पीड़ उपड़तां कै बार लागै। मन री पीड़ तो हुवै इज जाबक अधीरी। थोड़ा-घणां भावां रो हळाडोब हुवणूं हुवै कै पीड़ रो उपड़णूं हुवै। पीड़ हरेक मिनख-मानवी रै अंतस मांय बिराजै। बारै सूं बो घणूं हरखतो दिखै पण टंटोळ’र देख्यां बो पीड़ री पोटळी लागै। घणां गजब रा गोळा हुवै बै आपरी पीड़ मांय री मांय दाब लेवै। पण सगळां रै बस रो सोदो कोनीं।

कई आपरै दुख अर आपरी पीड़ सूं सदीव कुचरणी राखै। जाण-बूझ’र पीड़ माथै सोचै अर पीड़ नैं उकसावै। किणी री पीड़ नैं कोई थोड़ी सो मीठी बतळावण कर’र छेड़ज्या। उण बापड़ै रै सेको मंडज्या।

कई दूजै आगै आपरो रोवणूं रोवै। रोवणै सूं के पीड़ मिटै? पीड़ तो पीड़ा हरण सूं भागै। आज रै इण बगत मांय पीड़ा कुण हरै? आपरै खातर इज बगत कोनी तो दूजै री पीड़ा खातर कुण खेचळ करै?

कई पीड़ रा घणां पाका हुवै तो कई घणां काचा। बापड़ो नंदू पीड़ मांय घणूं काचो।

नंदू घणूं रिजाळू। दो सौ बीघा जमीन रो अेकल धणीं। मां-बाप री अेकल औलाद। भैण अर दूजो भाई। बालपणै मांय मां रो साथ छूटग्यो। बाप री छिंया मांय जीवण रा सगळा गुर सीख्या। बाप सूं गासिया ले-ले’र पळिज्योड़ो नंदू बाप री पीड़ नैं कन्नै सूं देखी।

आपरी जीवण री लड़ी खातर बाप नैं पसेव करतो देख्यो। परिवार री घणी अबखायां मांय खपतो बाप नैं देख्यो। काका-ताऊ खातर अकरोड़ै सोंवतै बाप नैं देख्यो। अंतस री डूंगाई सूं भीड़ मांय रैंवतै पण अेकलपो भोगतै बाप नैं देख्यो।

अर बगत रै परवाण सूं पैली इज नंदू स्याणो होग्यो। उणरी सोचण री गत न्यारी हुगी। बाप रो रूप चित चढ़ग्यो। उणां रै दुखां अर फोड़ा मांय आपोआप सामल हुवण नैं मन लुळण लाग्यो।

इस्कूल मांय मन नीं लागै। खेतां मांय बोझां सूं खताई करतो बाप निगै आवै। किताबां रा आखर बाप साम्ही छोटा लागै। आंक बाप रा चितराम मांडता सा लागै। गतागम सो हुयेड़ो रैवै नंदू, पण इस्कूल री छुट्टी री घंटी सागै इज तीतर बण ज्यावै। खेत री सींव मांय बेगी सूं बेगी बड़ण री उतावळ रैवै। बाप री सौरम बीं रै जीव मांय जीसोरो कर दै।

“आग्यो रै नंदिया, के पढ़’र आयो.......”

बाप रा रोजीनै रा बचन नंदू नैं इन्नै-बिन्नै री कर’र टाळणा पड़ै। कदे इज जेळी अर कदे इज गंडासी उणां रै हाथां सूं ले’र बाप आगै ख्याल घालै नंदू। “बापू थे म्हनैं किसान बणाद्यो म्हैं थानैं पढ़ा’र मास्टर..... ।” हंसी-मजाक रो माहौल बणा’र बाप रो जीसोरो कर दै।

नंदू आवंता इज बाप रै कीं नैहचो हुज्या। दुनियां आपगी सी लागै। नंदू सूं के कमती बाप रो ईसको। हांडी बगत हुयोनीं कै आंख्यां गांव रै गेलै कानी उचकण लागज्या। नंदू आवूं-आवूं इज करै है.... रोजीनै उडीकै अर नंदू रा दरसण हुवतां इज मन तिरपत हुज्या।

बाप-बेटै रो जबरो लगाव।

खेत सूं घरां आय’र बाप बाजरै री च्यार रोटी हाथां पावै अर गोरती गाय रो दूध काढ’र दोवूं रोट चूर’र खा-पी निरवाळा हुज्या।

नंदू बाप नैं रोजीनैं मोड़ै ताणी बिलमायां राखै, कदै-कदै तो बाप री आपै ही इज आंख्यां मिचीजण लागज्या तो नंदू “सोज्यावो बापू” कैय’र पसवाड़ो फेरतो उमर सूं आगै री सोचै।

बाप मांय मां री कमी सूं किता फोड़ा पड़ै। खेत मांय सारै दिन हाडतुड़ाई कर’र घरै आय’र बाप नैं हाथां सगळा काम करणां पड़ै। बस बो तो गाय रै दूध काढ़ण रै बगत आगै खड्यौ खाज करणै सूं न्यारो के काम कर सकै? चूल्हे मांय लकड़ी अडावणूं के काम हुवै.......?

नंदू सोच सोच’र पीड़ सूं उकळतो जावै।

*****

बगत रै परवाणै नंदू रो ब्याव हुग्यो। अेकलपो कीं टूट्यो। घर-घिरस्थी कीं जगां सि’र जमगी। सगळा कामां रो अेक नेम बणग्यो। बगत सारू सोकीं होवण लाग्यो।

नंदू जद इज बाप रै उणयारै कानीं देखतो तो कीं चैचाटी लागती। कमती खरचै रै पाण दो पीसा इज जुड़ग्या। लोग-बाग जरूरत सारू पूछ करै।

बाखळ मांय टाबरां रा जद किलोळ हुवण लाग्या तो ईया लाग्यो जाणै भगवान् छप्पर फाड़’र खुसी दे दी हुवै। बाप रो बुढ़ापो नंदू नैं गेमड़ो सो दिखै। दादा-पोतां रो दरसाव कीं नैं दादो अर कीं नैं पोतो बतावै? दोवूं गुढ़ाळियां बाखळ मांय रमै। दादो पोतै नैं खिलावण सारू अर पोतो खेलण सारू.....

अेक, दो, तीन.....टाबरां रो गेड़ बंधग्यो। घर मांय कीं कमी नीं रैयी। कद दिन उगै अर कद छिपै! ठा इज नीं लागै।

पण अै सगळी मौज नंदू रै बाप घणां दिन नीं ली।

बाप रो घणै उमाव साथै नंदू कारज कर्‌यो। असवाड़ै-पसवाड़ै रा गांव जिमाया। दान-पुन्न घणूं कर्‌यो। पूरी उमर ले’र अर सुख भोग’र जका गया हा। के भीखै मांय गया....

पण अबै नंदू माथै सगळो बोझ आग्यो। टाबरां नैं इस्कूल घाल’र आवणूं, पाटी-पोधी सूं ले’र सगळी ख्यांत राखणी। खेती मांय इज पचणूं।

होळै-होळै सगळो बीं नै जी रो जंजाळ सो लागण लाग्यो। बाप रो कोड इब अखतावै। इस्कूल सूं भाज’र खेत जावणूं खटकै। उण रो साथी हीरो जद मास्टर, स्योकरण जद थाणेदार अर पेमौ जद पटवारी बण सकै तो बो कीं कीं तो बणतो इज। बस उण बगत मन सूं पढ़ण री दरकार ही। पण मन तो बाप मांय रैयो....

खैर सल्ला.... भली करै भगवान्। छोरा चिपज्या तो पौ बारा पच्चीस है। आंरो आपो सुधरज्या।

इण धुन मांय घिरळ-मिरळ होंवतो नंदू बगत रै पिलाण माथै सवार हुवण लागग्यो। मन मांय टाबरां नैं जगा सि’र जमावण री पीड़ पळै।

****

नंदू रा तीनूं टाबर चोखी नौकरी लागग्या। बडोड़ो समीर बैंक मांय मैनेजर, बिचोटियो पवन झ्याज रो पायलट अर नैंनको पंकज कॉलेज मांय लेक्चरर।

सगळा सै’र सि’र रैवै। नंदू टाबरा री मां रै जीवंतै जी टाबरा रा ब्याव इज कर दिया हा। सगळा रस्सै-बसै।

नंदू गांव मांय। खेती हिसैं-पांती नैं देवै। पण संभाळणी पड़ै। नीं तो हिंसेड़ी के न्ह्याल करै।

समीर, पवन अर पंकज घणा इज न्हेरा काढ्या, “बापू क्यूं गांव मांय पड्या। अठै म्हारै कन्नै आज्यावो...... ।”

बो अेकर सै’र गयो इज। पण आवड्यो कोनी। गांव री ओळयूं कठै टीकण दे? जी लागै तो लागै कीकर। नंदू सूं मन मोसीज्यो नीं अर पाछो गांव आग्यो।

गांव आयो के बस पाछो सै’र कानी बावड्यो इज कोनी। समीर, पवन अर पंकज घणा न्हेरा काढ़ता रैग्या।

****

आज बिचोटियै पवन रो कागद आयो। नंदू बांच’र गळगळो हुग्यो। कागद मांय लिख्या आंक नंदू री सूती पीड़ नैं जगावै। पवन लिख्यो- “बापू, थे गांव मांय कांई करो, खेती सूं धन भेळो कर’र आपां नैं कांई करणूं है। म्हे तीनूं नौकरी करां। तिणखा घणी है। धन री कमी नीं है। अर पछै हिंसै-पांती आळा जितो देस्सी बीं सूं आपां संतोख कर लेस्या।

थे जाणो म्हे तीनूं घणी छुट्टी नीं सकां। ड्यूटी बखत सिर करणी पड़ै अर गांव सूं सै’र आंतरै इज घणूं। थांनै म्हे बगत सि’र मिळ नीं सकां।

अर बापू, पछै सोचो, गांव मांय थे अेकला। मां होंवती तो बात दूसरी ही। अेकला थे हाथां टीकड़ सेको। के आच्छी बात है?...... ।”

नंदू सूं पवन रो सगळो कागद बड़ो दो’रो पढ़ीज्यो। अर पवन रा छेकड़ रा सबद तो बरसां पैली री दबेड़ी पीड़ नैं कुचर’र मेल दी। नंदू आगै आपरो रोटी पोंवतो बाप अर नान्हो सो’क नंदू साम्ही खड्यो हुयो।

आखर मांय नंदू आज कीं फैसलो करण री तेवड़ली।

स्रोत
  • पोथी : पीड़ ,
  • सिरजक : दुलाराम सहारण ,
  • प्रकाशक : अमित प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम
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