उण ठाकर सा’ब रौ नांव रिपुदमन सिंघ हौ। रिपु रौ दमन तौ अै कियां करता? क्यूंकै जद अै दस-बरस रा हा, तद देस आजाद होयग्यौ हौ अर आंरी कोटड़ी सूं ठुकरेस उठ परी गयी। इण वास्तै रिपु तौ आं रौ साम्ही रैया कोनी। फेरूं जथा नांव तथा गुण रै मुजब आं में करड़ बियां री बियां ही। दोय-सौ नैड़ा घरा री बस्ती रै इण जसगढ़ गांव में जद ठाकर सा’ब किणी आणै-टाणै गांव में निसरता तौ साम्हीं जिको भी मिलतौ आंनै मुजरौ करणौ नीं भूलतौ… बाबोसा मुजरौ! या बाबोसा पाय लागूं!

ठाकर सा’ब पोमीज’नै मुळकता। कैवता, “कियां फलाणियां, कांई हालचाल है?”

“ठीक है बाबोसा।”

“नाज-पात कित्तौ’क होयौ..?”

“घर पड़ता रैयग्या, समझौ, थै जाणौ आजकालै बिजळी अर खाद कितरी मैंगी होयगी है।”

सुण’र ठाकर सा’ब आपरी बात सरू कर देवता। जद ठाकर सा’ब बोलता, तद आगलौ फगत सुणतौ अर ‘हां-सा’, ‘हां-सा’ करतौ रैवतौ। वै जो कीं बोलता आगलै नैं सुणणौ पड़तौ। वै लगैटगै ईज राग अलापता के भाया, जमानौ भोत खराब आयग्यौ है। म्हे म्हारै कुवां माथै हाळियां सूं कांम करावां, जणै म्हारौ जी जाणै। जिकां नैं कदी काठ में दे नाखता, वै आज हिस्सा-पांतीदार होय रैया है। नीं तौ के मजाल कै कोई चूं बोल जावै। खाल में मुसालो भर देवताष पण भाया, बगत री बळिहारी है। आज गोरमेंट आं अेससी-अेसटी आळां नैं माथै बिठा राख्या है। जे कोई कीं देवै तौ सीधा थाणै में रिपोट लिखावै। म्हारा दादोसा हुकम ठीक फरमावता के अै “गांधी-नेहरू” अपांरा पूर चकानै छोडैला। अै धोळपोसिया अैड़ौ जमानौ ल्यावैला कै धूळ पगां चाल जावैली। ...अर वा ईज होय रैयी है। अबै देखलै, आपणै गांव आळो बुधियौ कलेक्टर बण रैयो है। अेक चमार रौ छोरौ कलेक्टर! वो कांई कैयीजै-जिलाधीश!” ठाकर सा’ब ‘धीश’ माथै अेक मखौल उडावतौ-सौ रद्दौ लगावता। “नांव देख्यौ कांई धर्‌यो है बी. आर. सुणिया! बुधराम रौ बी. आर. अर सुणिया! …औ म्हाटो सुणिया कांई होवै रे…!” ठाकर सा’ब हांसता।

अठीनै बिचारौ बी. आर. सुणिया ठाकर सा’ब रौ कदै निरादर कोनी करियौ। जद-जद भी वौ गांव आयौ, ठाकर सा’ब नैं मुजरौ करणौ नीं भूल्यौ। बी. आर. यानी बुधराम ईज सोचतौ के मियांजी नैं सलाम तांई क्यूं निराज करां। इणरै अलावा अेक घरू कारण और हौ। किणी वगत उण रा मां-बाप ठाकर सा’ब रै अठै हाळी रैया। इण वास्तै बी. आर. टाबरपणै सूं कोटड़ी में आवतौ-जावतौ। कोटड़ी रा काण-कायदा जाणतौ हौ कोटड़ी रौ कदीनौ रिवाज हौ के कोटड़ी रा मालक बडा होवै। इण वास्तै वौ कदी ठाकर सा’ब रै बरोबर नीं बैठ्यौ सदीव उणां रौ कायदौ राख्यौ।

पण ठाकर सा’ब बी. आर. में कदी कीं लियाकत नीं समझी। वां रै भाऊं बुधियो यूं फाऊ में कलक्टर बणग्यौ। …गोरमेंट रै कोटै सूं बण्योड़ौ है चमारां रो छोरौ। नींतर आं लोगां में कठै इत्ती ऊरमा होवै। ठाकर सा’ब रै लेखै तौ राज करणै री कूवत फगत म्हां रजपूतां में होवै। अै म्हारा दाणा चाबनै बणियौड़ा हाकम किसा हाकम है? हाकम तौ म्हारा दोऊं जंवाईसा है। अेक एस. पी. है अर दूजौड़ा फौज में कैप्टन। …लोग स्यान देखै!

तकदीरां सूं ठाकर सा’ब री दोऊं डावड़ियां चोखै घरां में ब्याईजी। इण बात रौ घणौ गुमान रैवै ठाकर सा’ब नैं, पण ठाकर सा’ब रा तीनूं कंवर मिडिल पास रैया। तीनूं बेटा खेतीबाड़ी रौ काम करै अर दारू रौ शौक फरमावै। अै कंवर सा’ब सिंझ्या री वगत ठाकर सा’ब री बैठक में कोनी जावै। हां, दिनुंगै जरूर दरसण देवै। ठाकर सा’ब में अेक गुण हौ। वै कदैई दारू नीं पीवी। इण गुण रै कारणै वांरी आखै गांव में कदर है। वां री इज्जत इण दारूड़्या कंवरां रै कारण भी ही। गांव रा लोग आं तीनूं राफड़गारां सूं कतरावै। भी अेक विडंबना है कै डर रै कारण लोग ठाकर सा’ब री कांण मानै। जद ठाकर सा’ब री स्यान में की हळकी-भारी होय जावै तौ अै तीनूं पारधी सिरफोड़ी करता जेज को लगावै नीं। स्यात “भय बिनु होय प्रीत” आळी बात है।

जसगढ़ गांव में इण प्रीत रै कारण ठाकर सा’ब गांव री पंचायत सदा आपरै हक में राखी। आं रौ बडोड़ौ कंवर दोय-बार सरपंच भी रैय लियौ। अबकाळै सरपंच री लाटरी एस.सी. री खुलगी। इण वास्तै सरपंच एस.सी. रौ बण्यौ। भलांई बणौ, एस.सी. रै सरपंच नैं भी आंरी कोटड़ी माथै मौकैसर आयनै मुजरौ करणौ पड़ै। सरपंच जद-कद भी आवै उणनैं ठाकर सा’ब रै साम्हीं नीचै दरी माथै बैठणौ पड़ै। आंरी कोटड़ी रौ उसूल है। फगत बिरामण नैं छोडनै कोई उणरै बरोबर नीं बैठ सकै। कुल मिलानै ठाकर सा’ब कम सूं कम इण जसगढ में तौ आपरी ठसक बणा राखी है। और बात है कै इण गांव सूं बारै इणानैं कोई नीं पूछै। फेरूं भी अै अपणी जूनी ठुकरेस रौ आछौ भरम पाळ्यौ राख्यौ।

पण भरम तौ भरम होवै। इणी भरम रै चलतै ठाकर सा’ब आज परास्त होय नै कोटा सूं आया है। ऊंट जद डूंगर हेठै आवै तद ठा लागै कै कुण बडो है? बैठक रै साम्हीं बणियोड़ै लांबै-चवड़ै चूंतरै माथै ठाकर सा’ब रौ नौकर नत्थू ऊबौ हौ। वौ वांनैं जीप सूं उतरता देख्या। कातिक रा उतरता दिन। दिनुंगै री ठारी ही। ठाकर सा’ब बंद गळै रौ कोट अर माथै ऊपरां चूनड़ी रौ साफौ लगायां अळसायोड़ा-सा उतर्‌या। चै’रै री रंगत उड्‌योड़ी। वां रै चै’रै माथै अेक उदासी ही, जिकी जात्रा री थकाण सूं घणी गैरी अर बेहाल-सी लखावै ही। वै हळवां-हळवां चालता चुंतरै रा पगोथिया चढ्या। नत्थू वां रौ लटक्योड़ौ मूंडौ देख’नै थोड़ौ चिंता में पड़ियौ। वौ भाजनै बैठक सूं मुड्ढौ निकाळ ल्यायौ। चूंतरै माथै सुहावतौ तावड़ौ हौ। ठाकर सा’ब धच सूं मूढै रै हवालै होयग्या।

“काम होयग्यौ दाता होकम!” नत्थू पूछ्यौ।

“हां… होयग्यौ।”

“कांई बोल्यौ बी. आर. सुणियौ?”

ठाकर सा’ब नीं जाणै कठै हा। नत्थू री बात हवा में रैयगी। फेरूं वां नैं लखायौ, स्यात नत्थू कीं पूछ्यौ है। “हूंऽऽ” कैयनै वै नत्थू कांनी देख्यौ।

“बी. आर. सुणिया कांई बोल्यौ?” नत्थू फेरूं पूछ्यौ।

“बोलै कांई हौ..? के बोलतौ..? जावतां पांण काम कर दियौ।” ठाकर सा’ब कीं ऊंची आवाज में बोल्या। उणां रै इयां बोलणै सूं नत्थू सै’मग्यौ। बोल्यौ, “हुकम म्हैं आप खातर चाय ल्याऊं…।” अर वौ बैठक में दाखल होय नै परलै बारणै सूं जनाना ड्यौढी कांनी गियौ परौ।

…बी. आर. सुणिया! अेक चमार रौ छोरौ? उणमैं अैड़ी औकत कठै सूं आई? ठाकर सा’ब रै माथै में बार-बार ईज बात घूमै ही। वौ इण ढब उणां नैं पछाड़ैलौ, वै सोची कोनी ही। अठै सूं जद रवानै होया तद सोचै हा, वठै जावतां बी. आर. उणनैं माफी मांगणै वास्तै कैवैलौ। …पण होयौ अेकदम उल्टौ! बी. आर. आपरै अपमान रौ बदळौ जिण चतराई सूं लियौ, वा उणां रै सोच रै बारै री बात ही। बी. आर. री ऊरमा उणां रै सारू अेक प्हाळी बण’नै रैयगी।

कोई पांच-बरस पैली री बात होसी, जद वै बी. आर. सुणिया रौ निरादर कीयौ हौ। वौ वाकियौ ठाकर सा’ब नैं आछी तरै याद है। उण दिन उणां री पोती रौ ब्याव हौ। बैठक रै साम्हीं पसर्‌योड़ै चूंतरै माथै पधार्‌योड़ा मैमान, मुड्‌ढा अर ढोलियां माथै बिराज्योड़ा हा। बैठक रै पासै कोटड़ी रै सिंघद्वार माथै बिजळी री लड़ियां री झालरां जगमगै ही। कैई ठिकाणैदार सिरदारां रै पधारणै सूं ठाकर सा’ब रौ मन घणा हबोळा खावै हौ। वां नैं आपरै दादा होकम रौ जमानौ चेतै आवै लागौ, जद अठै इण बैठक रै साम्हीं फरियादी अर अैलकारां री भीड़ लागी रैवती। वौ जूनौ ठाठ अर रौब उणां रै चै’रै माथै पळका मारै हौ। …आज भी वै किणसूं कम है? वै सोची। उणां रै आसै-पासै सगा-गिनायती साफा सिर माथै बांध्योड़ा बैठा हा। स्सै सूं घणी रौबदार हाजरी उणरै एस.पी. जंवाईसा री ही। वै उणारै साम्हीं मुड्ढै माथै बिराज्योड़ा हा। रजपूत सिरदारां री इण मैफल में जूनी आन-बान री बातां चाल रैयी ही। अेक सूं अेक ठरकैदार किस्सा!

उणी’ज बगत एस.पी. सा’ब ऊबा होया। वै कीं बोल्या, पण ठाकर सा’ब रै कानां तक वांरी धीमी आवाज कोनी पूगी। ठाकर सा’ब वांनैं ऊबा होवतां देख नै बोल्या, “कियां कंवरसा, उठ खड़्या क्यूं होया?”

“हुकम, आपरै गांव रा बी. आर. सुणिया है नीं, वै अठै आयोड़ा बतावै। उणां सूं मिलणौ है। …वै म्हारै साथै चित्तौड़गढ़ में कलेक्टर हा… सोचूं अठै आयोड़ौ हूं तौ उणां सूं मिल लूं। बरात तौ हाल आयी कोनी, टाइम है।”

“आप बिराजौ”, ठाकर सा बोल्या, “थै जिणनैं बी. आर. कैवौ, वौ म्हारै गांव रौ चमारां रौ छोरौ बुधियो है। …आफळ करणै री जरूत कांई है आपनैं? म्हैं वीं नैं अठै बुलाय देऊंला। आप तौ बिराजौ…।”

ठाकर सा’ब घणै रौब अर लापरवाही सूं वठै ऊबै अेक जणै नैं कैयौ, “....अरे जा रे, थूं भोमै आळै बुधराम रै घरै जा, उणनैं कैय दै कै बाबोसा थनैं बुलायौ है।”

वां रौ आदेस सुण’नै वौ मोटियार गयौ परौ। ठाकर सा’ब इण हुकम रै बाद आपरी धोळी मूंछ्यां माथै हाथ फेर्‌यौ अर मुळक्या, “कंवरसा, अतरी तौ म्हारी भी चालै…।”

ठाकर सा री इण बात माथै बठै बैठ्या जिका स्सै हड़-हड़ हांस्या। कोई बोल्यौ, “ठाकर सा’ब तौ ठाकर सा’ब है। म्हांरा गांव रा धणी।” इण बिरदावली सूं वै और भी चवड़ा होयग्या। आयोड़ा मै’मानां मांय सूं अेकाध जणै वां री बडाई में औरूं कसीदा पढ़्या। अेक आछौ खासौ दरबारी माहौल बणग्यौ हौ, वीं वगत।

थोड़ी ताळ पाछै बी. आर. सुणिया बठै पौंच्यौ। उणां रै आवतां एस.पी. साब ऊबा होय’नै उणां सूं नमस्कार कीनी। फेरूं हाथ मिलायौ। वठै मौजूद और भी कैई जणा बी. आर. सूं राम-राम... नमस्कार करी। अेक बार ठाकर सा’ब रै दरबार रौ मुहाणौ बदळीजग्यौ। बी. आर. सुणिया स्सै रै आकर्षण रौ केंद्र बणग्यौ। नाना-मोटा सरकारी ओहदैदार खड़्या होय नै सुणिया नैं घेर लीन्यौ। इण बीच सुणिया ठाकर सा’ब नैं ‘पाय लागूं’ कैयौ अर एस.पी. सा’ब रै साथै अेक ढोलियै माथै बैठग्यौ। दोऊं अफसर आपस मांय बतळावै लाग्या। बाकी स्सै लोग उणां दोनुआं कांनी भाळै। अतरै में ठाकर सा’ब रै कांई ठा, कांई मच्छर जाग्यौ। वै हड़क-भड़क बोल उठ्या, “अरे बुधराम, थूं म्हारै साम्हीं ढोलियै माथै बैठग्यौ!”

अेकदम सरणाटौ पसरग्यौ। एस.पी. सा’ब बाकौ फाड़्यां आपरै सुसरोजी कांनी भाळता रैयग्या, …अरे कांई? कोई दूजौ होवतौ तौ वै झाड़ देवता, पण आपरै सुसरौ सा नैं कांई बोल सकै हा?

कलेक्टर बी. आर. सुणिया झट सूं ऊबौ होय’नै हाथ जोड़्या, ‘गळती होयगी बाबोसा! म्हनैं ध्यान कोनी रैयौ।” अर वौ फक होयोड़ै चैरै सूं एस. पी. सा’ब सूं हाथ मिलायौ। एस.पी. सा’ब भी ऊबा होयग्या। बी. आर. सुणिया बोल्यौ, “ओ. के. बॉस… मैं चलूं…।”

“सर, बैठिए आप..!”

“नो थैंक्स…” बी. आर. कैयौ अर वठै सूं गयौ परौ।

बी. आर. सुणिया रै गयां पाछै एस.पी. सा’ब आपरै सुसरौ सा नैं कैयौ, “थै कांई कर्‌यौ बाबोसा? आखर वौ अेक कलेक्टर है। म्हारौ बोस है। इण तरै थांनैं उणरी बेइज्जती नीं करणी चाईजती। थांनै ठा है, वौ कदै भी म्हारै जिलै में आय’नै म्हारी खाट निसार सकै। …अठै बुला’नै थे मिनखां बिचाळै उणरी लोई उतारली…।” एस.पी. सा’ब नैं झुंझळ-सी आवै लागी, “...थे भी अजीब हौ। थांनै मालम होवणौ चाईजै कै जदि वौ चावै तो थांनै अबार पास्को एक्ट लगा नै जेळ भिजवा सकै…!”

ठाकर सा’ब सूना होयग्या। हाथ जोड़ नै कंवरसा सूं बोल्या, “कंवर सा’ब, म्हारौ राम निसरग्यौ... मूंडै सूं निसरगी... आप चावै क्यूं भी कैवौ।”

एस.पी. स’'ब कीं नीं बोल्या अर तावळा सा बी. आर. सूं मिलण नैं गिया परा। अेक मोटियार नैं साथै लेय’नै वै सुणिया रै घरै पूग्या। आपरै सुसरौजी री बदमिजाजी री बात कैय’नै उणसूं माफी मांगी। पण सुणिया इत्तौ कैयौ, “एस.पी. सा’ब कोई बात कोनी। वै माईत है। …डोंट टेक इट सीरियस…।”

बी. आर. सुणिया नाराजगी तो नीं दरसाई पण वौ सिंझ्या नैं ढुकाव री टैम नीं आयौ। जदकै वौ ठाकर सा’ब री पोती रै ब्याव में सामल होवण सारू आयौ हौ। ठाकर सा’ब रौ बडोड़ौ कंवर जसवंत सुणिया रै साथै मिडिल तांई भण्योड़ौ हौ। जसवंत री खास मनवार माथै वौ गांव आयौ हौ।

ब्याव रै वगत ठाकर सा’ब री खामख्याली री चरचा रैयी। जसवंत ब्याव में लाग्योड़ौ रैयौ। उण सोच्यौ, काल सुणिया सूं मिळसूं। पण सुणिया रात नैं आपरै हलकै माथै बावड़ग्यौ हौ। इणरै बाद सुणिया कदी कोटड़ी माथै नीं आयौ, ना वौ आपरै परवार में किणी ब्याव सादी माथै ठाकर सा’ब रै परवार नैं बुलायौ। वौ आपरी नाराजगी मूंन धारण करनै जतावतौ रैयौ।

इण घटना री चरचा कैई दिनां तांई गांव में रैयी। आसै पासै रै बीजै गांवां में भी सगा-गिनायतां रै जरियै बात पूगी। इणमैं कोटड़ी सूं किणी तरै रै संबंध आळा तौ ठाकर सा’ब रौ ठरकौ बतायौ, “कांई होयौ, कैय दियौ तौ कैय दियौ? ठाकर सा’ब कीं री को धरावै नीं। कलेक्टर होवौ चायै कोई बालिस्टर, कायदौ तौ कायदौ है।” दूजै कांनी आम आदमी दबी जबान सूं इणनैं ठाकर सा’ब री झूठी कड़ अर नाजोगौ वैवार बतायौ। होळै-होळै वगत परवाण बात ठंडी पड़गी। आई-गई होयगी। पण लोग भलांई भूल जाऔ, बी.आर. सुणिया कोनी भूल्यौ।

ठाकर सा’ब रौ छोटोड़ौ कंवर जिणरौ नांव गजूसिंघ हौ, अेक जात्री बस लेय राखी ही। बस जैपुर सूं कोटा रा गेड़ा लगावती। उण दिनां गजूसिंघ घणकरी बर कोटा रैया करतौ। संजोग सूं बी. आर. सुणिया भी तद कोटा में कलेक्टर हौ। लारलै दिनां कोटा सूं जैपुर आवती वेळा आबकारी आळा रै छापै में अेक जात्री कनै अमल (अफीम) पकड़ीजग्यौ। जात्री नैं पकड़’नै आबकारी आळा लेयग्या। इण मामलै में गजूसिंघ अर उणरी बस रौ कोई लेवणौ-देवणौ नीं हौ। पण दूजै दिन जद बस जैपुर सूं कोटा पूगी, आबकारी इंस्पेक्टर बस नैं सीज करनै थाणै में बंद करवा दीनी। गजूसिंघ घणौ जोर खायौ। आपरै बहनोईसा रै नांव सूं अणूतौ फूंफाड़ा कर्‌या, पण बस थाणै सूं नीं छूटी। सेवट वौ आपरै बहनोई एस.पी. सा’ब नैं फोन करियौ, जिका बाड़मेर लाग्योड़ा हा। एस.पी. सा’ब तुरंत बात करी। पण आबकारी आळा पुलिस माथै बात गेर दी अर पुलिस आळा आबकारी आळा माथै। फगत ‘हां सा, हुकमसा, हुकम, हां’ होवती रैयी। गजूसिंघ रौ काम कोनी होयौ। इण तरै दस दिन निसरग्या। गजूसिंघ री बस नैं खामखा अमल तस्करी रौ वाहन बणा नाख्यौ हौ कोटा आबकारी महकमौ। अबै गजूसिंघ नैं गिरफ्तार करणै री त्यारी ही। सुरसुराट उणनै अेक पुलिस रौ इंस्पेक्टर देई। वौ इंस्पेक्टर गजूसिंघ नैं बतायौ कै थांरी बस तौ सीज है ई, अब थांनैं भी पकड़्यौ जावैला तस्करी करणै रै केस में। वौ बतायौ कै अठै रौ कलेकटर थांनै फंसाणौ चावै। थै कोई जेक हौवै तौ लगावौ, नींतर फंसौला।

गजूसिंघ भाजनै आपरै दाता होकम कनै गांव पूग्यौ। दाता होकम नैं आखी बात बताई। सुणनै ठाकर सा’ब रै लिलाड़ माथै चिंतावां री लकीरां खिंचगी। “...वठै कलेक्टर सुणिया है?” वै आपरै जंवाईसा एस.पी. सूं बात करी। फोन माथै ईज एस.पी. सा’ब बोल्या, “दाता होकम, म्हनैं ठा है के गजूसिंघ तस्करी में सामल कोनी, पण सब नाटक थांरौ वौ बी. आर. सुणिया करवा रैयौ है। वौ अेक आबकारी रै मोटै अफसर नैं काम भोळाय राख्यौ है। थे उण दिन उणरी इनसल्ट करी ही, स्यात उण कारण वौ गजूसिंघ रै लारै होय रैयौ है। थे जायनै बी. आर. सुणिया सूं बात करलौ। उणनैं कैय दौ के भई गळती होयगी। नींतर कोर्ट में केस जावैलौ तौ मुस्कल होय जासी। दाता होकम, म्हैं खुद सुणिया सूं इण बाबत बात करी ही, वौ म्हनैं गोळमाळ उत्तर दियौ। कैयौ कै मुझे तो मालूम ही नहीं है, देखूंगा… आद।

ठाकर सा’ब नैं अबै घणौ अफसोस होवण लाग्यौ। उण वगत घणी भूल कर नाखी। नीं सोची के बी. आर. सुणिया अेक मोटौ हाकम है। सेवट तीनूं कंवरां रै साथै बैठनै ठाकर सा’ब सल्ला करी। वै बी. आर. सूं माफी मांगणै में आपरी हेठी समझै हा। बोल्या, “जसवंत जाय’नै बात कर लेयसी। जसवंत उणरै साथै भण्योड़ौ है। उणरौ बेली है। कीं तौ लिहाज करैला।” पण जसवंत अरज कीनी कै दाता होकम, आप जावौ। आपरै जावणै सूं वौ मानैलौ। म्हांनै वौ टरका भी सकै।

आखर घणी सोचा-बिचारी करनै ठाकर सा’ब खुद बी. आर. सूं मिलणै रौ निरणै लियौ। निरणै करड़ौ हौ, पण मजबूरी ही। सोच्यौ, देखौ… कांई वगत आयग्यौ…? अेक चमार रै छोरै सूं अरज करणी पड़सी…।

ठाकर सा’ब भाड़ै माथै जीप मंगवाई। बंद गळै रौ कोट अर कड़पदार नवौ साफौ सिर माथै बांध’नै रवानै होया। रस्तै में सोचता रैया, बी. आर. सुणिया नैं कांई कैयसूं, बात कियां करसूं? …माफी तौ म्हैं मांगू कोनी। माफी क्यांरी..? म्हैं कैय देसूं लाडी, थांनैं माईतां री बात रौ बुरौ नीं मानणो चाईजै… थूं तौ म्हारौ टाबर है… गजूसिंघ थारौ छोटौ भाई है… थारै होवतां थकां गजू झूठै केस मांय फंसै, कियां होय सकै?

कोटा रै कलेक्ट्रेट पूगतां ‘पूगतां च्यार बजग्या। वै पूछाताछी करता कलक्टर री अदालत साम्हीं आयग्या। बी. आर. आपरी अदालत माथै बैठ्यौ हौ। अठै पूगणै रै बाद ठाकर सा’ब नैं हीणता घेर लिन्यौ… बी. आर. सूं कियां मिळू? अठै नीं मिळ’नै उणरी कोठी माथै मिळूं। वां रै कीं समझ में कोनी आयी। वै बरामदै में अठै सूं उठै तांई चक्कर काटै लाग्या… कांई करां…? दफ्तर रै भीतर दाखल होवणै री हिम्मत कोनी हुई। भीतर जाऊं तौ होय सकै वौ म्हंनैं बारणै निसार देवै… चलै जाऔ यहां से! ...तौ? वांरी हालत खराब होयगी। जिंदगी में कदैई अैड़ौ कांम कोनी पड़ियौ। वै चक्कर काटै। दफ्तर रै गेट माथै चिक लाग्योड़ी ही। अेक अैलकार बारै बैठ्यौ हौ। बरामदै में कैयी लोग कागज-पानड़ा लियां आपरी बारी नैं उडीकता बैठ्या हा। ठाकर सा’ब चक्कर काटता सोचै, जाऊं कै नीं जाऊं…? आज तौ फजीती होवणी लाजमी है…।

वठीनै ऊंची कुरसी माथै बैठ्यौ बी. आर. आपरै ठाकर सा’ब नैं चिक मांय सूं देख नै ओळख लिया। …हां वै है! सिर माथै साफौ, मरोड़दार धोळी मूंछां। वौ अेक चपड़ासी नैं बुलायनै कैयौ, “बारै बरांडै मांय वै साफै आळा बुजरग है नीं, उणां नैं बुलानै ला।”

चपड़ासी तावळौ-सौ चिक उठा’नै बारै आयौ अर ठाकर सा’ब सूं बोल्यौ, “आपनैं सा’ब भीतर बुलावै।”

ठाकर सा’ब रै धुकधुकी छूटगी। कांई कैयसी बी. आर. सुणिया उणनैं! वौ आपरी हाकमी झाड़ सकै… क्यूं ठाकर सा’ब, आयग्यौ नीं ऊंट पहाड़ रै हेठै। वै सोचता-सोचता भीतर दाखल होया।

वां नैं भीतर आया देखनै बी. आर. आपरी अदालती कुरसी सूं उठनै वांरी अगवाणी करतौ हाथ जोड़्या अर आगै बधनै ठाकर सा’ब रै धोक लगाई, “आवौ बाबोसा… आवौ!”

वठै मौजूद स्सै जणां, जिणमैं वकील अर फरियादी सामल हा, इचरज सूं देखै लागा, कुण? बी. आर. उणां नैं घणै आदर सूं आपरै चैम्बर मांय लेयग्यौ, “बाबोसा, आप अठै बिराजौ.. म्हैं अबार आऊं।” कैयनै वौ बारै गयौ परौ।

ठाकर सा’ब पांणी-पांणी होयग्या। …अरे, म्हैं तो इणरौ इतरौ भूंडौ अपमान कर्‌यो…अर अठै अदालत बिचाळै म्हारौ अैड़ौ मान राख्यौ। धिक्कार है म्हनैं…। ठाकर सा’ब री आंख्यां भीजगी। कदै रौ जम्यौ तणाव आंख्यां सूं बैवै लागौ।

थोड़ी ताळ पछै बी. आर. चैम्बर में आयौ। वां रै साम्हीं कुरसी माथै बैठग्यौ। फेरूं बोल्यौ, “हां बाबोसा, अबै फरमाऔ, आज कियां पधारणौ होयौ?”

बाबोसा सूं बोल्यौ कोनी गयौ। वां रौ गळौ रूंधीजग्यौ। टळक-टळक आंसूं पड़ै।

“कांई बात होई बाबोसा… इयां कियां..?” बी. आर. पूछ्यौ।

ठाकर सा’ब कैई ताळ अबोला बैठ्या रैया। नीची नस कर्‌यां आपरै आंसुआं नैं बी. आर. सूं लुकावणै री निरफळ चेस्टा करता रैया। फेरूं आंसूं पूंछनै उणनैं गजूसिंघ आळौ सगळौ मामलौ बतायौ। बी. आर. अणजाण बण्योड़ौ उणां री बात सुणी। इण तरै, जाणै वौ जाबक बेखबर है इण मामलै सूं। पूरी बात सुणनै बोल्यौ, “बसऽऽ, इतरी सी बात रौ टेंसन! थे पेली आय जावता। अभी लौ बाबोसा! म्हैं फोन करूं।” बी. आर. बोल्यौ अर फोन लगायौ। लाइन मिळी तद वौ बोल्यौ, “हेलो, मैं जिला कलक्टर! अरे भई यह गजूसिंघ की बस का क्या मामला है? …हां, सुनो, इस छोटे से काम के लिए हमारे गांव के ठाकुर सा’ब मेरे पास आए हैं। …गजूसिंघ बेगुनाह है। उसका आपके उस मामले से कोई तालुक नहीं है। हूं… ठीक है…हां… हां, वौ मेरे से बात कर लेंगे… छोड़ दो, ठीक है?”

ठाकर सा’ब नीं जाण सक्या के बी. आर. किणसूं बात करी। फोन राख’र बी. आर. बोल्यौ, “लौ बाबोसा! आपरौ काम होयग्यौ। थे थांरी बस, चावौ तौ अबार लेयनै जाय सकौ... अर गजूसिंघ नैं डरणै री कोई दरकार कोनी। …और कोई म्हारै लायक हुकम होवै तौ फरमावौ!”

ठाकुर सा’ब रा हाथ जुड़ग्या, “बस लाडी, ईज कांम हौ, वौ थूं कर दियौ। …म्हैं काल गजूसिंघ नैं खिनाय देयसूं, वौ मोटर लेय जासी।”

इणरै बाद बी. आर. वांनैं चाय-नास्तौ करवायौ। फेरूं वौ आपरै दफ्तर रै दरूजै तांई वांनै छोडण नैं आयौ। ठाकर सा’ब सैंगबैंग-सा होयोड़ा बठै सूं बिदा होया। जीप सूं पूठा बावड़ता वै आखै रस्तैभर गुमसुम बैठा रैया। वां रै जेहन में फगत ईज बात घूमै ही कै बी. आर. उणनैं भोत जोरकी पटकी दीनी। अैड़ी अकल उणमैं कठै सूं आई? नीं कोई सिकवौ नैं सिकायत अर अहसान रौ भारौ उणरै सिर मेल दियौ। भार भी इतरौ के वै सगळा झुक गिया। …आं लोगां में अैड़ी बुधि… अैड़ी राजनीत…? ठाकर सा’ब आज लग नीं समझ सक्या।

स्रोत
  • पोथी : अेक सती री आखरी परकमा ,
  • सिरजक : श्याम जांगिड़ ,
  • प्रकाशक : नारवाल प्रकाशन, पिलानी ,
  • संस्करण : द्वितीय
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