इणरौ इतिहास अनूठौ है, इण मांय मुलक री आसा है।
चहुंकूंटां चावी नै ठावी आ राजस्थानी भाषा है॥
जद ही भारत में सताजोग, आफत री आंधी आई ही
बगतर री कड़ियां बड़की ही, जद सिन्धू राग सुणाई ही
गड़गड़िया तोपां रा गोळा, भालां री अणियां भळकी ही।
जोधारां धारां जुड़तां ही, खाळां रातम्बर खळकी ही।
रड़वड़ता माथा रणखेतां, अड़वड़ता घोड़ा ऊलळता।
सिर कटियां सूरा समहर में, ढालां तरवारां ले ढळता।
रणबंका भिड़ आरांण रचै, तिड़ पेखै भांण तमासा है।
उण बखत हुवै ललकार उठै, वा राजस्थानी भाषा है॥
इणमें वीरां री गुणगाथा, इणमें संतां री बांणी है।
इणमें पाबू रा परवाड़ा, इणमें रजवट रौ पांणी है।
इणमें जांभै री जुगत जोय, पीपै री दया प्रकासी है।
दीठौ समदरसी रामदेव, दादू सत नांम उपासी है।
इणमें तेजै रा वचन तौर, इणमें हमीर रौ हठ पेखौ।
आवड़ करनी मालणदे रा, इणमें परचा परगट देखौ।
जद तांई संत सूरमा अर, साहितकारां री सांसां है।
करसां रै हिवड़ै री किलोळ, आ राजस्थानी भाषा है॥
करमां री इण बोली में ही, भगवांन खीचड़ौ खायौ है।
मीरां मेडतणी इणमें ही, गिरधर गोपाळ रिझायौ है।
इणमें ही पिव सूं मांण हेत, रांणी ऊमादे रूठी ही।
पदमणियां इणमें पाठ पढ्यौ, जद जौहर ज्वाळा ऊठी ही।
इणमें हाडी ललकार करी, जद आंतड़ियां परनाळी ही।
मुरधर री बागडोर इणमें ही, दुरगादास संभाळी ही।
इणमें प्रताप रौ प्रण गूंज्यौ, जद भेंट करी भामासा है।
सतवादी घणा सपूतां री, आ राजस्थानी भाषा है॥
इणमें ही गायौ हालरियौ, इणमें चंडी री चिरजावां।
इणमें ऊजमणै गीत गाळ, गुण हरजस परभात्यां गावां।
इणमें ही आडी औखांणा, ओळगां भिणत वातां इणमें।
जूनौ इतिहास जोवणौ व्है, तो अणगिणती ख्यातां इणमें।
इणमें ही ईसरदास अलू, भगती रा दीप संजोया है।
कवि दुरसै बांकीदास करन, सूरजमल मोती पोया है।
इणमें ही पीथल रची वेलि, रचियोड़ा केइक रासा है।
डिंगलगीतां री डकरेलण, आ राजस्थानी भाषा है॥
इणमें ही हेड़ाऊ जलाल, नांगेदर लाखौ गाइजै।
सोढ़ौ खींवरौ उगेरै जद, चंवरी में धण परणाईजै।
काछी करियौ नै तोडड़ली, राईकौ रिड़मल रागां में।
हंजलौ मोरूड़ौ हाडौ नै, सूवटियौ हरियै वागां में।
इणमें ही जसमां ओडण नै, मूमल रौ रूप सरावै है।
कुरजां पणिहारी काछबियौ, बरसाळौ रस बरसावै है।
गावै इणमें ही गोरबन्द, मनहरणा बारैमासा है।
रागां रीझाळू रँगभीनी, आ राजस्थानी भाषा है॥
इणमें ही सपना आया है, इणमें ही ओळू आई है।
इणमें ही आयल अरणी नै, झेडर बाळोचण गाई है।
इणमें ही धूंसौ बाज्यौ है, रण-तोरण वन्दण रीत हुई।
इणमें ही वाघै-भारमली, ढोलै-मरवण री प्रीत हुई।
इणमें ही बाजै वायरियौ, इणमें ही काग करूकै है।
इणमें ही हिचकी आवै है, इणमें ही आंख फरूकै है।
इणमें ही जीवण-मरण जोय, अन्तस रा आसा-वासा है।
मोत्यां सूं मूंगी घणमीठी, आ राजस्थानी भाषा है॥