अेक जाट गाडी जोतनै गांवतरै जावतौ हौ। मारग में उण दिस सांम्ही अेक मा’राज जावता धकिया। चौधरी सालस हौ। गाडी ढाबनै कह्यौ— मा’राज पगै लागूं। छत्ती गाडी आप पाळा क्यूं पधारौ? पैंडौ सोरौ कटै जित्तौ आछौ। आवौ माथै बिराजौ। थोड़ी ताळ म्हारै धरम-भाव री वंतळ रैवैला।

मा’राज रै गोडै अेक वीणौ हौ। गाडी माथै वीणौ सावळ धरनै पछै खुदौखुद पाळगोटी मारनै बैठग्या। चौमासा रै कारण मारग में गडारां अणहूंती पड़गी ही। धचका खावती गाडी थोड़ी भांय पूगी ही के पूठियां खिळ-डिखळ व्हैगी।

चौधरी पुचकारनै बळदां री रास खांची। हेटै उतरनै जोयौ— पूठियां तौ साव खोळी व्हैगी ही। ठोरण सारू हाथबसू कीं दूजी चीज निगै नीं आई तौ वौ लप करतौ मा’राज रौ वीणौ उठायौ। धकै लांठौ धूंबौ व्है ज्यूं देख्यौ तौ वौ जांणियौ के पाचरा ठौरण सारू नांमी राच है। वौ भंवायनै पूरै करार अेक पाचरा माथै वीणौ वायौ। धूंबौ मांय सूं साव थोथौ हौ। पूठी अर पाचरा रौ भचीड़ उडतां ईं उणरी तौ किळी-किळी बिखरगी। जाट मा’राज नै ओळबौ देवतां थकौ कह्यौ— व्हा मा’राज, सगळी ऊमर भटकतां-भटकतां अेक राच संचियौ अर वौ साव थोथौ! थारै इण भगती-भाव में तौ म्हनै कीं लांबौ-चौड़ौ तंत दीखियौ नीं।

स्रोत
  • पोथी : बातां री फुलवाड़ी (भाग-1) ,
  • सिरजक : विजयदान देथा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार प्रकाशक एवं वितरक
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