हंसण बोलण री मिनख-जमारै में वडी मौज है। मिनख-पणै नै पाळनै वेगी हंसी मजाक ही खटरस सीधो है। मिनख-मिनख रै सागै हुयो है जद सूं ही हँसी करणी ऊकली लागै है। आः जकैं दिन सूं ही हरी भरी नित नूंई नीरोग रैंती आई है। देवर भुरजाई हंसै बोलै, जीजो-साळी हंसर संको खोलै अर मारू मरवण बिना ओलै छानै मुळक मुळक मीठी किलोळां करै है।
हंसाळू मिनख री कोई ही रीस नीं करै। हंसी मजाक में बडै छोटै रो ही ग्यान नहीं रैवै। मजाकियै कजाक नौकर सूं मालक ही डरै, सेठ, मुनीम आगैं पाणी भरै अर मिनख मिनख सारू आछी-भूंडी मजाक हुंती ही रैवै है। वार-तिवांरां, मेळां-डोळां, इथायां अर आणा जाणां में गप्पां रो ही चाळो चालै है। जेठ रै तावड़ियां में हाळी भतवारण हंसै, पो’ री पंच-पोरी रात में कीलियो वारियै रंग रसै अर बैंता कतारिया काळ रै करड़ा दिनां खसै-वसै है।
मिनखा-जूण माथै विपतार कांस रा मोटा गिंज है। बांरै आउखैर आरबळ ऊपर हंसी मजाक रा विरख ही छायां ओखद रुखाळी करै है। दोरा सोरा दिनां नै, राग दुहाग री वेळां ने अर मरणै-परणै रै मोकां नै हंसी ही पार घालै है। जगत में हंसी हूँ घणो कीं कोयनी! नानी दादी अर पोथी पतड़ांळा हंसी री वातां में विलमावै है, खिलधारी खेल तमासै में खिलर्यां सूं खेलावै है अर सिनेमाळा नुकल मजाक तथा कोमिक री रोळ सूं रीझावै है।
आज रै वरतारै सारू म्हैं टाबर पणै सूं ही हंसी में हुस्यार हुग्यो हो। संगळिया कैई तो भागवानी रै कारण भणीजण नै बार गिया, कैई धरमादाळै आटै रै ताण ही पिंडत वणनै खातर गांव छोड्यो। पण! म्हारै तो मदरसो टूट्यो जद सूं ही आड आगी। सीखण रो कोड हो जकै सूं जगाती थाणैदार कनै थोड़ी गप्पां लड़ाई अर दो आंकड़ा गुण्यां। गिरदावर पटवारी नै हंसाया अर चार हिसाब पकाया। सगा परसंग्यां सूं मुसखरी करी अर वुहार सीख्यो। म्हारै गांव में न! सभा ही, ना सोसाईटी; अठै तो हास्य हथायां रा ही पाठ चालै हा। जकै सूं भरोसो रियो के बारैं भणीजणियां म्हारै सूं आगैं तो के उठ जासी? होळी री रमतां में सांग सू हँस्यो, रास में ढाई सेरै नै देखर पेट में बळ सैयो अर जागणां; राती जगां में ठठां सूं दांतां नै दुखाया। ईंया करतो करतो जुवान हुयो जित्तै नै हद दरजै रो हंसोड़ हुग्यो।
मदरसो भूल्यो। ग्वाळियो बण्यो। रोही गियो। बठै साथी सांईना में डोरी गांधतो, रावण रत्थाळा भोपा-भोपी वणतो अर जोड़ी सूं नाचतो। जुवायां आगैं भाटणी बणतो लाल लुंकारियो ओढर गीत गीरतो अर ब्यावां-सावां में हंसावतो रिया करतो हो। सरबजाणां रै नाटक चेटक में ही सामिल हुया करतो हो। पण! म्हैं म्हारी सोख सूं मजाकिया पारट ही पार घालतो। सौंसी वणतो अर ठीकरो हाथ में लेर कैंतो— ‘वारीस रे काजा मिचकू घालै ना, तेरा टाबर जोयै’। म्हारै कंठां रै लैजै सूं देखणियां री आंतड़्यां उथळ-पुथळ हुज्याया करती ही। गांव में समझणै बाळक सूं लेर बूढां तांई, भाभी सूं लेर पड़दादै ताणी छोटा वडा सगळां सागैं म्हारी स्याणी, सुवाणी गप्पां चालती रैंती ही। वामण-वाणियां, ढाढी-ढेढां रै घर सूं मोटी हेल्यां, गढ कोटड़ियां तक म्हारो ऊजळो आव-जाव हो। बाळकां में बाळक, वूढां में बूढो, भण्योड़ों में अगुंवों अर मूरखां में जाबक मूरख वणर रैंतो हो। ओसथा आई; पण! हंसी घटी ना; कांस वधी!
धोरी गळी सारै कूंट में बारणो! दो साळ, सामै सफो अर घर रै आगैं घेरघुमेर पींपळ खड़ो है। ओः एक बूढी विधवा पाड़ोसण भाभी रो घर है। भाभी म्हारै घणी हेतुली है। बडी दाठीक अर धंत्तर माठ हाळी लुगाई है। स्याणी समझदार होणै रै नातै म्हारै सूं चोखी पटै है। म्हैं इयै सूं हंसूं बोलूं, बाः म्हारै सूं रोळ रिगटोळी किया करै है! पण! मोको पड़े सोट समार सामी मंड ज्यावै। बरसां में म्हैं सूं डोढी है, जद म्हैं हँसी में बींनैं “काक-भाभली” कैर ही वतळाया करूं हूं। काक-भाभली पागड़ी बारो मरद है। चतराई में, सीख देवण में अर नेग रीत वतावण में, पुराणै पंच री गरज पालै है। हेदकी (वैद्यक) में तो नांव ही नीं पूरो काम करें है। टाबरां अर पसुवां री तो जीवण देण हाळी मावड़ी ही है। दाई रै काम नै ही चोखो भलो जाणै है। टाबरां रा घूंटिया, बूढां री उकाळी अर जच्चावां रा काढा तो डाढा चेतै है। म्हारै तो आः हंसी रो खेलणियो अर जी टिकावण नै जाणो होल है। आंथण दिनगै जद कदेही विरियां लावै; गप्पां नाखण उठ जाऊं। देखतां ही हरी हुज्यावै। कदेही कागलो बोलै, कणाही चिड़कली बोलै अर कदेही गधो भूंकर झूठ करै; जकै सूं मनै हंसणो ही पड़ै! फट! फुर ज्यावै। गिंवारणी वण ज्यावै अर कवै— ‘मींट लेल्यो बायां मींट’ ‘हड़बच लेल्यो’! वैंती ही लुहारी, सैंसण, ढाढण अर चेतै आवैं जकैं रा ही दो लैरका दे नाखै। जे गांव में वदमास विधवा रो ठा काक-भाभली नै पड़ जावै तो हंसी हंसी में ही कै नाखै— “राँडो कूटीजोली खोटी! मूंजां रा बंध देर नाखीजोली। नहीं तो अै काम छोड़द्यो। का मेरी चूड़ी पैरल्यो”! सांची कैवै अर गांव में नागो लुच्चो नीं रैण देवै है। घुन्नै हूं घुन्नै मिनख नै हँसा नाख अर म्हे दोनूं लाग ज्यावां जद तो कैणो ही के? पूंगी पकड़ेल्यां तो सांप कढ आवै, नाचण लाग ज्यावां तो गांव भेळो हुज्यावै अर सिंझ्या रो सांग ले आवां तो लोग दिनगै तांई भूखा तिसा ही हालै नहीं। म्हारी जोड़ी है। म्हारो मेळ है।
जुवान गाळै में काक-भाभली बडी मरदानी ओरत ही। सेर पको घी तो खड़ी ही पी जाया करती ही। मुक्को मारती तो ऊझै ऊँट नै उलाळ देंती। सगळै घर री वाड़ सिर पर खेई ल्यार छापती, लादा ढोंवती अर मोठां रा जूल ही सिर सूं नाख लिया करती। घर रो आखो काम हाफेही करती। पालो वाढणो, हळ वावणो, वूजा काढणा अर कूवो वावणो अै: सै काम काक-भाभली अेकली बडे जोर रा करती! मोट्यार री गरज नीं करती। जे कोई अँवळो-सँवळो बोल लेंतो तो जान काढ देती। पाथरी मा भैण वतांवती। ईं सूं डरतां जुवानां रो जी जांवतो। होळी रै दिनां में कोई गैर खेलण बतळा लेंतो तो गैर रै मिस मार कोरड़ां री मांची में नाख देंती। स्यान खो देंती। नागां लुच्चां री तो वैरण पड़ी। डरता बेरा करता।
काक-भाभली किया करै— “म्हैं भंडाण में जामी ही अर बठै ही इत्तो मोटो डील बाल्यो हो। बठै कोस कोस रै आंतरै सूं मोकळा ही गांव सामै दीखता रैवै है। म्हैं टाबरपणै में गांव रै गोरवै टोघड़िया चरावण नै जाया करती ही। ऊनलै बूनलै गाँवां में, जद कदेही कठै, ओसर ब्याह हुंतो; जणा ही म्हैं टोघड़िया राम रै डोरै घरे छिटकाय, पैर नूंई पोतड़ी, ले वाटकियोर देंती तड़ी जको जा बैठती पांत में अर कैंती—‘ल्यावो धान घालो’! जीम सीरोर आंती बाटकियो भर ल्याये करती ही। सक्कर घी सूंतती, सीरै रा लोधिया गिटती अर लापसी में तो कोरो घी ही पीये करती ही। बार बारलै गांवां रा तीजा ओसर, तपत भात अर वडार अेक नीं छोड्या। खनलै गाँवां रा पंच, नायां, पुरसगारां कारू कमीणा सगळां सूं सैंधी हुगी ही। म्हनै देखता ही बै कैंता— ‘छोरी मगली आगी; जीमावो रे भाई’! म्हैं कींनै ही काको, कींनै ही बाबो, भाई वीरो कर परार जीम हीं लेंती। भाग सूं कोई निःसूग ही मिल जांतो तो घाई काढ, ताळी वजा, गीत गा, गूंग खिंडा वाटकियो भरा ही लेंती। माईत म्हारै ईं काम सूं सदा ही दोरा हुंता। गाळ काढता अर ठोकता। म्हैं मार हूं डरती हाथ जोड़ती। जद कैंता— ‘भळे मत जाई’! म्हैं कैंती— ‘भलो’! पण! जीमण रो नाँव सुणती अर पग जूती नीं घालती। लुक-छिपर भाज ही जांती। परणाये-पताये पछैं तो घर हाळा कठै ही ओसर-मोसर सुणता तो म्हनै पड़वै में रोड़र राखता। सासरै आई! देख्यो— आगैं सास न सुसरो! धणी मिल्यो जको ही दो विलान ओछो! मसखरा पणै नै पूरो सारो लाग्यो”!
काक-भाभली रै बेटा-बेटी हुया। पण! आप आपरै पापे पुन्ने लाग्या! धणी ही आगीनै गयो। घर रो सो खोरसो गळै में आयो। पण! गप्पां मारणी अर मरदानगी तो धरम री सीर दांई सागै ही रयी! बूढी हुगी पण। बोबी बकरो, कूकड़ो अर तीतर बोलती थकी जणै-जणै री नुकल उतार नाखै हैं। भूत री सी टीळी मारै, होको गुड़-गुड़ावै अर चालती चिलम नै ही झफीड़े दे नाखै। लुगायां नै हँसावै, टाबरां नै मीठा लाड देवै अर दसूं रसां नै जगां जगा सर बरतती थकी भद्र हावां भावां सूं माणसां रै मनां चढै है। आः अेकली ज्यान, गुणां रै मान सूं गांव भर में गौरव-गान पा रयी है। बाः काळी कीट, कद री लड़छ अर बडी हाडे गोडे है। वरसां में तो दिन विसूंजण हाळो है, पण! दिखापै ओजूं अधवूढी सी लागै है। खेजड़ी री पेडी सी पींडी, तवो सो लिलाड़, ‘चप्पड़-चूंधी आंख्या अर जूजळां रो छाण्योड़ो सोमूंढो, थूळ-मथूळ अमावस तिथा थावर री रात सी लखावै है। देखवाळो जाण ज्यावै है के जुवानी में, मुक्को मार देंती तो झूठै ऊँट रो गुल्लो काढ नाखती। पण! इसै उलाड़ै उण्यांरै में कैई गुण मालक आछा घाल्या है। बोली री बैड़ी, चाली में घोड़ी, काम में दौड़ी अर चतराई में चौड़ी चोखी हथणी सी घूमती रैवै है। सभाव री सतवंती, जागणां में भजनण, हाथ री दातार अर रातीजोगां में गीतेरण है। मीठै गळै सूं गजब रो गावै है अर बीच-बीच में ठळा मेलै है। पंचायती में मिनखां बरोबर सांची कैवण हाळी, करड़ो पड़ उथळो देवण हाळी, फौजी मिजाज री डरावणी सूरत जाणो साख्यात देवी है। म्हारै घर अर दफतर रै मारग में ईंरो घर पड़ै है। म्हैं जांतो आंतो समै-सारू गप्पां लड़ा ही जाऊं हूं। नोकरियो आदमी सुख रो तो नांव ही कठै? दूध मिलै ना दही, मिरचां रोटी रै खाणै माथै कागदिया कुचरूं अर काक-भाभली री गप्पां रै ताण ही जीऊं हूं। अेकर तो अवस हंस-बोलर दिन रै थकलै नै उतार लेवूं अर माथै रै नूंईं पाण चढांतो जाऊं हूं। ईं हंसी री खुसी ही पच्चीस-तीस सूं वत्तो नीं कूंतीजूं अर सिर में अेक धोळो नीं आयो है।
अेक दिन, भाख फाटे मूं अँधारै सै खेसलै रो खोइयो मार परो म्हैं निमटण नै गोरवैं जावै हो। खेसलै ऊपरकर गमछियो बांधर म्हैं तो पाळै रो जाबतो करियो हो। पण! धाटै रै कारण लामो अर ओरतरैं ही लागण लागग्यो। गळी में पोटां री तगारी लियां सामी काक-भाभली मिली। बाः मनै देखतां ही डोकरै नानै रै भरोसै, म्हारै सूं अपूठी फुर परीर खड़ी रैंगी। म्हैं ही झट अड़र बींरै लारैं पीठ फोर परो खड़ो रैग्यो। वा: काई ताळ तांई मनै आगीनै जावणनै अडीकी। पण! पग वाज्या न; म्हैं आगीनै कढ्यो। भाभली लखी अर पाछी फुरी ही! देखै तो लारी म्हैं पीठ जोड़े, माड़ी सी छेती सूं ओकड़ू हुयो खड़ो हूँ। बोली— “राजा करण रै वखत ही थांनै तो ‘ग्होयी’ करे बिना को आवड़ै नीक? म्हैं के थांरै साईनी हूँ; जको मिलूं जठै ही ‘ग्योयी’र गिलर! टाबर थोड़ी हूं। भाभी तो थांरै भाई रै लारैं आगी जद हुगी”। म्हैं बोल्यो— “म्हैं तो थारी सीढी सूं ही कोनी टळूं लो”। बैण झट म्हारै बांध्योड़ै सिर पर पोटां रो कूंडो मेल दीनो अर बोली— “ल्यो तो घरां नाखर आवो”।
कदे-कदे हंसी में ही फंस जाणो पड़ै है। म्हैं माईतां-थानक वूढी सारी नै के उत्तर देवै हो? पुगावणो ही पड़ियो। हंसी रा अै ही मजा! सदा काम करावो तो कदेही कींरो ही करो ही।