“ओहहो भाभी, म्हारै तो गोडा घणा दुखै है।” जमना दोई गोडा पकड़’र कुड्सी माथै बैठती थकी बोली| भाभी यानी नवीन री लाडी निर्मला। नवीन जमना रे छेटी रो भाई, दादी रै सगा में। पण नेह बहोत। इतरो कै पांतरै रो पांतरै जमना छाछ री कैटली भर’र खुद ई लै आवै, “लो भाभी, साव मोळी। म्हारै भाई नै पिलावो। आंख्यां तेज रैसी। आखो दाड़ो नी जाणै कांई लिखता रैवै। इण उमर में भी रेस्ट कोनी।”
भाभी कैटली साफ़ कर’र पाछी झैलावतां बोली, “थांरै भाई ने तो लिखण-पडण सूं ई फुरसत नी मिलै। रिटायरमेंट पछै तो घणा ई बिजी वैग्या है। हां, बाईजी म्हैं यूं पूंछूं कै अब भैरू री तबियत कींकर है?”
“रोयल में भरती है, ‘आईसी’ में। साबड़ै तो मरवा सारू एक कानी बरामदा में नखाय दीधौ हो म्हारै छोरा नै।”
‘साबड़ै’ यानी साब, जठै भैरू चौकीदारी करै हो। भैरू लारला कैई दिनां सूं मांदो हो। धाम-धाड़ो पैलवानी डील सफा सींकीयाई ग्यौ। साब फोन पै फोन कीधा। भैरू एक वेळा आ जा। बिटिया री बर्थ-डे पार्टी है। शरीर मानै वोई करजै पण आव उरो। नी गयो तो साहब कार ले’र आय धमक्या। घर वाळा नै ठाडा गरणा ओढ़ाया। कीं नी वैई, म्हारी जमैदारी। कोई भारी काम नी कराऊंला। दवा मंगवा देऊंला। आराम पड़ जासी। लै ग्या कार में बैठा’र।
मिनख पूछता कै भाई भैरू थारै यो कांई वैग्यो? किस्यो तो हो। जांच करवा। इलाज लै। नवीन भी कैई वेळा चेतायो। चाल, आपां अैमदाबाद चालां। वठै ठाबंद जांच करावां। भैरू गनारतो ई ज नी। उदैपर डाक्टर ने बतायो है मामा। कीं ख़ास बात नी है। टाईफाइड वगड़ी ग्यौ है। ठीक हो जासी। दवाई लैवूं हूं। नी जाणै क्यूं नवीन ने लखायो कै भैरू कीं छिपावै है।
भैरू सूं रैवणी नी आयो। साब रै अठै काम में लाग ग्यौ। नबळाई तो ही’ज। कोई भारी वसत उठाई अर पीठ वराणो जाय पड्यो, धड़ाम। नीचे कोई कठोर चीज आई गी ही, भाटो कै राम जाणै कांई। उठण री कोशिश कीधी तो उठणी नी आयो। चेताचूक वैग्यो हो। अठीनै मेहमान आवण रो टेम आय पूगौ। साब दो रिश्तेदारां ने इशारौ कीधौ। रिश्तेदार भैरू ने टांगाटोळी कर’र एक कानी बरामदा में लैजा’र सुलाय दियौ।
“पूरा चार कलाक तलक बेचेते पड़ियो रैयौ पण धन रै जाये साबड़े फरकी न नी भाळियौ। मौज-मस्ती में मसत। दरद रै मारै छोरा रौ जीव निकळै, उठण री करै तो उठणी नी आवै। कमर नीचे सैंग सुन्न। हाय जीया, हाय जीया करै।” जमना री आंख्यां सूं आंसू झरण लाग्या। अणदेख्यौ, अणचायौ दरसाव बीं रै सामै साकार व्हैग्यौ।
“कठैई मिली जाय तो बेटा ने धोवणा ई स धोवणा सूं धोई नाखूं। खुद नै टैम नी हो तो किणी और नै कै’र अैम्बुलेंस नी मंगाई सकतौ? वेळाछती मदद मिल जावती तो म्हारै छोरा रा ये हवाल नी होवता। होश आयां छोरै अबखै-हबखै मोबाइल काढ़’र बैन गीतूड़ी रै फोन लगायौ। गीता सीटी में ई ज है। दौड़ी आयी गाड़ी लै’र। ले जा’र रोयल में भरती करायौ, आईसी में।” आईसी मतलब आईसीयू।
आगले पांतरै जमना नी आय सकी। वणी सूं आगलै पांतरै आयी। छाछ रौ ठामड़ौ निर्मला नै दै’र कुड्सी माथै बैठ टेंका करती बोली, “अणा गोडां सूं तो म्हैं घणी परेसान हूँ। भैंस दुवती वेळा तो म्हारा पराण निकळै। रांड म्हारै ई जीव री भुक्खी है। किणी और ने तो अड़वा ई नी देवै।”
जमना साथै दोई बहुआं ई अस्पताळ में ही। रौनक टिपण बणा’र मोकळती। रौनक यानी जमना रै मोटका बेटा बंसी री बचैट बेटी। पूरी तीन पेटे आयी है। खावण-पीवण री पूरी छूट। दूध, घी, छाछ इंछा पड़ै वो खावो, मन पड़ै वो पैरो। कोई मनाई नी। तीनां री बढ़त एक जिसी। तीन ई उदैपर कोलेज में भणै। दोई छोटकी फर्स्ट ईयर में, मोटकी हीना फाइनल में। कदैई-कदैई जमना गोडा पकड़’र कैवती, ‘कांई करूं भाभी, छोरियां नै माथै चढ़ाय राखी है। अठी री सल्ली वठी नी मेलै। आखो दिन मोबाइल कान में रा कान में। सिकायत करूं तो बंस्यो कूटै। छोरियां धाड़-धाड़ रोवै, म्हनै बर्दाश्त नी व्है। आगो बाळ, ये ई तो दिन है लाण रे खेलण-कूदण रा।’ कदैई कैवती, ‘आज तो रौनक सब ठामड़ा माज्या, इतरा साफ़-सूफ के पूछो मती। न छोटकी आखा घर रो कचरौ काढ़ियौ, साव झाट-फटकार’र। मोटकी हीनुड़ी डेळ निकळगी। नाम-खाण ई दोरी नी व्है। खड़ी बोली में हम-तम, हम-तम करती रै, आधी वगत तो म्हनै ठा ई नी पड़ै।’
भाभी भैरू रा हाल-चाल पूछिया।
“कांई बताऊं भाभी। पीठ री सांखळ टूटगी है। बैठ नी सकै। सूतो ई रैवै। मोरा माय चाटा पड़वा लागा है। एक पग तो साव अकाम। दूजौ भी थोड़ो-थोड़ो ई हालै।”
“जांच में कांई आयौ?”
“कोई एक व्है तो बताऊं। हरणियौ है, पुराणो। म्हैं तो आज दिन तक इण बेमारी रो नाम ई नी सुणियौ। अर कैन्सर रो अंदेशो भी बतावै। डाक्टर कैवै क ‘बाप्सी’ कराणी पड़सी। ओपरेसण करदैवांला। तीन लाख रो खरचो बैठसी।” जमना रो गळो भरीजग्यो। आवाज़ जाणै भैंस रम्भाई व्है।
“पराईवेट में क्यूं लैग्या जीया? मरियोड़ा ने तो आईसीयू में भरती राखै। भैरू रै भामाशा कारड है। सरकारी में लै’र जावता। मोटा असपताळ में।”
“वो ई तो म्हैं भी कैवूं हूं। बेटी ऊंचे छाजे जा’र बैठी। भरती करायां पूठै पाछी आ’र भाई री वारिस ई नी पूछी। बड़की पोती हीना कितरी ई वेळा बडा डॉक्टर ने कैयो कै सर छुट्टी कर दो पण सुणै ई कोनी। कैवै इलाज चालै है। थोड़ो फरक है। आराम पड़ जासी। मिलवा दे कोनी। रुपिया मांगै, चाळी जमा कराओ, पचा जमा कराओ। सेवट में हीना रीना सूं फोन करायो। रीना कोलेज में सैंग छोरियां माथै अध्यक्ष है। बोली, छुट्टी कर दो वरना पांच सौ छोरियां ने ले’र आऊंली। बैंड बजाय दैवूंली। जद जा’र छुट्टी कीधी। तो भी सीतर हजार रो बिल पकड़ाई दीधौ। हीना पाछो फोन लगायौ रीना रै। दस छोरियां ने लै’र आई पूगी, भाभी। कांई छोरियां है म्हारा बाप। बराबर झपट कीधी डाक्टरां सूं। म्हारी हीनूड़ी भी सुणावा में पाछ नी राखी। सेवट में दस हजार रीपिया कम करणा पड़िया।”
जीया, मतळब जमना बाईजी री आवाज मर्दों जिसी भारी ही। हिमत भी विसी’ज। जद कदैई हिमत जबाव दैवण ढूकती तो वा निर्मला भाभी कनै आ’र आपरा अंतस ने उलीचती। पीहर छूटां तो जुग बीतग्या। जद दोई भाई मतो कर पेंशन हड़पण सारू बापू नै काया कर कर’र मौत रे मूंडै में धकेल दीधा न तापछै माई ने घर बायरी कर नाखी तो जमना बाई रो मन फाट ग्यौ। वो दिन अर आज रौ दिन जमना नी तो भायां सूं राखी बंधाई अर नी बां नै भाई दूज पै तेवड़िया। बस नवीन ई उण रो भाई अर निर्मला ई उण री भाभी। परेम नी तो सगा भी गैर अर परेम व्है तो गैर भी काळजा री कोर। जमना ने सासरा में ई कुण सो सुख मिल्यौ! जद दुःख उण रै हिया में हिलोरा लैतो-लैतो छळकण ढूकतो तो कैवती, ‘भाभी, इण घर में म्हैं राई रै दाणा जित्ती ई साता कोनी देखी। सास भी कूटती अर धणी भी। रात-दिन काम में खटती रैवती तो भी ताना। म्हैं कैवती थैं तो मत मारो। परण’र लाया हो। सौ मिनखां में हाथ थाम्यो है। मारो तो भी सब रै सामी गाळ्यां तो मत काढ़ौ। वे कैवता, क्यूं नी मारूं, गाळ्यां क्यूं नी काढूं? तू म्हारी लुगाई है। जो चावै सो करूं। कमाई करूं हूं, थारौ अर थारै टाबरां रौ पेट भरूं हूं। भाभी, बळणी रै मारै म्हारै मूंडा सूं निकळ ग्यौ, म्हैं नी कमाऊँ तो म्हनै अडाणै मेल’र रिप्या लै आओ। अेक वेळा तो म्हैं अमूझ खा’र नवा कुआं में कूद पड़ी। आज तो मरणो ई ज है। भैरू नैनो हो। दाबड़ै में बैठाण दीधौ। पाणी कम हो। हतंग री हतंग उतर गी। पग कीचड़ में धंस ग्या। दाबड़ै सूं झांक’र भैरू चीवळियां करै, जीया-जीया म्हैं भी आऊं। वो तो भलो वो देवा री बहू रो कै आ’र पकड़ लीधौ। भाभी बीं दिन म्हैं दोई मर जावता तो आज यो विखो नी देखणौ पड़तो। भैरू री हालत म्हारै सूं देखी नी जावै।’ जमना री आवाज टूट’र काचर-काचर व्है गी। मरदानी री हिमत जवाब दैवण लागी।
सरकारी मोटा असपताळ में सैंग जांचां पाछी व्ही। हरणिया वाळी बात सांची ही। कमर री हाड़की तो टूटी ई ज। अेक जगा अन्दरूणी गांठ भी आयी। नमूनो लीधो है। ‘बाप्सी’ व्हैगा। भगवान करै कैंसर नी व्है। जमना छत कानी ताकती वरवरी।
जमना रो एक पग गांव में तो दूजौ जनरल अस्पताळ रै वार्ड नंबर आठ में। कदी बस में जावती तो कदी बड़का बंसी री बाइक पै। नवीन अर निर्मला भी ग्या एक दिन। कैंसर वार्ड कांई हो जाणै नरक रो दरूजौ। किणी रै गळा रौ कैंसर, किणी रै आंत में गांठ तो किणी रै दिमाग रौ ट्यूमर। सगळा मरीज परीसान हाल। ग़मगीन। ऊंडा उतरियोड़ा मानो जूण री लाइस्ट घड़ियां गिणै हा। कोई-कोई घरवाळां ने भोळावण देवै हा। दो-तीन तो मुळकै भी हा। ये वे जीवट वाळा मरीज हा जिणां होणी ने मंजूर कर लीधी ही। भैरू भी यां मेंलो ई हो। जमना भैरू रा पग दबावै ही। माथो भाभी री गोद में। निर्मला ने देख’र भैरू री लाड़ी सोनू रो मूंडो छूटी ग्यो। भूंभाड़ा मारण ढूकी। भैरू चिरळायो, ‘इण नै बारै ले जाओ। मरियो नी हूं, हाल तक जीवतौ हूं।’ भैरू री आवाज में वा ई ज तेजी ही। गांव में भी वो सोनू नै इयां ई डांटतो रैवतौ हो।
आगले पांतरै जद छाछ बिलोवण सारू जमना बाईजी बरफ लैवण आई तो हमैस ज्यूं दुःख री गांठड़ी खोल’र बैठगी, “कांई बताऊं निरमा भाभी, इण घर रौ वसैख ई इस्यौ है क धणी-लुगाई रै कदी बणै ई ज नी। म्हारी सास रै डोकरो खेत में ई सैंग रै सामै बड़ाक-बड़ाक बड़िंगा पाड़ देवतौ, बळद हाकण री आर सूं। म्हारी हालत तो थैं जाणो ई हो। बड़की थोड़ी आकरी है। बंसी ने घणो नी धारै। तो भी खड़बड़ाटो आठ ई पोर चालै। सोनू तो भैरू ने कदी पसंद नी आई। राम जाणै अैड़ी कांई चुभी है। पांच बरस तक तो कूख ई नी फळी। कैतान बार कैयो कै जांच कराओ पण भैरू त्यार ई ज नी व्है। कैवै क जांच-वांच सब फालतू री बातां है। टाबर-टींगर तो भगवान रै हाथ में है। सोनू छाने-छाने जांच करवा लीधी तो बापड़ी रा हाड़का धोई नाख्या। जद सूं कानू जलमियो है, भैरू उण रै हाथ रा रोटा खाणा छोड़ी दीधा है। थांनै कांई कैवूं भाभी, या जांघ उघाड़ूं तो ई लाजै न या उघाड़ूं तो ई लाजै। म्हारै तो किस्मत में बळणी ई बळणी लिखी है।”
“साब आयो हो कै असपताळ में मिलण सारू?” निर्मला बात टोळावा पूछियौ।
“दोई मिनख आया। घणा पछतावै हा। मेडम री आंख्यां सूं तो टप-टप आंसू टपकै। कैवण लागी कै भैरू म्हारै भाई ज्यूं है। राखी बांधूं हूं, पूछ लो भलैई। घणी सेवा कीधी है इण म्हांरी। साब रो नूर भी उतरग्यो। बोल्या, म्हैं रिश्तेदारां नै अैम्बुलेंस मंगा’र भैरू नै अस्पाताळ पोंहचावण री भोळावण दीधी ही पण वे लापरवाही बरत ग्या। साब इलाज सारू पांच हजार रिपिया दै’र ग्या। दोई देवता मिनख है।”
जमना रे चैरा पै सनैक उजास पसरियो पण दूजै ई पळ काळी कळायण उमड़ आई, ‘देखो तो भाभी, काल गैरियो मिलणै आयौ। मिलणै कांई, चाशनी जांचण आयौ।”
“कांई कैवै हो?” निर्मला पूछियौ।
“इणरी खाटली बांधूं, कैवै हो कै भैरू रै पांती रा खेत फारग कर दो। कैंसर है। अठै सरकारी-फरकारी में कीं वैणो-जावणौ नी है। अैमदाबाद लै चालौ। म्हैं आऊं साथै। दस लाख रो खरचौ है। भींचू-भींचू मत करौ। काल री तारीख में पीसा री वैवस्था नी करूं तो म्हारो नाम गैरीलाल नी। जमीन वत्ती है कैबेटो?”
“पछै आप कांई जबाव दीधौ?”
“भाभी, जमीन बैचणी सोरी है पण कानू रो भविस्य भी तो देखणो पड़ै। किण रै कोळै जा’र बैठेगा? इलाज रै वास्तै तो राठौड़ साब कै दियो है कै जीया, अमेरीका भी ले जाओ तो कैंसर रो इलाज यो ई है। अठै आपनै भामाशा कारड रो फायदो मिल जासी। बढ़िया सूं बढ़िया इलाज री म्हारी गारंटी। जूण तो ऊपर वाळा रै हाथ में है, म्हैं लोग तो कोशिश कर सकां। म्हनै थावस बंधावता रैवै। जीया, जीया कैवतां वां रो मूंडो सूखै। आपरै बेटा रै कीं नी बिगड़सी। आप घरां पधारौ। अठै लाड़ियां न पोतियां है। आज रै जमाना में राठौड़ साब जिसा डाक्टर दीवो लै’र हेरौ तो भी नी मिलै। अर सुणो भाभी”, जमना छाती ठबकारी, “पीसा लागै तो ई चिंता री कीं बात नी। गैणा बैच नाखूंली पण पाछ नी खाऊंली। जमीं तो तीन भव में नी बैचूं।”
आगला सात दिन तक जमना बाईजी नी आया। भैरू नै कीमो वास्तै लै’र गया हा। अब अकवीस दिन केड़ै लेजाणो है। खुद थाल नी फिर सकै। चाटा पड़ ग्या है, बेड सोर। डाक्टर राय दीधी कै पाणी वाळा गदळा माथै सुलावौ। पण पाणी वाळौ चभै घणो। ठाडौ भी रैवै। अब वायरा वाळौ लाया। हीना कोलेज री सैलियां साथै घूम-घूम’र जाणकारी लेवै कै कोई रीढ़ री सांखळ जोडण वाळो ठाबंद डाक्टर मिल जाय। अंकल एक बैर चालण लाग जावै तो वां रै मन में विस्वास जागै। छोरी घणी चिंता करै। एक पराइवेट अस्पताळ रै डाक्टर हां भरी है। कैवै कै चालण री बात तो नी करूं, बैठण लायक कर दैवुंला। पचास हजार खरचो आसी। भाभी, बैठण लायक भी व्है जा तो आधो गढ़ जीत्या। जीया री आंख्यां में आस री जोत जागी।
“ये लो भाभी सोने री बजंटी। तीन तोला री है। आधी वैवस्था तो महैं कीधी है। पचीस आप कर दो।”
जमना बजंटी आगे कीधी। निर्मला दो पग पाछै सरकती नवीन नै आवाज लगायी, “देखो तो, बाई जी यो कांई करै है?”
नवीन सैंग सुण लीधौ हो। यूं तो वे भरत ओळा रौ ‘घुळगांठ’ भणै हा पण वां रौ एक कान जमना कानी हो। पन्नौ मोड़’र उठ्या अर अलमारी सूं पचीस हजार निकाळ’र लाया, “लै जावो जमना, अर या बजंटी भी। म्हांनै पराया क्यूं समझौ हो।”
जमना पगां पड़गी, “आप सगा भाई सूं भी बत्ता हो।”
रीढ़ रो ओपरेसण तो हुयो पण इण सूं दूजो पग भी अकाम व्हैग्यो। अब दोई पग रबड़ ज्यूं अठीनूं वठी गड़बड़ै। घर वाळा बाट जोवता रैग्या कै भैरू अबै उठै, अबै उठै पण भैरू तो उठै न उठावै। उलटौ तन पै एक घाव फैरू बधग्यौ।
नवीन सुबै शाम घूमण नै निकळै। जमना बैन रो घर मारग में ई पड़ै। घर रै जीमणी आड़ी बाड़ौ जठै दो भैंस्यां, दो गायां अर तीन बाछा हा। जमना वठैई काम करती मिल जावती। ढांडा-चौपा रा कितरा ई काम हा। दूध दूवणो, बांटौ त्यार करणौ, गोबर भैळा करणा, चारौ नाखणौ, पाणी पावणौ, गीलूड़ा चूंटणा, दवाई लगावणी, गोबर थापणा। अतराक में घर री खिड़की सूं मरियल-सो हैलो पांख फड़फड़ातो निसरतो, ‘जीया, जीया।’जमना नाहटी जावती, ‘छोरा नै थाल फैरणी है।’ कदैई जमना खुश निजर आवती, कैवती आज छोरै धाप’र थूली खाई है। तो कदैई चैरो बुझ्योड़ो, ‘आखी रात छोरा ने दस्तां लागी। कीमा केड़ै हालत घणी बिगड़ जावै।’ जमना रै चैरा रा रंग भैरू री सेहत लारै बदळता रैवै। नवीन कदी-कदी भैरू सूं भी मिल आवता। तन सूख’र कांटै व्हैग्यौ। बदबू आवण लागी ही। जमना रै अलावा सैंग जणा नजीक आवणौ कम कर दीधौ। डाक्टर अब कीमो करण सूं मना कर दियौ। तो भी जमना आस री डोर नी छोड़ी, पूछती, ‘दादाभाई, म्हारौ भैरू सावळ तो व्है जावैला?’ पछै निसांस नाखती, ‘कांई होसी म्हारै भेरू रौ! इब तो राठौड़ साब भी कै दीधौ है के घरां ई सेवा करो।’ जमना रे आंख्यां रा आंसू सूख चुक्या हा, वा आपरै गोडा रो दरद भी भूलगी। जीजाजी, अर्थात जमना रै पतिदेव नै तो कीं लैणो-दैणो ई नी हो। हरमेस गुमसुम रैवता। जद सूं माताजी वाळी मांदगी व्ही है साव सुस्त पड़ग्या है। जीमणा पग पै असरहै। कम बोलै, कम चालै। वां री पेंशन सूं घर चालै पण अब गिणावै नी।
आज जीया री आंख्यां रा पपोटा सूज्योड़ा हा। निरमा पूछ्यो तो बोली, “भाभी, तीन दिनां सूं सुती नी हूं। जीया म्हारै दरद घणो व्है थाल फैरो, जीया अठी बळवा लागौ पाछी थाल फैरो। हर पन्दरा मिलट में थाल फैरणी पड़ै। आंख मिलवा लागै न ‘जीया, जीया’ री पकार सूं नींद उड़ी जा। भाभी, भैरू री तिरसणा नी खमावै। छाती में भी गांठ बणगी है। डील सूखी न संटी व्हैग्यो। घणौ ई ज दुखी है म्हारौ छोरो। भगवान संभाळ लै तो चोखो, लाण री आत्मा तो सुख पावै। अब सोनू नजीक आवै तो भी धुरकारा नी दैवै। आज परभात पैली कानू नै बुला’र माथै हाथ फैरियो। बोल्यो, ‘खूब भणजै बेटा। थारो कीं दोष नी है रै। सैंग करमां रा लैखा है।’ पैली पोत कानू नै बेटो कै’र बतळायो। सोनू ऊभी धाड़-धाड़ रोवै। म्हैं कांई करूं, थैंई बतावो भाभी?” जमना रो मूंडो छूटी ग्यौ।
“जीया, जिण रै कोई नी है उण रै ऊपर वाळो है”, निरमा थावस बंधावती बोली, “गवालियर कनै एक हड़ुमानजी है। कैंसर अर टूटी हाड़की रो खास इलाज करै। मिनख बांनै डाक्टर हड़ुमान कैवै। म्हैं काल इज नेट पै देख्यौ है। पूछ लो थांरै भाई नै। एक बैर जा’र पटांतरौ। वठै तो कीं नी लागै पण अैंबुलेंस वगैरा रो खर्च तो आसी।”
जमना री बुझ्योड़ी आंख्यां में वीजळी चमकी। बोली, “दस हजार खर्च व्हैगा तो भी कीं फिकर नी।घी बेच’र भेळा कर राख्या है, म्हारै अलावा कोई नी जाणै। काल ईज चालां परा। थां दोई नै आवणौ पड़सी।”
इतराक में रौनक बुलावा आयी, “जीया, घरै चालो।”
‘जाऊं भाभी, थाल फैरणी है। कैटली पछै ले जाऊंली।’
थोड़ीक जैज में तो जीया रो कुरळाटौ सुणाई दियौ। निर्मला है ज्यूं री ज्यूं नाहटी। लारै, लारै नवीन भी।