सियाळै री रात रा अेक ढोली री छांन में सांतौ देयनै अेक चोर वड़ग्यौ। अठी-उठी सळवळ सूं ढोली री आंख खुलगी तौ वौ बोल्यौ कोनीं। राली सूं मूंडौ काढ़नै चोर री सळवळ देखतौ रह्यौ। छांन ठौड़-ठौड़ सूं नीचै बैठोड़ी ही। इण कारण पांच-सात थोबलियां रा थोगा दियोड़ा हा। वौ जठीनै माल सोधण सारू मुड़तौ माथा में थोबली रौ भचीड़ लागतौ। माल-मत्ता री टोय में सात आठेक भचीड़ उणरै हाथ आया।

सेवट टंटोळतां-टंटोळतां चोर नै अेक माटा में सांगरियां भरियोड़ी हाथ आई। वौ आपरौ खेसलौ खांधा सूं उतारियौ नै ढोली री राली रै पाखती बिछायौ। सांगरियां रौ माटौ खेसलौ में ऊंधाय दियौ। मन में सोच्यौ के कीं नीं तौ सांगरियां री पोट बांधनै लेय जावूं। पण ढोली मा’टौ पसवाड़ौ फोरनै खेसला रै माथै आयग्यौ। चोर जांणियौ के खांचणां सूं कठै जाग नीं जावै। पाछौ पसवाड़ौ पलटसी तद खेसला री गांठ बांध लेवसी। पण ढोली तौ माथै सूतौ रह्यौ, चुळियौ कोनीं।

चोर रौ खिलकौ देखनै ढोली नै हंसी आयगी। हंसी सुणतां चोर तौ दौड़ण नै खपियौ। आंचा-आंच में थोबली रौ अेक फेर जोर सूं भचीड़ लाग्यौ तद ढोली हंसतौ थकौ बोल्यौ— लेतौ जा। चोर पड़त्तर दियौ— कमावू तौ थारै जैड़ौ है। हाल तौ म्हारै घर रौ खेसलौ छोड़नै जावूं।

स्रोत
  • पोथी : बातां री फुलवाड़ी (भाग-1) ,
  • सिरजक : विजयदान देथा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार प्रकाशक एवं वितरक
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