इण नीजू अर चिनेक
मामलै नै;
जिण नै पैली भी
लोकां बारूं बार गायौ है
गीतां में—
म्है कविता री गिलैरी ज्यूं
गोळ गोळ बुण्यौ है—
अर अजै फेर
बुणनौ चाय रह्यौ हूं।
बौधां री प्राथणा ज्यूं
गूंज रह्यी है इण री धुन !
आ
चाकू री दार तेज करतै
अफसर सूं घ्रणा करणिये
नीग्रौ री
चेस्टा में दीसै स्याफ।
मंगळ गिरै में
मिनखजूण लियां
जे कोई बसै
वौ भी आखी ज़िंदगी
काग़ज़ां माथै
पैन री लिकोटियां मांडतौ
इणीज खातर बैठ्यौ व्हैला
आ पांगलै मिनख री
वा अमूझणी है
जिकौ दांतां में पैंसिल दबायां
आपरी नाक
नोटबुक बिचाळै धंसाय’र
चीख़ रह्यौ है—
‘लिख!’
अर उण बगत
आपरै अधीन संसार ऊपर
चील री जीयां पांखड़ा खोल’र बैठण में
अेक: सुख मैसूसै—
आ
घर रै पिछोकड़ै माथै
ठक-ठक करती
उण आवाज री दांई है
जिकी किंवाड़ ‘खोलतां पांण ई’
भूत ज्यूं अलोप जावै
अर जिणरै आगै
लूंठा ल्हौड़ा
म्हारा सगळा विचारां री
नांनी मर जावै
अर इण बगत हरेक बात
टीपणां रै
खळभळिये समंदर में
डूब जावै—
आ वा जिनस है
जिकी आपरै पगछेड़ै साथै ई
‘सांच’ रौ भख मांगसी
‘फूठरै’ रौ ऑडर देसी
अर ईसा दांई
कोस जिसी सूळी माथै
कील दियां जाता थकां भी
दया हया रा भाव
थांरै हिवड़ै सूं सोख लेसी
आ करम रै नाच रौ
आपौ गाळ दै अैड़ी लय है
कै आ
किणी बावळै साजिंदै री
बजायोड़ी कोई
टूटी-भागी धुन है
ज्यूं-ज्यूं मन रै ऊंडै आंगणै
आ रमै
आखरां री मौरां माथै
हळकी थापी लगावै
आ अैड़ी चीज़ है
जिकी मोटै सूं मोटै भेजै में भी
पूरसल ढूक जावै—
अर तद
वरणमाला रौ पैलड़ौ आखर
‘अ’ भी
मोकळौ अळगौ व्हे जावै
उतरादै अर दिखणादै ध्रुव दांई।
अर थे
ऊंघता रैवो
भूल जावौ थे
सोवणौ अर खावणौ
आ अैड़ी जिनस है
जिकी कदैई बोदी कोनी पड़ै
अर नीं आंख्यां सूं ओझळ व्है
इण वास्तै
इण रै लागतां ई थे
अेक सबद लिख्यां बिनां
संसार माथै
रेसम जिसी लाल जोत
हाथ में थांमणियां
‘स्टैण्डर्ड-मिनख’ व्हे जावौ
औ अैड़ौ
चतर अर पुराणपंथी कथ भी है
जिकौ हरेक घटणा रै गरभ में
हबोळा मारै
अर आपां री मूळ-बिरत्यां में
लुकियोड़ौ
औ कदै भी छळांग भरण नै
त्यार ऊभौ दीसै
इणनै भूलण री हीमत कोई
कियां कर सकै?
अेकर औ
म्हारै बरांवडै
हरेक चीज़ नै खिंडावतौ आयौ
अर म्हारी थोथी बुद्धी माथै
टीप देवणी सरू करदी
औ म्हारा सगळा भेद अर
लोगां सूं जांण पिछांण रा
बखिया उधेड़णा सरू कर दिया
औ आतां पांण ई
वां सगळां नै
अळगौ न्हांख्र
आपरी सत्ता नै
पूरी उजास दीनी
औ ठग री तरियां
म्हनै गलै सूं
पकड़ लियौ
अर लोहार दांई
म्हारै हिवड़ै अर कनपट्यां माथै
सांगोपांग चोटां देवणी सरू कर दी
औ म्हनै
म्हारी कविता री
अरथबायरी गत सूं भी
घणीवार सांप्रत करायौ
इण जिनस रौ
कांई नांव है?
चायै जिकौ व्हौ—
पण वौ ज़रूर
सोवणौ अर चोखौ
व्हेणौ चाईजै—