आज री डाक में आयोड़ा दूजा सगळा ई कागद-पत्तर उण बांच लिया पण टूटी-फूटी भाषा अर आडी-बांकी लीकां सूं भर्योड़ो बो पोस्टकार्ड बांचण री हिम्मत ई नीं हुई। पोस्टकार्ड रा समाचार बिना बांच्या ई उणरै हीयै में उघड़ै पण बो आ नीं जाणै कै कांई पड़ूत्तर देणो चाइजै।
इण पोस्टकार्ड रै अलावा आज री डाक मांय दो रचनावां सम्पादकां कनै सूं पूठी आई अर दो री मंजूरी ई पूगी है। अेक कागद किणी अणसैंधै पाठक रो है। उण कहाणी री तारीफ कीनी है। बींनै कहाणी रै पात्र में आपरी छिब निजर आवण ढूकै। कांई आ कहाणी बो खुद माथै ई लिखी है? औ सवाल उणरै मन में जागै।
कोई दूजो दिन हुवतो तो कहाणी री तारीफ बांच’र उणनै अपार हरख हुवतो। आपरो लेखन ई अरथावू लखावतो। पण आज बींनै रत्ती भर ई हरख नीं हुयो।
टूटी-फूटी भाषा में लिख्योड़ै आडी-बांकी लीकां सूं भर्योड़ै पोस्टकार्ड नै बो तीखी मींट सूं जोवतो रह्यो पण हाथ में लेय’र बांचण री हिम्मत नीं बापरी। चेहरै माथै अेक भाव चढतो अर दूजो उत्तरतो रह्यो। सूनो हुयोड़ो बो उण पोस्टकार्ड नै अपलक देखतो रह्यो।
अचाणचक उणनै बो कागद फैलतो निगै आयो। बो कागद फैल’र मिनख-उणियारै में बदळग्यो। बो भोळै टाबर दांई आंख्यां फाड़्यां औ जादू देखतो रह्यो।
बो उणियारो उणनै कीं सैंधो-सैंधो लखायो। दिमाग माथै कीं जोर देवतां ई पिछाणग्यो—अरे! आ तो उणरी मां है। कार्यां लाग्योड़ी, रंग उड्योड़ी पुराणी धोती पहर्योड़ी। चेहरै माथै चितावां री छाप मंड्योड़ी। नैणा में पीड़ पण होठां माथै हेज भरी मुळक!
बा होळै-सीक मुळकी। बींनै सुणीज्यो— क्यूं बेटा, ओळखी? ओळखतां थकांई बो हामळ नीं भर सक्यो। चेष्टा कर्यां ई उणरै मूंढै सूं ‘हां’ नीं निकळी। होठां रै तीबा लागग्या हुवै जाणै! बोलण री चेष्टा करतां उणरो चेहरो रातो हुयग्यो। आंख्यां ई कीं चवड़ी हुयगी। गरम-गरम बूंदां झरण लागी।
उण आपरी आंगळ्यां सूं आंख्यां पूंछण री कोशिश करी पण पार नीं पड़ी।
उणनै लखायो, बो अठैई अवस है। पत्थर री मूरत रै उनमान हुयग्यो बो। हाथ ई नीं, आखो डील जाणै भाटै रो हुयग्यो हुवै। हिल सकै न डुल सकै। साव अचळ!
बो आपरी डबडबायोड़ी आंख्यां सूं उण उणियारै नै निरखतो रह्यो। अरे, औ कांई! अचाणत्रक बो उणियारो अलोप हुयग्यो! बो हकबकीजग्यो। उण उणियारै नै पकड़णो चाह्यो। बो मुळमुळायो-मां! मां!! उण उणियारै नै नावड़ण तांई हाथ लंबो कर्यो। उणनै लखायो कै उणियारो हाथै आयग्यो है। दूजै ई खिण उणनै ठाह पड़ी—उणरै हाथ में पोस्टकार्ड है। आडी-टेढ़ी लीकांवाळो पोस्टकार्ड!
अेक अरसै सूं अैड़ो ई लखावै उणनै। लारला पांच बरसां सूं बो राजधानी में बसै। गांव सूं मां रो कागद आवतां ई बो आकळ-बाकळ हुय जावै। कीं ठावी ठौड़ नीं पूगण री पीड़ रूं-रूं में सांचरै। कॉलेज री भणाई पूरी कर्यां पछै अेक सुपनो उणरी आंख्यां में डेरा नांखतो—कठैई ऊंचो अफसर बणू। मां री आंख्यां में ई हरख हबोळा लेवतो निगै आवतो। सैंग घरवाळां री उम्मीदां उणी माथै टिक्योड़ी ही। स्याणी हुवती बैनां आपरै ब्याह री बात सुण’र आंख्यां में तो मुळकती निगै आवत्ती पण लाजां मरती नाड़ नीची कर’र मांय भाग जावती। आछी-सी नौकरी लागतां ई बैनां रा हाथ पीळा करण री मनस्या उणरै मन में रह-रह परी जाग्या करती।
पण चींतोड़ी हुई कठै! कित्ती दौड़-धूप करी उण पण तो ई नौकरी नीं लागी। बीं आस रै लोपीज्यां पछै उण आपरी साहित्यिक प्रतिभा नै बाजार में नाजमावण री सोची। भांत-भांत री चीजां लिखण लाग्यो जिकी कठैई छपै अर कीं पइसा ई आवै। उणरै मन में अेक पीड़ उपजै कै उण आपरै रचनाकार नै परचूणी दुकानदार बणाय दियो। कहाणी, लेख, फिल्म-चर्चा, राजनीति, खेल-रपटां। जैड़ी मांग वैड़ो माल!
उणरो रचनाकार मांय रो मांय घणी दफै कसमसावै। बो मन में तेवड़ै कै आगै सारू मन री प्रेरणा सूं ई लिखणो है। किणी री मांग मुजब कलम नीं चलावूं। पण नितूकी जरूरतां सांम्है उणरो निश्चय दम तोड़ देवै। बो पाछो सागी परचूणी करण ढूकै।
आपरै रचनाकार री हत्या कर्यां पछै ई बो कीं नव री तेरह नीं कर सक्यो। गांव में बैठी मां नै कीं खास रकम नीं भेज सकै बो। महीनै दो महीनां सूं दो-तीन सौ रो मनीआर्डर ई करा सकै।
बो जाणै इण फुलड़ी सूं बठै हींग रो बघार ई नीं लागणो है। मां है, दो बैनां है। दोनूं ई कंवारी। पैलड़ी बैन परणावण सावै बैठी है। उणरी सहेल्यां कदैई सासरै गई। घणकरी तो आपरी गोदी में टाबर रमावै।
मां उणरी कमाई रै बिसर कोनी। खासा काळजो राखै बा। कुण जाणै बा कियां उणनै भणन खातर राजधानी भेज दियो। कियां बींनै लगोलग खरचो भेजती रही अर गांव में घर खरचो ई धिकायो।
जीसा नै रामशरण हुयां नै केई साल हुयग्या पण मां उणानै कदैई इणरी कमी नीं लखावण दी। मां रै सागै सागै ई बाप रो फरज ई पूरो कर्यो। हंसतां-हंसतां अबखायां झेली पण औलाद रै होठां री मुळक कदैई ओछी नीं हुवण दी।
मां उणनै गांव बुलायो है। लारलै डौढ-दो बरसां सूं बो गांव गयो ई कोनी। जावण री हिम्मत ई नीं हुवै। आ ठाह है कै मां किणी भांत रो ओळभो नीं देवै। सळां भर्यै मूंढै माथै उणनै देखतां ई मुळक रै सागै हरख रो उजास पसर जावै। पण उण हेताळू मां सूं बो निजरां कियां मिला सकैला? परणावण साबै बैठी बैनां नै कांई कहसी?
मां आपरी जबान सूं कदैई कोई मनस्या कोनी दरसावै पण उणरी आंख्यां में सुपनां रो समंदर हबोळा लेवतो जरूर निगै आवै। बठै बेटै सूं जाग्योड़ी उम्मीदां रौ छिब दीसै-बो घरू जिम्मेदारी उठासी... बिक्खै रा दिन कटसी... सोरा-सुखी रहसां...
पण संकट टळ्यो कठै? बो कीं नीं कर सक्यो। संकट रा भाखर ऊभा कर्या है उण... मां रा सुपना भांग्या है... सुख री ठौड़ दुख बधायो है।
मां साची कह्या करती कै उण पूरबलै जलम में ई मां नै घणो दुख दियो हो। बाळपणै री बात ही। उण बगत बो हंसतो थको पूछतो—म्हारै लारलै जलम री थांनै कांई ठाह?
मां उणनै खोळै में बैठाय’र बतावती कै उणरै लिलाड़ रै जीवणै कानी जिको काळो निसाण है नीं, बो लसण है। औ लारलै जलम रो निसाण है। जिणरी औलाद छोटी उमर में ई पाछी हुय जावै, बींरो कर्योड़ो निसाण हुवै औ। मां आपरी औलाद लारै मर तो नीं सकै पण उणरी गत मर्योड़ी सूं ई माड़ी हुय जावै। बा अैड़ो निसाण बणाय देवै कै बेटा, तूं ई मां रो तो काळजो बाळ्यो है पण अगलै जलम में मां रो काळजो ठारीजै। मां नै अेकली नै छोड’र अधबिच्चै धोखो ना दियै जियां कै अबार दियो है!
लसण रै सैनाण री बात बतायां पछै मां कैवती—लारलै जलम में तो साव निरमोही हो रे तूं लसणिया। मावड़ी रो काळजो बाळ’र उणनै रोवती-बिलखती छोड आयो। अंगैई दया नीं आई थनै रे। म्हारै सागै तो इसो धोखो ना कर्यै बेटा! नींतर म्हैं तो मर पूरी होवूंली!
बातां करतां-करतां मां री आंख्यां भरीज जावती। बा उणनै छाती सूं चेप’र उणरी लम्बी उमर खातर भगवान सूं अरदास करती। मां इत्ती गळगळी हुय जावती कै खासा ताळ तांई चिपायां राखती अर भगवान री मूरत नै अेक टक निरखती रैवती।
सोचतां-सोचतां बींनै खुद सूं ई घृणा हुवण लागै। कित्तो नुगरो है बो! किणी रो विश्वास नीं रुखाळ सक्यो। किणी रो काळजो नीं ठार सक्यो। सगळां नै दुख-ई-दुख दियो। भव-भव सूं दुख ई देवतो आयो है। लारलै जलम में मां नै रोवती-कळपती नै छोड’र अधबिच्चै धोखो देय’र आयो अर इण जलम में मां नै गांव में दोरै दिनां सूं बाथेड़ो करण नै छोड’र राजधानी आयग्यो।
पण लारलै जलमवाळी मां तो—जे मां री बात साची है—आपरी पीड़ लसण रो सैनाण बणाय’र जग जाहिर कर दी अर अेक मां आ है जिकी आपरी पीड़ रो खुड़को ई कोनी हुवण देवै! किणी नै ठाह नीं घालै कै बा तकलीफ में है।
कागद में रोजीना दांई सागी बात लिख्योड़ी है—बेटा, गांव आजा। तूं सागै रैसी तो म्हांनै ई कीं हौसलो बंधसी।
परतख मुळकती मां सांम्है ऊभी हुवै जाणै।
—मां, म्हैं आवूं... म्हैं आवूं मां। डबडबाइज्योड़ी आंख्यां सूं मां री छिब हियै धारण कर बो मां नै अर खुद नै पतियारो दिरावै।