एक, दो, तीन अर च्यार साल होग्या लगोलग काळ पड़ता। खेतीखडा रै तो पैली साल इज दावणां लागग्या। दूजी साल धन्धो करणियां रा हाथ बन्धग्या। तीजी साल मांय बौरां री गांठी ऐडै लागली अर चोथै साल मांय नीचै स्यूं लेय’र उपरतांई सगळां रा हाथ उपरनै होग्या। मिलगत खत्म। हान्ती उधारै रो इज सीर नीं रह्यो। सगळां रा मुंह फीका अर चेहरा उदास। सगळां रै मुंह माथै बूर उडै। चूल्है स्यूं लेय’र चूंतरी तांई काळ री इज बातां। मुंह खुलण स्यूं पैला निस्कारौ। कित्ताक दिन करै अै बातां? कोई आगडो तो कोनीं। च्यार सालां मांय अै ई बातां सुणंतां सुणंतां कान पकग्या अर बतळावन्ता-बतळावन्ता ताळयो उपड़ग्यो। बेलां नै कीं नीं सूझै। सै गुमसुम। सगळां आप-आप रै सामै रो आंकड़ौ आंगळियां माथै काढ राख्यो। कित्ताक दिन धिक सकै है सगळां नै ठा? आंगळिया री गिणती... उस्तरो लेय’र लाग्यां पछै सिर आळा वाळ साम्ही आवन्ता कित्तिक ताळ लागै। गिणती पूरी होया पछै? पछै री सोचण स्यूं इज पसीनो आवै, काळजौ कांपै अर अंधेरी आवै। इण कारण जुबानां रै इज ताळो लागग्यो। कठैई कोई चेळकौ नीं अर कठैई कोई काम नीं अर काम री आस नीं। कठै मन बिलमावै मिनख? काम होवै तो माया मिलै। माया री माया मांय सै बिलम्या रह्वै। भान्त-भान्त री बातां याद आवै, रस-राग याद आवै पण अबै? सै घाटा रुकग्या। फस्योड़ा ताफड़ा तो तोड़ै पण ताफड़ा तोड़ण री इज एक सींव होवै है। सींव लाघंया पछै हार मानणी पड़ै है। हार जको मानग्यो बीं रौ भविस?
रामभरोसै!
सगळां रा हाथ उपरनै। सगळां री निजर उपरनै। सगळां री एक इज चाहना— कठैई कोई बादळ मंडज्या, कठैई कोई छंटवारौ करदै तो कीं आगै री आस बन्धै। उर्मिला तो लिछमण री उडीक मांय चौदह साल रै बनवास री उलटी गिणती गिणी। आगड़ो आयग्यो पण अबार झंहान नै सुळटी गिणती गिणतां चौदह सौ दिन बीतग्या। आगड़ौ अजै इज नीं दीखै। उपरनैं तिराण पाडतां-पाडतां आंख पीतळाईजगी। ज्योतिष, विज्ञान अर सूर्णी से फैल। आस रो पानौ जाबक धोळौ। तो आस कीं रै पाण?
निस्कारौ। सै रामभरोसै।
दिन तो राज रै सै’योग रै झूठा वादा अर अणमणी बातां स्यूं कटज्या पण रात? रात इज छोटी नीं होवै। माची माथै मसकोड़ा खावण टाळ कीं दिमाग स्यूं सूझै नीं आंख्यां स्यूं। उपरनै देखै तो तारा चिमकै। आं तीन च्यार साळां मांय तारा इज चिमकै कोनी, चिमकावै है। खड़-खड़ हांसता सा लखावै है जाणै दुख पावन्ता जीवां नै देख’र सैतान हांसतो होवै। तारा री न्यारी भान्त री चिमक अर पळपळाट बकौल सूंणी—सुगनियां आसमान मांय कठैई पाणी रो छांटों तो दूर सीहल ही नीं होवण रो सन्देशो देय’र जाबक निरास करै है। रात काटण रो एक ओ इज च्यानणो—तारा गिणना अर अठै इज आस नीं तो? न नींद, न आस, न कोई जोर मिनख जाबक निजोरो अर भळै?
रामभरोसै!
रातीजोगा अर सतसंग लगावणियां नै नूंतण री फुरसत अबार किण कन्नै? बै अबै बेला। आपरो टेम काटण नै अर रात ओछी करण खातर आपरै साज नै छेडनै लाग्या। साज छिड्यां सुर सूत्यौ कियां रैवै? अर रात काटण रो मारग मिलग्यो। ढोलक—पेटी अर इकतारौ लेय’र गुवाड़ री चूंतरी माथै गावण-बजावण लागग्या। अबै लोग-बाग भजन, कीरतन अर सत्संग री शरणम्। घरां जक नीं पड़ैं बै बिना बुलाया इज आपो-आप भेळा होवण लागग्या। रामस्यूं रस मिलै ना मिलै ठा नीं पण रामरोळै स्यूं घड़ी स्यात काळ आळी व्याधि स्यूं माथै नैं औसाण जरूर मिल ज्यावन्तो। होठां माथै जीभ फेरयां किसी तिस बूझै हैं पण होठ तो सीइल ही ज्या है। सुख तो घड़ी स्यात रो इज चोखौ
“नन्दिया नींद आयगी रै?”
“हूँ?...... हाँ।” नन्दियो बेठ्यौ होवन्तो हड़बड़ायौ।
“सत्संग सतसाहे होली। अबार घरां चाल’र सोस्यां।”
नान्दयै उपरनै तिराण पाड़्या अर इचरज स्यूं बोल्यो। “कीरतीयां ढळगी। घणोइज मोड़ो होग्यो लागै है?”
“यूं ही लागै है। सतसंग रै पांण टेम सोरौ टिपग्यो। नीं घरां माचलियै माथै मसकोड़ा मारतां-मारतां घणकरो बाण टूटज्या है। ओ बगत घणो दोरौ होया करै है।”
“म्हारी तो आंख लागगी ही यार!”
“म्हूं तेरी तो सदा स्यूं उळटी गंगा बैह्वै है। इत्तै रामरोळै मांय इज नींद आयगी। सतसंग इत्ती जोरदार जमी ही कै ना पूछ बात? छोगै इकतारै रै साजा अर आपरै सुरीलै सुर मांय कबीरजी री साखियां गाई तो सुणनियां इत्ता मोहीज्या कै सै झूमण लागग्या। रात ढळण रो कीं नै इज ठा नी लाग्यो। काल सतसंग मांय जबरो रस बणसी। तूं आसी नीं?”
“काल कांई बात है?”
“काल छोगो निकियै नै और ल्यासी।”
“हूं।”
निकियो नन्दियै रो टाबरपणै रो भायलो। मोटां होयां दोनां री ताणी उधड़गी। दोनुआं रै आप-आप रै बिचारां री ऐंठ। इं ऐठ रै कारण दोनां मांय कई साळां स्यूं बोल-बतळांवण बन्द। किकियो आच्छो भजनी। चोखी राग, चोखो ज्ञानी अर भगत। बीं री दूर-दूर ताई महसूरी। बीं रा भजन सुणंन सारू घणकरी झ्हांन तुडावै। नांव स्यूं इज लोगां नै कोड चढै अर भेळा होवै जाणै च्यानणै कन्नै पतगां। बो गावै इत्ते चाहे सुणनियां नैं रोटी ना द्यो लोग रोटी स्यूं सवायौ मानै पण नन्दियो बीं नै अफन्डी (पाखण्डी) मानै। दोनां मांय छत्तीस रो आंकड़ो।
“बतायो कोनी? काल आसी ना?” तुलछै ओजूं पूछयो।
“काल री काल देखस्यां।” कह’र आपरै घर कानी मुड़ग्यो।
नन्दियो आपरै घरां पूग्यो। जोड़ायत जागै ही। भंवरी रै इत्तै मोडै तांई जागण रो कारण बीं स्यूं छानौ नीं हो। घरां उदरां थडी करता होवै तो कीं नै इज नींद किया आवै? कमी घरधिराणी नै कीं बैसी इज सेधै है। बोलण-बतळावण स्यूं मन रो हबड़ास काढण खातर अडीकै ही पण हाल रो सांसो लाइलाज। हर बतळावण रो आखरी नाको कमी माथै आय’र अटकज्या। कमी क्यूं? काळ रै कारण। काळ क्यूं? बिच्छू आळौ सो ओ डंक सागंण जगां कानी भळै सैन करदै। अर क्यूं रो जवाब किण कन्नै इज नीं। लोगां री बात तो दूर अबै घणकरा धणी-लुगाईयां री बतळांवण रै इज ताळा लागग्या। भेळा सोवण री बात सपना बणगी। अबार तो दूर-दूर सूत्या इज एक दूजै रै गडै है। सगळां री अेकल लड़ाई होगी। सगळां री सून्न मांय नीजर टिकी रह्वै है अर मांय ही मांय विचारां रा भतूळिया उठै, रीस उठै। रीस घंणी आवै पण पून (हवा) मांय बूलबलै री कांई बिसात? अै भतूळियां अर आ रीस न कीं रो की बिगाड़ै अर न कीं रों कीं सुंवारै। नन्दियै रै इज भंतूळियो उठ्यां। भंतूळियै रो प्रेशर बस री टंकी छिकारौ मारै ज्यूं निस्कारै साथै बारै आग्यो अर माचली माथै पसरग्यो। इत्तै पैली भंवरी बोल उठी। “सतसंग चोखी जमी कांईं?”
“ठा नीं। म्हारी तो आंख लागगी ही।”
इचरज स्यूं बोली “आंख लागगी ही? साच्याणी थारौ डेढ चावळ न्यारौ इज रंधै है”, चिगी सी कढावन्ती आगै बोली, “आंख लागगी। सतसंगा मांय इज कीं री आंख लागी ही कदै? कठै पड़ी है सतसंग। सतसंग भाग स्यूं मिलै है। भगति तो दूर, भगवान रा नांव भागी ही लेय सकै है। भेड़ कांईं जाणै सुपारी रो सुवाद। ओ जमारो तो बिगड़योड़ो है इज अर सतसंग मांय सोय’र अगौत्तर और बिगाड़ लियो। मूसळ मेंह मांय इज नीं भीजै।”
भंवरी री बात रो तकड़ो चिणखो लागयो। नींद उड़गी। गळचट होयगी। माथै मांय भान्त-भान्त रा गोट उठण लागग्या। साच्याणी ही वीं नैं सतसंग मांय
रस नीं आयौ। छोगै रो गावणो-बजावणो सतसंग नीं कूड़संग लाग्यो। राम भजौ भाई अगौतर सुधरसी। सगळां भजनां रो ओ इज सार। भजन गायां की नै ठा है कै अगौत्तर सुधरसी ही? लख-चौरासी नै मान इज लेवां अर भजन गायां अगौत्तर सुधरसी ही तो कीं नै ठा है अगोत्तर माय कुंण कांई बकसी? अर कीं नैं ठा है कै लारै कुंण कांई हो? अै सगळी बातां सतसंगियां रो अर हराम री खादणियां रो आपरी रोटियां हेठै खीरा देवण रो नेटवर्क है। इण मांय कुण कद फंसै है ठा इज नीं लागै है। सै बातां कूड़ है, सांच तो आ है कै म्हूं नन्दियो हूं। हो अर रहस्यूं। तावड़ो—छियां भुगतणां पड़सी। अबार काळ है। काळ मांय सौ क्यां री कमी है। कमी रै कारण सगळा जीव दुख पावै है अर हल कीं नीं हैं साच तो आ है। भजन गायां किस्यो सांसो हल होवै है? भगवान नै भज्यां किस्यो रात गांय तावड़ौ निकळै है? आंख मिच्या किस्यो अन्धेरो होवै है? सतसंगा री ओट माय सांचली सांच स्यूं ओहला लेइजै कोनी। सतसंगियां रै कह्यै मुजब आं च्यार साळां मांय तहदिल ही क्यूं दिल रै पताळ स्यूं ही हर जीव भगवान नै याद करै है। है कठैई कोई सुणवाई? है कठैई राम? लाग्यो नेड़ै? भळै इज सै रामभरोसै। रामभरोसै बैठ’र भलांई खावो मोकळी हभकाफाकी अर मारो निस्कारा। भगवान तो नेड़ै लागै नीं। अब तो खुद भरोसे होया इज नाकौ लागसी। आइज सांच है। भगवान मिनख रै पेट लगायो है तो बीं नैं भरण सारू हाथ इज दिया है। पेट रै बळीतै रै हाथ नीं नावड़ै तो पग दिया है चाल’र बळीतै तांई पूगो। पूगणं स्यूं इज नीं लाधै तो आंख दी है ढूंढो। आख्यां स्यूं इज नी सूझै तो माथौ दियो है। माथै रै च्यानणै स्यूं टोहो। हाल माथौ तो सगळां रो कूड़ नै केवटै है। कूड़ नै पोखै है। ओट ढूंढै है सांच स्यूं टाळा लेवण री। कठेई देवरां री धोक खाईजै है, तो कठैई सतसगां री शरण लेइजै अर कठैई राम रो सारौ तकाइजै है। सगळै कूड़ रै आटै री सतसंग सीकै है। है। सतसंगा स्यूं पेट री लाय नीं बूझै। काळ नीं टूटै। कमी पूरी नीं होवै। पेट री लाय बुझावण री जुगत करतां करतां गैहळ फिरगी।
टैमसिर तुलछै कौल निभायौ। सतसंग मांय जावण सारू हेलो मारयो। नन्दियै रो सतसंग मांय जावण नै जाबक जी नीं करै हो। पण भंवरी रै भय स्यूं जावणो जरूरी होग्यो।
गुवाड़ मांय लोग-बाग सागीड़ा भेळा हो रैया हा। निकियै रै नांव रो सागीड़ौ कोड चढ्योड़ो हो। जावन्ता ही भजन मंडळी कानी जोयो। निकियो नीं दीख्यो। घणकरा मिनखां री निजर निकियै नै इज टोवै ही पण निकियो तो मेह स्यूं मंहगो होरयो। कठैई मेंह दीखै तो निकियो दीखै। म्हां—बिचाळै लोगां री सुरफराहट इज सुणीजै ही— “मोड़ो घणो इज होग्यो। सतसंग रो श्रीगणेश होवणो चाहीजै।”
“निकियै नै अडीकै है।”
“निकियै आप सागीड़ो जाड़ौ पड़र्यो है।”
“इंयां कर्यां बिनां बीं रा भाव कोनी बधै। जकी चीज सोरै-सासां लाधज्या बीं री कीमत घाट होवै है।”
इं स्यूं आगै कोई कांई बतळावै है? अपूठा सांगण जगां। बा इज अडीक। अडीक’र अकज्या तो आ इत्तीसी बतळांवण अर अपूठा सांगण जगां। अडीक बोझ बणगी जणां एक मोजिज बोल्यो “निकियै रै घरां जा’र ठा करल्यो। कित्तीक उंवार लगासी।”
मोजिज री बात नै सागीड़ौ समर्थन मिल्यो पण जा कुण? मिनकी री नाड़ मांय टोकरी कुंण बांधै/सगळां री सित्या निसरगी।
“आज्या रै नन्दिया! आपां चालां।” तुलछै चौधर नै पग मारया।
इतणां मिनखां मांय नट’र भून्ड आळी ठिकरो नीं लेवणो चावै हो तुलछै साथै चालणौ पड्यो नीं तो निकियै रै नांव री ही बीं रैं चीब ही (घृणा ही)। नन्दियो ज्यूं पग चकै हो बीं रै अहम माथै जूत लागै हो। आज बीं नैं निकियो जीततो अर खुद हारतो लखावै हो। निकियै री नाड़ ऊंची होवन्ती बीं रै बरदास्त स्यूं बारै ही। तुलछै माथै झाळ उठै ही। अबै तुळछौ ही सळटसी। आपां बोलण री पहल नी करस्यां तो ओ जंग है बठै ही रहज्यासी। गळी लाधी इत्तै मांय निकियै रो घर आग्यो।
घरां जा’र देख्यो। निकियो उदास अर ढीलो। सतसंग मांय जावण सारू न कोई तालामेली ही अर न त्यारी। जाणै न्यूंत्योड़ो ही नीं होवै। दोनों नै देखतां पांण चेहरे माथै नकली चेळक्यो ल्यावन्तो मुळक’र बोल्यो “आ रै तुळछा। और भाई नन्दू घरां सै राजी खुशी।”
सतसंगा मांय गावण स्यूं अर मिनखां भेळो रहवण स्यूं निकियो सांगोपांग दुनियादारी सीखग्यो हो। दिखावो करण मांय खूब चातर बणग्यो। मन मांयली पीड़ ड्रामै साथै लकोवण मांय खूब माहिर होग्यो हो। पहल करण स्यूं नन्दियै रै मन रो मैल घुळण लाग्यो। पण रह्यो अबोलो इज।
“सतसंग मांय बुलावण सारू आयां हा।” तुळछो बोल पड़यो। ‘मोड़ो होग्यो। सैं लोग अडीकै है।”
“सतसंग मांय कोनी जाइजै।’
तुळछो चिमक्यो “कांईं बात? सैंकडू लोग अडीकै है।”
“हजारूं अडीको चाहे। सतसंग पार नीं पड़ै।” निकियै जूत सो फटकार दियो।
“तो ही कोई कारण?” तुळछै मनवार करी।
“बतायण ज्यूं कोनी।”
“भळै भी।”
“……” निकियै रा बोल नीं पाटया। गळगळो होय’र रहग्यो।
आ देख’र नन्दियो बोल पड़यो “इयां करयां नीं सरै। इतणां मिनखा रो मन तो राखणो इज पड़सी। जा तुळछा इकतारौ चकल्या।”
तुळछौ इकतारै कानी व्हीर होग्यो। निकियो गुमसुम।
नन्दियै ओजूं घटोळयो। “उठ नीकू। आज म्हारै कहवण स्यूं इज।”
नन्दियै री मीठी भनवार स्यूं निकियै री आंख गीली होग्यी। लकोवण खातर आपरी जोड़ायत कानी देख्यो। निजरां मिली। मूक भाषा मांय कोई बतळावंण होई अर टसकतो सौ उठ लियो।
चालतै नन्दियै री नीजर चूल्है माथै पड़ी। ठंडो हो। चूल्है री राख माथै पड्यो पणो (गर्द) हेला मारै हो कै चूल्हो कई दिनां स्यूं नीं सिलग्यो हो।
पोळी निकळतै निकियै नै तिंवाळो आग्यो। नन्दियै सारो देय’र संभाल्यो अर चाणचकै चूल्हे री अर निकियै री जोड़ायत री अबोली बोली रै मर्म रो घणकरो लखण लागग्यो। बोल्यो “संभळ नीकू। कांई होग्यो?”
“होवणो कांई हो। अन्धेरी आयगी। थूं म्हांनै नजबूर कर दियो हो नीं तो म्हारी हालण री इज आसंग नी है।”
“कांई होयो आसंग रै?”
“बतावंण ज्यूं कोनी।”
“छानै राख्यां म्हारी सूं लागसी।”
“दब्योड़ै नै और ना दबा।”
“बतावणो पड़सी।”
निकियो बेबस होग्यो। उंडो सांस भार’र भर्योड़ी आवाज मांय बोल्यो “राम मांय रस नीं है नन्दा! रस रसोई मांय है। छः दिनां स्यूं चूल्है स्यूं धुंवो नीं निसरयो है। हां म्हारै मांय डून्ड जरूर निसरग्या। म्हूं भजन भगति खातर नीं रोटी खातर गाया हां। अबै सगळा घाटा रुकग्या। भूख उपरांकर फिरंगी। भूखे पेट डकार नी आवै। अै सतसंग धापता रा धन्या है अर म्हूं भूख स्यूं कायल।
निकियै री बात रो पतियारो होयां लाग्यो जाणै निकियै रै मन मांय खोट नीं हो विचार उळटा नीं हा। रोटी सारू तो हरेक ही छेछुआ करै हैं। अबार नन्दियै रौ मन निरमल होग्यो। निकियै सारू परेमरस सांचरण नै लाग्यो पण इण भूख रो हल नीं हो। नन्दियो हल खोजण लागग्यो।
निकियै रै उगाड़ मांय पूगतां इज सगळां रै चंळको बापरग्यो। सगळी अडीक खत्म। छोगै संज सम्भाळया। साज छेड़यो। सतसंग शुरू होगी। दो-एक साखी गाय’र छोगै समां बांधी अर इकतारो निकियै कानी कर दियो। निकियै अणमणै सै’क कबीरजी री एक साखी गाई। लोगां नै सुर ढीलो लाग्यो। एक रसीयै स्यूं कोनी रहीज्यो। होंसलो बंधावतां थकां बोल्यो, ‘भगत ढीलो चाले है सागीरूपां आ यार!”
थापी लागण स्यूं नथियो आपरो डोळ भूल’र पोगरीजग्यो अर लाम्बी ढाळ री साखी छेड़ दी। इकतारै माथै नाड़ टेक’र टेर खींचण लागग्यो। बातपोश नै हुंकारा अर भजनी नैं शाबासी मिलज्या तो रंग जमतां कांई वगत लागै। “शाबारा नीकू” “मानग्या भगत नै” जिस्या शब्द कानां मांय पड़ता गया अर नीकू अपणै-आप नै भूल’र ऐडी चोटी तांई रो जोर लगा’र टेर नै लाम्बी खींचतो गयो। हदस्यूं ज्यादा लाम्बी टेर खींचण रै कारण छोगो साज नीं मिल्या सक्यो अर चिनक्यो। छोगो निकियै नै चेतावन्तो इण स्यूं पैला निकियै रो सांस टेर साथै कुपाळी चढग्यो। निकियै रै हाथ रो इकतारौ गुड़ग्यो अर इकतारै साथै खुद।
निकियै रै गुड़तां पाण लोंगां मांय रोळो मांचग्यो। स्याणै लोगां निकियै नै सम्भाळयो। नाड़ी ठंटोळी अर हार मानग्या। रोळो सुण’र नन्दियो चिमक्यो। अर कन्नै बैठ्यै तुळछै स्यूं पूछ्यो “कांई होयो?” तुलछै रो जाणै मुंह सीमीजग्यो। सीयोडै मुंह स्यूं फुसफुसाहट होई “राम नाम सत।”
सुणतां पांण नन्दियै रै सैहकारौ सो’क निसरग्यो “कूड़। जाबक कूड।” नन्दियो आपरी जगां स्यूं उठ्यो। नीकू रै कन्नै जाय’र बैठयो। कई ताळ ताई घूर’र देख्यो। भळै बोल्यो “उठ नीकू! भजन पूरो कर भायला। उठ यार। इंयां कांई जाबक ही सत निसरग्यो?”
माटी रो कांई बोलै? आ देख’र कई मिनखा री आंख्या गीली होवण लागगी अर नन्दियै री राती। चेहरो भून्डो अर करड़ो होवण लागग्यो। माथै री नस फूलगी। सांस लुहार रै आरण ज्यूं चालण लागग्यो। नीकू रो चेहरो आपरी हथेलियां मांय लेय’र दडूक्यो “साखी पूरी कर नीकू! अर नी म्हारै कहवण स्यूं अठै आयौ क्यूं? बोल आयौ क्यूं?”
माटी नै एक पल खावण आळी नीजरां स्यूं देख’र झटकै साथै उठ खड़यो होयो अर तुलछै री गळबीणी झाल ली। कान रा पड़दा पाड़ सुर मांय दडूक्यो “कठै है राम? कठै है सत? कठै है नीकू? आ तो नीकू री माटी है आ इज सत है।”
गळबीणी माथे बेअन्दाज जोर लगावण स्यूं तुलछै री आंख बारै आयगी अर कंठां मांय घुटर-घुटर होवण लागगी। आ देख’र कन्नै खड़यै एक बडेरै जोर स्यूं हाकौ मचायौ “नन्दियै री चीला उतरगी लागै है तुलछै नै बचाओ।”
लोग चेत्या। तीन-चार जणां रळ’र मशांसीक तुलछै री ज्यान बचाई। तुलछै री नाड़ छूटतां इज नन्दियो भाज छूट्यो।
अबै नन्दियो नीकू री बेवा साम्हीं बावळ मांय बरड़ावै हो “अबै रामभरोसै ना बैठी रह भाभी। चाहे चोर’र ल्या, चाहे खोस’र ल्या टाबरां खातर रोटी रो जुगाड़ कर। रोटी ही सत है रोटी रो जुगाड़ नीं होयो तो रामभरोसै रहवणिया अर अै सतसंगी टाबरां खातर भळै कूड़ कहसी “राम नाम सत है।”