चूनीलाल चळू कर जिंयां उठण लाग्यौ, वींरी बहू बोली, “छोरी रै फेरां आडा दिन सात घटै है-ध्यांन है'क नीं?”

“घटै है तौ कांई करूं-नाच घालूं?”

“नाच तौ थांनैं घालणौ पड़सी। थे हौ बेटी रा बाप! 'बेटी जाई रे जगनाथ, ज्यांरा नीचै आया हाथ', कैवा कूड़ी तौ कोनी?”

“बेटी रौ बाप होय'र कांई गुन्हौ कर दियौ म्हैं, मांनखै री अेक धरती पर इसौ तौ बेटी रौ बाप अर इसौ बेटै रौ!”

“बेटै रै बाप रौ तौ रैब-रुतबौ न्यारौ। वींरी कमर तौ होवौ भलां मुट्ठी में मावै जित्ती ही पण आगलै रै घरै वा खुल्लै आठ मांचां पर है। सोभा-कुसोभा रौ भार तौ थांरै सिर पर है, वींनै तौ रत्तीभर सोच नीं”।

“म्हारै सिर पर है तौ म्हनैं डर क्यांरो? पांणी आडी पाळ म्हैं पैलां बांध राखी है। पींपा च्यार तौ घी पड़्यौ है घर रौ-नास्यां सूं पियै जिसौ, बोरी तीन पड़ी है खांड री अर कणक पड़ी है बोरी बीस-थाग लगायोड़ी। जांनी दोनां हाथां सूं जीमै तौ खूटै कोनी। कपड़ा-लत्ता अर गैणौ-गांठौ महीनौ होग्यौ बसायां, सोभा में वळै कांई घटग्यौ, कीं तूं तौ कह?”

“बेटी रै बाप नैं खाली इत्तै सूं नीं-सरै, और थोक मोकळा चाईजै!”

“और रौ कीं नांव सुणासी कै खाली दळियौ दळसी?”

“जांन रातभर तौ रुकै ली?”

“आ कोई पूछण री बात है, बा-तौ रुक सी”।

“रुकसी तौ वींनै मांचा चाईजसी। उनाळौ है, सीरखां तौ खैर नहीं, पण तकिया अर चादर-खेसला तौ चाईजसी? जांनी-कित्ता कांईं होसी, वांरै बन्दोबस्त खातर कीं अंदाज तौ होवै लो थांनैं?”

“आ तौ सावळ तै नहीं हुई”।

“नहीं हुई तौ आग लगंतां खोदै कुवौ, अैन टैम हथाळी पर तौ सरसूं हरी होवै नहीं? सागण वेळा कठै भागता फिरस्यौ? सूझ्यै सूं बूझ्यौ आछौ, सगै तांईं जावण में किसा बरस लागै है, उथळौ करलौ, आधै दिन रौ तौ कांम है?”

“जीम तौ म्हैं लियौ ई, अबार जाऊं, बस आवण मतै होवैली!”

वो बारै आयो। अै, च्यार भाई है। है तौ सै न्यारा-जुदा पण है सै अेक दरवाजै में अर अेक डोर में।

घरां आगै एक मोटौ दरवाजौ है। सगळां रै पक्का घर, अेक-अेक ऊंटगाडौ अर अेक-अेक ट्रैक्टर। मोकळौ धींणौ अर सांवठी खेती। च्यारूं गवाड़ी धापती-फाटती अर गांव सागै रळ-मिळ'र चालती।

बात नै भायां रै कांनां मांकर काढ, चूनौ विदा होग्यौ।

सगां रै अठै बजी इग्यारै अंदाज यो जा-ढूक्यौ।

तिबारी में छोरै रौ बाप अर दो-च्यार हथाईदार और बैठा हा। वांरे हाथां में होकौ करै हौ गुड-गुड। वां सागै रांम-रमी कर, आव-आदर सागै चूनौ बैठग्यौ उणां बिचाळै। पांणी-लूंणी पी, बात-बात में बण पूछ लियो, “जांन में मालकां आदमी अंदाजै कित्ताक हो ज्यासी?”

“नहीं-नहीं करतां आदमी छोटा-मोटा अस्सी-निब्बै नैड़ा तौ समझौ”।

“अस्सी-निब्बै रौ मुतळब सौ समझौ”।

“हां-हां, सौ सूं जादा कांईं होवैला?”

“पण आप हौ कीं ठाकरिया अर सागै ठेकैदार और; आपरै बारला भाई-परसंगी अर मेळ-मुलागाती कीं अणचींत्या सकै है, इण हिसाब घणै सूं घणा डोढ सौ होय ज्यावैला?”

“डोढ सौ सूं जादा रौ तौ खैर सवाल नीं”।

“सवाल नीं तौ पच्चीस री छूट आपरी तरफ सूं अर पच्चीस री म्हारी तरफ सूं और, दो सौ सूं ऊंचा तौ नीं होवैला?”

“नीं-नीं, इंयां पछै कांई सगळै गांव नैं टोरणौ है?”

“इंयां दस-पांच और होवै तौ खट सकै है”।

“नीं-नीं, दो सौ सूं तौ आपणै बचियौ बेसी नीं होवै”।

“होवै तौ संकोच मत किया, अबार थकौ कैय दिया?”

“नीं-नीं, दो सौ तौ टोकी समझौ आपणै”।

“जांन अंदाजै कित्ताक बजी ढूक ज्यासी?”

“गरमी पड़ै है, अठै सूं बजी च्यारेक टुरस्यां, जांणां तौ हां दो घड़ी दिन थकां आपरै अठै आ-ढूकस्यां”।

“तौ अबै होवै हुकम, जाऊं?”

“इंयां कांई, आया हौ तौ कीं जीम-जूठ'र जाऔ!”

“मंगळवार है, अेक टैम ही जीम्या करूं हूं, घर सूं जीम'र टुर्‌यो हौ”।

“फेर आपरी मरजी”।

वो रवांना होयौ। सिंझ्या बजी पांचेक घरै आ-लियौ। होई जकी बात भायां आगै है ज्यूं-री त्यूं राखदी। भाई बड़ा राजी हुया।मांचा अर गाभा उणां अेक दिन आगूंच भेळा करवा'र इस्कूल में रखवा दिया।

दिन जावतां कांई ताळ लागै? सावै रौ दिन आ-लियौ मूंढै आगै। आखातीज ही वी दिन। दो बजै ही, लाय ओसरै ही आभै सूं। बीन रै घर आगै दो बसां अर दो जोंगा आ-खड़ी हुई। अेक जीप अर अेक कार भोरा-भोर ही पूगी ही।

ढोल बाजणौ सरू होग्यौ।आवाज बींरी हवा पर तिरती आखै गांव रै आकास में गूंज उठी। छोरा जिंयां मदारी री डुगडुगी सुण'र दौड़ता होवै, जांनी बियां बसां कांनी टुर पड़्या। केई छोरा-छींपरा बिना कुंकुं-पतरी दबादब बस में बैठे हा। धणी मना नहीं करै तौ और कींरी बाटी बळै ही, कुण करै मना कींनै हीं? देखतां देखतां दोनूं बसां अर दोनूं जोंगा खचाखच भरीजगी ऊपर-नीचै। जांनी छोटा-मोटा ढाई सौ सूं ऊपर टिपग्या पण धणी नैं बठीनै देखण नै टैम नीं। च्यार बजतां-बजतां जांन टुरगी ढोल रै ठमकै।

पूणेक घंटा लागी होसी, जांन बीकानेर आ-पूगी। बठै केई मास्टर, ओवरसीयर, पटवारी, ग्रामसेवक, हवलदार अर सिपाही, इंयां करतां कोई बीस-बाईस अैलकार और होग्या। बीन आगै नाचण नैं दो छोरा दमाम्यां रा और ले लिया। जांन सागै, ऊपर-नीचै भरी दो जोंगा और होयगी।

जांन बठै सूं टुर, तीन कोस गांव गाढवाळै आ-ढूकी। बठै ठेकैदारजी री दो भतीज्यां परणायोड़ी ही अर सागै आपरौ नांनाणौ उणीं गांव में हो।

‘अरे, इण जांन में आज नहीं तौ फेर कद?’ केई आवाजां हवा में उछळी। ठेकैदारजी कैयो, “जरूर चढो, बामण नैं मत पूछौ, ब्याव कोई दूबळै घर थोड़ै है? एक ट्रैक्टर री ट्रॉली में आदमी बीस-बाईसेक और चढग्या बठै सूं। जांन चौड़ी होवै ही सुरसा रै मूंढै दांई”।

कंठ आला कर जांन टुरी बठै सूं, दो-ढाई कोस पर आ-लियौ नापासर। बठै ठेकैदारजी रा दो सीरवाळी और आयोड़ा हा आप-आपरी जीप लियां। रांम-रमी होंवता ठेकैदारजी कैयो, “अरे थे आ-लिया, मजौ कर दियौ। थांरी तौ पूरी उडीक ही म्हनैं”।

दो बाणियां, दो मास्टर अर च्यार बीन रा साथी-संगळिया अर अेक नाई, कोई पंदरै-सोळै आदम्यां रौ अेक झूलरौ जांन री बधती कतार में और रळग्यौ, जोंगा अेक और बधगी। जांन हड़मानजी री पूंछ होवै ही पण बीन रै बाप री आंख्यां ही खुलै कठै ही? मोसीजता-पींचीजता जांनी कोई साढी तीन सौ नैड़ा होग्या।

जांन दिन छिप्यां सूं दो घड़ी पैलां आ-पूगी ठिकांणैसर। चाळीस-पचास आदमी रांम-रमी करता वांरी अगवांणी में पैलां सूं खड़ा हा। बेटी रौ बाप खड़ौ हौ उणां में। वो जांन कांनी देखतौ रैयौ काईताळ टकटकी लगा'र। आदमी गिणतौ रैयौ मन मन। फेर उण गांव रै पांच-सात मातबर आदम्यां नैं लिया अेकै पसवाड़ै अर सागै लियौ बीन रै बाप नैं ई।

वो रुख आपरौ बीन रै बाप कांनी करतौ बोल्यौ, “मालकां, घरै बाखळ में मेज-कुरस्यां लाग्योड़ी है, प्लेटां त्यार है, पधारौ पण आदमी म्हनैं डोढ सौ नैड़ा बेसी लागै है?”

“जांन रौ पेट है, आदमी तौ नहीं-नहीं करतां कीं बेसी ही होग्या”।

“पण बात आपणै कित्तां री होयोड़ी ही?”

“दो सौ री”।

“दो सौ नहीं, म्हैं कैयौ हौ दस-पांच और होवै तौ कोई बात नीं, खटै है, पण आदम्यां री तादाद आप सरू कठै सूं करी ही, साची कैया?”

“अस्सी-निब्बै सूं”।

“अर म्हैं डफोळ लटाई खुली छोडण में कसर नीं-राखी। अस्सी-निब्बै सूं आपनैं दो सौ पंदरै पर ला छोड़्या, इणरै उपरांत हाथ जोड़तै म्हैं और कही आपनैं कै ओजूं कीं कमती-बेसी होवै तौ संक्या मत, कैय दिया। आप कैयौ, दो सौ टोकी है, इण सूं बचियौ बेसी नीं होवै। क्यूं, झूठ तौ नीं बोलूं?”

“नीं”।

“नीं तौ म्हारै दरवाजै छोटा-मोटा आदमी दो सौ पंदरै तौ प्रेम सूं बाड़ौ, दो सौ सोळवौं आवतां म्हैं भोगळ जड़ देस्यूं, बारलौ बारै अर मांयलौ मांय”।

“लाडू री कोर में म्हारै तौ सै सिरीसा, म्हैं कींनै तौ बाडूं अर कींनै रोकूं?”

“कींनै रोकौ अर कींनै नीं, आ-तौ आप सोचौ, कांम म्हारौ कोनी। म्हारौ तौ इण में इत्तौ कसूर है कै म्हैं ठैर्‌‌‌‌‌‌‌यौ बेटी रौ बाप, बेटी रौ बाप होणौ म्हारौ कसूर है। आप आगै पलकां बिछाऊं तौ वै आपरै चरणां रै चुभै, कठपूतळी दांईं नाचूं आप आगै तौ आपरै काळजै रड़कै। आप ठैर्‌या बीन रा बाप-गजराज, जूं जिसौ बेटी रौ बाप, आपरी निजर नीचै किंयां आवै? म्हारी पाघड़ी उछळनी ही बा गई उछळ, कोई बात नीं, फेरूं म्हैं कायम हूं म्हारै वचनां माथै, कायम आपनै रैणौ चाईजै आपरै वचनां माथै। दो सौ पंदरै आदमी तौ आपनैं आछा लागै बै ढूकण देवौ मांय, दो सौ सोळवौं आवतां भोगळ बंद है”।

चूनै रा भाई राजी अर बठै खड़ा हा बै सगळा चूनै सागै। उणां में नाराज अर उत्तेजना में हौ कोई तौ खाली बीन रौ बाप। वो कीं तातौ होंवतौ बोल्यौ, “जे बात है तो, संबंध फेर नीं हो सकै”।

“नीं होय सकै तौ किसौ जोर है मालकां, बेटौ थांरौ है पण बात अेकर और सोचलौ”।

“सोच लियौ, कीं हालत में हीं नीं होय सकै!”

“तीजै चावळ सीजै, अेक मौकौ और है आपनैं, अेकर वळै सोचलौ, कीं ठंडै माथै सूं”।

“सोच लियौ-सोच लियौ, आज होवै काल!” बीन रै बाप रौ सुर कीं तीखौ हौ।

“नीं होवै तौ जोर थोड़ौ है, जा'र लगाऊं भोगळ फेर?”

“अेकर नीं सात बार लगाऔ, दरवाजौ थांरौ, भोगळ थांरी”।

वो टुरग्यौ खाथौ-खाथौ। घरे पूग्यौ जित्तै वींरौ लारीनै देखणौ तौ दूर उण तौ बठीनै नस टेढी नीं करी।

बीन रै बाप कह तौ दियौ सेखी में। उण देख्यौ, इंयां आज सूं काल थोड़ी होवै है? छेकड़ छोरीआळौ है, तेल चढ़्योड़ी छोरी कित्तीक ताळ खटसी? पारौ कीं उतरतां ईवो-तौ हाथाजोड़ी करतौ भाग्यौ आसी अर ठोडी रै हाथ लगा-लगा लटवा करसी, पण वींरौ सोचणौ सेखचिल्ली रै सपनां-दांई हवा में गयौ। बाबौ आवै ताळी बाजै, वो आयौ अर और कींनै भेज्यौ।

नास्तौ गयौ भाड़ में, पांणी बिना जांनियां रा सूकै हा कंठ अर भूख मरतां री आंख्यां आवै ही बारै।

केई स्याणा-समझणां ठेकैदारजी सागै सलाह करी कै जे धन दीसै जावतौ तौ आधौ लीजै बांट, बीन गयौ बिना परणीज्यां बैरंग, तौ आपणी होसी चौखलै में चक-चक। आप कैवौ तौ म्हे जा'र वींनैं मनावां किंयां कर'र?

“मनावौ, मनतौ होवै तौ!”

वै आया अर बेटी रै बाप नै बोल्या, “मालकां, जीमण नैं आप ऊंचौ टांगौ, जांन नैं अेकर नास्ती करा'र छोरै नैं दिरवा फेरा, बिदा करदौ म्हांनैं, म्हे राजी, म्हारौ रांम राजी”।

“म्हारै तौ जीमण अर नास्तौ दोनूं त्यार हौ। आप इत्ता हौ अर इत्ता और होंवता तौ म्हैं कोनीं धारतौ, पण बेटै रै बाप री आंख्यां में इसौ कांई नसौ बड़ बैठौ जिकौ वांरी समझ नैं ढकली। वां सोच लियौ के बेटी रौ बाप मिनख नहीं, वो-तौ आपणौ भार ढोऊ जिनावर है दुपगौ। वीं कनैं सूं आपां जित्ता पांवडा भरवास्यां बित्ता ही भरणा पड़सी वींनै। इण खातर म्हारी जबांन रौ कीं अरथ अर म्हारी जाचना रौ। म्हारौ बंदोबस्त कियोड़ै पर पांणी फेर दियौ। म्हारै साच री साख खतम हुई। दो सौ आदम्यां रौ बंदोबस्त कियौ, डोढ सौ रौ और करूं, म्हारी हैसियत सारू दत्त-दायजौ दूं-आछै सूं आछौ, फेर नीचौ देखूं अर सागै मूंढै रै ताळौ लगायोड़ौ और राखूं, इसौ अपंग अर हिम्मतटूट म्हैं कोनी, बेटी जेठ रै तांण कोनी जाई! निंदा-स्तुति म्हारी होणी ही बा होयगी, अबै आप सिधावौ राजी-खुसी। भोगळ जड़ीजगी वा अबै नीं खुलै”।

“म्हारा स्यांणा, गई पर तौ नांखौ धूड़, ओजूं कीं नीं बीगड़्यौ। रूस्या मनीजै अर फाट्या सीड़ीजै”।

“पण पूर थोड़ा फाट्या है, फाट्यौ तौ मन है, वो सीड़ीजै किंयां? कारी लाग्योड़ौ संबंध म्हैं नीं राखूं”।

“पण इंयां सफा नीची नांख्यां पार नीं पड़ै, बात नैं कीं ऊंडी बिचारौ!”

“बिचारली म्हैं, भाठौ थांरै हाथ सूं छूट्यो है, लागी म्हारै है, थांरै नीं। साची बात है कै फैसलौ म्हारौ कोनी, आखै गांव रौ है। बेटी म्हारी नीं, आखै गांव री है। गांव नीं चावै तौ म्हैं वीं सागै धक्कौ किंयां करूं? म्हनैं पूछौ जद तौ टैम खोटी मत करौ, टुरणै में इज लाभ है”।

सुण'र वै ठंडा-टीप हुग्या। सिर नीचौ करता टुरग्या।

जांन टुरगी-सागी पगां अर सागी मारगां—सूकै कंठां, भींचीजती आंतां अर उडतै चैरां। बीनणी, दायजौ, फेर सीख में कमी नीं।

नापासर आवतां केई समझदार जांनियां कैयौ, “ठेकैदार साब, धाया थांरै जीमण सूं कंठ तौ कीं आला करवाऔं!”

करवावै वीं में किरियावर कींनै? नीं-नीं करतां पांच सौ-सात सौ रौ जूत तौ लाग गियौ वांरै अणचींत्यौ।

लवै लागतां केई जणां ठेकैदारजी नैं कैयो, “बातड़ी तौ माड़ी हुई, कूटीज्या थोड़ा-घींसीज्या घणा अर कुसोभा रौ तौ छेड़ौ कांई?

ठेकैदारजी आपरै व्यवसाय में कुण जांणै कित्ती कूड़ केवटी हुसी, पण अबार अंतःकरण री आवाज नैं वै नीं दबा सक्या। बोल्या, “कसूर इण में अगलै रौ नीं, म्हारौ इज है। होई बा, सगळी म्हारै कारण हुई, सीख मिळी, आगै सारू चेतौ राखस्यां। कोई सौ बुलासी तौ आपां बस पड़तां निब्बै लेजास्यां”।

घाव बैरी रौ सरांणौ, बात सगळां रै दाय आई।

कीं चुग्गौ-पांणी कर जांन पाछी टुरगी। आई हंसती, जावै ही मूंढो फीडौ कियां। सगळा सोचै हा, “कद घर आवै अर कद रोटीसर होवां?”

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : अन्नाराम सुदामा ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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