म्हैं जोवूं

वो गैलो

जिण सूं होय

म्हैं निकळ जावूं उण पार

आपरी मंजळ कानीं

पण

दीखै नीं म्हनें वो गैलो

जिणसं अजै तांई

नीं निसर्‌यो होवै

कोई बेईमान

कोई परलोटौ

कोई झूठौ

कोई हत्यारौ

कोई पापी

नीं...

नीं मिळै म्हनैं

वो गैलो

तो फेर पकडूं

वो इज गैलो

जिणसूं निसरै फगत ढोर डांगर

जिकौ अबोट है

अछूतौ है

अजै

झूठ कपट

छळ छंद अर

पाप री छियां सूं।

स्रोत
  • सिरजक : वाजिद हसन काजी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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