ईं आखै जग में कोई जनता इसी आंसूहीण नईं,

इसी गरबीली, इसी सादी जिसा म्हे हां।

गळहारां मोव बस म्हे नईं पैरां ईं नैं

कवता में ईंरा दुखड़ा कदे नईं रोवां,

सुरग री वरदानी घाट्यां सूं तोलां नईं,

म्हारी कड़वी नींद नैं बिन रगड़े छोडै आ।

बेचण रो ईं नैं भूल्यां सूं ख्याल नईं

नईं म्हारा हिरदां, अणजाणी, अूंपजै।

म्हारी आंख्यां सांमीं ईं री छांव नईं मंडै,

जद म्हे मंगता हुवां, मांदा, चक्कर में, गूंगा।

म्हारै जूतां रो कादो, है कचरो,

है दांतां माथै म्हारै मैल ज्यूं, है धूड़,

है निरमळ, बिन रंगी रंजी जिकी म्हे घसां,

जिकी म्हे घोटां, जिकी मिलावां, जिकी म्हे पीसां।

पण म्हारी है, म्हारी निज री, अर अेक दिन खुलसी

म्हानैं मिलण अर म्हारी बांथ भर म्हानैं माटी में रळावण नैं

स्रोत
  • पोथी : लेनिन काव्य कुसुमांजळी ,
  • सिरजक : अन्ना अख्मातोवा ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा (जयपुर) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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