परभातै नींद खुलतां ई बैंरी निजर सामली बारी पै पड़ी। ओ बैंरो रोजीना रो नेम बणग्यो हो। पाछला दिनां री कुछेक अजब बातां बांरै जीवण में इसी कड़वाहट घोळगी जिण सूं बैंरो मन खाटो हुयग्यो। बो चावतो तो इण खटास रो सुवाद दूजै सुवाद में बदळ लेवतो, पण कदे-कदास इसी कोई बात हुय जावै जिकी आपरो असर छोड़ ई जावै। बो बटमरोड़ो खायो अर धीरज धर नै ऊभो हुयग्यो। बारी में कोई नीं हो। बैंरै चहरै पै अेक खुसी री लहर ऊभरी अर होठां पै जीत री मुळक बिखरगी।
घर में जुवान बेटी ही। सहर रो जीवण। अड़्या-भिड़्या बण्योड़ा मकान। भांत-भांत रा किरायैदार। सरीफ भी, लोफर भी; उदास भी, खुस भी; गरीब भी, तरह-तरह री जातां, धंधा अर विचारां हाळा रैवासी। आ सभ्यता री देण है। सब अेक-दूजै सूं अणजाण। कुण काईं है, कोई नीं जाणै, न जाणनो चावै अर न ई जाणनै री फुरसत है।
बैंरै मकान रै सामैं ई अेक परिवार रैवै। दीखणै में साधारण, सीधो-सीधो। बांरी बारियां अेक-दूजै रै मकान रै सामैं पड़ै, जिण सूं बै सारै घर नैं देख सकै। बो कदे ई बारी रै मांयनैं जाय नै नीं बैठ्यो। नीं बैंनै दूजै रो बैठणो पसन्द है। बो सुखी हो। सामली बारी में अेक छोरो कदे-कदे बैठतो, पण, बो इण नैं गंभीरता सूं नीं लियो। सबकाम सदा मुजब चालै हो।
पण अेक दिन बैंरो बिस्वास टूट ई गयो। बैंरी जुवान बेटी नै छोरे अेक कागद लिख’र भेज्यो जिणमें बै सगळी सूगळी बातां लिख्योड़ी ही जो अक्सर केई रोमांटिक फिल्मां में देखण नैं मिलै। बैंरो हिवड़ो कांपग्यो— आ घटणा बै नैं हिला दियो। बो गुस्सै में भरग्यो अर बैं छोरै री खबर लेवण नैं ऊभो हुयग्यो। पण, कागद में दस्तखत नीं हा, हो सकै आखर भी दूजै रा होवै, हो सकै कोई दूजै लिख्यो होवै। इत्ता केई सवाल बैंरै सामैं घूमग्या। बैंरो उबाळ करुणा में ढळग्यो। ठोस सबूत रै बिना काईं भी करणो बैं री खुद री बेटी रै हक में नीं हो। बो सोच-विचार क’रर बात नैं पीग्यो।
बैंरो मांयलो मन पीड़ा सूं भर्योड़ो हो। ओ सब काईं हो रयो है? आज बेटी नैं पाळनो इतरो मुसकल क्यूं होग्यो? आज हरेक लड़को अर लड़की चरित्रहीण क्यूं होता जार्या है।
बो इण बात सूं छोरै रै बाप नैं वाकफ करणै रो विचार कर्यो। पण, खबर लागी कै छोरो आपरै बाप रै कैयै में कोनी। काईं कर्यो जावै? आज कागद लिख्यो है, कालै नीं जाणै काईं करैलो। बो मांय नैं ई मांय नैं डरग्यो। एकर बो निरास सो हुयो। फेर बी झाळ में बड़बड़ायो— “साळो, बदमास, गुण्डो, कमीणो कठै रो...।”
अेक दिन बैंनैं ताव आ ई गयो। आखर कठै ताईं घुळतो रैवतो। बो छोरै नै बारी सूं ई फटकार्यो—
“अठै रोजीना काईं देखै है?”
“काईं भी नीं। म्हारो घर है।” आंख्यां फाड़’र बो बोल्यो।
“म्हारै घर में क्यूं देखतो रैवै है?” वो गुस्सै में भरग्यो। बैंरो सुर भी तेज होग्यो।
“आंख्यां फोड़लूं काईं।” बो पाछो उथळो दियो।
“फेरूं भी तनैं दूजै रै घर में नीं देखणो चाईजै।” बो थोड़ो नरम हुय नै बोल्यो।
बात आई-गई हुयगी। बो बदळो नीं ले सक्यो। बारी पै छोरै रो बैठणो फेरूं बढ़ग्यो। बो दुखी रैवण लाग्यो। बैंरै जीवण में ओ छोरो इण भांत घुसग्यो कै सूळ री ज्यूं चुभण लागग्यो। लोगां नैं कैवै तो खुद री बेटी री बदनामी हुवै। मन मसोस’र बैठग्यो। बगत निकळतो रयो अर बैंरी आंख्यां सामलै छोरै नैं देखती रयी। बेटी पै भी बैंरी नजर पूरी ही। पण, बा निरदोस ही।
अेक दिन गैलै में बो गुण्डां सूं घिरग्यो। सामलो छोरो बां बदमासां रो नेता बण्योड़ो हो। बो घबराग्यो। पण, मामूली कैवासुणी रै पछै बो बचग्यो। इण बात पछै बैंरो रह्यो—सह्यो मनोबळ भी टूटग्यो। बैंरै हिवड़ै में केई घाव उबरग्या। बो सोचण लाग्यो कै पुलिस, गुण्डा अर दूजा तरीका सूं बो भी बदळो ले सकै। बो गम्भीरता सूं मनन कर्यो। अेक सादै मिनख सूं ऊपर उठ’र बिचारण लाग्यो। आखर ओ सब क्यूं होवै है? उल्टो चोर कोतवाळ नैं डांटै वाळी बात क्यूं है? इण में ऊंडो जावणो पढ़सी। मारकूट सूं हळ निकलणो नीं है। कोई सावळ हळ खोजणी पड़सी। इसी ई अणगिण भावनावां रा जाळां में बो घुटतो रैयो।
अेक दिन बो छोरै रै घरै साफ बात करण जा धमक्यो। छोरै रो व्योवार रूखो रैयो। फेरूं भी बो बैंनैं समझणै री कोसीस करतो रैयो। कोई नतीजो नीं निकळ्यो।
बो फेरूं बेसी दुखी हुयग्यो। बेटी रै सागै कोई उगणीस-बीस बात होगी तो बदनामी होसी। छोरै री काईं बदनामी-आ तो बैरैं वास्तै गरब री बात है। भायला बैंरी करतूतां नैं सरावता होसी। इण हिमायत सूं बो फूल्यो-फूल्यो फिर रयो हुसी। इण रो भविस्य...। टेबल पै खूणियां सूं बो फूल्यो-फूल्यो फिर रयो हुसी। इण रो भविस्य...। टेबल पै खूणियां टेक्यां हथेल्यां में माथो फंसायोड़ो बो सोचतो रयो। परेसान होवतो रयो। कोई मुगती रो मारग नीं दीखै हो। बो लगभग ओ फैसलो कर लियो कै बो छोरै नैं गुण्डां सूं कुटवासी अर आपरै अपमान रो बदळो जरूर लेसी। ओर कोई गैलो बच्यो भी नीं हो। कांटै नैं कांटै सूं ई निकाळनो पड़सी।
बारणै रा किवाड़ां पै ठक्-ठक् री चोट सूं बो चौंकग्यो। हड़बड़ा’र उठ्यो। आपरै डील नैं बारणै तक धकेलतो लेग्यो अर किंवाड़ खोल्या। सामैं बो छोरो ऊभो हो। बैंरो हिवडो कांपग्यो।
“म्हैं आप सूं बात करणो चावूं हूं।” छोरो धीमै सी बोल्यो। “जरूर। मांयनैं आओ।” बो उछाह सूं भर्योड़ो बोल्यो। सामैं री खुरसी पै बो बैठग्यो। केई देर मून रयो। दोनूं ई अणबोल्या बैठ्या हा। फेरूं छोरो हिम्मत करी अर मधरो-मधरो बोलण लाग्यो— “म्हैं म्हारी गळतियां री माफी मांगण आयो हूं। म्हैं आपनैं घणा तंग अर दुखी कर्या। बारी पै बैठ-बैठ आपरो खून छिजातो रयो। म्हैं सरमिंद हूं।”
“पण, ओ सब नाटक म्हारी समझ में नीं आयो है। थारो ओ दिल कियां बदळग्यो...।”
“आपरै फूटरै ब्योवार सूं म्हारै पर घणो असर पड़्यो है। म्हारी इतरी गळतियां रै पछै भी आप म्हारै साथै कोई खोटो ब्योवार नीं कर्यो। आप महान हो...। बैंरा नैण भर आया। बो सिसक पड़्यो अर उठ’र बारै निसरग्यो।
बो सब देखतो रैयग्यो। काईं भी नीं कर सक्यो। आज बो सोच में पड़ग्यो कै आ बैं री जीत है या हार।