-अणुआं री अणगढ़ भीड़—

इण सैर रौ जीवण है!

इण सैर री

अणगिणत इमारतां बिच्चै

चालती रैवै

कीं इस्कूलां/कॉलेजां

अगोलग,

पढेसरी मांडता रैवै

बे-मन-मांदा

पांगळा आखर

चितराम : अनांव

अणदेख्या फूलां रा

विडरूप : अलोप व्हेता आकार

जीवां री जूणियां रा

कोरा कागदां माथै,

तड़फा तोड़ता रैवै

कीं अरथ-चूक व्हियोड़ा सबद

कसमसता रैवै पूठां माथै रंग

भाळै पड़ता जावै तर-तर

सगळा आकार

कारण-आधार

अर किणी आडै दिन

घुटतौ अमूंजौ

तोड़ नांखै पंगत

खिड़क्यां रा काच—

अणूंता कायदा-कानून

वां री मरजी रा बंधण

असांयत मांड देवै

गळियां अर खुली अर सड़कां माथै

अेक बे-साफ-सो उणियारौ—

‘इंकलाब!'

जिण सूं डरती

संकती सिरकार

सांयत रा ओला ताकण लागै

पण हरेक दफ

तर-तर बेकाबू व्हेता हालात

उण नै सेवट आंकसबिहूणी हरकतां

अर नादिरसाही री हदां पुगाय नांखै

इणी सैर रा

कीं नफीस

जग-चावा मुसाहिबां रै घांटै

ऊतरतौ रैवै

मिनख नै पींच काढ्योड़ौ

रगत-हाडक्यां रौ अरक

अणूंताया रौ अेक पूरौ इतिहास

जिण में जुड़ता रैवै नित नूंवा परसंग

घटनावां आयै दिन—

सिलसिलौ ओजूं जारी है!

दिन भर रौ हार्‌यौ-थाक्यौ

हांफतौ सूरज

जा अटकै वां आथूंणी टेकरियां माथै

अर उणी अबूझ दोगाचींती सूं लड़तौ

सेवट ढळ जावै

खितिज रै कांठै पार

उजासहीण कर जावै

इण जमीं-खंड रै पूरै चौफेर नै!

घिरण लागै

गैरौ अंधारौ च्यारूंमेर

अनिरणै री काळी चादर

ढक लेवै सैर री सूधी धड़कणां नै

अर अकथ बेचैनी में

पसवाड़ा फोरता रैवै तमाम रात

मिनखां रा अधूरा मंसूबा

निस्चै

अकारण कोनी सगळी बेचैनी

उफांण कांनी बधतौ

अणथाग असंतोख

गळियां में घुटती सांसां

सेवट

मांगैली पूरौ हिसाब—

खुद रै कमतर

पसेव रौ!

निरगाऊ दौर रै इण ठोस तळ माथै पूग

जद पाछौ अंगेजू—

परखूं खुद रौ लखांण,

इतिहासू-आधार समचै भाळूं

मुलक रौ दीखत-आकार;

जीवण री दोजख-हालत रौ

बुनियादी कारण-परियाण-रूप:

कीं इण्यां-गिण्यां रौ

अदीठ कारोबार—

जुड़ जावै म्हारा हाथ आपूं-आप

वां आदमखोरां रै खिलाफ

इण नूंवै उठाव री

लूंठी सरूआत में!

स्रोत
  • पोथी : अंधार-पख ,
  • सिरजक : नन्द भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : जनभासा प्रकासण, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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