सुखजी चौधरी गांव पंचायत सिरदारपुरा रा उपसिरैपंच। माट अर रुतबै वाळा मिनख। घर में सरतरिया। घर-धिरांणी अर बेटा-बहू हाल-हुक्म में चालणिया। चोखळै रा मांनीजता चातर मिनख। दस पांच दिनां सूं ऊंटगाड़ै पर ठूंठिया लाद’र सहर में बेचण जावै नै पूठा आवतां घर-गिरस्थी री चाईजती चीजां-बस्तां ले आवै। गिरस्थी रौ गाडी ठाठ सूं गुड़कै।

अेक दिन मुंह अंध्यारै ठूंठियां रौ गाडौ भर’र सहर जावै हा। आप ऊंट पर इकलासियै बैठ्या रागळी करै। ऊंट उगाळी सारतौ आपरै मौवै चालै। सहर सूं कोसेक पैलां कुंडियै नेड़ै पूग्या होवैला कै मारग सूं आथूंणै पासै कीं लुगाई री दब्योड़ी-सी चिरळी सुणीजी। सुखजी कांन मांड’र ध्यांन दियौ तौ सुणीज्यौ कै थारी काळती गाय हूं। अरे दुस्टो! म्हनैं छोडद्यौ रै। ओरै... बारै... कोई भागौ रै...बचावौ रै। अै कसाई आबरू... ओरै...

सुखजी आखी बात समझग्या। झट ऊंट सूं कूद’र मो’री खेजड़ी रै बांधी अर लाठी लेय’र भाग्या। दूर सूं दकाल मारी, “अरै म्हैं आयौ... हणांई आयौ। अरै नालायको, पग मांडौ। ऊभा रैवौ! थांरौ बाप आवै है।” दकाल मारता गेलै बगतां नैं हेला मारता आवाज रै सहारै दो-तीन खेत पार कर’र धोरै चढ्या तौ कीं धुंधळी धुंधळी-सी दो छियां-सी भागती दीखी। वै ललकारता उणां रै लारै भाज्या। रीसांणा होय’र दकाल मारी कै भाग्यां कठै जांण नहीं देऊंला। बिल में बड़‌योड़ा नैं काढ लाऊंला।”

अब तांईं सूरज उगाळी होयगी ही। भागता-नाठतां दोन्यूं जणा आपोपरी में बतळावण करी। तौ अेकलौ इज है। आपां दो जणा। दो तौ माटी रा बुरा। आव सा’ळै नैं कूट नाखां। वै सुखजी रौ मुकाबलौ करण सारू पूठा बावड़्या। अेक बोल्यौ, ‘थूं वीं री हिमायत करण नैं आयौ है कांई?”

सुखजी सेंठां जवांन हा। ताचक’र अेक जणै री कनपटी रै हेठै इसी लाठी फटकारी कै वो गुचळकी खा’र धूळ चाटै लाग्यौ। लाठी फेंक’र फुरती सूं उछळ’र दूजै रै गंफी घाली अर भुवाय धरती पर पटक’र छाती पर गोडा टेक’र मुक्कां सूं मारतां-मारतां थोबड़ौ सुजा दियौ। नीचै पड़्यौ जवांन हाथ जोड़तौ बिरगरा’र बोल्यौ, “बंदा, आज-आज छोड दै। भळै लुगाई जात कांनी भूल’र नीं झांकूं। आज सूं, तीन तलाक। म्हारौ रांम नीसरग्यौ। थारा पग झालूं हूं।”

सुखजी गरज्या। वीं री जट झाल’र अेक खेजड़ी हेटै लेयग्या। सिर रौ पोतियौ खोल’र उण रा हाथ-पग भेळा कर’र खेजड़ी सूं जरू कर दिया। भळै मगर्‌यां पर गदीड़ मारता बोल्या, “हरांमजादा, गांव री भाण-बेटियां पर जुल्म करतां लाज को आवै नीं। मरज्या ढकणी में नाक डुबो’र।” यूं कैय’र घणी नफरत सूं उण रै मूंढै पर थूक्यौ। फेरूं दकाल मारता बूझ्यौ, “कुण हौ वो थारै साथै थारौ बाप? कठै रा हौ थे? साची बता, नहीं तौ खेजड़ी रै भिड़ा’र सिर फोड़ नाखूंला।” सुखजी रौ विकराळ अर विडरूप देख’र जवांन री जीभ ताळवै रै चिपगी। वीं नैं बोली को आई नीं। सुखजी जट झाल’र वळै बुझ्यौ, “म्हारी बात रौ पडूत्तर को दीयौ नीं।”

वो रीरांवतौ-सो बोल्यौ, “म्हे सहर रा हां। म्हारौ नांव मूंगलौ अर वीं रौ स्यामलौ है। दोन्यूं भायला हां। अठीनै कीं गांवड़ियां में खाजरू खरीदण नैं जावे हा। इण छोरियां नैं देख’र म्हांरी नीत बिगड़गी। म्हारौ रांम नीसरग्यौ। अब चाहै मारौ अर छोडौ। थांरी काळती गाय हूं।”

सुखजी उणरै दो धोळ जमांवता स्यामलै कांनी चाल्या देखण नैं— मरै है कै जीवै है। चालतां-चालतां उणरी निजर घास री बगर कांनी पड़ी। च्यार-पांच छोरियां दापळी पड़ी। सगळी थरथर धूजै। सुखजी बूझ्यौ, “बायल्यो! थे अठै कींकर आई? कुण-सै गांव री हौ?”

अेक छोरी कूकती-कूकती सुबकियां चढ्योड़ी बोली, “म्हे सगळी सहर सूं छांणा-लकड़ी चुगण नैं आई ही। अठै दो मोट्यार म्हारी बेली तीजां बाई नैं आडी पटक ली।” कैय’र छोरी मूंढै में ओढणियौ दाब’र आंख्यां मींचली। वळै वा गोडां में सिर देय’र आरड़ै चढगी। होठां सूं पूरा बोल को नीसर् ‌या नीं।

सुखजी रीसांणा होय’र बुझ्यौ, “कठै है वा तीजां?”

तीजां री छोटी भैण हाथ सूं इसारौ करती हळवां-सी कैयौ, “वा टापली रै ओलै पड़ी है।”

सुण’र सुखजी रै अेक चढै अर अेक उतरै। वै खाथा-खाथा टापली कांनी चाल्या। दूजोड़ौ जवांन, जिणरै लाठी री मारी ही, बिचाळै पड़्यौ सिसकै हौ। वै वीं

नैं छोड’र टापी कांनी गया। निजारौ देख’र धोळा-धप्प होयग्या। छोरी चेताचूक पड़ी ही। गाबलिया लीरमलीर। उघाड़ी-पघाड़ी। डील लोही झरांण। मूंढै में पूर दाब्योड़ौ। सुखजी सूं देख्यौ को गयौ नीं। वै पूठ फेर’र ऊभा होयग्या।

सैम-गैम ऊमा सुखजी लुगाई जात री दुरदसा देख’र आकळ-बाकळ होयोड़ा मन मांय विचार करै— विधाता, थूं लुगाई री जूंण क्यूं बणाई? अर बणाई तौ इत्ती नाजुक अर दूबळी क्यूं? वां री रीस रौ थाग नीं। रीसांणा होय’र पूठा भाग्या। स्यामलै अर मूंगलै रै वळै ठोकर ठरकाई। वां नैं छोड वळै छोरियां कांनी आय’र बोल्या, “बेटी, थे अब डरौ मत। म्हैं अब आं दोन्यूं दुस्टां रौ काळ आयग्यौ हूं। थे जा’र उण थांरी साथण नैं थांरा ओढणियां उढावौ। वा नागी-बूची अचेत पड़ी है। म्हैं जाय’र मारग पर ऊभौ म्हारौ ऊंटगाडौ लेय’र आऊं हूं। इणनैं सहर री अस्पताळ ले चालस्यां। थे डरौ मत, अब अै हरांमी कुत्ता कीं नहीं कर सकै।” कैय’र वै गाडै कांनी चाल्या।

छोरियां डरती-डरती तीजां कनै आई। वींरी दुरदसा देख’र सगळी जोर-जोर सूं रोवै-कूकै लागी। आपरा ओढणियां उतार वीं रौ उघाड़ौ डील ढक्यौ, पूर सूं लोही पूंछ्यौ। वीं नैं चेतौ करावण सारू घणी घोथळी, पण वां मुड़दै री दांई अचेत पड़ी रैयी। अब तांईं सूरज घणौ ऊंचौ चढग्यौ हौ। मारग बैंवतै चार जवांनां नैं बुला’र सुखजी गाडौ खिणा’र तीजां कनै ल्याया। रोवंती-कूकती छोरियां तीजकी नैं गाडै में सुवाण दीनी। सुखजी दो जवांनां नैं समझा’र उण दुस्टां री रुखाळी सारू छोड्या अर दो जवांनां नैं आपरै साथै लिया। अेक छोरी तीजकी री भैण आपरी साथळ पर तीजकी रौ सिर टिका लियौ। दूजी छोर् ‌यां आपरी ओढण्यां रै पल्लां सूं वीं नैं पूंन घालै।

सुखजी ऊंट नैं टिचकार्यौ। खाथौ-खाथौ टोर’र पुलिस-थांणै पूग’र थांणैदार नैं सारी हकीकत बताई। रपट दरज करणै रौ कैयौ। थांणैदार अेकर तो पुलसिया मूड में नां-नूं करी, पण सुखजी दबण वाळा कोनी हा। छेकड़ में रोही में पड़्या कुमाणसां नैं गिरफ्तार करणै सारू दो सिपाहियां नैं भेज्या अर तीजकी रौ केस अस्पताळ में रैफर कर दियौ।

अस्पताळ पूग’र सुखजी लेडी डाक्टर सूं मिळ’र तीजां नैं भरती कराई। नरसां हाथूंहाथ उणनैं डाक्टर री सलाह पर दवाई-पांणी देय’र होस में लावण रा जतन कर्या। सुखजी सगळी छोर्यां नैं आप-आपरै घरां खिनाई। तीजां रै मायतां नैं बुलाया। इतरै में पुलिस मूंगलै अर स्यामलै नैं गिरफ्तार कर ल्याई। स्यामलौ बेहोस हौ। अस्पताळ में भरती कर लियौ गयौ। सिपाही मूंगलै अर सुखजी नैं थांणै में ल्याया। इतरै में अस्पताळ सूं थांणै में फोन आयौ कै अबार बलात्कार रै केस में जिण मुलजिम नैं भरती करायौ हौ, उण रौ इंतकाळ होयग्यौ है।

थांणै में मूंगलौ आपरै बयानां में अपणै आपनैं बेकसूर बतावतां थकां तीजकी साथै स्यामलै पर जबरजिन्ना रौ आरोप लगायौ अर सुखजी पर स्यामलै नैं मारण रौ। थांणैदार सुखजी पर 302 रौ केस बणा’र वां नैं हवालात में ठोक दिया।

आखै सहर में तीजकी साथै होयोड़ै कुकरम अर स्यामलै री मौत रौ हाकौ लाय री दांईं फैलग्यौ। सहर री आखी राजनीतिक पारटियां आप-आपरी गोट्यां फिट करणै में लागगी। दरअसल तौ किणी नैं तीजकी रै साथै होयोड़ै हादसै री पीड़ ही, स्यामलै री मौत रौ गम।

पुलिस जांच-पड़ताल कर’र तीजकी रै मायतां रौ पतौ लगा लियौ। वा सहर रै ऊंचावै बास रै हुणतैजी पहलवांन री बेटी ही। परणी पांती। पाड़ौसी गांव हरखासर में वीं रौ सासरौ है। पुलिस दोनूं परिवारां नैं बुला लिया। पण कोई सो तौ उण री दवाई-पांणी री हां करी अर आपरै घरे ले ज्यावण री। अब म्हारै कांई कांम री, कैय’र परै दूर नटग्या। म्हारै आखै कडूंबै में दाग लगा दियौ। कूवै में पड़ौ चाहै खाड में। चाहै कठै ही मरौ-खपौ। कैय’र पीहर अर सासरै वाळा आप-आपरै घरे टुर वहीर पड़्या। किण ही समाज-सेवी रै सैयोग सूं अस्पताल में तीजकी री दवाई-पांणी होवती रैयी। पांच-सात दिनां री बेहोसी रै बाद वीं नैं चेतौ होयौ। वा पुलिस नैं आपरै बयानां में बतायौ कै म्हनैं घणी बात तौ याद कोनी, पण दो जणा जद म्हासूं बाथेड़ौ कर’र म्हनैं जमी पर आडी पटक’र महासूं आपरौ काळौ मूंढौ कर रैया हा जद बाबोजी री दकाल म्हारै कांनां में पड़ी कै पग मांडौ, म्हैं अब ही आयौ। वळै कांई होयौ, ठा नीं।”

पुलिस सुखजी पर 302 रौ अर मूंगलै पर 376 रौ केस बणा’र कोरट में चलांण पेस कर दियौ। सुखजी रा भाई-परसंगी जमानत सारू घणी कौसीसां करी, पण जमानत को होई नीं। मूंगलौ मुचळका’र जमानत पर छूट’र आपरै घरां आयग्यौ।

जेळ में सुखजी सौवै तौ नीदां में वां नैं तीजकी री चीख सुणीजै। वीं रौ लोही झरांण डील लीरमलौर पूर अर मूंढै में ठूंस्योड़ौ पूर साफ लखावै। गुंडां रौ कुकरम चैतै आवतां उणां रै मूंढै में खरांस ज्यावै। मुट्ठी भींचीजै, जाड़ पीसीजै। पण जौर कांई? सेर पींजड़ै में बंद। जे बारै होवै तौ अब तांईं मूंगलौ धरती पर जीवतौ फिरै?

जेळ में वां नैं ठा पड़ी कै तीजकी हाल तांई अस्पताल में इज है। अब डील में कीं सावळ है। पण, वां नैं जांणकारी मिळी कै अस्पताळ वाळा उणनैं छुट्टी देवणी चावै, पण तो पीरै वाळा अर सासरै वाळा, कोई उणनैं अंगेजण नैं त्यार नीं। दिन-रात उण रौ बेबस चेहरौ लोहीझ्यांण डील सुखजी री आंख्यां आगै फिरतौ रैवै। वै मन में घणा पिछतावै कै जे म्हैं घड़ी स्यात पैली पूग जावतौ तौ वै दुस्ट भेड़िया उण भोळी-ढाळी गऊ नैं को फंफेड़ता नीं। बापड़ी तीजां रौ कांई दोस? सूधी-भींडळी गाय री दांईं जाबक निरदोस। लुगाई री जात-अबळा। आपरी इज्जत सारू उण दुस्टां सूं घणी जूझी-लड़ी-झगड़ी। रोळौ-रप्पौ कर्‌यौ, पण दो-दो कांमी-कुत्ता-मोथां रै आगै बापड़ी निरबळ लुगाई रौ कांई जोर?

तीजां अस्पताळ में पड़ी-पड़ी काळूंठगी। उणरै साथै जकौ हादसौ होयौ, याद कर’र वा औजूं थरथर धूजण लाग ज्यावै। अब वीं रै डील रा घाव भरीज’र सूकग्या पण, मांयलै हिवड़ै रै घोबां री ओखद कुणसै डाक्टर कनैं? अब वा आपरै बैड सूं हेठै उत्तर’र कीं टुरै-फिरै लागी।

वा आपरै बैड री पाड़ोसण नैं बार-बार कैवै कै म्हारी मां नैं अेकर बुलवा दै। पाड़ोसण पडूत्तर दियौ कै थारी मां अर सासू अठै दोनूं लिख’र दे दियौ है कै म्हे इणनैं झालण नैं कतैई त्यार नीं हां। सुणतां वा गोडां में सिर देय’र इत्ती जोर सूं कूकी कै अस्पताळ रा आखा करमचारी भेळा होयग्या। पण इणनैं कुण बुचकारै, कुण हिंवळास बंधावै? सागी जामण इज जद नटगी तौ दूजौ कुण धीरज बंधावै? बापड़ी लुगाई री जात।

अेक दिन सुखजी आपरै गांव समाचार करवा’र जैळ में आपरी जोड़ायत अर मो’बी बेटै नैं बुलाया। जेलर री आग्या सूं जद बात होवण लागी तौ बेटौ आंख्यां सूं आंसू ढळकावतौ बोल्यौ, “बाबा। थांनैं जेळ में देख’र म्हारी काया घणी बळै, पण म्हारौ जोर नीं चालै। म्हे हाईकोरट तांईं थांरी जमानत सारू फिर लिया पण बठै दरखास्त खारज होयगी।”

लुगाई तो वां नैं सींखचां में देखतां इज डुसका भरण लागगी। बोली कै म्हैं किण रा काळा चाब्या हा? आज म्हांनैं दिन देखणौ पड़्यौ। सुखजी दोन्यूं मां-बेटा नैं धीरज बंधावता बोल्या, “म्हारौ जेळ में कांई बीगड़ै, म्हैं किणरी चोरी कोनी करी, जारी कोनी करी। अेक निरदोस गऊ नैं बचावण सारू किणी दुस्ट रौ कतल कर्‌यौ जावै तौ वो पाप कोनी गिणीजै। म्हैं आज थांनैं घणै कांम सूं बुलाया हूं। म्हारी बात मानोला?”

मां-बेटा अेकै साथै बोल्या, “म्हे थांरी बात कद कोनी मांना, म्हे इज क्यूं, आखौ चोखलौ थारी बात आदरै। थे हुकम फरमावौ तौ खरी।”

सुखजी बोल्या, “थे अस्पताळ में तीजां नैं तौ देखी होवौला?”

दोन्यूं अेकण साथै बोल्या, “हां, अस्पताळ अर कोरट में पेसी री टेम बरोबर देखां हां। कोरट में वीं रा बयान सुण्या है। तीजां आपनैं तौ बापू सूं इधकौ मांनै है।”

सुण’र सुखजी मन में हरखीजतौ बोल्यौ, “बेटा, जलमभोम, धरम अर तिरिया जात पर ओड़ी आवै जद मरद रौ कांई फरज बणै?”

बेटो बोल्यौ, “बाबा! बात तौ आप म्हांनैं टाबरपणै सूं सिखांवता आया हौ कै आं तीनूवां में सूं किणी पर संकट पड़ै तौ पिरांणा री बळी देय’र उण री रुखाळी करणी चाईजै।”

“तौ बेटा! थारै सारू औसर चुक्यौ है। फरज निभावण रौ अैड़ौ सोनहलौ ओसर वळै कद आवैलौ?”

“बाबा, थे असली सागी बात कैवो नीं, अै कांई आड्यां आडौ हौ? म्हैं आप रौ अंस हूं। आपरी आग्या नैं कद लोपी?”

सुखजी थूक गिटता-सा हळवां-हळवां बोल्या, “बेटा, तीजां अस्पताल में पड़ी है। वीं रा कोई रिस्तेदार वीं नैं आपरै घरां ले जावण वाळा नीं है। आखा रिस्तेदार वीं सूं घिरणा करै है। वीं नैं अब अपणायत अर हिंवळास री जरूत है बेटा, वा म्हारी धरम री बेटी अर थारी धरम री भैण है। वीं नैं आज अस्पताळ सूं लेजा’र आपणै घरां भैण-बेटी री दांई पाळौ-पोखौ”

बाप रा बैण सुणतां बेटौ आपरी मां कांनी जोयौ। लुगाई आपरै धणी कांनी सुवालिया निजर सूं देख्यौ।

“क्यूं बोल्या कोनी?” सुखजी उणमणां होय’र बूझ्यौ।

“कोई बोलां बाबा! जद वीं रा मायत अर सासरै वाळा त्याग दी तो वळै आपां कींकर अंगेजां?”

“तौ वा अस्पताळ सूं छुट्टी करतां सड़कां पर टुकड़ा मांगती फिरसी? लूचा-लफंगां रा कुबोल-तांना सुणती रैयसी? इण हादसै में वीं रौ कांई दोस? रावण आगै सीता रौ, कीचक आगै द्रौपदी अर इंदर साम्हीं अहल्या रौ कद जोर चाल्यौ? बापड़ी दुरबळ लुगायां।”

बेटौ बोल्यौ, “अै आखी बातां तौ खरी, पण जगती आपां नैं कांई कैवैली?”

सुखजी समझायौ, “बेटा! जगती तौ हरदम जगती इज रैवै है। हाडबायरी जीभ च्यारूंमेर फिरै। अेक बापड़ी सतायोड़ी-वीखै री मारी दुखियारी लुगाई नैं सरण देवणौ कितरौ पुन अर सेवा रौ कांम है। जीव री रक्षा करणी भौत महताऊ कांम है बेटा। कांई वीं नैं सरण देवणौ माड़ौ अर को’जौ कांम है? आज जे आपणी भैण-बेटी री इण तरै दुरगत होंवती तौ आपां कांई करता? वीं नैं घर में राखणौ कांई पाप है?”

बेटौ कैयौ, “आ कुण कैवै है?”

सुखजी बोल्या, “तौ बेटा! आज सूं वा थारी धरम री भैण है। वीं नैं अस्पताळ सूं घरे लेय ज्यावौ। वीं री सेवा-चाकरी करौ। किणी दुखिया अर बेसहारै री सेवा रै बरोबर कोई दूजौ धरम नीं है। इण सूं मिनख जमारौ ऊजळौ है, ओपै है।

दोन्यूं मां-बेटा रै सुखजी री बात हाडूहाड जचगी। वै अस्पताळ सूं जरूरी लिखापढी करा’र घणै मांन सूं तीजां नैं आपरै घरां लेयग्या। सागण बेटी अर मां जायी भैण री दांई वीं री सेवा करै।

सुखजी जेळ में पड़्या कोरट री पेस्यां भुगतै। मुकदमै रौ फेसलौ ठा नीं कद होवै। कई लोगां री मौत तौ पेस्यां-पेस्यां में इज होय जावै, चाहै वै कितरा निरदोस क्यूं नीं हुवौ। सुखजी नैं आपरै फैसलै रौ नेहचौ है, आपरै बयानां में वै खुद स्यामलै री कतल हंकारी है। वां रौ जी घणौ सौरौ अर राजी है। अब वां नैं जेळ, जेळ नीं लागै। वै टेमसिर आपरौ माळा-मिणियौ करै। मन में विचार कर’र घणा हरखीजै कै कोरट रै फैसलै में घणी सूं घणी ऊमरकैद होवैली। इण में कांई हरज है? अेक अबला रौ कल्याण करतां जे पिरांण त्यागणा पड़ै तौ सापुरसां री जिनगांणी धन्य है, वां रौ जलम लेवणौ सारथक है, वां रै मात-पिता नैं लखदाद है।

महीनै बीस दिन सूं कोरट री तारीख पेसी पर तीजां आपरै धरम रै बाप रा दरसण कर निहाल हो ज्यावै। वा सांचै मन सूं वां रै जेळ सूं छूटणै री अरदास करै।

लोगड़ा बातां करै— देखौ, सुखजी में कांई होई? परायै दुख दूबळा घणा। होम करतां हाथ बळै।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : बैजनाथ पंवार ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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