सोमवार रो दिन! बैंक में भीड़ ई बेजां, सब नै खतावळ, पण टैम तो लागै ई। भांत-भांत रा गाहक, भांत-भांत री तकलीफां। कित्ती ई मेटो, बधती जावै, दिनभर सागी रामाण। दो’पारै पछै कीं ओसाण मिलै जद कीं भीड़ छंटै, पण साची बूझो तो बैंक ईं भीड़ रै पाण ई आगै बधै। कीं छीड़ होई तो अेक गाहक म्हारै केबिन में आय’र उभो होग्यो, साथै अेक छोरी।
“हां, बोलो..?”
“साब अेक अेक्सीडेंट क्लेम री अेफडी है इण रै नांव सूं, उण रा पइसा कढाणा है।”
“के नांव है लाडी..?” – म्हूं बूझ्यो।
“स्स…सलमा” बा छोरी हौळैसीक बोली।
“सलमा है साब, कीं डरै है लाण।” बो आदमी बिच्चाळै बोल्यो।
“डर क्यांरो है..? अर थे कुण? सलमा रै कांई लागो?” म्हूं करड़ी मींट सूं सवाल कर्यो।
“म्हूं फूलचंद साब…सलमा रो बाप”
चपड़ासी सूं ‘अेक्सीडेंटल क्लेम-कोर्ट ऑर्डर’ री फाइल मंगवाई। पैलड़ै पानै पर लाग्योड़ी क्लेम सूची में नांव फरोळ्यो।
“बाप रो कांई नांव बतायो..?”
“फूलचंद, फूलचंद है साब!”
“पण कागदां में तो थे कोनी..?” म्हारा कान खड़्या होया।
“गुलियो…म्हारो मतलब है गुलामनबी होवैला। सलमा रो दूजो बाप।” बीं कैयो।
“तो पैलो किस्यो होयो..?”
“म्हूं साब। थारी सोगन, सलमा म्हारी सागण छोरी है। पैलां आ संतोस ही,सलमा तो पछै बणी, ओ आधारकारड़ रैयो।” बो गरळायो।
“पैला थे, दूजो गुलामनबी अर अबै…तीजो..?”
“तीजो कैवो भाऊं पैलो, म्हूं ई हूं साब..!” बण हाथाजोड़ी करी अर कागद साम्ही कर्या।
“अरे नरेन्द्र…ओ नरेन्द्र.., के सांगा है यार..?”
म्हानै झूंझळ आयगी। नरेन्द्र भाज’र केबिन में आयो। म्हारो जूनियर अफसर, काम रो जाणीजाण। बो कीं बूझतो, उण सूं पैली म्हारी भड़ास नीसरी, “अेक तो मार्च रो छेकड़लो हफ्तो, दूजी सर्वर री ब्याधी, ऊपर सूं अै तीन-तीन बापां आळा कस्टमर, कदेई सलमा कदेई संतोस, मैनेजर लाई किस्यै कुवै में पड़ै..!”
“साब, सगळां नै हथाळी पर सरस्यूं चाइजै।” नरेन्द्र ई भरीजेड़ो हो, कदास म्हानै ई बण सगळां में रळा लियो होवैला, पण फेरूं ई बो दोनां नै बारै लेजा’र बूझण लाग्यो। पक्कायत ई उण रै पल्लै कीं नीं पड़ी होवैला। पण बीं आपरी चतराई सूं अेकर तो बानै बैंक सूं तगड़ ई दिया। चलो जान छूटी। साची बूझो तो दिन में अेकाध केस इस्यो आयो ई रैवै, लोही पी लेवै।
पण घंटो ई को होवैला,बा छोरी तो फेर आयगी,अबकै अेक मरियल सी डोकरी साथै लाई। आंख्यां पर टूटेड़ी डांडी रो चस्मो, लाठी रो ठेगो, बा डोकरी हाथ जोड़’र म्हारै साम्ही उभी रैयगी। छोरी बोली, “म्हारी दादी है।” म्हूं उमर देखतां डोकरी नै कुरसी माथै बैठण री अरज करी।
“लाडी, तन्नै समझायो हो नीं, क्लेम री अेफडी रा पइसा थान्नै कोनी मिलै।” बांरै लारै-लारै ई म्हारै केबिन में बड़्यै नरेन्द्र रा बोल फूट्या। “अर थारो आधारकारड दिखा, उणमें कोई दूजो ई नांव है।” नरेन्द्र उण छोरी रै हाथ सूं आधारकारड ले लियो, म्हारै साम्ही करतां बोल्यो, “साब, इण रो नांव तो संतोस है अर बाप फूलचंद, क्लेम चावै सलमा रो, कियां मिलै? जे दो घड़ी सलमा अर संतोस नै अेक ई मान लेवां फेरूं ई बाप थोड़ी बदळिजै!”
“देखो डोकरां, भगवान नै जान देणी है, कूड़ बोल्यां कीं को बंटै। सलमा रो क्लेम संतोस नै कियां देवां..? क्यूं आपरो अर म्हारो टैम खोटी करो!” डोकरी रा डोळ देख, म्हूं कीं नरमाई सूं बोल्यो।
“मालक नै जान तो देवणी है बेटा, पण बो लेवै जद नीं..! करम काळा होवै तो उडीकतां नै मौत ई नीं आवै, माडै़ बगत में खर्यो सांच ई कूड़ लागै सबनै।”ओ केवतां डोकरी री आंख्यां में पाणी आयग्यो, म्हूं नरेन्द्र साम्ही तकावण लाग्यो। डोकरी री हालत देख म्हूं चपड़ासी सूं पाणी मंगवायो, छोरी नै बैठण रो कैयो, डोकरी नै धीजो बधांवता बोल्यो, “मायत, आ छोरी आधारकारड लियां फिरै संतोस रो, क्लेम मांगै सलमा रो! कियां देवां? …थे थारी बात सावळ माण्ड’र बतावो, कठैई म्हारै पल्लै पड़ै ई तो!”
कांपतै हाथां सूं पाणी रो गिलासियो लेय’र बण आपरै सूकेड़ै होठां सूं लगायो, कंठ आला होया
तो डोकरी कीं ठमी अर बात टोरी, म्हूं अर नरेन्द्र चुपचपाता सुणता रैया।
“बेटा, ईं सलमा री मा, निरभागण संतूड़ी ही जिकी सत्तारा बण’र मरी। अेक करमफोड़ टिंगरी, जलमी जद मा नै खायगी, अर मरी तो सगळै परिवार नै..! मा बायरी संतूड़ी लाण नानाणै में पोखीजी, उण री नानी दाई ही, अठी- उठी जावती जद संतूड़ी नै आपरी भायली सकीना खन्नै छोड देवती। बा भागफूटी सकीना म्हूं ई हूं साब! म्हारो छोरो गुलियो, संतूड़ी रै हाण रो,दोनूं सरकारू इस्कूल में जावता, साथै रमता। पण करमां री कांकरी इसी पड़ी कै अेक दिन संतूड़ी रो दारूड़ियो बाप सासू सूं लड़-झगड़’र उण नै आपरै घरां लेग्यो। पण घर तो लुगाई सूं होवै, बठै कुण! छेवट चऊदै बरसां री संतूड़ी नै उण नसेड़ी फूलियै रै लारै टोर दी। ओ ई सागी फूलचंद, जिको थां कनै आयो हो, लखणां रो लाडो! लोग कैवै, संतूड़ी रै बाप फूलियै री मा सूं तीन हजार रिपिया लिया। फूलियो ब्याव रा सै सांगा रचाय’र संतूड़ी नै घरां ल्यायो। घर में कुण, बो उण री मा अर अबै संतूड़ी। सागी बस्ती में उणरो पी’र अर बठैई सासरो!
“थोड़ा दिन तो ठीक धिकी, पण पछै फूलियै रै तो सागी बाण। नितुकै डोडा, का पव्वो, पछै लड़ाई झगड़ा, चोरी-चकारी, थाणा, तैसील। अेकर दो बिरियां तो जेळ ई पूगग्यो। जमानत होई, पण जठै रोज रा सांगा, बठै कुण धणी बणै! फूलियै री मा बेटै रै इणी दुख में माचली झाल ली, पण नसेड़्यां रै कांई फरक! उणरा रंग-ढंग नीं बदळ्या। हां.., दिन बधतां संतूड़ी दो टाबरां री मा बणगी, आ लाडेसर संतोस अर गीगलो रोहित। लगैटगै दस बरसां तांई संतूड़ी सूंतीजती रैयी, फूलियै रै हाथां लाण घणी कूट खाई। पण बगत रो चकरियो इस्यो घूम्यो कै अेक दिन कोई पुराणै केस में फूलियै नै पुलिस पकड़ लेयगी, उण नै पांच साल री सजा होई बतावै।
“धणी री मार अर अबखायां सूं आखती होयोड़ी संतूड़ी, अेक दिन तेली मोहल्लै रै गुलाम नबी रो हाथ झाल लियो। बोई सागी गुलियो, म्हारो लाडेसर..! अेक ई तूंतड़ो, कोई भाई ना बैन।”डुसक्यां भरती डोकरी बोल्यां जावै ही अर म्हे अबोला देखै हा, बां दोनूंवा रा फाटेड़ा चैरा।
“बाळपणै रै बेलिपै भळै प्रीत पांघरी..! छातीकूटै सूं लारो छूट्यो, पण छोटी जिग्यां ही, चिगचिग होवण लागी।” मर अे संतूड़ी…धणी जेळ में अर थूं…मिंयै रै लारै…, कूवै सूं निसर’र खाड्डो…कीं टाबरां रो सोचती… इण सूं तो आच्छो कुवो-खाड करती।” जित्ता मूंह, बित्ती बातां! संतूड़ी अेक दिन री अखबारू खबर बणी, “दो टाबरां री मा प्रेमी संग फरार…।”
पण प्रेमी तो प्रेमी होवै, जे होवै कोई सांचो। उणरी होड कुण कर सकै..! “खुसरो बाजी प्रेम की, खेलूं पी के संग। जीत गयी तो पिया मोरे, हारी पी के संग।” लखायो कै डोकरी बातां री पूरी जाणीजाण ही।
“तेली मोहल्लै रो गुलियो तो नीसर्यो संतूड़ी रो पक्को आसिक। उणनै अर दोनूं टाबरां नै लेय महीनै खंड तो बारै डबकतो रैयो। छेकड़ अेक दिन सिंझ्या पौर रो आपरै घर आ ढुक्यो, सणै संतूड़ी अर टाबरां। बारंडै मांचै बैठ्यै, उणरै बाप अल्लाबक्स अेकर तो करड़ी मींट सूं बांनै तकायो पछै आभै साम्ही दोवूं हाथ मांड दिया – “या अल्ला..” कमरै सूं बारै आवती म्हूं बांनै देख सेंतरी-बेंतरी होयगी।
“गुलियो अर संतूड़ी म्हारै पगां लाग्या तो मतैई मा रै मूंडै आसीस फूटी, “राजी रैवो..! पण गुलिया, थूं आ कांई करी? थारै ब्याव रा म्हूं कित्ताई कोड करती, हरख मनावती पण थूं सै धूड़ै कर न्हाख्या। उल्टै ब्याई-थ्याई लुगाई नै भजा’र लियायो, इण सूं तो आच्छो हो, म्हां दोवां नै कुचिलो खड़ा देंवतो, ओ दिन तो नीं देखती।” आंसू टेरती मा थोड़ी ताळ बरड़ावती रैयी। रोवा-कूको सुण’र गळी बास रा ई अेक-दो जणा झाको घालग्या। संतूड़ी टाबरां साथै अबोली बैठी रैयी, गुलियै मा नै धीजो बंधायो। मा रो काळजो काठो नीं होवै, म्हूं गळगळी होयगी, गुलियै नै बांथां भर लियो। बांथां रै उण घेरै में संतूड़ी अर टाबर ई कद आ बड़्या, ठाह ई नीं लाग्यो। अल्लाबक्स ई कुदरत रा रंग देख मून धार लियो। बिना निकाह घरै बिनणी आयगी, सणै टाबरां। जी तो धपाणो ई पड़ै कियां ईं! पण दो दिन ई को लाग्या, सै बात आई गई होगी। बियां ई इसी बातां री सिंझ्या बेगी ढळै। संतूड़ी अर उण रा दोवूं टाबर आपरै नूंवै घर अर नूंवै दादै-दादी री छियां पोखिजण लाग्या। गुलामनबी भळै बजार में चुन्नी रंगाई रो अड्डो जचा लियो। भागजोग सूं काम ई पाछो लैणसर आयग्यो। आवणो तो हो ई, संतूड़ी जिसी सुलखणी नार, जिकी म्हानै माचै बैठी नै रोटी झलावै अर सुसरै नै हेलै साथै चा। का’ल तांई गुलियै नै गाळां काढती म्हूं अबै अळोच करती, “जे म्हारै पैलां उकलती तो गुलियै नै गाजै बाजै सूं ब्याव’र लावती।” संतूड़ी म्हानै पराई तो कदी लागी ही कोनी..!” सांच नै कांई आंच, डोकरी बोलती रैयी, म्हे सुणता रैया।
“दाळ रोटी री चिंता मिटै तो आदमी सुपनां रा गोगा मांडै..! संतूड़ी रै टाबरां नै भणावण सारू मोहल्लै री इस्कूल घाल्या तो संतोष अर रोहित कद मांखर सलमा अर रज्जाक बणग्या, ठाह ई को लाग्यो नीं। इस्कूल रै बाबू कागद पर अल्लाबक्स रो अंगूठो लगवा’र उण रै केवणै मुजब टाबरां रा नूवां नांव मांड दिया।
“हैं…इयां कियां…? मामलो धरम रो हो नीं!” म्हूं सवाल कर्यो। “पण बेटा, जठै धणी ई बदळीजग्या बठै धरम रो कांई बंटै! बां दिनां कोई ‘जेहाद’ तो हो कोनी, फस्सी रा फटकण हा। रोज कूटीजती संतूड़ी रै धरम री नीं, पण प्रेम री जड़ तो हरी ही, जिकी गुलियै रै आंगणै जाय भळै पांघरगी।
“उणी दिनां नगरपालिका में नूवां रासनकारड बणावण रो अभियान चालै हो, गुलियै ‘अेफेडेविट’ देय’र संतूड़ी रो नांव म्हारी इंछा मुजब सत्तारा कराय दियो। नूवैं रासनकारड़ में अबै गुलामनबी दो टाबरां रो बाप ई बणग्यो, आठ बरस री सलमा अर सात बरस रो रज्जाक। जद धणी लुगाई राजी तो कांई करैलो काजी!
“रामजी मैर करै तो दिन फिरता जेज नीं लागै। संतूड़ी रै अेक छोरो और होग्यो। म्हारै तो जाणै घूघरिया बंधग्या होवै। मून रैवणियो अल्लाबक्स ई डाडो राजी। गुलामनबी रै कोड रो तो कैवणो ई कांई। सगळै मोहल्लै में सीरणी बंटाई। मौलवी गीगै रो नांव राख्यो ‘रूखसार’। टाबर रा भाग, गुलामनबी रो घर चेळकै आयग्यो। साची बूझो, सत्तारा अर दोनूं टाबरां नै अेक दिन ई लारलो घर चेतै नीं आयो। हांसी रा दिन अर मुळक री रातां।”
“पछै कांई होयो, थे तो आ बतावो… आ सलमा पाछी संतोस कियां बणी?” नरेन्द्र मुळकतै सै बूझ्यो।
“थ्यावस राखो बेटा, आज सो कीं बता देस्यूं, आपरी हांसी भेळै बगत ई हांसै, इण री कोई अड़ी कोनी। काळ सगपण सार नीं जाणै…! बो तो जाणै फगत पासा फैंकणा, सकुनी दांई मनचाया सटीक पासा। बस! अेक दिन चाणचकै पासो फैंक्यो, म्हारो हांसतो-खेलतो परिवार चिब लियो, चौसर री गोटी ढाळै।
“ईद सूं तीन दिन पैलां संतूड़ी, नंई, नंई सत्तारा कैवणो चाइजै, डेढ बरस रै रूखसारियै नै लेय’र गुलियै साथै बजार गई। होठां पर मुळक अर आंख्यां में चमक चानणी..! सगळै परिवार सारू बा सुपना मुलांवती फिरी, ईं दुकान सूं बीं दुकान। गुलियो ई घणो राजी। सत्तारा री भावना मुजब बण सगळां सारू नूवां गाभा लिया अर बेसण चूरमै री चक्कयां, रूखसार सारू दो रमतिया ई न्यारा।
आवती बेळा दो थेला समान, अर काख में गीगलो टंगाया सत्तारा मोटरसाइकिल रै लारै बैठी आपरा भाग सरावै ही, कठै फूलियो अर कठै गुलामनबी…, अेक रोज कूटतो तो दूजो… सांस गिणै, लाड लडावै। वाह रै बिधना, थारा रंग! मोटरसाइकिल चलावतै गुलियै सारू उणरी अणूती प्रीत हबोळा खावण लागी। गुलियै री मैंदी लाग्योड़ी उडती जुल्फां देख, मोदीजेड़ी सत्तारा रै मूंडै रागळी छूटी होवैला, “उड़े जब-जब जुल्फें तेरी…”
“सत्तारा रै अंतस रा बोल तो कांई ठाह गुलामनबी रै कानां पड़्या का नीं, पण उणी घड़ी सर्किल साम्हीं सूं आवतै अेक बेकाबू ट्रोलै रै झपीड़ सूं बै तीनूं उछळ’र सड़क पर आ पड़्या। खेल खतम… निरभागी किस्याक, ट्रोलै लारै चालतै अेक मिलटरी रै ट्रक बां तीनां रो लिगदड़ काढ न्हाख्यो। काळी सड़क पळ-छिण में लाल होगी। च्यारूंमेर लोही अर मांस रा लोथड़ा… मोटरसाइकिल रा खिंडेड़ा पातड़ा… थेलां सूं झांकता लीर-लीर सुपनां… चूरमै रा खिंडेड़ा भोरा… उण घड़ी बिधना ई पक्कायत बठै ई होवैली, …काळजै रो मांस …चूरमै सूं राफां ल्याड़्यां, …हाथां में लोही भर्यो खप्पर लियां, …जीभ काढ्यां… बिकराळ रूप में!”
ओ सुण’र म्हारा काळजा धक रैयग्या, नरेन्द्र अर म्हूं डोकरी री पीड़ साथै गळगळा होग्या।
“...कोई जोर कोनी बेटा, अठै आवतां हाथ पाधरा है। हांसतै-खेलतै घर में किरळाटो मचग्यो, सगळो आड़ौस-पाड़ोस रोयो, गुलियै अर सत्तारा नै। मोह चीज ई इसी होवै! थोड़ै सै बगत में सत्तारा आपरी मिलगत अर ब्योहार सूं मोहल्लै में इसी पैठ बणाई कै आंगळी उठावता लोग ई भाजण-भूजण री बातां भूलग्या। गुलियो किस्यो घाट, अबखाई में सगळां रै आडो आवतो, उणरी मुळक रोवतै नै हंसा देवती। पण अबै लाव छूट्यां कांई बणै!
“म्हां डैणियै-डैणती भेळै दोवूं टाबरां री जूण बदळतां घड़ी को लागी नीं। म्हां सूं मरीज्यो तो कोनी पण लारै कीं नीं। महीनो खंड तो रोवतै-कूकतै काढ्यो पण फेर आटै रा ई टोटा..! लाई बूढो ठेरो अल्लाबक्स रंगाई रै अड्डै जावण लाग्यो। कीं पूण पावली सूं गाडी गुड़कण लागी, म्हूं दोरी-सोरी रोटी टुकड़ो करती अर टाबरां नै घालती। अेकलपै में कई बिरियां कूकती अर अळोच करती, ‘या म्हारा रसूल, कांई चावै थूं म्हा सूं? ना पूत रैयो ना पोतो,अर आं परायै टाबरां री रूखाळ… कांई ठाह कुणसा पाप कमाया, इण दोजख में ल्या’र पटकी!” टूटेड़ो अल्लाबक्स म्हानै थ्यावस दिरावतो,”मालक री मरजी आगै कोई जोर कोनी सकीना... होसलो राख।”
“कीड़ी नै कण अर हाथी नै मण” देवणियै री लीला देखो, थोड़ा’क दिनां में गुलियै रै ‘ऐक्सीडेंट क्लेम’ रो केस ई सळटग्यो। फैसलै मुजब बीमा कंपनी सूं कुल साढे पंदरा लाख रिपिया मिलणा तै होया। बेटो-बीनणी अर पोतो फौत होवण रो साढे पांच लाख नकद मुआवजो मिल्यो म्हांनै, अर मायत बायरा टाबर सलमा अर रज्जाक रै नांव सूं पांच-पांच लाख री अेफडी, जिकी बांरै बालिग होयां पछै मिलणी ही।आज बीं सागी अेफडी रा पइसा री बात है।” डोकरी सारै बैठी छोरी रै सिर माथै हाथै फेर्यो। म्हे दोनूं ई डोकरी री बात सुण’र गळगळा होग्या।
‘अच्छा फेर…?” नरेन्द्र डोकरी नै बतळाई।
“जिण दिन बैंक मैनेजर सगळा कागद त्यार कर अल्लाबक्स रै आगै कर्या तो बो गळगळी दीठ सूं बान्नै तकावण लाग्यो। लखायो जाणै अेकर फेरूं किणी गुलियै, बिनणी अर रूखसार री चींथीजेड़ी ल्हासां उण रै साम्ही राख दी होवै। धोळा कागद उण नै खापण दांई लाग्या। टाबरां री ल्हास आपरै कांधै ढोवणै सूं मोटो दुख जगती में फेर और किस्यो! अल्लाबक्स री आंख्या सूं मतैई चौसरा चाल पड़्या। केई ताळ मेज पर सिर टिकायां बो रोंवतो रैयो। छेवट लोगां जियां-तियां धीजो बंधायो अर घरै घाल्यो।
“भरीज्योड़ो अल्लाबक्स घरै पूग्यो तो मायत बायरै टाबरां नै देख भोत कूक्यो, म्हूं गूंगी ई सागै रळगी। बारा-तेरा बरसां री छोरी किंकर स्याणप पकड़ै, आ बात म्हानै उण घड़ी सलमा नै देख ठाह लागी। बा सुराई सूं पाणी रो लोटो भर ल्याई, दादै नै झलायो। दादो घड़ी ताळ उण नै जोवतो रैयो पछै पोती नै बांथां भर ली। रज्जाक म्हारै खोळै में...।
दिन खायां सो कीं बधै! क्लेम रै पइसां सूं म्हारै घर रो गाडो ई कीं चांकै सर आयग्यो। रो-रो आंधी होई म्हारी आंख्यां में लेंस ई घलाइजग्या पण झरती आंख्यां नै ढाबण वाळा लैंस तो हाल बण्या ई कोनी! डाक्टर घणोई समझायो, “कुछ दिन आँख में आँसू न आए तो बेहतर है।” पण जद कुदरत रोवाणै तो आच्छो-माड़ो थोड़ी देखै। लेखां रा लेख, कै दोवूं बेळा अल्ला नै याद करतै, म्हारै धणी अल्लाबक्स नै अेक दिन अल्ला ई याद कर लियो। अबै थे’ई बतावो, आ डोकरी कूकै नीं तो कांई करै! कठै-कठैई तो दुखां रा दग्गड़ इस्या पड़ै कै अेक री पीड़ पम्पोळां, उण सूं पैली दूजी चोट त्यार, मानखो सांस ई कियां लेवै! सकीना मरी तो नीं पण बाकी कीं नीं। देखतां ई देखतां भर्यो पूरो घर धुड़ग्यो, इंया लाग्यो जाणै कै घर री भींतां, म्हां सगळां नै हेठै दाब लिया होवै।”
डोकरी बोलती रैयी, म्हे मून धार्यां सुण बोकर्या, उण री बातां सीधी काळजै लाग रैयी ही।
“अेक दिन बगत फेरूं फोरो खायो। सजा पूरी कर फूलियो जेळ सूं छूटग्यो, बदळै री आग में बळबळतो, बो सीधो म्हारै घरां पूग्यो। पण बदळो लेवै किण सूं, कोई होवै तो..! टाबर इस्कूल गयोड़ा हा। घर में फगत म्हूं निरभागण.., बण मूंडै छूटी गाळ्यां काढी। लोग भेळा होग्या, कियां ई ठण्डो-मीठो कर्यो, पण फूलियै अेक नूंई ब्याधी घाल दी, टाबरां नै लेय’र जासूं। म्हारा टाबर, मियैं रै घरै को पळन दूं नीं! म्हूं तो आ बात सुण’र भींत होगी, पाड़ौस्यां नै लेवणो ई कांई। कोई दो चार बोल्या ई तो, फूलियै बांरी बोलती बंद कर दी, “टाबर कींरा है? गइवाळ गुलियै लारै म्हारी गैलचोदी लुगाई भाजी होवैला, टाबर तो को भाज्या नीं?”
“आठ-दस बरसां रा टाबर लाई ‘भाजणै’ सार कांई जाणै। बां रै सारू तो पकड़म-पकड़ाई, का लुक मिचणी रै मिस ई भाजणो होवै। इस्कूल सूं हांसता-खेलता घरै आया तो दरसाव देख’र सूना होग्या। पैलड़ै बाप री पूंछीजेड़ी यादां टाबरां नै डरावण लागी। दाढ़ बधायेड़ो फूलियो बांनै सलीमियैं कुरैसी दांई लाग्यो जिको आपरी स्कूटरी लारै बंधी छाबड़ती में कोई उरणियो का बकरो ल्याया करतो। तेली मोहल्लै रै सलीम मीट हाऊस पर बां भाई-बैना कई बिरियां बाढेड़ा बकरा टंग्योड़ा देख्या। खाल उतार्यां पछै अेक टांग सूं ऊंधै लटकायोड़ै जिनावर रो मांस, जिण पर चढ़ायोड़ो गीलो न्यातणो... सलमा रै तो देखतांई उबकाई छूटती अर बा दौड़ जावती, रज्जाक कदेई-कदेई उभ्यो रैय’र तकाया करतो।
पण बाप कित्तोई माड़ो होवै, कसाई थोड़ी होवै। टाबरां नै देख फूलियै री रीस ई मोळी पड़गी, नेड़ै बुला’र दोनां रा सिर पळूंस्या। म्हूं ई कीं चेतै होई, भरी आंख्यां सूं फूलियै साम्ही गुहार लगाई। पण छेकड़ म्हनै बिलखती छोड फूलियो कूकतै टाबरां रा बूकिया झाल’र व्हीर होग्यो, बस्तां भेळै टाबरां रो टाबरपणो ई लारै छूटग्यो… भोत लारै…। बिधना अजेस ई खिड़-खिड़ हांस रैयी ही, खिंडतै घर नै देख’र।”
म्हारै सारू दरद री आ पोट जाबक ई अबोट ही, म्हूं सो ई कीं भूल’र सलमा अर उण री दादी रै दरद बाबत सोचण लाग्यो – ‘लखदाद है डोकरी नै, इत्तो दुख… पण हाल जीवै है!”
डोकरी कीं सांस लेय’र भळै सरू होई।
“घर..! दो साळां री अेक टूटेड़ी टापली, जिकी रंग-रोगन तो दूर, कदेई कळी कूंची रो ई मूंह नीं देख्यो, सुळेड़ी भींता रा घणकरा लेवड़ा उतरेड़ा, कुण लीपै हो बांनै, अर कींरै सारू! पतनाळै रा रिंगा अर बिरखा री बोछाड़ां ई बगतसर आपरा सैनाण मांड बोकरी, गळी बास रा कुतिया ई घूर्यां घालण में लारै नीं रैया। निरधनियै री जोड़ायत तो सगळां री भौजाई बजै! सागी हाल अठै, जिणनै आप घर कैय सको। अर घरै किसी आं टाबरां री मा बैठी ही, जिकी बांरै सारू चूरमा चूरती! हां, फूलियै री मा अजेस ई आपरो खोटवों काढै ही, कुड़ेड़ी कड़तू, लाठी रै ठेगै सूं चालती अेक डोकरी, जिकी सुख नांव री चीज कदेई को देखी नीं। मोहल्लै री मैहर अर सरकारू पिलसण रै ताण ई कदास बा जींवती। फूलियै नै तो बण ओळख लियो पण अै टाबर…! फूलियो बोल्यो – “देखै के है मा, आपणा ई है, बा गइवाल राण्ड म्हारो मूंडो काळो करणै में कसर थोड़ी छोडी, छेकड़ मरी ई नीं आपरै लखणां!”
“दोवूं टाबर लाई कूणै लाग्या खड़्या। कोई कानून, कोई तजबीज कोनी जिकी टाबर री भावना समझै, समाजू काण-कायदा टाबरां नै मायतां रै साथै रैवणो ई चोखो बतावै, पण जे सलमा अर रज्जाक जेड़ा टाबर होवै तो, मायतां साथै नीं रैवणो चावै जणां…? जाड़ चिपज्यै सगळां री…! “फूलिया थूं जेळ सूं कद छूट्यो..?” टाबरां साम्ही जोवती डोकरी सगळी बातां अणसुणी करतां सवाल फैंक्यो। “थूं देख्यो जद ई अबै संतोसड़ी अर रोहितियो आपणै सागै ई रैसी, म्हूं मुल्लै रै घर सूं काढ लायो आंनै, इंया धरमभिस्ट थोड़ी होवण दूं!” फूलियै ऊथळो दियो, “थूं की रोटी-टुकड़ै रो इंतजाम कर, म्हूं पूण पावली लावूं दिखाण।” ओ कैय’र फूलियो बारै जावतो रैयो।
डोकरी टाबरां नै लुखी-मिसी ही जिसी रोटी घाल दी। टाबर अणसैंधपणो तो करै ई, पण भूख तो भख मांगै। बा घणी अळोच नीं करै। थोड़ीक ताळ में फूलियो ई आयग्यो, कांई ठाह कठै सूं रासन लायो, पण दो थेला भरेड़ा। आप कैय सको, चोर’र ल्यायो होसी, और कांई!
“दिन फिर्या का नींवत, का पछै टाबरां रै पगफेरै रो असर हुयो, ठाह कोनी, पण दो-च्यार दिनां में ई फूलियो बदळग्यो। भलै दिनां में चेजै रो काम सीख्यो हो, अबै भागजोग सूं अेक चिणाई रो काम मिलग्यो। जरदो टाळ’र सै बेल छोड दिया। लड़ाइखोर फूलियो अबै टाबरां नै लाड लडावै, आथण पौर बजार ले जावै, कणाई कुल्फी, कणाई पिचका...।
“टाबर ई धीरै-धीरै खुलण लाग्या, कदेई सलीमियै कुरैसी सो लागतो, ओ सागी बाप होळै-होळै ठीक ई लागण लाग्यो। ईं सलमा रै अेक अबखाई जरूर ही, इण नै संतोस नांव अपरोगो लागतो, आ सोचती ‘सलमा’ केवण में कांई दोराई है पापा रै... नांव सूं कांई होवै। रज्जाक रै तो इण बात तो घणो फरक को पड़्यो नीं, बो तो आपनै ‘रोहित’ समझण लागग्यो। गळी-बास रा टाबर ई बां नै संतोस अर रोहित कैय’र बतळावता।
“अेक दिन सलमा, अरे नंई रे..., आ ई संतोस डरती सी बूझ्यो, ‘पापा.., म्हानै इस्कूल को लगावो नीं...?’ फूलियो इण नै केई ताळ तकावतो रैयो, पछै बोल्यो ‘देखस्यां दिखाण!’ कई दिनां तांई फूलियै कच्ची बस्ती रै सरकारू इस्कूल रा चक्कर काट्या, पण बठै मांगै कागद! बै कुण सम्भाळ्या..? तेली मोहल्लै रै इस्कूल पूग्यो तो ठाह लाग्यो कै, कागदां में तो टाबरां रा नांव सलमा अर रज्जाक है, गुलामनबी बाप है बांरो। ‘तेरी मा देवूं गुलिया... स्साळा, म्हारै टाबरां रो नांव अर धरम ई बदळ दियो।’ उण दिन फूलियै नै घणी रीस आई पण मर्यै अर मुकर्यां रो कांई बंटै! छेवट हैडमास्टर री राय सूं पुराणै रासनकारड रो हवालो देय’र टाबरां रा नूवां आधारकारड बणाया। संतोस पुत्री फूलचंद, अर सागी रोहित रो। आधारकारड री कोपी अर अेक ‘अेफेडेविट’ देय’र दोनूं टाबरां रो दाखिलो करा दियो, संतोस आठवीं में अर रोहितियो सातवीं में...। उण दिन फूलियो घणो राजी हो, उण नै लखायो, धरम अर नांव बदळनै रो आंटो बण सीख लियो है, बो जद चावै धरम बदळ सकै!
“तेली मोहल्लै सूं कच्ची बस्ती रो आंतरो घणो नीं है पण फूलियै रै डर सूं टाबर बिन्नै जावण री सोचता ई कोनी। सरूपोत में अेक-दो बिरियां संतोस आपरी पैलड़ी, नंई, नंई... दूजोड़ी दादी, कैवो तो म्हां कनै आई ही, पण बात रो ठाह लागते ई फूलियै इण फूलजान सलमा नै इसी जरकाई कै आ आपरो नांव भूलगी अर साचाणी संतोस बणगी। मार सूं भूत उतरता तो घणाई देख्या होवैला पण नांव उतरतां पैलपोत दिस्यो। बाप रो ओ रूप देख रोहितियै रै ई डर बैठग्यो। बां तेली मोहल्लै रै सा’र कर ई जावण री नीं तेवड़ी कदेई...।
“होणी सबनै पांती आवतो सुख अर दुख दोवूं बक्सावै। संतोस बारहवीं पास कर ली अर रोहित ग्यारहवीं में आ बड़्यो। फूलियै रो ई हाण ढळग्यो। उण री बेमार मा जावूं-जावूं ही, पण पोती नै धोरियै चढावण री हूंस में उणरी जान अटकेड़ी। संतोस रै ब्याव री बात तो भोत दिनां सूं चालै ही पण सिरै नीं चढ़ै। चढै ई कियां, मा भाजेड़ी, बाप जेळ भोगेड़ो, बैठण नै चजसर रो टापरो नीं, इज्जत रा सै छूंतका उतर्योड़ा, पछै थे ई बतावो कुण रिस्तो जोड़ै! अर जे कोई भूल्यो भटक्यो रिस्तो जोड़नै री हामल ई भरै तो दायजै सारू मूंह फाड़ै। ‘रीतसर तो काण कायदा निभाणा ई पड़सी सग्गा।’ जचै तो बात आगै बधावां, बात रो फेर कांई, कित्ती बधावो, पण सार के, उण घड़ी बेटी रै बाप रो तो मरणो ई होज्यै। फूलियै जेड़ै बाप रो तो ठौड़-ठौड़ होयो, बेटी जाई रे जगनाथ, उण रा हेठै आया हाथ।”
“छेवट अेक जिग्यां बात बैठगी, छोरो सावळ देख फूलियै दायजै अर काण कायदै री हामळ भर ली। ‘बरात री चोखी खातर होवणी चाइजै’ सग्गै री इण बात पर हंकारो भर, बण फुलरिया दूज रो ब्याव ई मांड दियो, पण ब्याव तो ब्याव होवै, रिस्तो जोड़ो उण दिन सूं ई खरचै री पोट त्यार...। फूलियै कनै कोई जोळ तो ही कोनी, हां दाळ-रोटी रो धाको धिकै हो पण ब्याव रो खरचो...। सोच्यो, इन्नै बिन्नै सूं हाथ उधारा ले’र काम काढस्यां पण अबखै बगत में उधारा देवै ई कुण...। रात नै नींद नीं अर दिन में चैन...। आखतै होयोड़ै अेकर तो सोच्यो, पाछो कठैई हाथ मार’र लावूं पण दूजै ई पल चेतै आयो कै जे झलग्या तो...! सो कीं चोतै हो जिसी नीं...। पण करै कांई!
“ज्यूं-ज्यूं दिन नेड़ै आवै, फूलियै री सांस फूलीजै। चेजै पर ई घड़ी-घड़ी इन्नै-बिन्नै फोन करै, लीलड़ी गावै। पण कोई नीं सुणै..! जद कोई नीं सुणै तो कैवै कै भगवान ई पार घालै। चेजै पर लाग्योड़ो तेली मोहल्लै रो मजूरियो गफूर, कई ताळ सूं फूलियै री बातां सुण रैयो हो, चाणचकै बोल्यो, ‘हैं... मिसतरीजी, थे पईसां खातर क्यूं कूको? थारै टाबरां सारू तो गुलियै रै अेक्सीडेंट रो क्लेम ई खासा आयो बतावै, छोरी रो ब्याव मांडो तो डोकरी सूं लेवो दिखाणी!’ ‘हैं... क्लेम... तन्नै कांई ठाह…? फूलियै इचरज सूं बाको बायो। ‘मोहल्लै में सब नै ठाह है, थारै टाबरां री तो अेफड्यां ई होयोड़ी है कोर्ट सूं... थान्नै ठाह कोनी..? डोकरी सकीना सूं जाय’र बूझो।’ ‘बूझस्यां दिखाणी...।’ फूलियो अणमणो होय’र बोल्यो।
“अबै उण रै नूंई अळोच सरू होगी, क्लेम... मिंवटै रै मौताणै सूं छोरी रो ब्याव, धूड़ है फूलिया! दूजी घड़ी लखायो, कै मरी तो साथै संतोसड़ी री मा ई ही, उण रो हक लेवण में तो कोई माड़ी बात कोनी। पण पाछो उण मुल्लै रै घरै कुण जावै, जठै कदेई टाबरां नै ई को जावण दिया नीं…। आखै दिन फूलियै रै अेक घरळ-मरळ चालती रैयी पण म्हारै घरै आवण री बात उण रै हियै ढुकी ई कोनी।”
डोकरी कीं ठमी अर पाणी पी’र भळै सरू होयी।
“बण जाण्यो कै क्लेम तो छोरी रै नांव रो है, आपां नै मिल ई जासी, सो ईं निरभागण नै चुपचपातो लेय’र थारै खन्नै आ पूग्यो, इंयां सोरै सांस ई थोड़ी मिलै क्लेम रा पइसा।”
“तो थान्नै किंकर ठाह लाग्यो?” नरेन्द्र डोकरी सूं बूझ्यो।
“म्हानै कुण बतावै हो, बो तो भलो होवै गफूरियै रो, म्हारै मोहल्लै रो मजूर है, अबार फूलियै रै साथै लाग्योड़ा है चेजै पर, आज दिनुगै ई बता’र गयो, ‘दादी, थारी पोती रो ब्याव है, त्यारी कर लै!’
“सलमा रो ब्याव...। सुणतां ई म्हारी आंख्यां भरीजगी, मतैई उण दिन री रील साम्ही चाल पड़ी जद इण रै दादै अल्लाबक्स बैंक सूं आय’र क्लेम रा अै कागदिया झलाया हा, बां गळगळै मूंडै सूं म्हानै कैयो हो, ‘सकीना, लै आं कागदां नै सावळ राख दे, सलमा रै ब्याव में काम आसी।’ म्हूं तो डाफाचूक होगी। लारलै दिनां नै चेतै कर-कर, घणी ताळ रोवती रैयी, जिण दिन गुलियो संतूड़ी नै भजा’र लायो, जिण दिन बांरी ल्हासां घर आई, जिण दिन फूलियो टाबरां नै धिंगाणै लेयग्यो, जिण दिन लाण छोरी बाप रै हाथां कूटीजी, जिण दिन धणी कबरां जाय’र सोयग्यो, कांई ठाह कित्ता दिन, कित्ती बातां...। अबै धणी री बात कियां रैवै, आ कागदां रा पईसा सलमा तांई कियां पूगै, ईं घरळ-मरळ में म्हूं हांफीजती, ठरड़ीजती फूलियै रै घरां गई। कीं डर ई लागै हो कै कुमाणस कठैई देय नीं काढै, धौळां में धूड़ घलतां कांई देर! पण पूग्यां ठाह लाग्यो कै बो तो पैलां ई सल्लूड़ी नै लेय’र आप खन्नै आयो हो, पइसा कढावण। म्हूं घणी सुणाई उणनै, ‘मरीलिया, म्हां खन्नै ई आ जावतो तो म्हूं किस्या धक्का देवै ही थान्नै, छोरी रा पइसा म्हूं कठै राखती, अल्ला नै जान को देवणी! पछै सलमा रै दादै रो कौल तो निभावणो ई हो म्हानै।’
“फेर बो कीं बोल्यो कोनी?” नरेन्द्र बूझ्यो।
“बोलण नै कीं होवै तो बोलै नीं, बीं कदे सुपनै में ई नीं सोच्यो होवैला कै इत्ती गाळ्यां खायां पछै ई म्हूं सलमा रो हक उण तांई पुगावूंली। बैरी धूण नीची घाल्यां म्हारै पगां आ पड़्यो, सारी गाथा सुणाई, सागी गुलियै दांई, जार-जार रोवण लाग्यो, पछै म्हूं किसी भाठै री ही, म्हारै ई चौसरा चाल पड़्या...।”
“अबै म्हूं इण छोरी नै लेय’र थां कनै आई हूं साब, आ छोरी संतोस ई म्हारी सलमा है... अै कागद है, देखो दिखाण।”
म्हूं कांई देखतो कागदां रो...! जीवता-जागता कागद म्हारै साम्ही बैठ्या है, बगत री मार सूं फाटेड़ा। कई बिरियां ‘वजह सबूत’ आदमी नीं, उण रा सैनाण होवै। म्हूं लाम्बी सांस लेय’र कागद नरेन्द्र नै दे दिया, “अंगूठा, साइन पूरा करा’र भुगतान कराय दो।”
डोकरी रै चैरै पर ‘संतोस’ रो चेळको हो, कदास ‘सलमा’ रै नांव रो…!