म्हैं सिगरेट री डब्बी खोल’र देखी। उण में सिगरेट कोनी ही। म्हैं म्हारै खूंजै नैं जोयो। खूंजै मांय बड़ा-बड़ा तीणा सा लाग्या। म्हारा हाथ-पग ढीला हुयग्या। बाप जित्तो टोकै उत्ती म्हारै सिगरेट पीवण री आदम बधती रैवै। हूं आजकल बाप नैं खुलो कह देवूं कै हूं तो सिगरेट पीवूं लाईज। बाप म्हारी निसरमाई सूं बड़ो दुखी होवै।

म्हारै सागै अेक बड़ी ट्रेजडी है कै म्हारो बाप मनैं हाल ताईं टींगर जाणै, पण हूं अेकदम हुयग्यो हूं। मनैं दुनियादारी रो ग्यान हुयग्यो है। म्हैं कित्ता अैड़ा उपन्यास बांच नाख्या है जिकां में प्रेम री बारीकियां समझायी गयी है। जद सूं साठोतरी पीढी री कहाणियां बांची तद सूं हूं कित्ती नुंवी बातां जाणग्यो हूं।

म्हारै बाप मन्नैं ब्रह्मचारी राखण खातर घर में नोकराणी री भी छुट्टी कर नाखी। अेकदम विचित्तर है म्हारो बाप। पण हूं भी कम कोनी। म्हैं भी उण रै आंगळी कर राखी है।

अबार सिगरेट पीवण री सागीड़ी मनस्या। हुयी जणै म्हैं बाप रै खूंजै में हाथ घाल्यो। रिपियां रै अभाव में हूं बाप रै खूंजै मांय सूं दस-पांच उड़ा लेवूं हूं अर मोज-मस्ती मारूं हूं। अबार भी म्हैं उण रै खूंजै मांय हाथ घाल्यो तो दस रै नोट रै सागै अेक प्रेम-पत्र मिल्यो। कागद लुगाई रै हाथ रो लिख्योड़ो हो। म्हैं बेगो-बेगो कागद खोल’र बांच्यो। बीं में भांत-भांत री बातां रै सिवा अेक बहोत खास बात या ही कै उण लुगाई लिख्यो हो कै बा परणीजणो चावै। कागद बहोत ईज सोवणी भासा में हो। म्हारै मांयनैं अेक धमाको छूट्यो। अरै बापजी तो छुप्योड़ा रुस्तम निकळ्या। छोरै नैं ब्रह्मचारी बणावण नैं कांटां री बाड़ अर खुद..? म्हैं कागद नैं बार-बार बांच्यो। छोरी उगणीस बरस री ही। म्हारै बाप नैं सालीमार रेस्टरां में साढ़े च्यार बजे बुलायो हो। उठै बा म्हारै बाप री अडीक राखैली। छोरी आपरो फोटू भेज्यो कोनी पण म्हारै बाप आपरो फोटू भेज दियो हो जिकै नैं छोरी पसंद भी कर लियो हो।

पण म्हैं अेक नूंवी चाल चली।

हूं पैलांईज बींद बण’र रेस्टरां रै आगै पूंचग्यो। आवती बेळा बापजी रै खूंजै मांय सूं पचास रिपिया फेर काढ़ लिया। हूं रेस्टरां रै इणगी-उणगी फेरा लगावण लाग्यो। घणो बेगो आयग्यो हो इण वास्तै म्हैं म्हारै समै री अकारथ हत्या करण लाग्यो।

म्हारा भी ठाट देखणै जोगा हा। टैरैलीन री पेंट अर पूरी बांवां रो कमीज। गोल्डफ्लेक सिगरेट। जीवणै हाथ मांय घड़ी। हिवड़ै मांय विचित्तर सी अनुभूति होय रयी ही कै बूढ़ियै सूं परणीजण आळी छोरी कुण है? कैड़ी है?

छोरी री उडीक में हूं चेनस्मोकर बणग्यो।

मनैं म्हारो बाप दीख्यो। हूं अेकबर तो डरग्यो। फेर हूं बोल्ड हुयग्यो। बाप सूं चोनजर नीं की। दार्शनिक रै मूड में सिगरेट पीवतो रयो। थोड़ी ताळ पछै म्हैं म्हारै बाप नैं जोयो। बापड़ो अेक थम्भै रै लारै लुकग्यो हो। हूं बाप री सगळी खुसर-फुसर देक रयो हो। पण हूं रेस्टरां रै बारणै रै आगै थम्भै री जियां ऊभो हो। म्हैं देख्यो म्हारो पूजनीक बाप मुठ्ठियां भींच्योड़ो ऊभो है अर उण रा होठ फुर-फुर कर रया है। उण रो उणियारो-उणियारो नीं रह अेक खीरो हुयग्यो है।

वाह! उण री पोसाक राजवी ही। जोधपुरी कोट अर पेंट। सगळा केस काळा दराक। पक्कायत खिजाब लगायो है। हूं म्हारै बाप रो जायको लेवतो रयो।

ठीक सात बज’र दस मिनटां माथै हूं रेस्टरां में बड़ग्यो। सवा सात री टेम ही।

पैचाण करणै रै वास्तै छोरी लिख्यो हो कै हाथ मांय गुलाब रो फूल हुवै। म्हारै हाथ में गुलाब रो फूल हो।

थोड़ी ताळ में अेक जवान छोरी आई। इण रो रंग गूगळो हो पण डील घणो चोखो, गुदगुदो!

बा मुळकती म्हारै कनैं आयी।

म्हैं म्हारै बाप रो नांव बतायो।

बा म्हारै कनैं बैठती बोली, हू थानैं पैचाणगी।

“कियां?”

“आपरी फोटू म्हारै कनैं है। पण फोटू बहोत ईज जूनी भेजी है।”

“नीं तो।” म्हैं थोड़ोक नाटक कियो।

“देखो।” कह परी उण आपरो पर्स खोल्यो अर अेक फोटू म्हारै सामैं राख दी।

हूं च्यारूं खाना चित्त!

म्हारै बाप तो कमाल कर नाख्यो। आपरै मोट्यारपणै रो फोटू भेज दियो। बात घणी सावळ ही कै उण रो उणियारो म्हांसूं घणो मिलतो हो। उण सूं म्हारो बैम भी हो जावतो।

हूं उण कानी देख’र मुळक्यो। फोटू नैं खूंजै में घालतो हुयो बोल्यो, गड़बड़ उतावळ में हुयगी। हूं थानैं म्हारी नुंवी तसवीर दूंला। अर म्हारो असली नांव भी दूजो है।

बैं मनैं घणै चाव सूं जोयो। थोड़ोक मुळकती बोली, अबै भी मनैं फोटू लेणो पड़ैलो।

हूं झैंपग्यो।

सावचेत होय नै बोल्यो, “नीं मैडम, अबै म्हारो सगळो थारो हुवैलो।”

फेर बिना माथै री बातां होवती रयी। इण बीच म्हैं नैचो कर लियो कै इण चार्मिंग लेडी सूं हूं पक्कायत ब्याव करूंला। छेवट छोरी है ए.वन।

उणी बखत म्हारो पूजनीक बाप रेस्टरां में पधारियो। उण रो थोबड़ो सूज्योड़ो हो। आख्यां मांय खीरा ज्यूं चिलकर्‌या हा।

म्हैं जीवती माखी गिटग्यो।

बो म्हारै कनैं आळी टेबल माथै आयनैं बैठग्यो। म्हैं उण कानी जोयो अर सिगरेट पीवण लाग्यो। उण री गीध जेड़ी तीखी निजरां म्हांसू चिपकगी ही। कदेई-कदेई बो दांत बजावतो। कदेई-कदेई मेज माथै हाथ पटकतो।

उण रै भावां सूं लागतो हो कै बो मनैं घरां पूगतां ईज काचो चबा जावैलो, पण हूं भी उण नैं घूरण लाग्यो।

“के देखो हो?” छोरी बोली।

म्हैं अेक मिनट सोच्यो अर बोल्यो, हूं देखूं कै इण मिनख रा केस धोळा है—काळा नीं। इण चोखी तरियां खिजाब लगायो है। क्यूं मैडम, मेक-अप रो भी जबरो चमत्कार हुवै?

बात सुणतां म्हारो बाप चिगग्यो मूंडो फेर लियो।

छोरी बोली, “सांची बात कह’र किण रो काळजो नीं बाळणो चाईजै। थांनैं मालूम नईं कै बुढ़ापै में लालसावां घणी बध जावै। साठो-पाठो।” बा मुळकी।

म्हैं जोयो, म्हारै बाप रो उणियारो धोळो-फक्क हुयग्यो है अर उण रा केस भी धोळा हुयग्या है। बो आपरै सागी-सांचै रूप मांय आयग्यो है। बो ऊभो हुयो अर घ्रिणा सूं मनैं जोवतो बारणै निसरग्यो।

छोरी उण माथै तरस खावती बोली, थांनैं ऐड़ो नीं कैणो चाईजै।

हूं मून रयो।

बा फेर बोली, थांनैं म्हारी बात बुरी लागी के? लो जी, मनैं छिमा करो अर देखौ म्हैं थारै खातर कित्तो ठीक-ठाक सोच्यो हो कै आप मोट्यार होवोला। फूटरा फर्रा होवोला, म्हारै सुपनां रै मुजब थारी काठी भी पक्की है। मनैं थारै कागद सूं पतो लागग्यो हो कै थे म्हारा धणी बणन जोगा हो।

हूं अेक जड़ता सूं घिरग्यो।

म्हारै माथै विचित्तर मून पसरग्यो।

अवाचूक म्हैं गेट कानी जोयो।

म्हारो बाप ऊभो हो। इणदफै उण री आंख्यां में खीरा री जगां कंवळास ही। अेक याचना ही। पतो नीं म्हारै मांय नैं बैठ्यो दुस्ट बेटो कठै लुकग्यो हो। म्हारै में अेक गीलोपणो पसरग्यो... अेक कंवळो गीलोपणो।

छोरी चिनीसीक रीसाणी होवती म्हारै बाप नैं जोय नै बोली, कुवै में नाख नीं इण बुड्ढ़ै नैं, आपणी पैली मुलाकात नैं राहू बण’र गिटकणो चावै...पक्कायत आपणै पूरब जनम रो बैरी है।

म्हैं उण रै लिपस्टिक रंर्‌योड़ै होठां पर आंगळी मेलदी। बा चुप हुयग्यी।

म्हैं जोयो कै म्हारो बाप गयो परो है।

स्रोत
  • पोथी : आज रा कहाणीकार ,
  • सिरजक : यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ ,
  • संपादक : रावत सारस्वतराजस्थान भासा प्रचार सभा ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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