अेक जाट जवार री खेती वाई। सोळै आंना जमांनौ तूठौ। वैंत-वैंत लांबा सिट्टा बधिया। कोडां रै उनमांन पाक्योड़ा दांणा चिमकण लागा। खेत रै च्यारूं खुणै अेक सरीखी झोला खावती जवार रौ थट लागोड़ौ हौ। जांणै बादळां सूं पांणी रै बदळै जवार बरसी व्है।

असवाड़ै-पसवाड़ै रा पाखती गांवां में काळ रौ पगफेरौ व्हियोड़ौ हौ, इण सूं चौधरी आठ पौ’र खेत री रुखाळी करतौ। गोफण रा सटीड़ा पाड़तौ, चौफेर चौकसी राखतौ हौ, पण तौ अेक दिहाड़ै ढळती रात रा उणनै ऊंघ आयगी।

चवदस री चांदणी रौ निरमळ उजास सिट्टां रै पालणै झूलतौ हौ। ठाडी सुवावती हवा रा लैरका सूं चौधरी ऊंघ में गरक व्हैगौ। इण बिचाळै च्यार चोर पाक्योड़ा सिट्टां री च्यार लांठी पोटां बांधली। पोटां बांधनै वै उखणण वाळा हा के चौधरी झिझकनै जाग्यौ। भच बैठौ व्हियौ। अेक हाथ में गोफण अर अेक हाथ में गेडी लेयनै वौ चोरां रै आडौ ऊभग्यौ। सांम्ही च्यार मोट्यार काटी ऊभा हा अर वौ साव अेकलौ हौ। अेकण सागै च्यारां सूं भिड़ियां तौ बात परवार जावैला। बात विचार नै चौधरी अेक-अेक सूं पड़पण री जुगत विचारी। हंसतौ थकौ चोरां नै कैवण लागौ— खेत में ऊभा धांन री चोरी, चोरी नीं गिणीजै। तौ भगवांन रै तालकै है। ऊभी साख नै तीड खाय जावै, रोजड़ा चर जावै, अधपकी साख ऊभी बळ जावै। इण निजोरी बात माथै तौ किणरौ जोर चालै! माडै सबूरी झेलणी पड़ै। थें तौ मिनखां रा रूप हौ। म्हनै जगाय लेवता तौ म्है खुद आपरै हाथां थांरी पोटां भराय देवतौ।

चौधरी देख्यौ के च्यारूं चोर उणरी बातां सुणनै थोड़ा धीजग्या है। पछै वौ बात रौ रुख बदळियौ। बोल्यौ— पण छांनै चोर री गळाई पोटां भरण रौ थें आछौ कांम नीं करियौ। म्हैं बात जांणणी चावूं के थें सगळा सिरदार किजातिया हौ?

अेक बोल्यौ— हूं राजपूत।

दूजौ बोल्यौ— हूं साहूकार।

तीजौ बोल्यौ— हूं बिरांमंण।

चौथौ बोल्यौ— म्हैं तौ जाट हूं।

तद खेत रौ धणी राजपूत सांम्ही देखनै नरमाई सूं कैवण लागौ—आप तौ धणी हौ सो लेखै रौ लेवौ। साहूकार बो’रा री जात है सो आछी बात। पिंडतजी पुन्न रौ मांगै सो भलां आया। पण जाट कांईं मांगत मांगै? थूं भेळौ थुड़ियौ हौ कांईं? पछै चोरी कांईं हिसाब सूं करी? चाल म्हारी मां कनां सूं थनै ओळबौ दिरावस्यूं।

पछै वौ वां तीनूं जणा नै कह्यौ— मां री दवायती लेयनै आप अठा सूं पधारज्यौ। आपनै हाथ जोड़नै म्हारी इत्ती वीणती है।

बाकी तीनूं जणा जांणियौ म्हांरी तौ खैरियत है। जाट झिलतौ व्है तौ झिलण दौ। खेत रौ धणी उणरौ बाहूड़ौ पकड़नै पाखती आपरी ढांणी में लेग्यौ। जाट रा पोत्या सूं ईं उणनै अेक खेजड़ी रै काठौ बांधनै जरू कर दियौ।

जाट नै काबू करियां पछै चौधरी उठै पाछौ आयौ। होळै-सीक नेठाव सूं कैवण लागौ के म्हारी मां कह्यौ— राजपूत तौ म्हांरा धणी है, वै चावै तौ सगळौ खेत भेळा सकै अर साहूकार कदै बिखा में म्हांनै आसांमी बिणजैला, अेक पोट री ठौड़ झाल भरनै लेय जावै तौ म्हांनै खटकै कोनीं। पण बांमण किण कायदा सूं खेत में हाथ घालियौ। तौ दियोड़ौ लेवै, परबारी चोरी करने पोट बांधण री लाग म्हांनै पोसावै कोनीं। चाल म्हारी मां रै पाहै, वा दवायती देवै तौ अेक री जागा दोय पोटां म्हैं खुद आपरा हाथ सूं बंधाय देस्यूं।

पछै राजपूत अर साहूकार सांम्ही जोयनै कह्यौ— पाछौ आवूं जित्तै आप अठै बिराजज्यौ, म्हैं सिरै मारग खेत सूं बारै काढ़ देवूंला। वै दोनूं जांणियौ बांमण पजै तौ अपांनै कांईं, अपां तौ खैर मनावां। अै आपरै मतै खांचैला अर ओढ़ैला।

चौधरी तौ उणी भांत बांमण नै उणरा पोतिया सूं दूजी खेजड़ी रै बांधनै जरू कर दियौ। तुरता-फुरत पाछौ आयनै राजपूत नै कैवण लागौ—म्हारी मां कह्यौ के आप तौ मालिक हौ, सगळी जर्मी आपरी इज बगसीस करियोड़ी है। थें तौ म्हारै डील री कापियां ईं कर न्हाकौ तौ आपरौ फरज उतरै कोनीं, पछै इण जवार- बाजरी री कांईं जिनात, खेत रौ सगळौ कूढ़ौ आपरै माथै वारनै फेंक देवां। आप तौ आपरै लेखै लेवौ, पण साहूकार म्हांनै सात पीढ़ी में ईं धांन जोख्यौ व्है तौ बतावै। म्हांरौ कद बो’रौ थप्यौ अर म्हैं कद इणरौ आसांमी बंधियौ। खेत में हाथ घालियौ तौ घालियौ कीकर? चाल म्हारी मां गोडै, वा दवायती देवै तौ थूं राजीखुसी पोट ले जाय सकै?

पछै वौ राजपूत सांम्ही देखनै कह्यौ— अै तीनूं पोटां अबै आप ले पधारज्यौ। म्हैं गाडी जोतनै रावळै अबारूं पुगाय देस्यूं। थोड़ौ मोड़ौ तौ व्हैला, पण माफी चावूं।

कैयनै वौ तौ उण साहूकार नै उणरी पागड़ी सूं तीजी खेजड़ी है बांधनै काबू कर दियौ। पछै फुरती सूं हाथ में अेक दूजी लांठी गेडी लेयनै आयौ। राजपूत रै पाखती आयनै किड़कतौ बोल्यौ— किणी रा धणी हौ तौ आपरै घरै व्हौला। अठै कांईं मांगत मांगौ? धणी व्है जकौ तौ सांम्ही जाब्तौ करै के चोर्‌यां करै। थांनै उजाड़ करण सारू कुण धणी थरपिया, बोलौ जबाब दौ?

राजपूत रै जबाब दियां पैली वौ तौ जरकायनै जोर सूं गेडी वाई। गेडी रै समचै राजपूत तौ धूळ भेळौ। पछै वौ इणनै अेक खेजड़ी रै बांध दियौ। सगळा घरवाळा पछै मतै-मतै वां च्यारां नै कांबड़ियां सूं सुरड़िया। आपरै हाथां रौ बट काढ़्यौ। कांबड़ियां मार-मारनै च्यारां रौ डील लीलौ-चम कर दियौ।

सेवट चौधरी पछै वांनै खोलिया। मसखरी करतौ बोल्यौ— गांव वाळा बूझै के अैड़ी ठावकी छापां कठै लगायनै आया तौ कैजौ के ठेठ दुवारकाजी जायनै रातौरात छापां लगवाई। अबै कदै खेत सांम्ही मूंडौ करियौ तौ जवार री ठौड़ बत्तीसी गिटाय दूंला। माजना सूं पाधरा-पाधरा आपरै गेलै जावौ परा।

स्रोत
  • पोथी : बातां री फुलवाड़ी (भाग-1) ,
  • सिरजक : विजयदान देथा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार प्रकाशक एवं वितरक
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