अेक गूजर बांणिया रौ आसांमी हौ। गूजर है आयै साल कीं-न-कीं कुथाल पड़ती रीवी। रकम नीं पटती देखी तौ बांणियौ गूजर माथै दावौ ठोक दियौ। आपरा हक में वेगौ फैसलौ देवण सारू बांणियौ हाकम नै अेक नांमी बीकानेरी पाग भेंट कीवी।

गूजर देख्यौ के आं कचेड़ियां में सूंक सूं कांम बणै-बिगड़ै तौ वौ हाकम नै नाळी री अेक घण दूधाळ भैंस कुलबै-कुलबै निजर करी। हाकम गूजर रा हक में फैसलौ सुणाय दियौ।

बांणियौ उण वगत सांनी में समझावतौ आपरै माथा री पाग हाथां में लेयनै बोल्यौ— हाकमसा, म्हारी पाग री तौ थोड़ी घणी लाज राखौ।

हाकम पाछौ वैड़ौ जबाब दियौ— सेठां, थांरी पागड़ी तौ भैंस खायगी!

स्रोत
  • पोथी : बातां री फुलवाड़ी (भाग-1) ,
  • सिरजक : विजयदान देथा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार प्रकाशक एवं वितरक
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