ऊगतै सूरज नारायण नै नमस्कार कर’र सूंडियो शिकार सारू रोही कानी बहीर हुयो। उणरै अेक हाथ में सुगणी सांढ री मौरी ही बीजै में पाळतू हिरणी सूवटी री लांबी रास, जिणरो अगलो नखो अराव री दांई उणरै हाथ में लटकै हो। सांढ रा पग दाब्यां शिकारी कुत्तो शेरू चालै हो। सांढ माथै पलाण हो अर पलाण री घोड़ी सूं लेय’र लारलै पाखळियै तांई पसर्‌योड़ी पतळी जेवड़ी सूं उणरी सतगांठी लाठी, लोटड़ी अर बोरो बंध्योड़ो हो। उणरै खांधै देसी लमछड़ लटकै ही। लमछड़ रै मूंढै आगै हिरणसिग्यां-सी दो नैनी-नैनी फोग री लकड़्यां लगायोड़ी ही। शिकार करती वेळा आं बणावटी हिरसिंग्यां रो उणनै उत्तोई सहारो हो जित्तो बोजै-बांठकै लारै लुक’र रास ढीली छोड्यां पछै सूवटी रो।

सूवटी उणरी मददगार हिरणी ही। बरसां पैली बापू सूवटी री मां रो शिकार कर्‌यो तद सूवटी नैनी-सीक ही। बापू तो इणनै मारणी चावै हा पण सूंडियो इण अबोल जीव रै गळबाथ घाल’र बैठग्यो। ठाह नीं बा दया ही, करुणा ही का की और! उण दिन सूं लेय’र आज तांई सूंडियो अर सूवटी अेक-दूजै रै जीव री जड़ी—दो डील अर अेक प्राण!

जिण बगत बोजै-बांठकै लारै लुक्योड़ो सूंडियो सूवटी री रास ढीली छोडतो तद ढील मिलतां पाण नखराळी नार ज्यूं टमरका करती बा उणरै इणगी-उणगी कुदड़का करती कदैई चरती तो कदैई मूंढो ऊंचो कर परी छुंहूंऽऽ-छूंहूं ऽऽ करती। अणसैंधा हिरण उणसूं सैंध काढण सारू ज्यूं-ज्यूं उणरी सांम्है आवता, बा नुंवा-नुंवा नखरा दिखावती, बांनै आपरै नेड़ा आवण खातर नूंतती। उण बगत सूंडियै रो काळजो धक् धक् करतो। बो पेट पलाणियां सिरकतो-सिरकतो सावचेती सूं निसाणो साधतो। लमछड़ रै सींगा मांय सूं सीध बांध’र छोड्योड़ो छर्रो पाधरो जाय’र शिकार रो डील झुळसा नांखतो। बो घायल शिकार नै आपरी सतगांठी लाठी सूं जरका-जरका’र मार नांखतो।

सूंडियो लमछड़ सूं गोळी नीं चलाय’र हाथ सूं बणायोड़ै दारू सूं मियां-मियां कांकरा का गुवार-दाणा रो छर्रों छोडतो। छर्रों लागतां शिकार झुळसतो। झुळस’र पड़्यै शिकार नै बो डांगों सूं जरकावतो। शिकार रा प्राण निकळयां उणरै जीव में जीव आवतो। उण जीव री दाझ सूं वत्ती उणरी काया कळपती रैवती।

उण माथै माताजी री मोकळी मया ही। उणरो निसाणो कदैई खाली नीं जावतो। जे निसाणो खाली जावै अर झुळस्योड़ो शिकार हाथै नीं आवै तो उणरो अेक अरथ हुवै— माताजी रो दोस! जिणरै निस्तार सारू उणरै कबीले रा लोग माताजी री जोत सांम्है आखी रात पछतावो करै, माथो पीटै अर मायां सूं माफी मांगै।

लारला दो दिनां सूं सूंडियै रै धकै कोई शिकार नीं आयो। अैड़ो तो पैलां कदैई नीं हुयो। डेरै लुगाई-टाबर भूख सूं कळपै। कबीलैवाळा उण माथै तीख बांध राही है। बो कांई करै? अवस काळी माता का करणी माता रो कोप है। जीण अर सैडळ रो दोस हुय सकै। इण धोरा धरती माथै अै च्यार तो मायां है बनबावरियां री! आं टाळ बीजो कुण जिको रूठै का तूठै।

जे आज शिकार लाध जावै तो बो रात नै च्यारूं मावां री धोक देवैला। जोत जगावैला। प्रसाद बांटैला। कबीलै रै बीजा डेरां में प्रसाद पुगावैला। लेवै भलांई नीं लेवै, उणारी मरजी। प्रसाद में कैड़ी आंट? उण मन-ई-मन च्यारूं सगत्यां नै सिंवरी अर सूरजनारायण कानी जोयो। सूरज ऊंचो आयो जित्तै जोगी जोड़ैं री पाळ आयगी। अदाणो उजाड़ इण सूं आगलो है। आज अवस कोई शिकार चरतो लाधैला। इण विचार सूं उणरै पगां में फुरती आयगी।

अदाणै में बड़तां उण सांढ जैकाई। समान उतार्‌यो। पलाण अळगी मेली। लोटड़ी सूं पाणी पीयो। पछै सांढ नै उठाय’र उणरै पगां में दावणो देय’र अड़ाव में चरण नै छोड दी। तद तांई शेरू पड़ाळ माथै जाय’र कुका-रोळो शुरू करो। पण उण रै बरजतां बो मून घार’र खींप री जड़ां कनै घुरी बणाय’र बिसांई लेवण ढूक्यो।

उण हेत समेत सुवटी नै निरखी। उणरा मौर थपक्या। रास पकड़’र पडाळ कानी चाल्यो। पडाळ री टोकी माथै ऊभो अबढो फोग बायरै रै समचै लुळ-लुळ’र उणनै झाला देय’र बुलावै हो। उण फोग रै औलै सूं झांक’र सांम्है जोयो तो सूंडियै रै हरख रो छेह नीं हो। सांम्है हिरणां री डार-री-डार चरती निगै आई। बो झट गोडी ढाळ’र उणी फोग लारै मोरचो मांड्यो। सुवटी री रास ढीली छोडी। अवस आज माताजो मंड में आया है। मां री परतख महर तो है आ। मां नै भूल्यां कियां सरै। बो फेरूं सगत्यां नै सिवरण लाग्यौ।

ढील मिलतां सूवटी छुंहूंऽऽ छुंहूंऽऽ कर्‌यो। डैर में चरता हिरण कान खड़्या कर’र उण सांम्ही जोयो। सूवटी तो सूंडियै रै चौफेर चकारा देवती, टमरका करती कदैई चरती अर कदैई छुंहूंऽ-छुंहूंऽ कर’र अणसैंधा हिरणा नै नेड़ै आवण रो नूंतो देवण लागी। उणरी सैन रै समचै टग-टंग पग धरता अेक-लारै-अेक सात हिरण उणरै पाखती आवण लाग्या। आवतां-आवतां कोई पचासेक पांवडा आंतरै बै सातूं ढबग्या। स्यात लमछड़ रा सींग देख’र बै गतागम में पजग्या हुवैला—सूंडियो विचार कर्‌यो अर अेक खिण गमाया बिना उण लमछड़ रो घोड़ो दबाणै री तैयारी करी। कांई ठाह कांई हुयो, सूवटी जोर सूं छियुंक-छीं! छियुक-छीं! आवाज करी अर सातूं हिरण हवा सूं बंतळ करता चौकड़ सांध ली।

सूवटी री इण हरकत माथै सूंडियै नै रीस तो घणी आई पण उण ध्यान नीं डिगायो। बात उणसूं अछानी नीं ही कै हिरण खिणेक ठैर परो लारै मुड़ अवस देखै। बो निसाणो साधतो रह्यो। ज्यूं हिरण ठैर परा मुड़’र देख्यो त्यूं उण घोड़ो दाब दियो। लमछड़ रो घोड़ो दबतां लारलो हिरण धरती माथै चित! छर्रो अवस उणरै लारलै हांजै में लाग्यो है—मन मन सोचतो सूंडियो लाठी लियां ताचक्यो। बापड़ो जीव दुख पावै! उणनै प्राण मुगत कर परो सूंडियो सोरप री सांस लेवैलो... जीव नै तड़फतां देख’र उणरो काळजो सदांई कळपै! पण कांई? उणरै नेड़ै पूगतां-पूगतां बो हिरण तो तीन पगां सूं छलांगां भरतो भाग छूट्यो। आगै-आगै हिरण अर लारै-लारै सूंडियो...। भाजता-न्हासता दोनूं पनजी री बाजरी में बढ़ै लाग्या। पनजी बाजरै रा सिट्टा तोड़ै हा। दड़बड़ाट सुण’र उणा सींव कानी जोयो। सूंडियै माथै निजर पड़तां बै तो राता-पीळा हुयग्या। बठै सूं दाकल मारी—ठैरज्या! मांय बड़ग्यो तो खुरडा बाढ नांखूलो।

अबै बै उणरै नेड़ै पूगग्या।

पनजी री काठी देख’र सूंडियै रो चेहरो पीळो पड़ग्यो। थरणा कांपण लाग्या। पण तो उण पनजी आगै अरदास करी—भाईजी! बापड़ो जिनावर दुख पावै... म्हारो काळजो कळपै... उणरो छुटकारो हुयां म्हारै जीव-में-जीव आसी....।

सुंडियै री बात सुण’र पनजी नै उण माथै घणी रीस आई। बै उण री लुगदी करण लाग्या। गोडा लकड़ी देय’र पड़ाळ माथै पटक्यो अर घृणा सूं थूकता बोल्या—पैली तो भोळै जिनावरां ने घायल करै, पछै दया दिखावण रो सांग करै। दुष्ट कठेई रा! इणरा रह्या-सह्या प्राण लेसी कांई? तो बता, म्हारै खेत में पग धरणे री थारी हिम्मत कियां हुई? जी मे तो आवै कै थारी टांगां तोड़ नांखू। कुजीव कठैई रो!

—भाईजी! म्हनै भलांई मार नांखो। पण बापड़ै जीव माथै दया करो। बो तड़फड़ावै। उणरी दाझ म्हारै सूं कोनी देखीजै। अेकर म्हनै छोडो तो म्हैं उणने कष्ट सूं छुटकारो दिरावूं। पछै भलांई थे म्हनै मारज्यो।... थांरै दाय आवै ज्यूं कर्‌या भलांई। पण अबार अेकर म्हनै उण घायल हिरण तांई जावण देवो... थांरो अहसान कदैई नीं भूलूंलो...। कैवतां-कैवतां सूंडियो सांपरतै रोवण ढूक्यो पण पनजी नीं पसीज्या। उणा सूंडियै नै खारी मींट सूं देख्यो अर सिट्टा तोड़ण खातर पाछा गया परा।

धोळो दोपारौ। तावड़े री लाय।

खेत रै सींवाड़ै गोडा लकड़ी में पज्योड़ो सूंडियो भळै माताजी नै सिंवरण लाग्यो। उणनै लखायो कै माताजी उणरी अरदास सुण लीनी। आपरै ऊंठ माथै किस्तूरो मारग-मारग पनजी रै खेत रै मांय सूं जावै हो। सूंडियै री आपबीती उणरै डेरां तांई पूगगी। किस्तूरो पनजी नै बतायो कै दस-बारै जणा हाथां में भाला-बरछ्यां लियां डेरै सूं बहीर हुय’र इन्नै आवै है। सूंडियै नै छोड्यां संकट टळैला। पनजी किस्तूरै नै बठैई रोक लियो। उणरै ऊंठ नै खेजड़ी सूं बांध’र दोनूं सूंडियै कनै पूग्या।

सूंडियै नै आपर प्राणा री परवाह कोनी ही। उणरै हिवड़ै में घायल हिरण री पीड़ पसवाड़ा फोरै ही। आंख्यां सूं चौसारा चालै हा। आंसू रेत में रळ-रळ अलोप हुवै हा। उणरै काळजै तो अेक पीड़—बापड़ो हिरण कळपतो हुवैला...!

पनजी अर किस्तूरो उणरी गोडा लकड़ी खोलतां उणनै सैंग बातां बताई। बात डेरै तांई पूगगी, बात उणनै आछी नीं लागी। बो फेरूं बिरगरायो—भाईजी! डेरैवाळा लोग अठै नीं आवै तो म्हैं आपरो अहसान आखी उमर मानूं... म्हारी उणा सूं बोलचाल कोनी। जे बै म्हनै छुडाय’र लेयग्या तो म्हारै उमर भर खातर गिरै हुवैला। बै दिनूगै-सिंझ्या मोसा मारैला कै थनै म्हां छुडायो। थे उणानै समझा दीज्यो कै म्हारै सागै किणी भांत री बदसलूकी कोनी हुई। आपरी मोकळी मया हुवैला...।

पनजी उणरै मूंढै सांम्है देखता रह्या।

—है तो छोटै मूंढै बडी बात... पण इत्ती अरज और है सा कै बै लोग आवता दीसै जणा आप म्हनै पाणी पावो... बीड़ी पावो... म्हारो मान बधावो तो...तो...। कैवतां-कैवतां उणरी आंख्यां छलीजण लागी।

सुंडियै रो शेरू उणरै पाखती आयग्यो हो। बो कुंऽ-कुंऽ कर’र पूंछ हिलावतो उणरै पगों में लटापोरियां करै हो। किस्तूरो डेरै सूं पाणी लावण खातर टुर बहीर हुयो। पनजी नै सूंडियै रै गाभां सूं सूग आवै ही। बै उण कानी देखणो नीं चावै हा। पण उणारी निजरां मतैई उणरै फाट्योड़ै मैलै गाभां में उळझै ही। किस्तूरो पाणी लेय आयो। सूंडियो पाणी पीवण ढूक्यो। उणी बगत आंतरै ऊभी सुगणी अर सूवटी दीठी। उणारा कान खड़्या हा। डेरै रा लोग बां तांई पूगग्या हा। पनजी रै खेत री सींव सूं अदाणै उजाड़ री पडाळ निरवाळी निगै आवै ही।

बां कानी जोवतां पनजी, किस्तूरो अर सूंडियो आपसरी में घणो हेत दिखावता हवा में हाथ हिलाय-हिलाय’र हथाई करण लाग्या। बीच-बीच में सूंडियो शेरू माथै हाथ फेरतो जावै हो। डेरै रा लोग खिलको अळगै सूं देखता आपस री में बंतळ करता रह्या। सुण्यो तो कीं और हो पण अठै तो...। बै सैंग बठै सूं पाछा मुड़ग्या।

पाछा जावता डेरावाळां री पीठ देख’र सूंडियै नै लाग्यो जाणै उणरो स्सो थाकैलो उतरग्यो है....बै सैंग फेरूं हारग्या है... उणरी हार्‌योड़ो हुवतां थकांई फेरूं जीत हुई है। माताजी री मया माथै उणरी आस्था फेरूं पुख्ता हुयगी। कोई माताजी बापड़ै उण जीव रो दुख दूर नीं करैला? इण सवाल रै सागै सूंडियै रै चेहरै माथै उदासी रा बादळ छीयां करण लाग्या। बाजरी में अलोप हिरण उणरी आंख्यां सांम्है आय’र ऊभग्यो। अबै उणसूं रहीज्यो कोनी। पनजी अर किस्तूरै सांम्है हाथ जोड़तां उण फेरूं अरज कीवी— भाईजी! कीं तो दया करो। बापड़ो जिनावर दुख पावै!

स्रोत
  • पोथी : उकरास ,
  • सिरजक : मदन सैनी ,
  • संपादक : सांवर दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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