अेक ठाकरसा मै’ल सूं घणौ-सारौ दारू चूंपनै हेटै उतरता हा। नाळ खासी-भली डीगी ही। तरवार अर दारू सूं कुण नीं पड़ै! हाथी ई नीं टिक सकै। पछै मिनख री कांईं बिसात! ठाकरसा तांगी खायनै थोड़ा-सा डिगिया अर गड़िंद-गड़िंद नाळ सूं गुड़ण लागा।
हेटै चौक में केई हाजरिया, कणवारिया अर कांमदार ऊभा हा। ठाकरसा अेक पगोतिया सूं दूजै पगोतियै गुड़ता आवै तौ सगळी परघै जोर सूं बोलै— घणी खम्मा, घणी खम्मा!
नाळ माथै ठाकरसा रा गड़िंदा अर हेटै खम्मा-खम्मा री घोक।
नाळ रै आधेटै आतां ईं ठाकरसा अेक पगोतिया सूं टळिया अर ठेठ नीचै धूड़-आंगणै थरकीजता दीस्या तौ अेक जाट जोर सूं बोल्यौ—हरड़-भुसंदा हौ!
अठीनै जाट रौ जोर सूं हरड़-भुसंदा कैवणौ व्हियौ अर उठीनै ठाकरसा रौ लडीड़ करतां जोर सूं जमीं माथै पड़णौ व्हियौ। ठाकरसा तौ पड़ियां पूठै चुळिया ई कोनीं।
सगळी परधै जाट नै अेकण सागै जोर सूं फटकारतां कह्यौ— मूरख, नांढ़, उज्जड़ कठारा ई, थनै सरम को आवै नीं, ठाकरसा पड़्या तौ थूं हरड़-भुसंदा क्यूं कह्यौ? थनै बोलण री ई सोजी कोनीं।
जाट पाछौ पड़त्तर दियौ— थांरी बापड़ी खम्मा-खम्मा सूं तौ कीं कारी लागी नीं, ठाकर गुड़ता ई गिया, पण म्हारै हरड़-भुसंदा पछै चुळिया ई व्है तौ बोलौ। अबै फरमावौ थांरी खम्मा वत्ती के म्हारौ हरड़-भुसंदा वत्तौ।