आं मन रै कोरा धोरां में,
इक नदी बगै इच्छावां री,
बठै-पाणी! पाणी! पाणी!
बूंद-बूंद बण
गळै हिंवाळो
गंगधार बण जावै!
सतरंगी सपनां में
ज्यूं कोई
इन्द्र धनख तण जावै।
इक डूंगै खार समन्दर में
हिवड़ै री सीप पळै मोती
थे बै मजलां कद जाणी?
बठै-पाणी! पाणी! पाणी!
सावण-भादवै री
झड़ी-सी लागै
बरसै इमरत धार जठै।
आभौ धरा त्रित करै
रळ-मिल
घूघरियां री झणकार जठै।
कायल कण्ठ हुवै तिरसा सूं
पण अधरां मुळकाण बसै
बा पीड़ अजे अणजाणी!
बठै-पाणी! पाणी! पाणी!