“दूजी चीजां ज्यूं अेकर काठौ बरत्यां सूं ताजणौ लातर नै निकांमौ व्है जावतौ व्हैला?” मन्नू आपरी मां सूं पूछ्यौ, जिकी अजतांणी आपरै मोरां रा चबकां सूं उबरी नीं ही।

“पण घाव तौ कर जावै लातरण सूं पैली।”

“घाव मिलण में किस्या बरस लागै मां?”

“बरसां में मिळ जावै तौ मोटी बात जांण बेटा!” इत्तौ कैय वा उणी’ज भांत चौकन्नी व्हियोड़ी, हळफळाई आपरा जाया री आंगळी पकड़ खैंच्यां जावै ही। काळी स्याह रात अर काळी धिराक डांमर री सड़क माथै।

“अपां सेवट कठै जावण नै नीसर् यां हां, मां? अपां यूं सिध जावां?” मन्नू कठकारौ टाळतां आपरी बात संवारी।

“कोई ठौड़ व्है तौ बतावूं।”

“जणै कांई हालतां जावांला?”

“हां बेटा! पगां रौ करार अर हिवड़ै री हूंस नीं थाकै जठा लग।”

“पण इणसूं अपां पूगांला कठै?”

“बोलौ रै, उण ताजणा री पूग सूं बारै जावणौ है।”

“ताजणा री पूग कित्ती लांबी व्है मां?”

“पिरथी थपियां पछै जलमियां पैला मरद सूं लगाय आज रै मरदां वाळी पीढी जित्ती।”

“आ भांय तौ थूं टेम री बताय दी।”

“लुगाई री जूंण में पटकी पड़ै उण वगत सीढी—काढ्या टेम अर देस दोनूं अेकौ कर लेवै। काळ अर देस दोनूं अेक दूजा में सगळ-नगळ व्है जावै बेटा! इण सारू दाय पड़ै उण मापीणा सूं मापौ, भांय उत्ती री उत्ती लाधैला।”

“पण मां, म्हारी गणित तौ...।”

“थारी गणित साव पोची है रे! थारै मोटौ व्हियां गणित रा म्यांना बदल जावैला।” निसांस न्हाखती मां अेकर वळै आपरी जळजळी आंख्यां पूंछी। हालती-हालती थोड़ी थोगांणी आपरा जींवणा हाथ नै भेळौ कर मोरां लारै आंगळ्यां सूं उपस्योड़ी खाल रौ तकमीनौ कर्‌‌‌यौ। पछै धकलै छिण पाछी खाथै बेग नाक री डांडी कांनली सड़क खूटावण री गरज सूं हालण लागी। हालणौ कांई, अेक तरै रौ दौड़णौ हौ।

“मां! दूखै कांई?” इत्ती ताळ रोय-रींक माठ झाल्योड़ै मन्नू पाछौ गळगळौ होय पूछ्यौ।

“नीं रै! हां, अलबत्तां अेक दूजी पीड़ अवस रैय-रैय चबीका मारै।”

“दूजी पीड़ किणरी मां?”

“थूं हाल कोनी समझै, अजै छोटौ है!”

“अपां अपांरै गांव हाल जावां मां! वठै जामुणिया रौ गोढ है। उणरा पांनां बांट म्हैं थारै माथै लगाय देवूंला। सुखसागर तळाव री काळी माटी थेथड़्यां कदास ऊळ्योड़ी चांमड़ी हेम-हेम ढळ जावैला। म्हैं म्हारी कोरणा (चित्रकला) वाळी कॉपी रा गत्ता सूं थारै हवा घालूंला।”

“औ मारग किणी किणी गांव तौ पूगैला ईज!”

“पण वठै सूरज अर सांति थोड़ी लाधैला?” मन्नू संका दरसाई।

“अपांरै सूरज सूं कांई लेणौ! तौ नीं ऊगै उणसूं पैली-पैली अलंघां आंतरै ढळणौ है। अर बेटा म्हारै सांति जैड़ा तौ भाग कठै!” मां आळोच में पड़्योड़ी पडूत्तर दियौ।

“नीं मां, म्हैं तौ अपांरै गांव वाळा म्हारा बाळगोठियां री बात करै हौ।”

“आपणौ गांव तौ कठैई खोवायग्यौ बेटा!”

“तौ पछै नानांणै हाल जावां।” मन्नू तुरत नवौ उपाय सूझायौ।

“वौ तौ थारै गांव रै लाधतां अलोप व्हैग्यौ रे! अर जे व्है खरी, तौ अपां जायनै कैवांला कांई? क्यूं आया, इणरौ म्यांनौ कोनी म्हारै पाखती।” मां अेक लांबौ निसांस न्हाखती बोली।

खासी ताळ सूं अणूंतै वेग हालण री आफळ में सांस भरीजगी ही, इण सारू मां नैं अबार बोलणौ सुहावतौ कोनी हौ। थोड़ी ताळ में दोनूं छांना-मांना पगल्या भरता रैया। अैड़ौ लखावतौ हौ जांणै नीं रात खुटैला, नीं मारग अर नीं जातरा। ताजणा रै फट्टीड़ रौ कुंडाळियौ जांणै तर-तर वांरी हाली रै समचै साथै-साथै बधतौ जावतौ व्है।

“बेटा, जुलम री रात जित्तौ'र जित्तौ लांबौ व्है ताजणौ। हाथ रा अेक फटकारा सूं सळावा भरतौ डील रै साव चिप जावै अर सट्टीड़ रै समचै डील री चांमड़ी सागै लेय जावै। भगवांन नीं करै किणी रौ साबकौ उणसूं पड़ै। थारै तौ तातौ बायरौ मत लागज्यौ बेटा।” गुणमुण-गुणमुण मां रांम जांणै कांई बड़बड़ावती ही, सावळ उणनैं सुणीजतौ नीं हौ। मन्नू तौ फगत घड़ी-घड़ी सियाळै री इण ठारी पड़ती रात में मां री हथाळी व्हैतां परसेवा सूं तिसळती आपरी आंगळी नैं सागण ठौड़ राखण नै दौड़तौ हालै हौ। खासी ताळ दोनूं रै बिचाळै मूंन पातरगी। रात री सांय-सांय में च्यारूं पग सड़क माथै 'धब-धब' रै समचै धकै बधै हा, जांणै 'कट-कट' री आवाज करती घड़ी री सूई बधती व्है।

“मां! म्हैं मोटौ होय उस्तरी रा उण तार नैं बाळ काढूंला, पछै पापा?” खासी ताळ आपरै मन में सोच मन्नू आपरौ मंसूबौ दरसायौ।

“बेटा! तार बाळण सूं ताजणौ थोड़ी बळै।” बिचाळै मां उणरी बात काटतां पडूत्तर दियौ।

“म्हैं सगळी डोर्‌यां, रास, गळाम्यां चूकता बाळ काढूंला, पछै?”

“तौ ताजणौ नीं बळै बेटा!”

“म्हैं दुनिया मांयलौ आवगौ चांमड़ी बाळ देवूंला, मां! पछै?”

“पछै ताजणा किणी दूजी चीज रा बण जावैला!”

“किण रा?”

“सण रा कै पछै चारा सूं बंट्योड़ी रा’ड़ी रा।”

“म्हैं जमीं माथै ऊगोड़ा सण रा खेत, चारौ कांई धोब तगात बाळ काढूंला।”

मां धड़धड़ी खाय बेटा रौ हाथ जोर सूं झंझेड्यौ, “म्हैं थनैं मोटौ व्हियां मिनखां रा अै चाळा मर्‌यां नीं करण देवूं। बोलौ बळ! कणाकलौ जीभाकूटी करै। दुनिया नैं बाळण री पंचाती थनैं कुण भुळाई! थारा लक्खण तौ अबार दीसै है।” मां किणी रौ रीस-आंमनौ किणी माथै काढती मन्नू नैं ओझाड़्यौ।

“माफ कर दे मां, नीं बाळूं। पण पछै थूं तौ ताजणा नैं निवेड़णौ चावै है।”

“ताजणा रौ कोई अेक रूप नीं व्है, बेटा!”

“पछै?”

“ताजणौ तौ आवेस रौ नांव है अर आवेस जठी नै हाथ करै उठी नै उणरै हाथ में जिकौ कीं आवै वौ ताजणौ इज व्है। रथ रौ पैड़ौ व्हौ के इडांणी, वौ छिण में चक्र बण जावै। वौ भस्मासुर वाळौ कड़ौ व्है जिकौ हरमेस म्हारै जैड़ा भोळा-ढाळा संभु रौ दियोड़ौ इज व्है। हेत अर अपणास माथै वारी जावता सिवजी नैं पछै अपांरै ज्यूं दौड़णौ पड़ै। ताजणौ तौ हरदय अदीठ व्है अर अदीठ व्है उणरी आकरी मार, जिकी मिनख रा ठेट मांय तांईं दो भाग कर न्हाखै। अजतांणी उणरी मल्ह नीं बणी बेटा! अेक बात जबरी के जिण मिनख हाथ वसूं व्है ताजणौ पैलमपोत उणरौ इज विमेक मार काढै अर विमेक रै मर्‌यां वौ मर्‌यां समांन इज व्है। बेटा, बीजळी रै सळावा ज्यूं पलक में आदमी मांयली हिंसा जोर सूं भभकै अर वा अेक साथै केई चीजां री भख लेय लेवै। ज्यूं के प्रीत अर अपणायत नैं तौ पैल धपळकै लील जावै। आदमी उण बगत फुस्स व्हियोड़ा भड़ाका री भूंगळी री जात साव थोथौ अर खाली व्है जावै। तूट्यां पछै कीं नीं जुड़ै-गनौ व्हौ के काच। वौ किरच-किरच व्हैय बिखर जावै, ता पछै आवगी उमर वां किरचां रै खुबण री पीड़। नीं मिनख जीव सकै सावळ अर नीं उणसूं मरीजै...”

...अर उणनैं अणछक मरण रौ ध्यांन आयौ। आपघात... नीं-नीं, वा तौ मौत सूं माड़ी... आपघात तौ निरदोस माथै मर्‌यां पूठै तोहमत लगावण री मांदगी रौ दूजौ नांव। मां, आपरै मन में उपज्या मंसूबा नै दाट पाछी खाथी-खाथी हालण लागी।

“मां, थूं कैवै कांई है, म्हारी समझ में नीं बैठै।” मन्नू जिकौ इत्ती ताळ बगना रै ज्यूं खाली हूंकारौ देवतौ हौ, आपरी बात दरसाई।

“समझ नादांन व्है जित्ते इज आछी रे!”

“पछै थूं क्यूं मोटी व्ही मां?”

“भूल व्हैगी बेटा!” वा आपरा गळगळा सुर में खुद नैं सुणावती व्है ज्यूं बोली।

“देख, मां! टेसण आयग्यौ। वै बत्तियां दीसै।”

“इण जूंण-जातरा में घणा टेसण आवै बेटा! जठै उमर री रेल ढबै कोनी।” निसांस रै मिस पिछतावै में सोच रा सुर दाटती बोली, “हां रे, लागै तौ अैड़ौ इज है।”

“हाल मां, बठै हालां परा।”

“हाल, कठै कठै तौ जावणौ इज है।” पछै मनोमन खुद नैं हूंकारौ भरावती व्है ज्यूं सोचण लागी, आदमी खुद सूं न्हाट नै कठै जाय सकै है। हाय रे! इण अभ्यागत लुगाई रौ जमारौ थारा सूं कुण मांग्यौ हौ, भगवांन! ओसियाळी जीव सिरजन कर थारै कांई हाथै आयौ अंतरांमी! पण थारौ कांई कसूर, थूं तौ खुद मरद है। भ्रगु री लात झेलण रौ नाटक करणिया नटनागर कदैई ताजणा रौ सटीड़ खांमतौ तद जांणती थनैं अवतारी। थारै लोक ताजणा रौ चलण व्हैतौ...नीं-नीं, इणसूं तौ बजराक रा घर व्है जाता। राधै-रुक्मण इण घड़ी म्हनैं इण टेसण माथै साम्हीं धकती अर थूं कदास सत निकळ्योड़ा मिनख ज्यूं दरीखांनै अेकलौ डोलतौ। अरे जीवड़ा, सगळौ तौ पुरांण-पोथां अर सास्तरां रौ मायाजाळ है। परबस जीव नैं भोळावण रौ अचूक नुसखौ। कांई कोई पीड़ रौ मारेळ किणी सूं भोळाइजै? नीं इण घड़ी कोई भगवांन साच है नीं अवतार। साच है तौ फगत अै टेसण री बत्तियां, हाथ में पकड़्योड़ी जाया री आंगळी, ठारी रात री हाड कंपावती रात साच है। काळी धिराक सड़क साच है। साच है बारै रात री अर अंतस में किरच-किरच पीड़ री सांय-सांय। साच है मरद, साच है जगत, कूड़ है तौ फगत लुगाई अर वा मां। उणरै सोच रै खांम लागी जद मन्नू बत्तियां रै चांनणै चांणचक कह्यौ, “देख, मां टायगर। आयग्यौ अपांरै लारै रौ लारै।”

“हां, बेटा। कुत्ता नैं दीसै परतख पाडौ अर उणरौ असवार जमराज अर उणरै हाथ रौ ताजणौ, अैड़ी कैणावत है।”

“मां, जमराज ताजणौ राखै कांई?”

“हां, राखतौ इज व्हैला, जद इज तौ उणनैं जोय कुत्ता रोवै भूंडै ढाळै।”

“मां, मांय हाल जावां, म्हनैं बीह आवै, अैड़ी बातां सूं।”

“बीह रौ इज दूजौ नांम ताजणौ है। जिकौ ठौड़-ठौड़ आतमा माथै सडूका रै मिस मंड जावै अर रैय-रैय चबीका मारै।”

“अबै थूं हटकै कर मां, सिग्नल व्हैग्यौ। देख, रेल आवण में है। अपां रेल में बैठ चालबौ करांला, चालबौ करांला, जठा लग रेल जावै अर पिरथी रै उण दूजै कूंणै सूं अपां खूब लांठौ अर करारौ कोरड़ौ मोलांवांला अर पाछा रेल में बैठ इणी’ज टेसण उतर परा... खाथा-खाथा हाल... पाछा घरे पूग उण अेकूका हाथ नैं रीठ काढांला जिकौ ताजणा री मूठ कांनी बधै। जिणसूं पछै कदैई वौ हाथ ताजणा कांनी बधतौ थरका करैला।”

‘सटाक’, टेसण री बत्तियां रै धा चांनणै, मां अेक रेपट बेटा रै धरी अर पैली सूं ऊंचै सुर में डाडण लागी। अेचबेच रा आंख्यां आडै आयोड़ी अंधारी सूं पैली तौ मन्नू डेरफेर्‌यौ व्हैग्यौ, पछै ‘टायगर’ रा रोवणा बिचाळै उणरी चिराळी दटगी। टेसण माथै सूं छूटती रेल आपरी सीटी नीं देय ‘छुक-छुक’ री डुसक्यां भरती छूटगी ही।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : चन्द्रप्रकास देवल ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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