यूं रामगढ़ बीसूं बार आयौ-गयौ हूं, पण अबकाळै उठै जावणौ घणौ आंझौ लाग्यौ। मन जाणै कियांई होवण लाग्यौ। पै’ली जद कदैई रामगढ़ जावण रौ मौकौ मिळतौ, मन में घणी हूंस रैवती, च्यार दिनां पैली’ज अेक अणबोलणी खुसी मन में भरीज जावती अर, मन हर बखत भरियौ रैवतौ। मोटर में बैठतौ तद तौ मोटर री चाल रै सागै वा खुसी पण तरतर बधती ईज जावती अर मोटर रा हच्चीड़ा रै सागै उणमें पण उछाळा आवता रैवता। पण आज री हालत सफा उल्टी ही। गाडी सूं उतरनै मोटर कांनी रवांनै व्हियौ तौ पग इसा भारी लाग्या जाणै मण-मण वजन बंध्यौ व्है। उदास मन सूं वांनै कियां ई ठिरड़तौ-ठिरड़तौ मोटर में आयनै बैठ्यौ तौ बैठता पांण अेक जोर रा हचीड़ा सागै वा स्टाट व्हैगी। जांणै उणनै वैम हौ कै म्हैं आळांणौ नीं कर दूं अर पाछौ रवांनै नीं व्है जाऊं।
काचा मारग पर धूङ रा गोट उठता रह्या अर हच्चीड़ा रै सागै नैना-नैना गांव लारै छूटता रह्या। अबै तर-तर रामगढ़ ढूकड़ौ आवण लाग्यौ। पै’ली पनजी चव्हाण रौ बेरौ आवैला अर पछै अरणा वाळौ सेरियौ। लांबा सेरिया रै दोनूं कांनी कोरा अरणा इज अरणा। सेरिया बारै निकळतां ई तौ रामगढ़ रा झाड़का दीखण लाग जावैला अर पछै तौ पूगतां अेक चिलम भरै जितरी जेज लागैला। मोटर ऊभी रैवै उठै खासी भीड़ व्हैला। कोई रै मोटर में बैठनै आगै जावणौ व्हैला तौ कोई किणी रै सांम्ही आयौ व्हैला। पाछली साल म्हैं आयौ जद धापू अर किसनू दोन्यूं बैन-भाई म्हारै सांम्हा आया हा। किसनू तौ म्हंनै देखतां पांण ताळियां बजाय-बजायनै नाचण लागग्यौ हौ – मामोसा आया रे... मामोसा आया...। अर धापू तौ पकड़ धाबळियौ हाथ में अर दड़ीछंट घरां दौड़गी ही – बाई नैं बधाई देवण नै कै उणरौ वीरौ आयग्यौ है।
खद्दीड़...खद्दीड़... हब्बीड़...हब्बीड़। मोटर रा छाजला में मिनखां रा छोटा-मोटा दाणा उछळ-उछळनै नीचा पड़ता हा। जितरै तौ अेक जोर रौ हच्चीड़ौ लाग्यौ अर म्हारी झेर टूटी। रामगढ़ आयग्यौ हौ। मोटर ठमतां ई लोग-बाग चढण-उतरण लाग्या। म्हैं ई नीचै उतरियौ अर बेग उठायनै रवांनै व्हियौ। भीड़ सूं बारै निकळ्यौ तौ धड़ा माथै ऊभा अेक टाबर माथै निजर पड़ी। मन में वैम व्हियौ किसनू तौ नीं है कठैई..? ना-ना, औ किसनू हरगिज नीं व्है सकै। बाळ बिखर्योङा, हाथां-पगां पर मैल रा धारड़ा जम्योड़ा अर सरीर माथै फगत अेक मैलौ-सीक कुड़तियौ। मूंढै में हाथ रौ अंगूठौ घाल्यां वौ खरी मीट सूं मोटर कांनी देखै हौ। म्हैं थोड़ौ नैड़ौ गयौ। अरे..! औ तौ सागण किसनू ईज दीसै। म्हारै अचूंभा रौ तौ ठिकाणौ ई नीं रह्यौ। म्हैं उणनै धीरै-सीक बतळायौ – किसनू..? पण उण ध्यांन इज नीं दियौ। वौ तौ अंगूठौ चूसतौ, आंख्यां फाड़-फाड़नै मोटर कांनी देखै हौ।
म्हैं फेरूं जोर सूं कह्यौ- “भाणूं ..!”
अबकै वौ म्हारै कांनी देख्यौ। मोटी-मोटी आंख्यां, सफेद-सफेद कोयां में नैनी-नैनी कीकियां, गालां माथै आंसुवां रा टेरा सूखोड़ा। छिन-भर तौ वौ देखतौ ईज रह्यौ। पछै अेकदम मुळकनै बोल्यौ –
“मामोसा..! थे आयग्या..!
म्हैं तौ रोज थांरै सांम्ही मोटर माथै आवूं।”
“जणै ईज तौ म्हैं थंनै मिळण नै आयौ हूं भाणूं।”
“पण म्हारी बाई कठै मामोसा..?
भाईसा तौ रोज कैवै कै अबै उणनैं सफाखाना सूं छुट्टी मिळ जावैला अर थारा मामोसा उणनै लेयनै आवैला।” वौ अठी-उठी देखनै विलखौ पड़ग्यौ अर म्हनै जबाब देवणौ भारी पड़ग्यौ। म्हैं अबै उण भोळा कमेड़ा नै कांई जबाब देवतौ। उण रा विस्वास नै कियां खंडत करतौ। जिण उम्मेद री डोर माथै वौ जीवै हौ उणनै कियां तोड़तौ। जिण वरत रै सहारै वौ वेरा में उतरियोड़ौ हौ, उणनै कियां बाढतौ। म्हैं थोड़ौ संभळनै कह्यौ – “बाई हाल मांदी है भाई, वा सफा ठीक नीं व्है जितरै उणनै सफाखाना सूं छुट्टी मिळै कोनी। म्हैं उणनै गोदी में ऊंचाय लियौ।
“कदै छुट्टी मिळैला..? थे सेंग कूड़ा बोलौ हौ, म्हनै चिगावौ।” वौ आंती आयनै रोवण लागग्यौ। म्हैं उणनै छाती रै चेप नै बुचकारण लागग्यौ हौ तौ हूचकै भरीजग्यौ। म्हैं नीठ पोटाय-पुटूय नै छांनौ राखियौ।
“देख थूं तौ समझणौ है भाणूं। बाई कितरा दिन घरै मांदी पड़ी री, अबै दवा नीं करावै तौ सावळ कीकर व्है बता..? ठीक व्हैतां ईं म्हैं उणनै लेयनै आवूंला। अेक देख, थारै वास्तै वा थैली भरनै रमेकड़ा भेज्या है अर केवायौ है कै इणां में सूं धापू नै अेक ई मत दीजै।”
अबै जावतौ उणनै थोड़ौ थावस बांधौ। वौ आंख्यां पूंछतौ बोल्यौ, “म्हनै ई बाई कनै ले चालौ नीं मामोसा। म्हैं उणनै कोई दुख नीं दूंला। बाई बिना म्हनै कीं चोखौ नीं लागै। अठै म्हनै भाईसा लड़ै अर धापूड़ी रांड म्हनै रोज कूटै। बाई तौ म्हारै हाथ ई नीं लगावती।”
“थूं नानीजी कनै चालैला किसनूं..?
वै थारौ घणौ लाड राखैला अर उठै थनै कोई नीं कूटैला।”
म्हारी बात उणनै जची कोनी। थोड़ी ताळ वौ ठैरनै बोल्यौ – “म्हारै तौ बाई कनै जावणौ है,
नानीजी कनै नीं जावणौ।” पछै म्हारौ हाथ पकड़नै फेर बोल्यौ –
“मामोसा, छोरा म्हनै कैवै कै थारी बाई तौ मरगी।”
मन में अेक धक्कौ-सो लाग्यौ, तौ ई म्हैं कह्यौ – “सफा कूड़ बोलै नकटा, वै थनै यूं ई चिड़ावै।”
घरां आयनै उणनै नीचै आंगणै उतार दियौ। पण हे राम..! इण घर री आ हालत। कठै तौ वौ बुहारियौ-झाड़ियौ, नीपियौ-गूंपियौ देवता रमै जिसौ, कूंपळी व्है जिसौ घर अर कठै औ भूतखानौ। ठौड़-ठौड़ कचरा रा ढिगला, आंगणा रा नीबड़ा हेटै बींटां रा थोकड़ा, अेंठवाड़ा वासण, उघाड़ौ पणेरौ अर भरणाट करती माखियां। सगळा घर माथै अेक अजाणी उदासी, अेक अणबोली छियां। म्हैं धापू नै हाकौ कियौ तौ वा पाड़ौस रा घर सूं दौड़ी आई। पण सदैई का ज्यूं आयनै पगां में बांथ नीं घाली। दस बरस री छोरी छः महीना में ईज जाणै डोकरी व्हैगी ही। सूक्योड़ौ मूंडौ, मैला-मैला गाभा, माथौ जाणै सूगणियां रौ माळौ। म्हैं माथै हाथ फेरियौ तौ वा छिबरां-छिबरां रोवण लागी। नीठ बोली राखी।
हाथौहाथ घर री सफाई करनै नींबड़ा री छियां में मांचा माथै बैठ्यौ तौ मन जाणै कियांई व्हैग्यौ। घर रा खूणां-खूणां सूं बाई री याद जुड़ियोड़ी ही। यूं लाग्यौ जाणै वा रसोड़ा में बैठी रसोई बणाय री है अर अबार म्हनै बुलाय लेला। जाणै वा गवाड़ी में बैठी गाय दूय री है अर अबार किसनू नै गिलास लावण रौ हाकौ कर दैला। जाणै ढाळिया में बैठी घरटी फेर री है अर अबार वीरौ गावणौ सरू कर दैला।
म्हनै वीरौ सुणण रौ अर बाई नै वीरौ गावण रौ कितरौ कोड हौ, जिणरौ कोई पार नीं। म्हैं आवतौ जितरी वार लारै पड़ जावतौ – “बाई, अेकर तौ वीरौ सुणाय दे।” अर वा झीणा कंठ सूं सरू कर देवती; आज ईं इण अळस दोपार री पौर में यूं लाग्यौ जाणै वा सांम्ही बैठी वीरौ गावै है –
“बागां में बाज्या जंगी ढोल
शहरां में बाजी सुरणाई जी
आयौ म्हारौ जामण जायौ वीर
चूनड़ तौ ल्यायौ रेसमी जी
... ... ...
मेलूं तौ छाब भरीजै
तोलूं तौ तोळा तीस जी
ओढूं तौ हीरा खिर जाय
भरूं तौ हाथ पचास जी
... ... ...
बागां में बाज्या जंगी ढोल
शहरां में बाजी सहनाई जी
आयौ म्हारौ जामण जायौ वीर
चूनड़ तौ ल्यायौ रेसमी जी”
... ... ...
लारली साल म्हैं आयौ जद बैठौ-बैठौ वीरौ सुणतौ हौ अर बाई गावती ही, उण बखत न जाणै गावतां-गावतां कांई व्हियौ सो उणरौ कंठ धूजण लाग्यौ अर आंख्यां भरीजगी। म्हैं उणरौ हाथ पकड़नै कह्यौ –
“ओ क्यूं बाई..?” तौ बोली –
“कांई नीं रे वीरा, मन जाणै यूं ई कियां ई व्हैग्यौ।
सोच्यौ थूं रोज वीरौ गवावै पण कुण जाणै,
सागण काम पड़सी जद म्हैं रैस्यूं कै नीं..?”
“थूं इसौ खराब सोचै ईज क्यूं..?” म्हैं कह्यौ।
“यूं ई रे भाई, इण काची काया रौ कांई भरोसौ, आज है अर काल नीं। दूजौ जिणनै जिण चीज री हूंस घणी व्है, वा पूरी नीं व्हिया करै।”
गळा में कांटा-सा अटकण लाग्या अर नींबड़ा माथै डोड कागला बोलण लाग्या – क्रां... क्रां... क्रां। किसनू कठी गयौ..? रसोड़ा में धापू अेकली बैठी साग वंदारती ही, उणनै पूछ्यौ तौ जाण पड़ी कै कनला कमरा में सूतौ व्हैला। जायनै देख्यौ, आंगणा माथै फाटा-तूटा गाभा बिछायनै सूतौ हौ अर बाथ में अेक ओरणौ भर्योड़ौ हौ। म्हैं खासी ताळ ऊभौ-ऊभौ उण रा भोळा-ढाळा चेहरा नै देखतौ रह्यौ। वौ रैय-रैयनै आपरा नैना-नैना होठां नै भेळा करनै ऊंघ में ई बोबौ चूंघतौ व्है ज्यूं बसड़-बसड़ करतौ हौ।
धापू बोली – “औ रात रा यूं ईज सोवै मामोसा। जे बाई रा कपड़ा इणनै ओढण-बिछावण नै नीं देवां तौ इणनै ऊंघ ई नीं आवै। अेक रात औ भाईसा साथै सूतौ तौ सगळी रात जगियौ। औ कैवै कै इण कपड़ां में म्हनै बाई री बास आवै, जिण सूं ऊंघ झट आय जावै। इण वास्तै ईज भाईसा अै कपड़ा धुपावै कोनी।”
म्हनै म्हारी पीळकी गाय रौ वौ लवारियौ याद आयग्यौ जिकौ फगत बीसेक दिन रौ हौ कै उणरी मा मरगी। तीन दिन तांई वौ ठाण सूंघतौ रह्यौ, जठै उणरी मा बांधीजती। छेवट चोथै दिन डेंडाड़ करतै प्राण छोड दिया। अर औ लवारिया जिसौ ईज अबोध किसनू जो फगत पांच बरस रौ है अर इणरी जामण मरगी, उणनै जे मायड़ रा परसेवा री बास सूंघ्यां बिना ऊंघ नीं आवै तौ इणमें इचरज री बात ई कांई..?
थोड़ी ताळ में वौ जाग्यौ तौ म्हैं उणनै कह्यौ – “चाल भाणूं, थंनै सिनान कराय दूं। देख थारै डील माथै कितरौ मैल जमग्यौ है अर कुड़तौ किसौक मैलौ घाण व्हैग्यौ है। थनैं सूग ई नीं आवै भोळा? पै’ली तौ थूं कितरौ साफ-सुथरौ अर फूटरौ फर्रौ रैवतौ। अबै थारै कांई व्हैग्यौ है..?” वौ अेक सबद ई नीं बोल्यौ, चुपचाप म्हारै लारै आयग्यौ। पण म्हैं उणरौ कुरतौ उतरावण लाग्यौ तौ वौ अेकदम रीसां बळतौ बोल्यौ – “पै’ली माथौ मत काढौ नै पै’ली बांयां उतारौ – यूं।” वौ आपरौ नैनौ-सीक हाथ ऊंचौ करनै बोल्यौ। म्हैं वौ कह्यौ ज्यूं पै’ली बांयां में सूं हाथ काढनै पछै उणनै बाल्टी रै कनै बिठायनै लोटौ भरनै उणरै माथा पर कूढण लाग्यौ, तौ अेक दम लोटौ म्हारै हाथ सूं झड़पनै फेंकतौ थकौ बोल्यौ – “पै’ली हाथां पगां रै मैल उतारै कै पै’ली माथा माथै पांणी नाखै..? इतरा मोटा व्हैग्या तौ ई सिनान करावणौ ई नीं आवै। बाई तौ सब सूं पै’ली म्हारा हाथ-पग भिगोयनै धीरै-धीरै मैल करती। पछै मूंढौ धोयनै लाड करती अर पछै माथा माथै पाणी नाखती, अै तौ ले पाणी नै धड़ ड़ ड़ ड़। आ धापूड़ी ई रांड रोज यूं ईज करै, जणै ईज तौ म्हैं सिनान नीं करूं।”
म्हनै दुख में ई हंसणौ आयग्यौ। म्हैं कह्यौ – “ले भाई, बाई करावै ज्यूं ईज सिनान करावूंला थनै,” पछै तौ कांई नीं ? म्हैं उण रा हाथ-पग भिगोयनै डरतौ-डरतौ धीरै-धीरै मैल काढण लाग्यौ। कांई भरोसौ, रीसां बळतौ अबकै लोटौ लेयनै म्हारा माथा में नीं ठरकाय दे। पण इसी कोई बात नीं व्ही। काम उणरी मरजी रै माफक होवण सूं वौ बातां करण लाग्यौ – “बाई तौ म्हनै खोळा में बिठायनै धीरै-धीरै दूध पावती। गरम व्हैतौ तौ पै’ली आंगळी घालनै देख लेवती। फीकौ व्हैतौ तौ चाखनै खांड थोड़ी फेर नांखती। अर अे भाईसा तौ सांम्ही बैठनै माडांणी पावै। दूध में घी नांख देवै अर पछै जोर कर-करनै कैवै –
‘पीऽ पीऽऽ।’ अर आ धापूड़ी रांड लारै री लारै,
‘पीवै क्यूं नीं रे..! पीवै क्यूं नीं रे..
है ईज किसी रांड, डाकण व्है जिसी। रीस तौ इसी आवै कै रांड रा लटिया तोड़नै नांख दूं। म्हनै दूध में तारा देखनै ऊबका आवै। अेक दिन तौ उल्टी व्है जाती। पण नीं पीऊं तौ भाईसा कूटै। मामोसा बाई आवै जितरै थे अठै ईज रहीजौ, जाईजौ मती भलौ..!” म्हैं उणनै थावस देवतां कह्यौ – “अबै थूं खासौ मोटौ व्हैग्यौ है गैला, कोई बोबौ चूंघतौ नैनौ टाबर तौ है कोनी। आखौ दिन बाई-बाई कांई करै..?”
उणनै फेर रीस आयगी। वौ मूंडौ चढायनै बोल्यौ – “नैनौ नीं तौ कोई थांरै जितरौ मोटौ हूं..? बाई तौ अबै ई म्हनै रोज बोबौ चूंघायनै जावै।”
उण रा हाथ धोवती बखत उणरै चूस-चूसनै आलै कियोड़ै अंगूठै री म्हनै याद आयगी। हरदम मूंडै में राखण सूं अंगूठौ फोगीजनै धवळौ फट्ट पड़ग्यौ हौ। पै’ली तौ आ आदत नीं ही उणरी। म्हैं उणनै पूछ्यौ – “थनै बाई किण बखत बोबौ चूंघावण नै आवै रे किसनू..?”
“किण बखत कांई, रोज रात रा आवै। घणी ताळ आंगणै रा नींबड़ा नीचै ऊभी रैवै। पछै होळै-होळै चालती म्हारै कनै आवै, म्हारौ लाड करै अर पछै गोदी में ऊंचायनै म्हनै बोबौ चूंघावै।”
“नित रोज आवै..?”
“नित रोज।”
“कदैई गळती नीं करै..।”
“अेकर म्हैं भाईसा रै सागै सूतौ हौ, उण रात बाई कोनी आई। नीं तौ रोज आवै।”
म्हैं उणनै सिनान करायनै कपड़ा पैराय दिया। बाळ ठीक करनै आंख्यां में काजळ घाल्यौ तौ खासौ ठीक दीखण लाग्यौ। म्हैं कह्यौ- “देख भाणूं, यूं सफाई सूं रैवणौ, जिण सूं बाई थारौ घणौ लाड राखैला। अर यूं मैलौ-कुचैलौ घाण व्है ज्यूं रह्यौ तौ वा आवैला ई नीं।”
म्हारी बात उणरै हियै ढूकगी। घांटकी हिलावतौ बोल्यौ – “अबै रोज सिनान करूंला, कपड़ा ई नवा पैरूंला।”
धीरै-धीरै दिन ढळग्यौ। आंगणा रौ तावड़ौ रसोई रा नेवां माथै पूगग्यौ, नींबड़ा माथै पंखेरू किचकिचाट करण लागा। गवाड़ी में ऊभी टोगड़ी तांबाड़ण लागी अर जीजाजी रै घरै आवण री वेळा व्हैगी।
बाई रामसरण हुयां पछै वांरी कांई हालत ही, म्हैं सगळा समाचार सुण लिया हा। जे इण टाबरियां रौ बंधण नीं व्हैतौ तौ वै कदैई औ घरबार छोडनै नाठ गया व्हैता। पण आ अेक इसी बेड़ी ही जो काटियां नीं कटती ही। इण वास्तै नीं चावतां थकां ई वांनै दुकान माथै बैठणौ पड़तौ अर दोन्यूं बखत काया नैं पण भाड़ौ ई देवणौ पड़तौ।
टगू-मगू दिन रह्यां वै घरां आया अर म्हनै मिळनै काम में लागग्या। दिन आथमियां गाय दूय नै धापू रै हाथ रा काचा-पाका टुकड़ा खायां पछै बातां होवण लागी। बाई री चरचा आवतां ई वांरी आंख्यां जळजळी व्हैगी। वै बोल्या – “म्हारी चिंता नै म्हैं सहन कर सकूं हूं, पण आं टाबरियां रौ दुख सहण करणौ म्हारै हिम्मत रै आगै री बात है। धापू नै तौ फेर कियां ई थावस देय सकां, समझाय सकां, उण रा दुख नै थोड़ौ हळकौ ई कर सकां, पण इण पसुड़ा नै कियां समझावां, इणनै कांई कैयनै धीरज बंधावां ..? इणरै दुख रौ तौ नीं दिन रा पांतरी पड़ै अर नीं रात रा। जिण विस्वास री डोर माथै औ जीवै है, वा जे आज टूट जावै तौ इणरौ जीवणौ कठीण है, आ पक्की बात है।
जिण दिन सूं म्हैं इणरी मां नै खांधै चढाय पूगायनै आयौ हूं, उण दिन सूं लगायनै आज दिन तांई औ नितरोज मोटर माथै जावै अर उणरै आवण री बाट उडीकै। मोटर पांच-दस मिनट लेट भलांई व्हौ पण इणरै जावण में जेज नीं व्है।
बोलतां-बोलतां फेर वांरौ गळौ भरीजग्यौ अर म्हारी आंख्यां पण जळजळी व्हैगी। रामगढ़ म्हैं पूरा सात दिन ठहरियौ अर आठमै दिन रात री मोटर सूं रवांनै व्हियौ तौ किसनू उण बखत गैरी नींद में सूतौ हौ। म्हैं उणनै जगावण रौ विचार कियौ तौ दिमाग में अेक झटकौ-सो लाग्यौ। कुण जाणै बाई नींबड़ा रै नीचै ऊभी व्हैला कै गोदी में ऊंचायनै उणनै चूंघावणौ सरू कर दियौ व्हैला। सो सूतोड़ा रै ईज हळकौ-सीक वाल्हौ देयनै म्हैं रवांनै व्हैग्यौ।