गोपी म्हाराज री ऊमर पचास सूं अेकाध कम ही हुसी, तोही सिर धोळो हुयै नैं दस बरस हुग्या हुसी, अबार तो केस ही रिपियै में आठाना बच्या है, अर बत्तीसी बापड़ी मुस्कल सूं च्याराना, है बा ही भागरी हालै है। मूंढै पर बधता सळ, अर सळां में सांसो। आंख्यां में गूगळापण अर बां में ऊंचा आंवता चिंता रा लूगा तांतण। साढी पांचफुटो ओ आदमी, गोडां सूं दो-दो आंगळ नीचै कोरपाण रो जाडो धोतियो राखै। दोवटी रो कुड़तियो, फीडी जूत्यां, अर माथो प्राय उघाड़ो, छठ-बारै मास आ अेक ही पौसाक। चनण रो टीको लिलाड़ में हरदम राखै, ओ ईं खातर कै कण ही पकड़ा राखी है कै बामण रो लिलाड़ सूनो नहीं चाईजै।
आवजाव घणखरो बाणियां रै घरां में है। आधी दरजण छोर्यां, दो अेक भोळी सी, छोरा च्यार, दो कीं कामल, मार्यां-कूटयां कीं ठाठा मजूरी करै इसा, अेक, न स्याणों न गूंगो, दाय आवै तो कीं करै, नहीं तो कठै ही चरभर खेलतो सिंझ्या तांईं उठण रो नांव हीं को लै नीं। छेकड़लो है, अधस्यांनियो अर रूळेट। बीड़ी तो सगळा ही पियै पण ओ छोटियो बीड़ी बुझण ही को दै नीं, चिलम हाथ लागगी तो, बीं नैं ठंडी हुई लोगां ही देखी। लुगाई बाणियां में दाळ दळियो अर हांती-पोळी करती फिरै। कठै सूं ही, ठंडो साग, दो फलका, का दो डळी मीठै री, घर में कीं न कीं ले’र बड़ै। सिरावणो, दोपारो, कीं न कीं चाबो-भूको अगलै रै घरे ही, बिना मांग्यां देवै तो अगलै री मजैदारी, नहीं जद मांग’र लेणो तो दीखै ही है। घर री थाळी पर तो बार-तिंवार ही बैठण री जी में को आवै नीं।
छोर्यां दो क्वांरी है अर दो ही छोरा। छोर्यां नै टैम आयां धोरियै चढ़ाणी ही पड़सी, छोरां रै फेरां री रात कोई लिख्योड़ी ही है, तो बात न्यारी है, नहीं जद कमाई अर उठबैठ देखतां मुसकल है। छोर्यां रै ब्याव में ओजूं तो घणो तांण को आयो नी, बिणियाण्यां में ठाकुरजी बड़ग्यो, डौळ सारू मूंछ आळो चावळ रैयग्यो। आगै-आगै गोरख जागै, गांव पट्टै, कोई घालै कोई नटै, बामण रै बेटै नैं मांगण रो क्यां रो मैंणो।
गोपी म्हाराज खटण में आधी गिणै न पाछली, जद कठै ही जा’र गिस्त रो गाडो, चालै तो क्यांरो, घीसीजै – बडो दोरो। म्हाराज बवार में कीं भोळो पण पइसै रै मुद्दै में बडो सावचेत। सावचेत ओ ही, कै पइसो हाथ में नहीं आवै जित्तै कोई बात नीं पण आयां पछै ताळो तोड़नो सोरो, बींरी मुट्ठी सूं रिपियै री कोर देखणी दोरी। गांव सूं पूर-पल्लो, मीठो चूठो कीं लावै तो सीधो रो सीधो घरै, मजाल है भोरो ही छीजण दै। रिपियो अेक बापरो चावै पांच, बस पड़तां तो घर आळां आगै बात ही को चलावै नीं, इंयां करतै ही कीं सीध बंध ज्यावै तो, चेस्टा पग रमावण री ही करै। लुगाई पूछलै कदेई, “आज सेठाणी नैं गाडी चढावण गया हा, दो रिपिया तो टूठी हैली।”
“हां, बारै ही पड़्या हा दो रिपिया, पूण-पावलो दियो कीं बो लोरी भाड़ै में ही लागग्यो, दोपारियो कीं करा दियो बो नफै में समझलै। दो-तीन पेटी डब्बै में, दो पींपा, अेक बींटा सै ढोया, इसो ठा’हुतो तो अठै ही पावलै रा पइसा करतो, तो सैलो रैवतो। बापड़ै कीं कुळी री मजूरी मारी, बो सेठाणी कनै सूं रुपिया च्यार-पांच झाड़तो, ईं भाग री ही सेठाणी।”
“अर काल लालचन्दजी रै इग्यारस करवाई ही,च्यारानी दिखणा री दी बतावै,देवो नी, तुळ्यां री पेटी मंगाऊं”
“जरदो लेवण को चाईजै नीं।”
“घरे कदेई दिखणा रा पइसा ही को दिखावो नीं,इयां कांई।”
“कुण म्हारो बाप देवै है दिखणा,अेक किरचो का दो खाटै री गोळी, बा ही जे जी सोरै सूं देवै तो घणां में समझ। दो घंटा कींरै ही हाड रोळू तो चावड़ी रो पाणी ही मसां पावै, तनैं सूझै है दिखणा।”
पैलां आ बात को ही नीं, रिपियो आठाना बचता,बै बिना मांग्यां ही वो घर में देंवतो। अबार आठ-नव बरसां सूं ईंरी बिरती बदळगी – इसी ही हुगी। असली बात रो ठा’ नैं घर आळां नैं अर न गांव में ही कीनै ही। खाली ओ जाणै का ईं रो गुरू, अेक सेठाणी।
सेठाणी बड़ी चलती पुर्जी – चलती गाडी रो चक्को काढै इसी। विधवा है, गाघ, धाकड़, अर मिनखघटी। विधवा हूगी ही बरस पचासेक री ही जद ही। बेटा है दो, पोता-पोती है। बेटा-बीनण्यां सूं न्यारो ही आपरो हिसाब राखै। पिछो-कड़ै में अेक कमरो आपरै ही तल्लैबल्लै है। चाळीस-पचास हजार रो गैणों अर पन्द्रै-बीस हजार री नगदांवण ईं कनै है। सुणां हां, ईं रो धणी, ईं री आपमताई सू धाप’र ही पूरो हुयो। आपनैं भावै जिकी चीज, आपरी बोरसी पर,न्यारी ही करै,औरां रै हाथ सूं न रंजै अर न पतीजै। पेट छिटक्योड़ो अर सरीर पसर्योड़ो। काम बौरगत रो पण अडाणों पैलां,और बात पछै। ब्याज ढाई-तीन सूं ले’र छव-सात तांईं – विसेसता आ कै पढी-लिखी रै नांव पर काळो आखर भैंस बरोबर।
घणो लेण-देण लुगायां में ही करै, नैकारो इयां, छीदै-माड़ै मिनख नैं ही को करै नीं। थोरी, मेघवाळ, भंगी सूं ले’र, बामण-बांणियै तांईं, सगळां नैं देवै, पण आपरो जी मांगै जठै ही, अर, ईंरी कोई बेगार काढै बींनै ही। चनणरी टीकी, धोळी धोती, गळे में तुळसी री माळा अर कळायां में सोनै री दो-दो चूड़यां। न लिखा-पढ़ी, न गवा-साबूत, सगळो जबानी जमा खर्च, कींनै ही गरज हुवै तो लेवो, नहीं तो जावो, आपरी राधा नैं याद करो।
गोपी म्हाराज ईं कनै उठबैठ करै। आ कदेई बींनै चावड़ी रो पाणी पायदै,अमावस-पून्यूं कदेई पाव आटै रो सीधो घालदै अर का दो डळी गुड़ री दे’र राजी कर दै। ओ ईरो तेड़ो-हैंकारो का तगादो करदै, बजार सूं सागपात लाय दै, अेक रकम बिना महीनै रो हाजरियो समझो ईंरो। पटीड़न नैं, इत्तो सस्तो, गांव में दूजो जोयो ही को लाधै नीं। पुन रो पुन, लोगां में कीरती पण आ कींनै ठा’कै, आ ईं सूं सौ डोडसौ रिपिया महिनो कमावै।
सेठाणी अेक दिन म्हाराज नै बोली, “गोपीराम, कैयां तनैं खारी लागसी पण तूं है सफा गधो।”
अचाणचकी अर अणचींती सुण’र बण, सेठाणी री आंख्यां में आंख्यां गडो’र होळै सै पूछ्यो, “किंया सेठाणी सा।”
“हणै तूं गधाखटणी करै जित्तै तो कांई लुगाई अर कांई छोरा-छोरी थारै सै, चींचड़ चिपै ज्यूं चिपै, घर में बड़तां ही थारो संभाळो लेवण नैं तैयार। थोड़ा हाण थक्यां फेर, कोई कनैकर ही को निकळै नीं, अमूज’र मरज्याए भलां ही, हां पांच पइसा जे कनै हुसी तो बैम सूं ही चाकरी करदेसी अर मानलै जे नहीं करै तो तूं कींरै सारै, रूपली पल्लै तो रोही में हीं चल्लै, अबार संसार रो ढाळो ही ओ है – कळजुग है नीं, पछै रोए गोडां नैं।”
बात म्हाराज रै अंगोअंग बैठगी। परवार कानी सूं बारै बज्योड़ी बींनैं सामी दीसै ही। बोल्यो, “बात तो थे साची कैई।”
“कैई जिकी में कांई गोळ है।” सेठाणी कीं जोर दे, भळै बोली, रतनलालजी रै च्यार छोरा है।”
“हां।”
“डैण-डोकरी, खुरचण कनैं ही जिकी, ठंडै दिनां बांट दी – बेटा बहुवां नैं। लाख-सवा लाख रो तो गैणों ही हुसी, चांदी रा रिपिया हा पांच-च्यार हजार, दे दिया सै। आज रै भाव में पचास-साठ हजार रा है वै। दो साल ही पूरा को हुया नीं, अब बो तो कैवै, मां नै तूं राख, बो कैवै, बाप नैं तूं। भायां नैं भेळा किया, बां फैसलो दियो, तीन-तीन महीनां राखो मा-बाप नै अेक-अेक बेटो बारीसर, पण मनैं तो चोड़ै दीसै है, बारै महीनां-डोढबरस पछै, आ ही पार को पड़ैनी। मा-बाप नैं तो फेर बियां ही रोणो – जे अबार काळजो कीं न्यायो हुंतो तो, बडोड़ो कैंवतो, सेवा हूं करस्यूं अर छोटोड़ो कैंवतो, हक म्हारो है, थे मांगो ही कांईं।”
गोपीराम टुकर-टुकर, सेठाणी सामों देखै हो, अर बातां री उकाळी, बेमार सो होळै-होळै पियै हो। सोचै हो, “देखो, आ बापड़ी, म्हारी कित्ती हितू है,” मन ही मन, सेठाणी रै उपकार सूं दब्योड़ो मानै हो वो आपनैं। बण कैयो, “हां सेठाणीजी, म्हारा तो सै ही टींगर अर बहू-बीनण्यां इसा है कै मनै जीवतै सट्टै मर्योड़ो ही को परखावै नीं।”
“अरै तूं किसी चकारी में है, आंख पसार’र देखलै, सगळै अेक ही बीमारी है।” सेठाणी री अै बातां बी दिन सूं हीं, बींरी चेतना में घर करगी। राईभर जे कठै ही कसर रैयगी हुवै, तो, वा दोए-च्यारे ईं सागी पाठ नैं दूजै ढंग सूं भळै उथळ देंवती – हला-हला’र बीनैं पक्को कर दियो।
आठ-दस बरसां में नहीं-नहीं करतां बण ढाई हजार नैड़ा सेठाणी नै दे दिया अर बा ईंनैं, साढी बारै रिपिया महीनै का आठाना संइकड़ै सूं, साल भर में डोड सै रिपिया देवै अबार, पण ओ, सेठाणी नैं पच्चीस-पचास कनैं सूं दे’र, सत्ताईस सौ करण री चिन्ता में है। बा, आं रिपियां सूं चावै कित्तो ही ब्याज कमावो, अगली रा है, म्हाराज रै जी में अेक ही लाग्योड़ी है कै, जे किंयां ही तीन हजार जमा कर दूं तो पन्द्रै रिपिया महीनै रा महीनै टांचलूं। हजार-पन्द्रै से कीं, छोर्यां रै अेढै में, जरूरत पड़ी तो उधारा बोल’र ही उठास्यूं, बस पड़्यो तो आनों ही को उठाऊं नीं।
दस सूं बारै, बारै सूं पन्द्रै अर आगै पच्चीस-तीस, तिसना रो कांईं छेड़ो, जिकै में गोपी म्हाराज में अेक मोटो रोग और कै, ओल्है-छांनै इसो राखूं कै चिड़ी रै बचियै नै ही ठा नहीं लागै। वो अेक दिन दिनूगै आठ-साढी आठ बजी, सेठ सूरजमल रै पापड़ां रो आटो ओसण’र गमछियै रै पल्लै पांच-सात लोवा बांध्यां, खल्ला घींसतो आपरै घर कानी जावै हो। रस्तै में, सेठ हजारीमलजी री बहू मिलगी। नवी-नकोर धनुसिया धोती रै ऊपर कर सोनै रो करनोळो हालै, हाथां में सोनै रा पाटला अर चूड़्यां, साथै कळकत्तै री अेक दाई – बंगालण ही कोई। देखतां ही बो हाथ जोड़’र, अेकै पसवाड़ै ऊभग्यो, बोल्यो, “सेठाणी जी सा, मिंदर पधार आया..?”
“हां म्हाराज।”
“बडभागण हो, बडभागण, मिंदर, देवरो, बामण-स्यामी सगळां नै पोखो, आवो जिती बार कीं न कीं बांटो, पुन री जड़ हरी है सेठाणी, कांई सोभा करूं थारी, दिनूगै नांव लेवै जिसा हो, म्हारै लायक सेवा हुवै तो भुळाया कदेई, बिराजोला अबार तो केई दिन..?”
“नहीं म्हाराज, कोई दसेक दिन मुस्कल सूं। अेक सैकिंड रुक’र, भळै बोली, “जांवतां, अेक पींपो मिरचां कुटवा’र लेजाणी है, कोई कूटण आळी हुवै तो बताया, दो पइसा चरका लागै तो लागो, मसीन रो मसालो थारै सेठां नैं कम सदै।”
“चोखो’क नहीं सदै तो, हूं अबार पूछू हूं म्हारै घरआळी नैं, बींरो और कठै ही हैंकारो नहीं भर्योड़ो है जद तो, म्हे दोनूं हणै कूटकिचर नांखस्यां अर बो नहीं आई तो हूं अेकलो ही कूट नांखस्यूं किंयां ही।”
“थां अेकलां सूं तो तांबै आणी मुस्कल है।”
“कांईं बात करो हो आप, आवै क्यूं नीं ताबै, हूं धान को खाऊंनी का मनै भूख को लागै नीं।”
“तो देख लेया,” कह’र बा टुरगी।
गोपीराम आपरी बहू नै पूछ्यो, “आज घरे ही है का न्यूंतो है कठै ही काम रो।” बा बोली, “हूं तो बाट दळन नैं जास्यूं अर बीनणी चावळां री बोरी आछी करसी – बडोड़ी हवेली में। क्यों।”
“नहीं इंयां हीं पूछूं हूं। बण सोच्यो, मिरचां दस बारै कीला तो नहीं-नहीं करतां हुसी ही, पांच-सात रिपिया बापरसी ही, अगलै महीनै कीं ब्याज अर कीं नगद दे’र, तीन हजार किंयां हीं करदूं तो न्याल हूज्याऊं। बो अधघंटा बाद ही पूगग्यो हजारीमलजी रै घरे। सेठाणी बोली –
“जीम’र आया का भूखा।”
“दिनूगै थोड़ो सिरावणो करलियो, पूरो जीम्यां पछै मिरचां को कूटीजै नीं।”
पैलां गुंढ तोड़्या, फेर कूटी, तेरै कीला ही, सिंझ्या पड़गी। सेठाणी बिचाळै अेकर दो फलका अर चाय देदिया। धोबो अेक मिरचां रो छांणस बच्यो, जिकै में घणखरा बीज हा। बण सेठाणी नै पूछ’र, आपरै गमछै रै पल्लै बांध लिया। सेठाणी साढी छव रिपिया अर अेक गिंजी देदिया, जांवतै नैं आधो अेक कीलो बाजरी घालदी। गोपी म्हाराज टुर्यो जद, दिन घड़ी अेक बाकी हो। रस्तै में अेक छोरै हेलो मार लियो, “म्हारी दादी बुलावै है गोपी बाबा।” गयो तो डोकरी बोली, “खिड़क आगै लकड़्यां रो लादो पड़्यो है, ओ थोड़ो मांयं नांखदो, आठाना रा पइसा देस्यूं अर गुण मानस्यूं।”
“अबार तो थक्योड़ो हूं दादी सा, दिनूगै भोराभोर नांख देस्यूं।”
डोकरी गिड़गिड़ा’र बोली, “बन्ना, रात नैं कुत्ता बिगाड़ देसी, नांखो अबार ही जद हुवै।”
सोच्यो, साढी छव रा सात तो हुसी, महीनै रै मांय-मांय करणा है सवासै-डोढ सै, तीन हजार पूरा हुवै तो अेकर तो की सांस आवै। काम में लागग्यो पायचा टांग’र। आध-पूण घंटा लागगी। नांखदी लकड़्यां घर में लेजा’र। बूकियां रै, दोतीन जाग्यां करचां री लागगी। बिण्यां पर राती लीकां सी मंडगी अर बां पर लोही टांचरग्यो। डोकरी आठानी तो दी ही, सागै सेक्योड़ो सीरो अर कीं बूंदिया और दिया।
टुर्यो जित्तै मिंदरां री आरती हुगी अर तारा आभै में आछी तरै सूं टिमटिमावण लागग्या। रात अंधारी, पून की खाथी, अर गंडक गळ्यां में रह-रह भूंसता सुणीजै हा। गिंजी,बाजरी अर बूंदिया घर में झला दिया अर लपेक सीरै रा च्यार फाका मार, ऊपर आधो लोटो पाणी नांख लियो। बाखळ में अेक मंचली खड़ी करी पड़ी ही, सूंई कर’र आडो हुग्यो।ओढण-बिछावण नै हरेहर – उनाळै, चौमासै आए साल इंयां हीं करै – बरस हुग्या केई। कांधा अर किड़तू कोझी तरै सूं कुळै हा, तो ही कीं संतोस हो कै आज सागै ही रिपिया सात री गोळी करली। ईं ढंग जे गणेसजी टूठता रैसी तो महीनै सूं पैलां ही डोढसै-दोयसै कर नांखस्यूं अर तीन हजार हूंता ही दीखसी। दो-च्यार साल में ही जे पांच-सात हजार रो थळ हूग्यो तो आपां कीरै ही सारै नीं। सोचै हो, “सेठाणी बापड़ी कैवै तो साची ही है कै, खर्ची हुवै तो खाबो, नहीं तो मरतै कुत्तै आळै दांईं आंख काढो, कुण पूछै।” छोरो कुमाणस, अेक ही इसो को दीसै नीं, जिको कम सूं कम इत्तो तो पूछै कै “जीम्या’क भूखा हो, दाबणो-चींथणो तो कुवै में पड़्यो।” इंयां आपरो चरखलियो काततै नै नींद फिरगी, दिनूगै बो ही घोड़ो अर बो ही मैदान।
रड़भड़तै-रड़भड़तै इयां, रिपिया बत्तीस सै करलिया बण,पण पइसै-पइसै खातर जी नै रोस्यो अर पेट रै गांठां दी। अेकदिन अेक बाणियै री छोरी नैं पूगावण गयो – कोस बीसेक परियां। सेठाणी रै बारै-छव महीनां सूं तोळो-मासो गड़बड़ तो चालै ही, पण आ कींनैं ठा’ही कै वा अचाणचिकी ही गोपी म्हाराज नै कदेई दोबो देसी। बो गयो बीं रात ही, बींरो हार्ट फेल हूग्यो। म्हाराज पाछो आयो जित्तै बीनैं तीसरो दिन हो। सोच्यो, सेठाणी रा बेटा आसी दिसावर सूं, जद बांनै सावळ कह देस्यूं, इयां बामण रा रिपिया कुण राखै, पण रह-रह ओ गिरगिराट भळै उठै कै जे नटज्यावै तो – “तो रुळग्यो काळीधार।” जी डिगूं-पिचूं हुवै अर रात नैं नींद कम आवै। घणी करसी तो ब्याज बारै महीनां रो को देवै-लानीं, कुवै में पड़ो नहीं सर्यो, मूळ तो देसी। “आह्वै नीं हाडो ले बैठे गणगौर नैं,” गाय ही जावै अर सागै गळवंडो और,” पंखो भळै हाल खड़ो हुवै। इयां करतां-करतां बण दिन पूरा कर दिया। बामण, स्यामी अर भाईपो जीम्यां पछै, जा’र दोनां भायां नै होळै सै सगळी बात मांड’र कैयी कै, “रिपिया बत्तीस सौ म्हारा सुगनी बाई में हा, ब्याज बिस्वो बारै महीनां रो देवो तो थारो माइतपणो है, नहीं तो सागी ही सही।” बां कैयो, “थोड़ा न घणा, बत्तीस सौ..!”
गोपी म्हाराज होठ धुजांवतो होळै सै बोल्यो, “झूठ थोड़ो ही बोलू हूं, रामजी नै जी देणो है बाबू।”
“रुक्को है थारै कनै।”
“रुक्को ना तो वां दियो अर ना मैं लियो।”
“म्हारी लुगायां-पतायां नै ईं बात रो ठा’हुवैलो।”
“मैं तो को कैयो नीं, थारी मा कदेई बां सामी बात चलाई हुवै तो पूछो।”
बां पूछ्यो घर में जा’र। लुगायां कह दियो, “म्हे तो सुसियै रो तीजो पग ही को देख्यो नीं।” बै बोल्या, “इयां म्हाराज म्हे रिपियां कीनैं-कीनैं देस्यां। थे बत्तीस सौ बतावो, कोई छत्तीस सौ बतासी, रिपिया इंयां कोई आकां रै थोड़ी लागै है, म्हारी तो मा इसी ही, नहीं जद थारै जिसां नैं मूंढै ही क्यों लगावै – उळो-तळो सगळो लोगां नै खुवा दियो, रिपियो बीं कनै निकळ्यो ही किसो हो।”
गोपी म्हाराज रो सांस तो खैर को निकळ्यो नीं, पण मरण में कसर कीं रही नीं। बण अेकर आपरो सगळो ज्ञान अर सगळी ताकत भेळा कर’र कैयो, “हूं जनेऊ री सौगन खा’र कैऊं बाबू, म्हारा रिपिया बत्तीससै है – पइसो ही कम नहीं पूरा बत्तीस सै, अधभूखो रह-रह मैं भेळा किया है।”
“किया हुसी म्हाराज, म्हारै कनै बत्तीससौ हेला ही को है नीं।” अेकर रोवतै भळै कैयो, “इंयां राध में छुरी मत करै, हूं बामण हूं।” बां में सूं अेक भाई गरम हू’र बोल्यो, “थारो डौळ ही है बत्तीससौ रिपियां जोगो। पइसै-पइसौ खातर तो रोंवतो फिरै है मुलक में, घरे टंक रा दाणा ही को लाधैनीं अर थोड़ा न घणा बत्तीस सौ है ईंरा, निकळ अठै सूं,” कह’र बींनै घर सूं काढ दियो।
बींरो सत कांईं टूटग्यो, बींनै लागै ही जाणै काळजो बैठसी। बो गूंगो सो घर कानी टुरग्यो। रस्तै में अेक जणै पूछ्यो, “कीनै गया हा गोपी म्हाराज..?” वो गुम-सुम रैयो, को बोल्योनीं। अेक सेठाणी हेलो मार्यो, “लो आ हांती तो लेजावो टाबरां खातर..?” बो बहरो सो आपरी धुन में ही चालै हो। घरे आयो। मंचली पर जा’र पड़ग्यो। “पूरा बत्तीससौ, हरामजादा है छोरा,” पड़्यो-पड़्यो ही बो बड़बड़ायो अेकर, “अरे मरती-मरती मारगी रांड, बत्तीससौ।” लुगाई कीं सुण लियो, बा बारै आ’र, बोली, “गाळ कीं नैं काढो हो, इंयां कांईं हूग्यो आज थारै..?” को बोल्योनी वो। बण हाथ पकड़’र कैयो, “कीनै कैवो हो रांड-रांड, कुण है हराम-जादा, कांईं करो हो बत्तीस-बत्तीस, बात कांईं है, कीं बतावो तो सरी..?” होठ बंद, बियां ही गुमसुम जाणै बींरो मन कठै ही ऊंडो झल्योड़ो है। आधी मिंट ठैर’र, बण भळै बूकियो आप कानी खींच’र कैयो, “बोलो तो सरी, हू कांई गयो थारै..?”
बत्तीस रो नांव सुण्यो जद, अचाणचको ही बो बोल्यो, “हां पूरा बत्तीससौ, हूं झूठ बोलू हूं, बामण हूं बामण – तनै ठा’रैणो चाईजै।”
“बामण हो जिको तो मनै हीं ठा’है – आई जद सूं जाणू हूं पण बत्तीससौ किसा..?”
“सेठाणी रा बेटा खायग्या, पूरा बत्तीससौ है म्हारा अेक पइसो ही कम नहीं।” अेक छोरो आयग्यो अर दो-तीन पाड़ोसी भेळा हूग्या। बामणी बोली लुगायां नै, “डावड़ां, आया जद सूं घरे टिकै ही कम अर कार मजूरी कानी ही ध्यान कम। सेठाणी रै घर-बार कर, बिलियोमरी मिन्नी जापै री जाग्यां बारकर घेरा घालै जियां घालै, कांई ठा बण इसो आंनै कांई घोळ'र प्या दियो..?” अेक लुगाई बोली,
“भोळा आदमी है, अेक-दो दफै रोज जांवता बठै, बा हंस’र बोलती बतळांवती, बिछोड़ै रो जोग हो, मिलाप को हुयोनी, जद जी में तो रैवती ही हुवैली।”
दूसरी कैयो, “छोडो, अै बातां तो इंयां हीं हुवै है, लोर री धुन में जिको रस्तो झाललै बो झाल ही लै – देखां हां नीं घणा नै ही। बकणै रै बाइपै पड़ज्यावै कोई, तो बकै। आं रै तो गांवतरै गया बठै ही कोई उत्पात खड़ी हुगी दीसै है – पांच पइसा लागण रो जोग है, ताबै आवै बीं सारू इलाज तो कराणो ही पड़सी, ढील दियां पार को पड़ैनी।”
छोरो अेक स्याणैं नैं बुलावण गयो। अेक पाड़ोसण बोली, “माथै में भड़की चढगी, अबै बादी रा लोर उठै, म्हारो कैयो करो जद तो, थोड़ी खसखस, गुळकंद अर आधी खुणच अजवाण भिगो’र, ठंडाई आळै दांई कर’र पावो, लोर दो-तीन टंक में हीं बैठ ज्यासी। चीजां नहीं है तो अेक म्हारै अठै सूं लेजावो।”
दूसरी कह दियो, “हां बाई, जिनसां तो आछी है, गुण नहीं तो औगुण ही को करै नीं, पण बत्तीससै री कांई बैंक पड़गी आंनै, भगवान जाणै..!”
छोरो थोड़ी ताळनै अेक झाड़ागर नै ले’र आयग्यो। झाड़ागर झाड़ो देवै हो। अेक दो मिंट तो गोपीराम को बोल्योनीं, फेर अचाणचको ही उठ्यो, “हूं जाणू हूं तनै ठगोरै नै, कांई माथै मांगै है तूं अठै, कह दियो नीं पूरा बत्तीससै है, हे ओ जाऊं, म्हारा है म्हारा, कह’र वो फुर्ती सूं चाल पड़्यो। छोरै अर झाड़ागर हाथ काठा झाल’र बैठा लियो – बो उठै अर बै बैठावै। झाड़ागर बोल्यो, “कोई ओपरी छांयां है ईंमें, अबार थको तो जाबतो हूसकै है, नागौर जाणो पड़सी।”
अस्पताळ लेजा’र डाकधर नै बतायो। बण कैयो, “दिमाग थोड़ो पटड़ी उतरग्यो, बिजळी रा शोक लगवावो।”
लेयग्या बापड़ै नैं, तीन-च्यार शोक लगाया, दो-तीन दिन कीं गुमसुम सो रैयो। बिच-बिच में लारली याद कदेई ऊंची आंवतां हीं बै ही बातां, “बत्तीससौ, हरामजादा, हूं, बामण हूं, कूड़ को बोलूंनी।” पांच-सात दिनां में, बो पैलां सूं घणों हूग्यो। सांकळ सूं बांध दियो, घर आळां ऊथप’र। डाकधर कैयो, “केई दिन लगातार शोक लगवावो अर अस्पताळ में ही राखो!”
दूसरै दिन बेटां, गोपीराम नै भळै, हाथ झाल’र अेक गाडै में नांख लियो अर अस्पताळ कानी ले बहीर हुया।