दिनूगै रो बखत हो। जज साहब पढण-लिखण रै कमरै मांय बैठा लारलै तीन-च्यार दिनां मांय आयोड़ी डाक नैं देख-देख’र पढै हा। हासियै माथै नान्हा-नान्हा नोट लगाय, इनीशियल करनै तारीख लगावै हा। माथै ऊपर पंखो चालै हो। ट्यूब-लाइट चसै ही। छोटा, लाम्बा, अेक पेज रा अर दो-च्यार पेज रा भांत-भांत रा सरकारी कागज निकळता जावै हा अर जज साहब री निजर जरूरी-जरूरी बातां पर फिरती जावै ही अर बीं रै सागै ही आंगळ्यां मांय दब्योड़ी लाल पेन्सिल निसाण लगावती जावै ही। डाक रै पैड रै सागै कई निजू कागज भी निकळता जावै हा। समय भागतो जावै हो, पण डाक रो पैड तो खाली हुवण रो नांव ही कोनी लेवै हो। कचैड़ी रो बखत सामैं भागतो आवै हो। आज रै मुकदमां री तारीखां मिसलां मांय सूं मूंडो काढनै झांकै ही। केई मुकदमां रा आज फैसला सुणावणा हा। बै भी झांक-झांक नै आपरै भाग रो निर्णय लिखण रो तकादो करता जावै हा। जीव अेकलो पण जोखूं घणी ही। आं सगळी समस्यावां मांय जज साहब रस्तो काढता जावै हा। निजू कागज जणां ही आंवता, जज साहब रो मूंडो खिल जांवतो। कई कागजां नै देखतां ही मूंडै रा भाव उपेक्षा सूं भरीज जांवता, पण स्याणो आदमी खरी-खोटी सगळी बातां नै पीवतो अर बखत रो तकादो मान नै सगळा जरूरी काम सलटांवतो रैवै। लिलाड़ माथै पसीनै री हळकी-हळकी बूंदां आगी ही। बार-बार जज साहब बारी मांय सूं आंवतै तावड़ै रै चिलकै नैं देखता हा। कालै री बिरखा रै कारण आज तावड़ै मांय गरमी थोड़ी ही, पण अमूजो घणो हो। थोड़ा सा कागज रिया जणां अेक मैली सी खाम आपरै नांव री थोड़ै भणियोड़ै मिनख रै हाथ सूं ठिकाणो करयोड़ी मिली। जज साहब ई खाम नैं दो-तीन बार उलट-पलट नै देखी अर जाणणो चायो कै आ खाम भेजण आळो कुण है, पण ऊपर सूं देखण सूं कीं पतो कोनी चालै हो के इणनै भेजण आळो कुण है। हारनै खाम रो खूणो फाड़्यो अर कागज काढिया। बारै सूं मधरी चालती पून रो झोंको कणां-कणां ही आवै हो। फेर आवण आळी बिरखा रो अमूजो बधतो ही जावै हो । चढ़तै सूरज रो ताव पून माथै हो। जज साहब रा कान कमरै रै बारणै कानी हा। पेसकार रै आवण रो बखत हो। डाक रा कागज हाल तांई सळट्या कोनी।
खाम मांय सूं कागद काढ नै सीधा करिया। कागद लाम्बा हा। पढण रो पूरो वगत कोनी हो। इण वास्तै ईं कागद नै मिसलां रै बस्तै कानी राख नै दूसरा कागद देखबा लागग्या। पेसकार री उडीक घणी ही, पण वो हाल ताईं आयो कोनी हो। लिलाड़ माथै तीन-तीन सळ अेकै सागै ही आवै हा, पण थोड़ी ताळ पछै वै सगळा पाछा मिटता जावै हा। कारण पेसकार काल जज साहब रै सागै दौरै सूं आयो है। थोड़ो-भोत घर रो काम करनै अठै आसी। पेसकार निरीक्षण री रिपोर्ट बणासी, हाइकोर्ट रा रिटर्न त्यार करसी। आज री तारीख री मिसलां संभाळसी। कचैड़ी गयां पछै बींनैं तो माथो ही उठावण री फुरसत कोनी मिलसी। वकील-मुवक्किल सगळा घेर लेसी। पाणी पीवण रो बखत भी कोनी देसी। दस्तखतां री मिसलां अठै भेजसी, कई मिसलां सलटाणै सारू घरे ले जासी अर दिनूगै बांनैं अठै भेजसी। घाणी रै बैल दांई रात-दिन मरतो रैसी। आ सोच’र जज साहब रै लिलाड़ रा सळ पाछा हुवै हा। डाक रा सगळा कागद सळटाय नै जज साहव बो कागद पढण सारू उठायो। पढणो सरू करियो –
“श्रीमान जी,
हाथ जोड़नै अरज करूं। म्हारो नाम किसनी है। साकिन रैणी, हाल बीकानेर है। आज सूं बोळा बरसां पैली जणां तीन बरस अेक साथै ही काळ पड़ियो, म्हारो ब्याव किसनै रै सागै हुयो हो। जद हूं टाबर ही। बाळपणां रा दिन भागता-दौड़ता गुजर गया। जणां हूं दूधड़ियो उठावण जोग हुई, म्हारो मुकलावो हुयो। मुकलावै रै थोड़ा दिनां पछै सासूजी नैं बांडी खायगी। घणां ही झाड़ा करिया, पण बै तो सूता जका इस्या सूता के फेर उठ्या ही कोनी। दोय-दोय काळ अेकै सागै। मौत तो भगवान री दियोड़ी आवै, पण कणां-कणां ही कुमौत भी आय जावै। मौत तो जीवण रो झंझट ही मिटावै, पण कुमौत तो कुळ रो नाम ही डुबोय देवै। सासूजी रै ओसर रो करजो अर ऊपर सूं काळ, अै कुमौत सा ही हा। सेठां रो तगादो अर राज री बीगोड़ी जीवणो ही दूभर कर दियो। सांसर अर खेत अेकै सागै ही ढोकळी देयग्या। अेसान रो तगादो सगळा सूं बध’र हो।
हूं आं सगळी तकलीफां नैं भोगती जीवै ही, आं बिखै रै दिनां मांय ही म्हारो पग भारी हुयग्यो। सुआड़ कराण नैं पीहर आई। छाछ-रोटी खाय नै दिन निकाळै ही। भगवान नैं इत्तो सुख भी मंजूर कोनी हो। गांव मांय छोटी सी बात नैं लेयनै राड़ हुई। संसार मांय दोखी-सोखी हुया ही करै। बखत रो फायदो उठाय नै बांरो नाम लिखाय दियो। जै’र खावण नैं ही कनै छदाम कोनी ही। राज-काज रो खर्चो कठै सूं भुगत्यो जावै। लेय-देय नैं सगळां अेको करनै बांनैं फंसाय दियो। 302 मांय बांनै 5 साल री सजा हुयगी। म्हारो जनम चोखा नखतां मांय हुयो हो। पण चोखा नखत आपरो परभाव दिखाता उण सूं पैली ही खोटी साढेसाती लागगी। तन रो बैरी कपड़ो हुयग्यो अर अन्न रो दांतां सूं बैर हुयग्यो। गोधां री लड़ाई मांय बूंटां रो नास हुयग्यो। मिनख थकां मैं रांड जिसी हुयगी। म्हैं आ कदे ही कोनी सोची ही कै मनैं मोट्यार जीवतां थकां रंडापो काटणो पड़सी। बखत करै जिसी बैरी भी कोनी करै। ओ विधाता रो लेख है, जिको मनै भोगणो ही पड़सी। मोट्यार रै जावतां ही गांव री गळी-गळी म्हारी दुसमण हुयगी। अेक दिन रातोरात गांव छोड़नै सै’र री सरण ली। अबै अठै सै’र मांय सेठां रै गोबर-पोठा उठाऊं अर दोरो-सोरो दोन्यां रो पेट भरूं। पेट कितरो पापी है, जिको न तो कदे ही भरीजै अर न भरियो जाय सकै।
पाछलै दिनां नै याद कर-करनै रोऊं अर रोय-रोय नै तो मरियो कोनी जाय सकै। मरणै रै पैली ईं डीकरी रो घर ही बसाणो है। हाल तांई म्हारो मन मरणियो कोनी है। डील रिस-रिसनै खोखलो हुवतो जावै पण भावना आसा रै आधार माथै जीवै है, पांगरै है। आपनै के बताऊं, जणै ही आभै मांय बादळ उमड़ै है, बिजळी झबका मारै, म्हारो जीव आकळ-बाकळ हुय जावै। सावणियै रा दिन याद आय जावै। डीकरी बां री जियांरी जियां म्हारै माथै हाथ राखनै सोवै। बो भी बखत हो जणां हूं बांरी छियां मांय निधड़क हुयनै सोवती ही। बिरखा री मोटी-मोटी छांटां म्हारै डील मांय अेकै सागै ही सौ-सौ काम जगाय देवै। रमण-खेलण री मन मांय आवण लाग जावै। हूं वगत री सतायोड़ी अर रोटी री मारियोड़ी हूं। हूं आपनै के अरज करूं, आप घणा ही समझदार हो। हाल तांई बांरी आंगळयां रै आयटणां रा घाव म्हारै हांचळ माथै है। जणां-कणां ही हूं आ कैवती के थे इयां कांई करो हो, अै टूट ज्यासी, वै मुळकनै उथळो देंवता – “अै म्हारी याद रा निसाण है।” सागै ही सिनान करती वेळा जणै डील माथै हूं हाथ फेरूं, अै घाव म्हारी आगळ्यां सूं कुचरीज जावै अर म्हारी आंख्यां सूं अेकै सागै ही सौ-सौ चौसरा बैवण लाग जावै।
काल री बात है। हूं सेठां री गाय गूजर कनैं दुआवण सारू खड़ी ही। गूजर गाय रा थण धोय नै गुणियो गोडां मांय दबाय नै थणां मांय हाथ घालवा लाग्यो, जणां गाय कूदबा लागगी। गूजर उठनै गाय नैं घूम फिरनै देखी अर बोल्यो – “आ तो रूंआं मांय है। सांड कनैं लेजावणी पड़सी।” आ कैयनै न्याणो पाछो खोल लियो अर म्हारै कानी देखनै मुळकनै कहियो, कणां ही थे भी रूंआं मांय आवो हो’क नीं...!”
हूं थूक गिटती बोली – “अठै तो बीखै रा दिन पाधरा करां हा।” जकै दिन पछै म्हारो माथो इस्यो खराब हुयो कै न रात नैं नींद आवै अर न दिन मांय चैन। जणां-कणां आंख झपकती तो इयां मालम पड़तो के मनैं गोडां नीचै दबाय राखी है अर हूं पसवाड़ो फेरण रो जतन करूं। इनैं आंख खुल जावै अर रात रो सागीड़ो काळो अंधकार खावण नैं दोड़ै है। आपनैं के बताऊं! लुगाई री गत लुगाई समझै है। पौ-मा’री डांफर मनै आखी रात ही कोनी सोवण देवै। पून रै फटकारै सूं बाजता किवाड़ भूत रो बैम करावता रैवै।
श्रीमानजी, आपनैं के लिखूं! कपड़ा फाट्योड़ा है पण डील बां मांय सूं ही बिखरतो दीखै। चौमासै मांय अकूरड़ी ही हरी हुय जावै। मिनखरी बात ही के कैवणी। जमानो नाजुक है। म्हारी जरूरत समाज री आवश्यकता है। जे म्हारो पग उलटो-सीधो पड़ जावै तो ओ म्हारो कसूर कोनी हुवैलो। मनै सायेरो चाहिजै। सायेरो मारग सूं भटकाय भी देवै। धोखो कोनी देवणो चावूं। म्हारी आस्था अर विस्वास डिगाणो कोनी चावूं हूं। इण वास्तै आप सूं अरज करूं हूं के म्हारै सागै न्याय करोला।
न्याय करण आळा भगवान रो कोप राखै है।
आपरी
किसनी
बेवा किसनै री
कागद रै पूरो हुतां ही दस रा टणका लाग्या। जज साहब रै लिलाड़ माथै भावां रा भतूळिया आबा लागग्या। पेसकार रो संदेसो आयोड़ो हो के बींरी लुगाई री हालत खराब है इण वास्तै आज बो कचैड़ी आय कोनी सकैलो। जज साहब कागद माथै पी० पी० लगाय नै इनीशियल करिया। सगळी डाक नैं भेळी कर नै कचैड़ी पुगावण रो अरदली नैं हुकम दियो।
अर बो दिन जज साहब रो बयान लेवण मांय, फैसला लिखण मांय, पेसियां री तारीखां देवण मांय अर तहसीलां री रिपोर्टां लिखण मांय गुजर गयो। सिंझ्या बंगलैं पूग्या जणां बोळा थकग्या हा। खावणो-पीवणो करनै घूमण नै गया परा। तरो-ताजा हूयनै थोड़ी रात पड़ियां पछै पाछा आया। पाछा मिसलां निकाळवा लागग्या। काम करतां-करतां दस बजण लागगी। पाछी थकाण आबा लागगी ही। बारी मांय सूं अन्धारघुप्प दीखै ही। ध्यान सूं देख्यो तो पतो चाल्यो कै बिरखा हुवण आळी है। आभो बादळां सूं भरियो हो। दूर-दूर तांई बिजळी झबका मारै ही। पून ठै’र ठै’र नै चालै ही। बधाउड़ा आबा लागग्या हा। जज साहब पाछा काम सलटावण नैं बैठग्या। जितै किसनू वल्द हेताराम री मिसल सामैं आई। दिनूगै आळा सगळा समाचार आंख्यां आगै फिरवा लागग्या। जज साहब रा विचार पाछा झटका खायनै घूमवा लागग्या।
काल री ही तो बात है।
सरकारी गाडी पूगळ रोड़ पार करनै सिविल लाइन्स मांय पूगी जणां रात री नव बजबा लागगी ही। छांटाछिड़को थोड़ी ताळ पैली ही हुयो हो। सगळी सड़क पाणी सूं भरी ही। सड़क निरजन ही जाणै आधी रात हुयगी है। भूली-भटकी अेक-दो कार फर्राटै सूं निकळ जावै ही। थम्बां री लाइटां मांय भूत रो बैम पड़तो हो। कठै-कठै ही गाडी रा चक्का छप-छप करै हा। बंगलै आगै गाडी खड़ी हुयनै होर्न दियो। गाडी रै लारै सूं पेसकार उतरनै फाटक खोलियो। सामैं बरामदै मांय लट्टू चसै हो। मोटर री आवाज सुणनै जज साहब री धण कमरै रो बारणो खोलनै बारै आई। सुघड़ लुगाई ही। बरस कोई 40-45 री लागै ही। चाल रो ठसको जुवानी नैं ठोकर मारै हो। नौकर नैं आवाज देवण नैं मून्डो खोलै ही जतै नैं नौकर आयनै गाडी सूं सामान उतारबा लागग्यो।
साहब मुळक नै उतरिया। वा ओळमां रै स्वर मांय बोली –
“बो’ळो मोड़ो करियो…?”
“बिरखा रै कारण गाडी स्पीड कोनी पकड़ी”
“आ देखनै हूं सोचै ही कै थोड़ो मोड़ो-बेगो जरूर हुय ज्यासी।” लारै-लारै चालती बोली।
“चाय तो बणाओ।” सोफै माथै बैठता जज साहब बोल्या।
मोटर रो सगळो सामान कमरै मांय आयग्यो। चाय री ट्रे आई। धण बणाय नै जज साहब नैं दी। फेर आप वास्तै बणावण लागगी। चाय री चुस्की लेवता जज साहब बोल्या “पेसकारजी नैं।”
“हां, चाय अर नास्तै रो कहियो पण बां तो चाय ही ली। खाणो खायनै आया है, बतायो,” चाय पीवती जज साहब री धण बोली। जज साहब बोल्या – “तहसीलदार भगवानसिंह बडो स्याणो है। खातरी भी चोखी करी। आपरै वास्तै घी रो पीपो खिनायो है।”
“हां..! खाली हाथ किणनैं ही आवण ही कोनी देवै। मनैं ही कातीसरै रो नूंतो दियो है,” दोन्यूं जणा होळै-होळै चाय पीवै हा। पगां री आणाज सुणनै जज साहब बारणै कानी देख्यो। पेसकार नैं देखनै बोल्या “अबै जावो। काल मिल लिया। गाडी आपनै घर तांई छोड देसी।”
पेसकारजी हंकारो भरनै मुड़ग्या। बंगलै मांय सूं पाछी जांवती गाड़ी रो होर्न सुणीज्यो। बाथरूम कानी जावता जज साहब बोल्या – “हूं कपड़ा पळटनै आऊं।” मेम साहब उठनै कीचन कानी जाय नै दूध ठंडो कर साहब रै सोणै रै पलंग कनै राख नै बंगला रा फाटका ढक्या। इत्तै नैं जज साहब बाथरूम सूं आयग्या। धण बोली – “थे चालो। दूध ठंडो करनै राख्यो है, हूं अबार आऊं हूं।” आ कैवती वा बाथरूम मांय बड़गी।
जज साहब सोवण आळै कमरै मांय जाय नै टेबललैम्प जळायनै दूध पीयनै पलंग माथै सोयग्या। अर सूता-सूता लारलै दिनां रै अखबारां रा कागज पलटवा लागग्या। पानां रै सागै नींद आयबा लागगी। आधी घड़ी मुस्कल सूं बीती हुसी। मेम साहब कमरै मांय बड़नै फाटक ढकियो। खटको सुणनै जज साहब जाग्या। गाउन कनैं राखती बोली, “म्हारो तो बिरखा मांय काळजो बैठतो जावै हो” – कनैं सिरकता साहब बोल्या – “जणां ही तो मैं आ जाण गयो हो,” कईं टटोळता बोल्या। वा भेळी हुयबा लागगी। जज साहब और संकोड़ीजता जावै हा।
मेम साहब बोल्या – “आज इयां किया।” संभळता जज साहब बोल्या – “अेक अैड़ी समस्या है जकी रो मनैं कठै ही समाधान कोन्यां दीखै। हूं दोन्यां कानी पाप रो भागी हूं।” आ कैयनै सगळो कागद पढ़नै सुणायो। बारै जोर सूं बिरखा हूबा लागगी ही। परनाळां पाणी पड़वा लागग्यो। हाथ पकड़नै उठावती बोली – “हूं तो कीं कोनी जाणूं, मनैं तो आज भी इयां मालम पड़ै कै म्हारो ब्याव तो काल ही हुयो है।”
थोड़ी ताळ तांई जज साहब आयटांळै रै घावां नैं खोजता रिया। धण बोली – “के खोजो हो”
“घावां नैं”
“बै अठै कोनी है, काळजै मांय है” आ कैवती सोवण रा जतन करबा लागगी। पण जज साहब री आंख्यां मांय नींद कठै। जणां ही सोचण रो जतन करै सामैं खड़ी लुगाई किरपा मांगती दीखै अर कैवै, जज साहब! म्हारो भलो कीज्यो। जज साहब बड़बड़ायनै उठ्या। ओ कोई न्याय है, जको इन्सान नैं रिसाय-रियास नै मारै। धण हड़बड़ाय नै उठी अर बोली “कैवो!”
“नींद कोनी आवै”
“अठी नैं आवो।” अर कनैं खींचती बोली “नींद आय ज्यासी।”