रामनाथ घर में बड़्यो।

मांय पग धरतांई उणनै लखायो कै अमूजो है। कीं कीं गिंधा रैयो है। कपड़ा नै निचोवां जणा आंटा देवणा पड़े, ठीक बिंयांई उण रै जी रै आंटा लाग रैया है। नीचै आंगणै में भाभी अर दो बीनण्या बैठी ही। बेक बीनणी आटो ओसणै ही’ दूजी साग सुधारै ही’ मांय साल में टेपरिकार्ड बाजै ही’ टेप खासा ऊंची आवाज में बाजै हो।

रामनाथ नै टेप री ऊंची आवाज चोखी कोनी लागी। कानां में खीला—सा खुबण लाग्या’ बो सोचण लाग्यो कै घर है का नाई री दुकान? नाई री दुकान नई तो लाउडस्पीकर बाळां री समझो। बठै जोर सूं बाजै—रेडियो हुवो भलांई टेप। घर में आदमी सुणै आपरो मन बहलांवण खातर—होलै—होलै सुण सकै। इण सूं तो पाडोस्या नै तकलीफ हुवती हुवैला।

बो पगोथिया चढ़’र ऊपर मालियै में पूग्यो। बीं छोटै सी’क माळियै में उणनै सागी अमूजो अर उदासी पसर्‌योड़ी ललायी। खुणै में मां बैठी ही। बांध’र मेल्योड़ी गांठड़ी दांई। वीं रै पगां रो खुड़को सुण’र मां रै डील में कीं सुळबुळाट हुई।

—कुण हुसी रे....? उण पूछयो।

—म्हैं हूं, रामनाथ? बो होळै—सी’क बोल्यो।

—आ, बैठ।

—बो चुपचाप बैठग्यो।

—लै, गिद्दी बिछाय लै...। मां कैयो।

—नई, इंयांई ठीक है।

—कपड़ा खराब हुसी...

—क्यां सूं...माळियो तो साफ है...। कह परो’र रामनाथ देख्यो के माळियै में फूस बुहार्‌याड़ो कोनी। रजी री हळकी—सी परत जम्योड़ी है। बो फूंक मार’र गिद्दी बिछाय’र बैठग्यो। बाकी जित्ती रेत पेंट रै चिपणी ही, बा तो पैली बैठ्यो जणा चिप चुकी ही।

घड़ीखण खातर मून रै रंदै सूं सांस घुलती रैयी। पछै शुरू हुई बै फालतू बातां जिकी हमेशा हुवै—बो आवै जित्ती दफै। बो बेमन सूं उथळो देवतो रैवै।

—कणा आयो रे...। मां पूछ्यो।

—बस, अबार आयो हूँ। उण उथलो दियो।

—बठै सूं कणा टुर्‌यो हो?

—आठ आळी बस सूं...। रामनाथ बोल्यो।

रामनाथ आपरी मां रै चेहरे कानी गौर सूं देखण लाग्यो। मां रै चेहरै री सळां भरी—चामड़ी देख’र बीनै घणखरी दफै अेक बात याद आवै कै जाणै किणी कागद नै मुट्ठी में लेय’र, मसळ’र बीं रा कूचा काढ’र पछै बींनै सोधो करै जणा बीं माथै जागां—जागां सळ पड़ जावै—आडा तिरछा सळ—ठीक बिंयाई मां रै चेहरै माथै सळ पड्‌योढ़ा है। का पछै बींनै घणखरी दफै लखावै कै नक्शै में आडी—तिरछी रेखावां हुवै बियां चेहरै माथै सळ है। अै सळ सित्तर बरसां रै सुखां—दुखां रा आंकड़ा है। दुखां रा समझोनी, सुख तो कठै है। रामनाथ भलै आगै सोचण लाग्यो—सुख री तो खाली कल्पना हुवै... सुपना हुवै... दुख नै सुख मान’र जीवै जिको तो भलांई सुखी हुवो, बाकी रोज लायी—खायी रैवै बां परां में सुख नांव री चिड़कली भूल्यै भटकै सुगन करण नै आवै।

रामनाथ आपरै विचारां रै कुवै सूं बारै आयो। अेकर भळै मां रै चेहरै कानी देख्यो।

—कागद आयो हो नीं...। रामनाथ आपरै आवण री बात रा तार जोड़ण लातर बोल्यो।

—हांऽऽ...। मां री आवाज ही। खासा बुझ्योड़ी-सी। किणी बोझ तळै दब्योड़ी-सी। चींथीज्योड़ी सी।

—निर्जंळा ग्यारस आळो काम हो...। घड़ीक रुक’र मां बोली। रामनाथ समझग्यो कै खरचै री बात है।

—हां तो कोई करणो? उण पूछयो।

—दोनूं छोर्‌यां पंखा मांगै है...। माँ कैयां गई अर रामनाथ सुण्यां गयो

—आपां रामी अर तीजां नै परणायी जणा तो ओळा पंखी री रीत ही। बीं बगत री रीत रा स्सै रायता दोरा—सोरा कर्‌या हा। पण सोनकी नै लारलै साल परणायी जणा पंखो दियो बाळ्यो हो नीं, जणा अबै बै दोनूं कैवै—म्हांनै बराबर करो। अबार टींगर्‌यां नै सासू—सुसरा त्यारा तळ राख्या है। बै रोजीना पंखै री बात सुणावै कैवै कै चोटू—मोदू घर आळा पंखो देवै...थे तो पछै पांच पांच भायां री बैनां हो... थांनै पंखो कोनी जुड़ै कांई!

रामनाथ रै विचारां री लड़ी में पांच-पांच भाई खीलै दांई खुबग्या।

बरसां पैली जीसा दारू पीयां पछै मुंछां माथै हाथ फेरता कैया करता-चार भाई चौधरी अर पांच भाई पंच। छव लाठी हुवै जिकै घर में, पंच गिणै ना धंच! ज्यूं—ज्यूं दारू चढ़ती, त्यूं त्यूं बांनै जोश चढ़तो-लाट साब नै लम्बो कर न्हांखा अेकर तो। पांच-पांच बेटा है म्हारै!

पांच-पांच बेटां री मरोड़ अर मिजाज रा पोत चवड़ै आयग्या। सैंग आप आप रै रस्तै लाग्या—न्यारा हुयोड़ा कमावै खावै। होळी—दियाळी सुख-दुख री पूछै तो पूछै। अै दो जणा घर में रैवै तो इण कारण कै जमीन रो टुकड़ो हाथ आसी। मां बाप अबै कितै’क बरसां रा। सौ बरस पूगण में कांई घटै। बाकी दो न्यारा घर चिणवाय लिया। पण बां री आंख पांती माथै पूरी। बै जीसा नै सलाह देवै कै घर बेच’र पांच पांती कर देवो। पण मां अड्योड़ी है। कैवै कै म्हारै जीवतां तो काम हुवै कोनी। मर्‌यां पछै कर्‌या मरजी आवै जिंयां।

रामनाथ तो अठै आयो-गयो रैवतो। ‘महीनै-बीस दिनां सूं चक्कर लगाया करतो। बो तो सौ सवा सौ किलोमीटर दूर तहसील में एल. डी. सी. है। टाबरां सागै बठै रैवै। अेक कमरो घर रसोई बणायी लाग्लै साल। बरसां सूं बारै नौकरी करण रै कारण वो घर रो आदमी हुवतां थकांई घर रो कोनी रैयो। मरणो—परणो हुवतो तो जरूर केई दिन घर में गुजरता, नींतर आयो’र गयो।

—अबै तूं देख लै...। मां री आवाज सुण’र रामनाथ नै की चेतो-सो’क हुयो की करां जणा पार पड़ै...नई तो छोर्‌यां रै जी नै आफत है...।

—म्हैं कांई कैवूं...थांरै जचै जियां कर लो...।

—देवणो तो पड़सी...। मां रो सुर। अखाड़ै में हार्‌योड़ै पहलवान री आवाज दांई ढीली है आवाज मां री?

—जीसा कांई कैवै...? रामनाथ बात नै उळझावै।

—वै कांई कैवै...बांरा हाथ पग चालता जित्तै तो बां की कसर कोनी राखी। न्यात में हुयोड़ै अेढ़ां सूं सवाया कर्‌या बां तो। अबै’स कनै कीं कोनी जणा पूछणो पड़ै थानै? मां री इण बात में रीस ही का लाचारी, रामनाथ पिछाण नीं सक्यो।

—जीसा सिध गया है...?

—मिंदर गया है, आयता हुवैला...!

—थोड़ी ताळ पछै जीसा गया। उणा कैयो—बै दोनूं तो साव गई—वाळ निवड्या!

रामनाथ जाणग्यो कै बात बडोड़ै भायां खातर कहीजी है। बातां में ठा पड़ी कै बै खरचै री पांती देवण सूं नटग्या। जीसा थोड़ी ताळ पछै तीजां अर रामी रै सासरै आळा नै भांडण लाग्या। भूख माता कठै रा। हराम खोरां नै पंखा चाइजै। धर’र गया अठै पंखा। पछै बै कैवण लाग्या के दुस्सी तो सौ हुवे तो सलट लेवां, पण बेटी अेक भली कोनी। बेटी हुवै जणा दुनिया बैरी हुवै।

—आथण री पौर सियाळे रै ताबड़ै में जित्ती गरमाहट हुवै उत्ती’ज रीस जीसा री आवाज में?

—रामनाथ री निजर माळियै री जोड़ी माथै पड़ी। जोड़ी—सुळयोड़ी सी लखायी।

—आ जोड़ी तो जावण आळी दीसै? रामनाथ जोड़ी रो किनारो आंगळी सूं कुचरता कैयो। कुचरतां कीं चूरो—सो खिर्‌यो।

—उदेई लागगी! मां री आवाज सुणीजी बींनै-उदेई लाग्यां पछै कांई छोड़ै। होळै-होळै थोथी कर न्हाखै मांय री मांय। रामनाथ अेकर भळै सुळती जोड़ी कानी देखण लाग्यो।

थोड़ी ताळ तांई मून रै कूवै में पड्या रैया सैंग। अैड़ीगत में रामनाथ रो जी अमूजण लागतो। बात टोरतां खरचै आळो पुराण बांचीजसी, इण डर सूं चुप रैवतो।

दूजोड़ा कीं देवैं कोनी जणां पछै थांने कांई पड़ी है। रामनाथ रै मगज में जोड़ायत री बात गूंजी। इण बगत रामनाथ खुद ई’ज बात सोची-बींनै अेकलै नै कांई पड़ी है। का तो सैंग जणा बराबर खरचो बांटै का पछै टाळ सही। बो अकलो टाट क्यूं कुटावै। घर री शोभा है तो सगळां खातर है। भूंड है तो सगळां री है।

बात भळै शुरू हुई। रामनाथ देख्यो कै मां अर जीसा अेक दूजै सांमै झांया बांटण लाग्या। बा हाऊ-बटका देख’र बो बोल्यो-अबार तो म्हैं चालं...भळै आसूं तीन चार दिनां में। जित्तै कीं तय कर लिया। सगळा देसी उत्ती पांती म्हैं दे देसूं। मां कीं कैवै ही, पण बोली कोनी।

जीसा रा होठ कीं हाल्या तो सरी, पण बोल बारे कोनी आया। रामनाथ पगोथियां कनै आयो। नीचे टेप में डिस्को गूंजै हो। बीं रै कानां में खीला—सा खुब्या। गली में पूग्यो जणा कीं आराम मिल्यो।

रामनाथ नै सड़क माथै अर्जुन मिलग्यो। केई दिना पछै मिल्या हा दोनूं भायला। चाय पीवण नै बैठ्या। चाय पीवतां पीवतां अर्जुन आपरै घर रो रोवणो शुरू कर्‌यो।

रामनाथ बोल्यो—घर-घर फजीतो है। गुजरै जिंयां गुजार भायला। बाकी ब्रेक बात पक्की है-समझदार री मौत है।

चाय पी’र उठती बेळा अर्जुन बोल्यो- अेक बात तो बता रामा, म्हारै माळियै री जोड्यां रै उदेई लाग रैयी है। कांई करणो चाइजै।

रंग करवा लै...आ कैयां पछै रामनाथ नै थोड़ी ताळ पैली देख्योड़ी घर आळै माळिये री जोड़ी चेतै आयी। उठै भी तो उदेई लाग्योड़ी ही। रंग करण री बात बीं बगत उण रै मूण्डै सूं क्यूं कोनी निसरी?

उदेई... उदेई... उदेई। रामनाथ रै विचारां में उदेई री बात चक्कर मारण लागी। बींनै चारूंमेर उदेई दीसण लागी।

अचाणचक बीं री आंख्यां आगै घर आळा रा चेहरा घूमण लाग्या। बै सैंग चेहरा उदेई में बदलग्या अर ठीक इणी बगत बीं नै खुद रो चेहरो भी उदेई रै ढ़िगळै में बदल्योड़ो दीस्यो। घर री भींतां घुड़ती सी दीखी। कनै ऊभा लोग हंसता दीस्या।

होटल माथै रेडियै सूं सहगल रो गायोड़ो गीत आवै हो-इक बंगला बनै न्यारा...।

गीत बीं रै मन मगज में ऊंडै तांई बड़ग्यो।

रामनाथ गुद्दी कुचरतो-कुचरतो बस स्टैण्ड कानी टुरग्यो।

स्रोत
  • पोथी : सूरज उगाळी ,
  • सिरजक : सांवर दईया ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी विभाग राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ़ (राजस्थान)
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