दाखी भूवा कलकत्ते में सेठां री रसोई में एकली बैठी बाबू री उडीक में ही। नेड़ै सी उण रो बेटो रामूड़ो एक बोरी पर बुखार में चादरो ओढ्यां सूत्यो हो। कदे-कदे बाबू घणो देर लगाय'र आफिस सूं आवता अर आयां पाछै और भी देर लगाय'र जीमता। इतरै दाखां नैं रसोई में रवणो पड़तो अर बाबू नै गरमा गरम फलका जिमायां पछै ही उण रो घरे जावणो हुवतो। जे घणी देर हुय जावती तो साथै गुवाळो भी रखोप खातर भेज दियो जावतो।

ऊपर सूं नौ बज चुक्या हा पण आज तो बाबू आया ही कोनी। गरमी री मौसम थर रसोई री तपस्या। पण दाखां रसोई कींकर छोड़ सकै? चुल्है में मंदी मंदी आंच जागै ही अर साग-पात रा टोपियां गरम राखण सारू खीरां रै नेड़ै सी पड़्या हा।

दाखां रो ध्यान आपरै बीत्योड़ै दिनां कांनी गयो, जद रामूड़ै रो बाप कायम हो अर गांव में खेत रै सहारै सूं घर रो गाडो मजै में चालै हो। दाखाँ झांझरखै जाग'र चाकी झोवती, गाय दूहती, कुवै सूं पाणी ल्यावती पर रोटी पोवती। पछै भातो लेय'र खेत जावती। घर-धणी खेती री मौसम में रुखाळी खातर बठै ही सूवतो। घर-धिराणी सारै दिन खेत में काम करती अर सिझ्यां हुयां पैली सिर पर घास री भरोटी लेय'र गाय-बाछी तथा टाबरां साथै पाछी घरे आवती। घरे पूग'र बा रोटियां रै लागती अर टाबरां नै जपाय'र घणी देर पाछै सूवती।

उण दिनां सिर पर इतरो घणो काम हो, मिनट री भी फुरसत नीं ही पण फेर भी दाखां रो चित चैन में हो, मन में उमंग ही। काया में हांगो भी हो। पण अब तो ये तीनूं चीजां नीं रैयी। मन में कोई उमंग ही अर डील में बो बळ ही रैयो। फेर भी दाखां नै गाडी धिकावणी ही, ईं खातर बा देस छोड'र काळी कोसां परदेस में बैठी ही। कठै तो गांव री लम्बी-चौड़ी गुवाड़ी अर कठै कलकत्तै री छोटी सी कोटड़ी। कोटड़ी में रैवणो अर सेठां री रसोई सूं आप रो अर रामूड़ै रो पेट पाळणो, अब तो बस इतरी सी ही दाखां री दुनिया ही।

दाखाँ रै बडी बेटी ही, जिको उणरै बाप रै हाथां सूं ही घर-बार री करी जा चुकी ही। लारै दो छोटा टाबर हा—एक स्यामूड़ो अर दूजो रामूड़ो। छोरां रो बाप तीन दिन री ताप सूं अचाणचक पग पसार दिया तो दाखां री दुनियां में च्यारूं मेर अंधेरो अंधेरो हुयगो। पण करै तो कांई? मरे रै लार मर्‌यो नीं जा सकै अर किणी भांत लारलां ने खड़े-पगां करणो ही पड़ै।

अब स्यामूंड़ै अर रामूंड़े रो सारो भार दाखां पर ही पड़्यो। एक दस बरस रो अर दूजौ-सात बरस रो। अे टाबर कर भी कांईं सकै? धणी बिना खेत गाय-बाछी भी आपरै गैलै लाग्या।

बाकी तो बस सूनी सी गुवाड़ी अर उण में दोनूं टाबरां साथै उणां री मा कई दिन तो बिचारी मा किरणी भांत गुवाड़ी में काढ्या पण आखर पेट रीतो रैवण री हालत बणी, जद गुवाड़ी छोड़र दाखां आपरै पीहर आयगी-कबूतर नै तो कूवो ही सूझै।

पीहर में भी अब कांई पड़्यो हो? अठै भी पुराणा दिन बीत चुक्या हा अर नई बसती बस चुकी ही। मा-बाप रै राज में दाखां रो घणो लाड़ हो पण अब तो अठै भावजां रो राज थापित हुयगो। दोनूं भाई तो बिचारा दिसावर री नौकरी में बळद दांई खटै हा अर आये महीनै टाबरां खातर घरां खरची भेजै हा। इसी हालत में दाखां अर उण रै छोरां नै अब अठै ठोड कठै? थोड़ै दिनां में ही दाखां देख लीनी कै अठै निरभाव नीं हुय सकै अर कोई दूजो ही उपाय करणो पड़सी।

बास में मुरारकां री हवेली ही। संजोग सूं दाखाँ री सायनी उण घर री बेटी सुगनांबाई आपरै पीहर आई तो दाखां आपरो हिरदो उण रै आगै खोल्यो। सुगनांबाई आपरी सायनी—सहेली री दीन-दसा देखर चिन्ता करी। पण बा तो बाणिये री बेटी ही। आखर दाखाँ खातर गैलो काढ्‌यो। दाखां रा दिन गांव में गुजर्‌या हा। ईं कारण तो उण ने गीत-मेंहदी आवै हा अर टांको-टेबो। तीन-च्यार महीनां बा आपरी भावजां री सेवा में माड़ी-मंदी रसोई करणी जरूर सीख चुकी ही। ईं कारण सुगनां आप री मांवसी रै मकान पर रसोई करणै खातर दाखां नैं कलकत्तै भिजवाय दीनी। आखर डूबतै नै एक सहारो तो मिल्यो।

कोई दिन सुगनां री मांवसी कलकत्तै में बडै सेठां री घर धिराणी ही। पण बैं दिन बीत चुक्या हा अर अब तो मांवसी रै बेटै तीजी लाडी रो उण घर में पूरो राज हो। बाबू रै लाडी तीजी ही पण टाबर एक भी नीं हो। बस, पहली लुगाई री एक बेटी ही जिकी आपरै घर-बार री हुय चुकी ही।

अभागियो कठै भी जावो पण विपदा लारो नीं छोडै। काळी माता रै खेड़ै में किणी भांत दाखां नै सरण मिली तो बारा महीनां बाद ही स्यामूड़ो भी आप रै बाप रै मारग चल्यो गयो। लुगाई री जात बिचारी दाखां कोई दवा-दारू नीं करवा सकी अर छाती पर सिल मेल'र भी सांस लेवणो पड़्यो।

2)

आज तो बाबू मकान आवण में घणी बार लगाई। रामूंड़ो जाग्यो अर पाणी माग्यो। दाखां निवाये पाणी साथै गोळी लेवण खातर कैयो पण बेटो नीं मान्यो तो नीं ही मान्यो। रसोई में दूध गरम हुवतो। दाखां टोपिये मांय सूं अधपाव-नेड़ो दूध गिलास में लियो अर चीणी मिलायर बेटे नै पीवण खातर पकड़ाय दियो।

मा री या बात बेटै मान लीनी अर बोरौ पर बैठ'र दूध पीवण लाग्यो तो रसोई रै बारै कीं खुड़को सो हुयो। दाखां नै ध्यान हो कै बहूजी इसै बखत रसोई कांनी पूगै पण बा फिकर में ही। ईं कारण बारै जायर बारचो देखै बिना ही बेटै नै दूध को गिलास पकड़ाय दियो।

बहूजी रो सुभाव राम-मार्‌योड़ो हो। भूखै घर री छोरी सेठाणी रो पद पायर आफरगी। ताळी भी उणी रै हाथ में ही। पछै हुकम तो उणी रो चालतो। बाबू तो कीं बोलता और ल्होड़ी लाडी री बात ही गेरता। बहूजी सगळै नौकरां रै नाकां में नाथ घाल राखी ही। गुवाळा अर मुनीम तो कई बदळ चुक्या हा। बस, दाखां ही किणी भांत बेबसी में धिकै ही।

बहुजी टेम-बेटेम चुपचाप रसोई कांनी भी अचांणचक संभाळ लेवण खातर आवता अर ल्हुकर निगै करता कै दाखां के करै है, के खावै पीवै है?

दाखां नै बहम हुयो कै बहुजी ल्हुकर रामूड़ै नै दूध पीवतां देख चुक्या है। बा बेगी सी बारचै में जायर देख्यो तो बठै कोई भी कोनी हो। फेर भी दाखां रो धड़को नीं मिट्यो अर बा बहूजी रै ओळमैं री सम्भावना सूं भयभीत हुयगी।

रामूड़ो दूध पीप'र पाछो बोरी पर चादरो ओढर सूयगो। दाखां दूध रो गिलास भली भांत धोय'र न्यारो मेल दियो अर बाबू री उडीक में चुपचाप बैठगी। कोई बतळावणियो अर कोई सुख-दुख रो पूछणियो। सेठां री रसोई में बिचारी बामणी मांदै बेटै नै लियां एकली बैठी ही। उण री आंख्यां में आंसू आयगा पण बठै आंसू पूंछणियो कुण हो? बिचारी आप ही आपरा आंसू पूंछ्या अर वर्तमान नैं छोडर भूतकाल री याद करै लागी-जे आज दिन रामूड़ै रो बाप कायम हुवतो तो उण री या दशा नीं हुवती। पण करै तो आखर कांई करै? दूजो कोई गैलो भी तो नीं हो।

(3)

आखर बाबू री मोटर मकान पूगी अर बाबू कमरै में आयगा। आज बाबू आफिस पाछै कारखानै नैं भी सम्भाळ्यो अर मजदूरां रा कई भांत रा झझट सळटाया। ईं कारण कोई साढे दस बजे आर मकान पूग सक्या।

आज दाखां पूरो ध्यान राख्यो कै फलकै रै खीरै रो एक भी दाग नीं लागै साग तो बा सदां ही बाबू री रुचि मुताबिक बणावती। साथै ही ईं बात रो भी पूरो ध्यान हो कै थाळी साथै नमक री कचोळी भेजणी भूलै।

गुवाळो एक-दो फेरा फलकां खातर घोर कर्‌या अर बाबू जीम लिया। अब बहूजी री थाळी सजाई गई यू तो बहूजी सारै दिन कई-न-कंई लेवता रैवता पण आपरो यो पक्को नियम हो कै थाळी पर तो आप बाबू रै जीम्यां पाछै बैठता। बहूजी भी जीम चुक्या जद दाखां आपरी अर गुवाळै री थाळी लगाई। गुवाळो आपरी थाळी लेयर बारचै में चाल्यो गयो पण दाखां बठै रसोई में ही बेटै कन्नै बैठ'र पेट नैं भाड़ो देवण लागी। आज उण नैं नाज में कोई सुवाद नीं आयो। बा मोकळै साग साथै गासियो लियो पण फेर भी कोई सुवाद नीं हो। एक तो मांदो बेटो अर दूसरां कड़कसा मालकण रो भय!

दाखां रोटी खायर रामूड़ै नै जगायो अर घरां जावण खातर त्यार हुई। रामूड़ै रै तेज बुखार ही पण फेर भी घरां जावणो हो। चादरो ओढ'र छोरो मा री आंगळी पकड़ी, इतरै में ही गुवाळो आयर बाबू रै हुकम सूं ईं महीनै रै बीस दिनां री तनखा रा बीस रुपिया दाखां नै देयर बोल्यो— भूवाजी बाबू काल सूं अठै आवण री आपनै मनाही करी है।

दाखां रै माथै में सुन्न बापरगी। बा धूजतै हाथाँ सूं रुपिया लिया अर बेटै री आंगळी पकड़र पैड़ियां उतरगी।

आज गुवाळो भी उण नै घरां पूगावण खातर साथै नीं गयो। बिचारी बामणी जिंदगी रै भार साथै मांदै बेटै नै पीठ पर लियां बिजळी सूं चमचमातै चांदण में भी कलकत्तै री सड़क पर एकली आपरी कोटड़ी कांनीं घोर अंधेरै में चाल्यां जावै ही।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (कहाणी अंक) जनवरी-मार्च 1976 ,
  • सिरजक : मनोहर शर्मा ,
  • संपादक : रामेश्वरदयाल श्रीमाली ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर ,
  • संस्करण : अंक 1
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