महीणां नैं आंगळी रै पोरवां माथै गिण्या तौ वै पूरा दोय बरस पांच महीणा री गिणत में ढूक्या। जीसा नैं रामसरण होयां दोय बरस पांच महीणा होयग्या। वगत तौ आपरै विलै लाग्यौ बीतै है—उण री चाल नैं कुण ढाब सकै? वो हरमेस वगत रै सागै दौड़ण सारू ताफड़ा तोड़तौ रैयौ है पण, वगत है जिकौ उणरै टांगड़ी अड़ाय नै पटक नांखै अर खुद आगै वूहौ जावै।

जीसा जिण दिन रामसरण होया, उण दिन उणनैं लाग्यौ कै जांणै अेकर वगत री चाल ठैरगी है अर भाखर जैड़ौ दौरौ वगत अबै काट्यौ नीं कटैला अर दुख री घड़ियां जांणै थिरचक होयनै रैयगी है। पण, नीं उण वेळा रै असींव दुख रै कारण उणनैं अैड़ौ लाग्यौ हौ। सदीव री ज्यूं उण दिन सूरज आंथम्यौ हौ नै रात होई अर दूजै दिन परभात पौर में फेरूं सूरज उग्यौ हौ। उण सूं आगलै दिन तौ घर री वडेरियां उणनैं जीसा रा फूल चुगण नै समसांण भोमका भेज दियौ हौ।

जीसा रा फूल चुगतां उणरी आंख्यां में चौसरा चाल रैया हा। तीन दिन पैली जिका सख्स अणूंती मांदगी भुगततां थकां उणनैं केई-केई रकम री सिखावण्यां देय रैया हा, वै अबै ठंडी राख री ढेरी मांय बदळीजग्या हा। पांच दिन पैली री तौ बात है—वां रौ उपड़ियोड़ौ दम कीं ढाळै बैठ रैयौ हौ अर धीरै-धीरै बोलणौ सरू कर दियौ हौ। वां म्हारौ हाथ अधरसै पकड़नै कैयौ, “थनैं ठा है, फूल कियां चुगीजै?”

वां रै अणछक इण सवाल सूं जठै म्हैं थोड़ौ-सो चिमक्यौ उठै ई, कनै बैठी मां, बडिया अर बाई हंस पड़्या। उणां री हंसी माथै वां थोड़ी नाराजगी जताई। वां थोड़ी दोरप सूं कैयौ, “ओ टाबर है, इण किसै दिन फूल चुग्या?” फेर वां फूल चुगणै रौ सगळौ आंटौ बतायौ कै कियां लोह री अेक चिमटी बणाय नै ले जावैला, जिण सूं फूल चुगण मांय सोराई रैवै। जीसा री सीख नै चितार वो थोड़ी ताळ सैंग-बैंग होयोड़ौ-सो 'राखी' माथै बैठौ रैयौ, पछै अेक रोवणखाळी मुळक उणरै मूंढै उतर आई।

जीसा घणा दिनां तांई मांदा रैया। वै पैली पैल जद मांदा पड़्या तौ उणनैं डीमापुर में समचार मिल्यौ। वो उठै थोड़ा दिनां पैलां कोई कारबार करण री तेवड़ नै आयौ हौ। अेकाध महीणै तांई तौ वो कोई कांम री तजबीज करतौ रैयौ। छेकड़ उण लकड़ी रै कांम मांय रुचि लीवी अर नेन्है रूप में कांम नैं पोळाय दियौ। उणरौ कांम हाल गुडाळियां हालतौ हौ कै जीसा री मांदगी रै कारण देस आवण रौ बुलावौ आयग्यौ। नूंवै जमतै कांम नैं देखनै उणनैं बुलावौ कीं अचेरौ लाग्यौ। जीसा नैं अबार बेमार पड़णौ हौ। वो तो साजा-सूरा छोड़नै आयौ हौ। हां, बात जरूर है कै वो बांरी मंसा सूं अठै नीं आयौ हौ। अेकलपौ होवण रै कारण वै कदैई उणनैं अळगौ जायनै रुजगार करण री मंजूरी नीं देवता। पण वो वांनैं मनाय-मनूय नै अठै आयग्यौ हौ। उण पाड़ौसी नैं फोन करनै घर री हाल हकीकत जांण लीवी। जीसा नैं थोड़ी धांसी आवै ही, घणी सोच रै जैड़ी बात निगै नीं आवती ही। उणनैं सुणनै कीं नेहचौ होयौ। जीसा उणनैं कदैई आंख्यां अदीठ कियौ नीं, इण वास्तै थोड़ी-सी मांदगी होवतां उणनैं बुला लियौ। उण थोड़ा दिनां में वहीर होय'र आवण रा समचार देय दिया। पण जमतै वौपार रै ठेस नीं लागै इण वास्तै नीं-नीं करतां उण बीच-पच्चीस दिन घुळा दिया। वो घरै पूग्यौ तौ जीसा बरसाळी में सूता हा, वां रै मूंढै अेक रोस री रंगत उतरी, पगां लाग्यौ तौ मौरां माथै हाथ फेरतां कैयौ, “बेगौ आयौ बेटा, वा चोखौ।” वां री आंख्यां री कोरां माथै हळकौ सो पांणी आयौ अर अलोप होयग्यौ।

अबै सफाई नीं देवतौ तौ कांई करतौ। “जीसा, दोय-तीन ग्राहकां रा पइसा अटक्योड़ा हा, फेर नूंवौ कांम...”

“कोई बात नी...” कैय'र वै बैठा होवण नै ढूक्या पण वां रौ सांस हबकीजग्यौ अर बै धांसी में इण भांत अळूझग्या जांणै धांसी ढबैला नीं। मां नैं मौरां माथै हाथ फिरावतां देख’र वो हाथ फेरण लागग्यौ अर कनै पड़्यै गिलास सूं वांनैं चम्मच भर पांणी पायौ। जीसा रा हाल-हवाल देखनै उणनैं समझतां ताळ नीं लागी कै वां रै खेद बेसी होय चुकी है।

उणरै आवण सूं पैली तांई घरवाळा जीसा नैं धांसी ठमण वास्तै घासा-घूंटिया पावता रैया। दिनूगै वांनैं डाक्टर नैं दिखाया तौ पैली वांरी छाती रौ ‘अेक्स-रे’ करावण रौ कैयौ। पछै डाक्टर बतायौ कै वारै छाती में घणी खेद होय चुकी है।फेफड़ा मांय भरीज्यौ पांणी निकाळणौ पड़ैला अर लांबौ इलाज चालैला। जीसा नैं इण हालत में छोडनै जावणौ उणनैं ठीक नीं लाग्यौ पण लारै सूं उणरौ नूंवौ जमायौ कांम चौपट नीं होय जावै। इण वास्तै च्यार-पांच दिनां तांई जीसा री सेवा कर्‌‌‌‌यां पछै अेक दिन उण कैयौ, “जीसा, अबै थारै कीं सोराई है, दवायां तौ लंबी चालैला ई। थे कैवौ तौ अेकर म्हैं चक्कर काट आऊं, नूंवौ कांम है।”

वै जांणै उणरी लाचारी नै बताई उण सूं सवाई जाणग्या। वै अेकटक केई ताळ तांई उणरै चैरै नैं जोवता रैया अर फेर पसवाड़ौ फोरतां कैयौ, “म्हैं ठीक हूं, थूं कीं दिन जाय आ।”

वो उण दिन सिंझ्या गाडी चढग्यौ। जावण सूं पैली दबै सुर में घरवाळी उणनैं बरज्यौ हौ, उठै मां कैयौ हौ, “बेटा मोटी बेमारी है, कांई ठा कद कांई होय जावै अर पछै च्यार दिनां सूं थूं आंरी छाती हेठै है जद तौ कीं चैळकै है, थूं नीं होवै जणै फगत थनैं थनैं चेतै करता रैवै।”

पण वो धणियांणी अर मां री बातां री घणी गिनरत नीं कीवी। जीसा रै चेस्ट रौ इलाज तौ लांबौ चालैला, इण बिचाळै लारै कांम नैं संभाळणौ तौ घणौ जरूरी है, हफ्तै भर में ठा नीं कित्तौ नुकसांण होयौ होसी!”

कांम में लाग्यां पछै उण अेकर जीसा अर वांरी मांदगी नैं बिसरा दी। हफ्तै भर पछै उण पाड़ौसी नैं फोन कर फेरूं जीसा री हलगत बूझी। उण कैयौ कै तबीयत में घणौ सुधार कोनी, इण वास्तै अेकर आय जावौ तौ ठीक रैवै। उण घरै समचार देवण रौ कैय दियौ कै वो बेगौ देस आवै है।

अबै उणनैं आपरौ नूंवौ जमायौ कांम सलटा देवण में सार लागी। कांम नैं सलटांवता-सलटांवता उणनैं कीं जेज लागगी। उणरै अस्टपौर अेक चिंता लागी रैवती कै वो आपरै जीसा रौ अेकाअेक बेटौ है अर उणां री मांदगी में आडौ नीं आय रैयौ है। दूजी वळा तौ वो घरै पूग्यौ तौ देख्यौ—जीसा जांणै उणरी उडीकना मांय आंख्यां बिछाय राखी ही। भरवां चैरै री ठौड़ वां रा जबाड़ा निकळग्या अर दाड़ी अर माथै रा बाळ बधग्या हा। मां बार-बार गमछै सूं वां रै मूंढै में आवतै खंखार रै जाळै नैं साफ कर रैयी ही। मांय गुड्योड़ी आंख्यां सूं अेकर वै उण कांनी देख्यौ पण कैयौ कीं कोनी। वो बिना कैयां स्सो कीं समझग्यौ। उणरै जावण री मजबूरी नीं होवती तौ वां रा अै हाल स्यात नीं होवता।

दूजै दिन दिनूगै फेरूं वो जीसा री सगळी जांचां करवाई अर बडी अस्पताळ लेयग्यौ, जठै डाक्टरां रौ निष्कर्ष रैयौ कै वां रौ अेक फेफड़ौ ‘कॉलेप्स’ (सुकड़ीजग्यौ) होय चुकौ, जिण रै पाछौ ठीक होवण री कोई गुंजायस कोनी। तो वो डाक्टरां आगै बीणती करतौ रैयौ कै कियां आंनैं ठीक कर द्यौ। उणरै चौफेर अेक अपराधबोध लिपटीजग्यौ। स्यात वो इलाज में पैली गैला-सेली नीं करतौ तौ जीसा री हालत नीं होवती। धन कमावण री लालसा में वो जीसा रौ सागीड़ौ इलाज नीं कराय सक्यौ। पैली इलाज सरू हो जावतौ तौ फेफड़ौ नीं सुकड़ीजतौ, अबै कांई होवैला...वो कांई करै...

जीसा जांणै उणरी परेसानी नैं समझग्या, वां धूजतै हाथ सूं उणरौ कांधौ पंपोळ’र कैयौ, “थूं चिंता क्यूं करै रै गैला... म्हैं इंयां थोड़ी मरूं...”

“जीसा...” कैय’र वो वांरै डील सूं लिपटग्यौ।

डाक्टर रै बतायै इलाज मुजब, उण जीसा नैं टेमोटेम दवायां देवणी सरू कर दी अर वांनैं वो आपरै हाथां सूं रसाळ नै फळ-फरूट खवाणा सरू कर दिया। दिन-भर वो वां री मनरुचि री बातां करनै वां रौ जी लगायां राखतौ। अबै वै कीं निरोग दीखण लागग्या। जिण दिन ठीक रैवता उण दिन आखौ घर चेळकै होवतौ। जीसा नैं ठीक होवतां देख’र मां तौ हड़मांन बाबै रै सवामणी बोल दी। इण बिचाळै जीसा उणनैं ठा नीं कितरी बातां री जाणकारियां दीवी। वै घणा राजी होवता तौ अखराणी देवण सूं नीं चूकता कै “बेटा, रिपियौ-पइसौ भाग सूं मिळै, उणरै लारै भाज्यां सूं कीं नीं होवै... पइसौ तौ किस्तूरी मिरग री तिसना है। आखी ऊमर भाठौ खोद नै तौ म्हैं थनैं अर थारी बैनां नैं पाळ्या है...”

“पण, जीसा अबै वगत वो नीं रैयौ... अबै पइसै बिना कीं बूझ नीं है।” जीसा खिन्न होयग्या, वै चिड़ग्या, “पइसौ मरती वेळा अेक मिनख रै साथै नीं चालै...”, केई ताळ तांई वै अबोला रैया, फेर जांणै वांनैं कीं ग्यांन होयौ, “थूं ठीक कैवै रै, वो वगत दूसरौ हौ... अबै तौ हरेक चीज पइसै सूं मिळै... सांसा तक पइसै सूं मिळ जावै...”, इयां कैय’र जांणै वै पइसै रै लालची जमांनै नैं भांड रैया हा।

उणरी समझ में नीं आय रैयी ही कै जीसा पइसै रा इत्ता विरोधी क्यूं है, पइसौ तौ गिरस्ती री जड़ होवै, वो तौ साधू-महात्मा नैं चोखौ लागै। हजार दोरपां रै पछै वै पइसै रै तासै-तोड़ै नैं लेय’र घर में कदैई दुखी नीं होया। पइसै री तंगी सूं उपज्योड़ै दुख नैं वै दुख नीं मानता।

आं दिनां वै थोड़ौ खावणौ-पीवणौ सरू कर दियौ हौ। वो कनै रैवतौ तौ वै ठा नीं कठै-कठै री बातां बतावता, घणी सोराई होवती तौ उणरै नेनकियै सपूत नैं छाती माथै लिटा लेवता अर उणरा घणा लाड करता। वै कैवता, “इयां करियां सूं वांरी छाती घणी ठंडी होवै। वांनैं घिरतां देख’र उणरै मन मांय कीं थ्यावस होयौ। अबै वो फेरूं अगाऊ धंधै सारू सोचण लागग्यौ। उण रौ अेक भायलौ उणनैं आपरै साथै दिल्ली में दलाली रौ कांम करण री राय दीवी। उण सोच्यौ, दिल्ली अेक रात रौ रस्तौ है, घणौ दूर नीं होवण सूं घरवाळा अर जीसा रै दिक्कत नीं होवैला। दिनूगै वो सगळी बात जीसा नैं बताई, “जीसा, अबै घणौ अळगौ तौ नीं जावूं। दिल्ली में बाबू रौ दलाली रौ कांम है, पांचै-सातै अठै आवतौ रैवूंला, थे कैवौ तौ कांम देख आवूं...”

वां जांणै कीं सुण्यौ कोनी। जुळक-जुळक उणरै मूंढै कांनी जोंवता रैया। वो जांणग्यौ, वां नैं उणरौ अठै सूं जावणौ चोखौ नीं लागै। उण वांरी हथेळी मसळतां कैयौ, “अच्छ्या... म्हैं कठैई कोनी जावूं... बाबू नैं मना कर देसूं...।”

“थूं जासीऽऽ, जायां बिना कियां पार पड़ैला रे बेटा? थूं जा, जिण मिरग रै नाभी मांय किस्तूरी उपज जावै, वो अेक ठौड़ कियां ठैर जावै रै, उणनैं तौ भाग्यां पार पड़ैला ।... थोड़ी ताळ पछै वै आपरी मोय में बरड़ावै हा।

वो नीं जावण रौ मतौ कर लियौ, पण जीसा रै सभाव मांय कीं फरक आवण लागग्यौ, वै अबै बोलबाला सूता रैवता अर साळ री कड़ियां नैं निरख बोकरता। साळ वै खुद भाठौ खोद नै खुद चीणी ही। लीपणै-चूपणै री मां री खामचाई रै कारण किणी कमरै री गरज पालै। जीसा नैं अबै बतळावता तौ वै अेक बात कैवता, “थूं अेकर कांम नैं देख आ...”, सुणनै उणनैं लजखांणौ होवणौ पड़तौ। वै जाणै आखी उमर लड़णवाळी लड़ाई में हार रौ पाखौ पकड़ लियौ। अबै तर-तर वां री बेमारी बेसी होवण लागगी। दम अर धांसी सूं वै छटपटावण लागता। डाक्टर सगळी दवायां दियां पछै आपरी लाचारी बतावता अेक बात कैवता कै “कियां आं रौ जीव बहलावौ।”

अबै उण कठैई नीं जावण रौ मतौ कर लियौ हौ। वो बार-बार जी जमावण सारू वांनैं कैवतौ, “जीसा म्हैं कठैई नीं जाऊं, थे ठीक होय जावौ, अठैई रैयनै कोई कार-मजूरी करलूं ला।” थोड़ौ दम ठमतौ तौ वै बोलण री चेस्टा करता कैवता, “थूं खोटी होवै... म्हारौ कांई, पांच दिन पैली कै पांच दिन पछै...” इत्तौ कैव'र वै उण नैं, टाबरां नैं अर आखै घर नैं निरखण लागता।

छेकड़लै दिन वै घणी ताला-मेली कर रैया हा। आस-पड़ौस रा बडा-बडेरा भेळा होयग्या। पिराण मुखोतर होवण सारू सगळा आप-आपरा भरणा बोल रैया हा। मां इक्कीस इग्यारसां वां रै नांव सूं बोली, बाई केई बरत वां रै नांव सूं करणा तेवड़िया, घरवाळी केई दांन-पुन्न अंगेज्या। वो वां रै पुन्न अर पिराणां री मुगती सारू दो हजार रिपियां रै दांन-पुन्न री बात कैयी, तो वां हाथ इसारै सूं उणनैं बरज्यौ। वो अचुंभै में पड़ियौ वां रै मूंढै कनै मूंढौ लेयनै कैयौ, “क्यूं जीसा, अै कम है तौ थे कैवौ ज्यूं कर दूं?”

वां ‘ना’ रौ लटकारौ कर्‌यौ। घर रा सगळा जणा अर बडा-बडेरा वां री फरमावणी री बाट जोय रैया हा। चिपेड़ा अर रुध्योड़ा कंठा सूं वां फरमावणी करणी सरू करी, “गवाड़ रै पींपळ गट्टै कनलै कीड़ी नगरै नैं उठ सुवार दोय महीणां तांईं सींचणौ है। थारै सारू बस, इत्तौ ई...”

मांग सुण नै उणरै टाळ उभोड़ा सगळा इण आफत घड़ी में हंस पड़्या। वै अचुंभौ कर्‌यौ, “किस्याक सुख्यारी जीव है-इत्ती-सी मांग?”

उण नैं नूंवौ कांम जमावणौ हौ, इण वास्तै वां री मौत रै बारहै दिनां पछै बाबू रै सागै दिल्ली वहीर होयग्यौ। वो दिन अर आज रौ दिन, अस्टपौर कांम कांम। कांम टाळ दूजी किणी चीज सारू वगत नीं।

आज छिणेक फुरसत मिळी तौ दिल्ली रै इण कमरै में बैठ्यां उण नैं अणछक जीसा री याद आयगी। वगत नीं मिळै, इण सूं वो वांनैं ठीकसर चेतै नीं कर सकै। आज दोय बरस अर पांच महीणा होयग्या। सोच रैयौ है, वां री छेहली अर छोटी-सी मांग नैं पूरी करण सारू दोय महीणां रौ वगत कींकर निकाळूं।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : चेतन स्वामी ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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